मंगलवार, 18 नवंबर 2008

पहचान कौन

1
ऋषिदेव दंडित हुए, नायक दिया खदेड़।
नौजवान हैरान हैं, सहमे सभी अधेड़।।
सहमे सभी अधेड़, घात है अब भी जारी।
देख प्रताप मित्र का, सबने मानी हारी।।
किसे नहीं है नौकरी प्यारी...

2
10करोड़ का लक्ष्य जुटाने निकले सारे बॉस ।
मरो-खपो पर करो उगाही, मालिक ने दी है धौंस।।
मालिक ने दी है धौंस, बहुत हो गई मक्कारी।
इससे भला परचून का धंधा, आत्मा फिर धिक्कारी।।
पर, आराम की नौकरी किसे नहीं प्यारी...

3
हाथों में है कौशल फिर भी खिंचते रहते कान।
मिला दुबारा देश निकाला, आफत में है जान।।
आफत में है जान, अगर हो इज्जत प्यारी।
दूजी नौकरी ढूंढने की कर लो तैयारी।।
हुनरमंद हो, मत बनो भिखारी।।
(भोपाल संस्करण)
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

बाल दिवस

चक दे बच्चे...
ये बचपन ऊटपटांगा...
न डालें फटे में टांगा...
चक दे बच्चे
न भेदभाव, न झगड़ा...
न दुश्मन कोई तगड़ा...
चक दे बच्चे।
दिल में है उजियारा...
घर-संसार है सारा...
चक दे बच्चे।
न झूठ-कपट न पंगा...
न आपस में कोई दंगा...
चक दे बच्चे।
न सरहद का घेरा...
न गुटबाजी न डेरा...
चक दे बच्चे।
मन मैला न कुचैला...
न भरें लूट से थैला...
चक दे बच्चे।
बडे सभी हैं नंगे...
बस, मुन्ने सारे चंगे...
चक दे बच्चे।
ये भोले-भोले चेहरे...
समझें कोई पहरे..
चक दे बच्चे।
न कोई इनकी जाति...
सब इनके संगी-साथी...
चक दे बच्चे।
न धरम-करम की बातें...
न डरी-डरी-सी रातें...
चक दे बच्चे।
कोई इनसे सीखे जीना...
सो, झुके कभी न सीना...
चक दे बच्चे।
चक दे..चक दे..चक दे..चक दे...चक दे बच्चे।
अमिताभ फरोग

सोमवार, 10 नवंबर 2008

क्योंकि ये है बिग बॉस का घर

डायना ऐसी नहीं है...

अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
चूंकि बिग बॉस का घर एक खेल है, ऐसे में स्वाभाविक है कि घरवाले अपनी जीत के लिए तमाम हथकंडे अपनाएंगे। डायना को लेकर मोनिका और दूसरे अन्य लोगों की प्रतिक्रियाएँ सुनने के बाद संभव है कि दर्शकों के मन में इस पूर्व विश्व सुंदरी के प्रति कुछ नकारात्मक सोच जन्म ले, लेकिन ऐसी नहीं हैं डायना। वे बेशक अब बिग बॉस के घर से बाहर हो चुकी हैं, लेकिन यह जानकारी इसलिए देना जरूरी है, ताकि लोग उनके दूसरे अच्छे पहलुओं से अवगत हो सकें।
दरअसल, मुझे डायना के बारे में मशहूर माडल और फिल्म अभिनेता शाहवर अली ने बताया था। शाहवर भोपाल के रहने वाले हैं और मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। डायना ने उनके साथ फिल्म अब बस की थी। पिछले साल जब वे भोपाल आई थीं, तब शाहवर ने उनकी खूबियों से अवगत कराया था। डायना हेडन ऐसी अकेली मिस वर्ल्ड हैं, जिन्होंने इस काम्पटिशन में खिताबों की हेट्रिक हासिल की थी। उन्हें 'मिस 1997' के अलावा 'मिस फोटोजेनिक' का खिताब भी दिया गया था। शाहवर के मुताबिक, वो जैसी दिखती हैं, वैसी हैं नहीं। आन स्क्रीन पर डायना बेहद माडर्न और थोडी रूड नजर आती हैं, लेकिन वास्तव में वे बेहद सिंपल और डाउन टू अर्थ हैं। उन्होंने बेहद स्ट्रगल किया है। वे सेल्फमेड हैं और आज उन्होंने जो मुकाम पाया है, उसके पीछे खूब सारी मेहनत छिपी हुई है। डायना की बोली और रहन-सहन जरूर इंग्लिश है, लेकिन दिल पूरी तरह हिंदुस्तानी है । वह बेहद ही सेंसेटिव और इमोशनल हैं। हां, एक बात उसकी पर्सनालिटी की जो मुझे सबसे अच्छी लगती है, वह है डायना का करेज। उसे किसी चीज से डर नहीं लगता। वह लाइफ के हर एक पल को इंज्वाय करती हैं।
शाहवर ने बताय था-अपनी खूबसूरती, अदाकारी और हंसमुख स्वभाव के लिए जानी जाने वालीं डायना के जीवन का एक सकारात्मक पक्ष और है-गरीबों के लिए उनका प्यार'। डायना हेडन ने लास एंजिल्स में गरीब और जरूरतमंद अमेरिकियों के लिए घर बनवाने की मुहिम शुरू की है। इसके लिए वे 'हैविट फार हयूमेनिटी चैरिटेबल आर्गेनाईजेशन' के साथ काम कर रही हैं। इसके अलावा वह अन्य चैरेटिबल ट्रस्ट से भी जुडी हैं।
अब बस नहीं:
शाहवर के मुताबिक, डायना ने फिल्मों से अलविदा नहीं कहा। हां, अब वह ज्यादातर समय लास एंजिल्स में रह रही हैं और हालीवुड फिल्मों से जुडने का प्लान कर रही हैं। फिल्म 'अब बस' की शूटिंग के दौरान के खट्टे-मीठे पलों को याद कर शाहवर बताते हैं- 'बैंकाक में शूटिंग के दौरान मैं वहां मनीष मल्होत्रा का फैशन शो करने चला गया था। डायना घूमने के लिए वहां के एक बीच पर चली गईं। इसी बीच उनका सारा सामान चोरी हो गया। इसमें उनका सारा पैसा, क्रेडिट कार्ड और बाकी सारे जरूरी कागजात भी शामिल थे। उस वक्त डायना मुझे पागलों की तरह ढूंढ रही थीं, और मुझे उनकी इस हालत पर हंसी भी आ रही थी।

शुक्रवार, 7 नवंबर 2008


बातों से नहीं होती बगावत कभी...
वक्त पल-पल बदलता है,
गिरगिट की तरह रंग बदलता है।
पैरों में नहीं होती ताकत उठाने की,
इंसान खुद-ब-खुद संभलता है।
कौन स्वार्थी नहीं इस दुनिया में...
कोई रिश्ते तो, कोई औकात बदलता है।
मां से महान नहीं है अगर कोई...
कृष्ण यशोदा के घर क्यों पलता है।
विवशता तो नाम है सिर्फ कहने की...
आस्तीन अपनी है, तो सांप क्यों पलता है।
बहुत ढूंढा हर तरफ एक बदनाम आदमी...
जो मिला, वही खुद को शरीफ समझता है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, तो फिर...
सूर्य सदियों से पश्चिम में ही क्यों ढलता है।
बातों से नहीं होती बगावत कभी...
उठा पत्थर, खड़े-खड़े हाथ क्यों मलता है।
  • अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

बुधवार, 5 नवंबर 2008

क्या किसी पार्टी की ऐसी वेबसाइट देखी है?


हे माया! आह कहूं या वाह माया! ...

किसी राजनीतिक पार्टी की वेबसाइट पर आप किन चीजों की उम्मीद करते हैं! जाहिर है पार्टी एजेंडा, पार्टी के कार्य, पार्टी नेताओं का विवरण और लंबे चौडे वायदे, लेकिन बहुजन समाज पार्टी की वेबसाइट http://www.bahujansamajp.com/ देखकर एक बार तो आपको विश्वास ही नहीं होगा कि यह किसी राजनीतिक पार्टी की वेबसाइट है। इस वेबसाइट पर फिल्म और बोल्ड वालपेपर से लेकर हर तरह के गेम, मेट्रीमोनियल व नौकरी साइट्स और इसी से मिलता-जुलता हर तरह का मसाला मौजूद है। हालाँकि साफतौर से यह नहीं कहा जा सकता कि यह बसपा कि ऑफिशियल साईट है या किसी की शरारत।
वेबसाइट को खोलते ही इसके होम पेज दर्जन भर आप्शन नजर आते हैं। इसमें पार्टी संबंधित जानकारी तो कम ही नजर आती है, लेकिन इसका इंटरटेनमेंट सेक्शन काफी तगडा है। अंतिम बार इसी वर्ष 2 अगस्त को अपडेट हुई वेबसाइट पर गेम और वालपेपर्स की भरमार है। इसके इंटरटेनमेंट सेक्शन को क्लिक करते ही आपको गेम्स, पजल्स, कार्टून, स्टोरी, ई-ग्रिटिंग, हर किस्म के जोक्स आदि के आप्शन मिलते हैं।
बोल्ड व बिकनी फोटोग्राफ
होम पेज पर नीचे दी गई लिंक फोटो गैलरी पर क्लिक करते ही न्यूरी फोटोगैलरी की लिंक खुलती है। इसके प्रोग्राम में बोल्ड फोटो का आप्शन भी मौजूद है। यही नहीं इसके इंटरटेनमेंट सेक्शन को खोलते ही 42357 वालपेपर की लिस्ट आती है, जिसमें बडी मुश्किल से खोजने पर इक्का-दुक्का धार्मिक वालपेपर नजर आते हैं। इसके अलावा वालपेपर या तो नेशनल, इंटरनेशनल फिल्म स्टार और माडल्स के हैं या फिर लव-रोमांस के।
भाषा का फेर
होम पेज पर ही एनएमएल सेक्स न्यूज नाम की लिंक भी नजर आती है। इस आप्शन को देखकर आश्चर्य होता है। आप्शन को खोलने पर वीडियो की विंडो ओपन होती है, जो किसी की भी जिज्ञासा बढाने के लिए काफी है। हालांकि जब विंडो पूरी तरह ओपन होती है, तो इसमें एड्स और रेप केसेस से संबंधित नेशनल न्यूज नजर आती है, लेकिन वेबसाइट में इस तरह की भाषा का प्रयोग भी इस पर सवालिया निशान लगाता है। वेबसाइट में मसाला वेबसाइट खोलते ही सबसे ऊपर न्यूज और इसके बाद बीएसपी का आप्शन नजर आता है। पार्टी के बारे में जानने की इच्छा से यदि आप इस आप्शन पर क्लिक करते हैं, तो यह खाली नजर आता है। इसके नीचे मौजूद एडिटोरियल और कालमिस्ट आप्शन में डाटा शीघ्र अपडेट करने की सूचना मिलती है। यही नहीं होमपेज पर मायावती और काशीराम के भाषण का वीडियो आप्शन नजर आता है, लेकिन इसे क्लिक करने पर भी डाटा शीघ्र अपडेट करने की जानकारी मिलती है। हां, जैसे ही इंटरटेनमेंट आप्शन पर पहुंचते हैं यहां दुनिया भर का मसाला नजर आता है। इसके अलावा वेबसाइट से जुडी लिंक में एनएमएल सेक्स न्यूज, होरस्कोप, मेट्रीमोनियल वेबसाइट, नौकरी स्टार, सेल्स एंड परचेज, याहू एक्स, जनरेशन एक्स, जैसी लगभग 37 लिंक जुडी हैं।

सोमवार, 3 नवंबर 2008

महिला नेत्रियों ने उठाई एक ही सीट पर दो-तीन बार आरक्षण की मांग


आरक्षण कोटा, लगने लगा छोटा
पल्लवी वाघेला
आरक्षण के चलते पंचायत चुनावों में हाथ आजमा चुकी महिला नेत्रियों में अब एक नई चाह ने जन्म लिया है। वे मुखर होकर कहती हैं कि उन्हें दो से तीन बार एक ही सीट में महिला आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। इसके पीछे उनका तर्क है कि घूंघट में पहली बार घर की दहलीज पार कर पंचायत का काम-काज समझने में ही वक्त निकल जाता है और जब वह काम शुरू करती हैं, तब तक उनका कार्यकाल ही खत्म हो जाता है। दूसरी बार आरक्षण न होने के कारण उन्हें चुनाव लडवाने कोई तैयार नहीं होता। इस तरह अधिकांश महिला प्रतिनिधियों का राजनैतिक सफर ठीक से शुरू होने के पहले ही खत्म हो जाता है। महिला प्रतिनिधियों की इस चाह ने एक नई बहस को जन्म दिया है, जिसका समर्थन केन्द्रीय पंचायत मंत्री मणीशंकर अय्यर भी कर रहे हैं।
पुरुष प्रधान समाज में आरक्षण के कारण मजबूरी में मिले अधिकार से चुन कर आई महिला प्रतिनिधि यह बात बेहद अच्छे से जानती थीं कि उनके इस सफर में दुश्वारियां कम नहीं। बावजूद उन्होंने खुद को बेहतर साबित किया है। फिलहाल देश में पंचायत, ब्लाक चुनाव में चुनी जाने वाली पंच-सरपंच, ब्लाक सदस्य और ब्लाक प्रमुखों की संख्या 10 लाख से अधिक है और यह विश्व की कुल चुनी जाने वाली महिलाओं की संख्या से ज्यादा बैठती है। लेकिन उनके साथ समस्या यह है कि उन्हें बिना आरक्षण यह मौका दिया ही नहीं जाता। यही वजह है कि वह खुद को साबित करने के लिए दो या तीन बार एक ही सीट पर आरक्षण की मांग उठा रही हैं। उनका यह प्रयास रंग भी ला रहा है और महिला आरक्षण की अवधि बढ़ाकर 10-15 साल करने पर कमोबेश सहमति बन गई है। केन्द्रीय पंचायती राज मंत्रालय द्वारा दर्जनभर से अधिक राज्यों की पंचायतों में महिला आरक्षित सीटों को एक बार से अधिक आरक्षित करने की तैयारी हो रही है। लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि इसके लिए फिर से संविधान में संशोधन करना पड़ेगा और राज्य सरकारों को इसके लिए तैयार करना पड़ेगा।
सर्वे का खुलासा
इस परिदृश्य में महिलाओं की स्थिति का आकलन करें तो अभी भी कई महिलाएं ऐसी हैं, जो पहली बार महिला आरक्षित सीट से लड़कर दूसरी बार सामान्य सीटों से जीत कर आई और अच्छा काम कर रही हैं। हालांकि इनकी संख्या अभी बेहद कम है, क्योंकि गांवों में मौजूद पुरुष प्रधान समाज इतनी आसानी से उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहा। हाल में पंचायती राज मंत्रालय द्वारा एक निजी संस्था की मदद से कराए गए सर्वे में भी यह सामने आया था कि देश से सिर्फ 15 प्रतिशत महिला प्रधान ही दोबारा चुनकर आती हैं। पुरुषों में यह प्रतिशत 37 के करीब है। सर्वे के दौरान 39 फीसदी पूर्व महिला प्रतिनिधियों ने माना कि वे चाहकर भी दोबारा चुनाव नहीं लड़ पाई, क्योंकि उनकी सीट महिला के लिए आरक्षित नहीं थी। सतना जिले की ग्राम पंचायत करमई की ऊषा साकेत कहती हैं-पहले आरक्षण के कारण मुझे लड़वाया गया, जब मैंने गांव के विकास के लिए दबंगों का विरोध किया तो मेरे साथ मार-पीट हुई, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। दूसरी बार विरोध के बाद भी लड़ी, जीत मुश्किल थी, लेकिन हालात ऐसे बने कि जीत मेरी हुई। हमें पहला मौका तो मजबूरी में ही मिलता है, इसलिए इस मजबूरी का समय लंबा होना चाहिए ताकि हम व्यवस्था और अपनी ताकत को जांच पाए और उसे साबित कर सकें। ऊषा को दूसरा मौका मिला है और वह पहले से अच्छा काम कर रही हैं। हरदा जिले के खिरकिया ब्लाक की सरपंच धापूबाई भी इसी तरह के एक मौके की तलाश में है। वे कहती हैं-पहले सरकारी कामकाज के बारे में नासमझ थी, अब सबकुछ पता है और काम करने का मन भी है, लेकिन समय नहीं। दरअसल पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों के संदर्भ में अक्सर दो तरह की बातें की जाती हैं या तो उन्हें सरपंचपति के हाथों की कठपुतली माना जाता है या फिर खूब नेतागिरी चढ़ी है जैसी उलाहना दी जाती है। भांडेर (जिला दतिया) की जनपद सदस्य प्रतिभा शर्मा कहती हैं-महिलाओं से चमत्कार की उम्मीद की जाती है। यदि वह किसी काम में असफल हो जाएं, तो इसका दोष उसका महिला होना माना जाता है, जबकि जरूरी नहीं पुरूष उस काम में सफल ही हों। जब लंबे समय तक सारा काम हमारे नाम से चलेगा तब खुद-ब-खुद गांववालों और अधिकारियों को हमारी ताकत और काम करने की क्षमता का पता चल जाएगा। इस तरह की लाखों महिला प्रतिनिधि राजनीति की पथरीली जमीन पर पत्थर तोड़ रही हैं। दरअसल भ्रष्टाचार, पुरुष सत्ता के चौतरफा दबाव के बावजूद राजनीति दखल का अंकुर जन्म ले चुका है और अब वह एक सीट पर दोबारा आरक्षण की शक्ल में स्थायित्व की मांग भी कर रहा है।
कई हैं सफल उदाहरण
महिला नेत्रियों के सफल कामकाज के कई उदाहरण हैं। इनमें वह महिलाएं भी शामिल हैं, जो बिना आरक्षण दूसरी बार चुन कर आई हैं। वे यह भी मानती हैं कि दूसरे कार्यकाल में इन्हें काम करने में अधिक आसानी हुई और यह अधिक बेहतर काम कर पाई। मप्र के पिछड़े इलाके अलीराजपुर के ग्राम खेरवड़ की सरपंच राधा रावत ने इस इलाके की तस्वीर बदलने में सार्थक भूमिका निभाई है। अब तक इस इलाके को अपराधिक प्रवृत्ति के लिए ही जाना जाता था, लेकिन अब यह ग्राम विवादहीन पंचायत का पुरस्कार हासिल कर चुका है। सरपंच राधा शिक्षित हैं और इसका उन्हें खूब लाभ मिला है। इस पंचायत में 8 स्कूल हैं और गांव की लड़कियां भी शिक्षा पा रही हैं। वहीं रोजगार की तलाश में होने वाले पलायन का प्रतिशत भी कम हुआ है। इन दिनों राधा इस क्षेत्र में स्वास्थ्य केन्द्र की मांग के लिए लड़ रही हैं और उन्हें सफलता की पूरी उम्मीद है। राधा कहती हैं-मैं नहीं चाहती कि कोई गर्भवती महिला इलाज के अभाव में दम तोड़े, कोई बीमार बच्चा इलाज न पा सके। जो भी काम पिछले कार्यकाल में नहीं कर पाई थी, अब वह सब जल्दी-जल्दी हो रहे हैं। सिवनी जिले की ग्राम पंचायत चमारीखुर्द की सरपंच राधाबाई भलावी तो अपने ही परिवार के लोगों को टक्कर देकर दूसरी बार भी विजेता चुन कर आई। वह कहती हैं-पहला कार्यकाल खुद समझने और लोगों को समझाने में बीता, इसलिए इस बार पूरा ध्यान गांव की सुविधाओं पर दिया है।
केन्द्रीय पंचायत मंत्री मणिशंकर अय्यर कहते हैं-'महिलाओं की यह मांग जोर पकड रही है और जायज भी है। सीट एक से अधिक बार आरक्षित होने पर महिलाएं मुखर होकर अपने क्षेत्र की तस्वीर बदल पाएंगी। मुझे लगता है घर की चारदीवारी से निकल दुनिया और पंचायत के काम-काज को समझने के लिए उन्हें ज्यादा समय की जरूरत होती है, जो उन्हें मिलना चाहिए।'
( यह रपट दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में प्रकाशित हुई है। देवी अहिल्याबाई यूनिवर्सिटी, इंदौर से पत्रकारिता की डिग्री लेने वालीं पल्लवी इन दिनों संवाद फेलोशिप के तहत पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर काम कर रही हैं)