शुक्रवार, 9 जनवरी 2009


नेताओं का चरित्र बदलने की बात न करना...

यह सियासी सभा है, सदभावना की बात न करना...
यह दफ्तर है, किसी काम की बात न करना।

सिलकर रखना मुंह जितना हो सके महोदय...
यह अंधेर नगरी है, सर उठाकर बात न करना।

कितने भी कोई जूते मारे, सब चुपचाप सहेंगे...
यह मुर्दों की बस्ती है, बगावत की बात न करना।

लोकतंत्र में सबकुछ बदल सकता है लेकिन...
नेताओं का चरित्र बदलने की बात न करना।


अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bahut sahee likha ahi 'netaaon ka chritr badalne kee baat naa karana' amitaabhji aapako dhanyvaad

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत बेहतरीन लिखा है सटीक बात, सही चोट

लोकतंत्र में सबकुछ बदल सकता है लेकिन...
नेताओं का चरित्र बदलने की बात न करना।