गुरुवार, 5 सितंबर 2013

करना होगी बगावत, आजादी फिर से लानी होगी!!

जर्जर हुई जो इमारत, मिलकर गिरानी होगी!
रहना है चैन-ओ-सुकून से, तो नई बनानी होगी!!


सुनते-सुनते पक गए 1947 से अब तक वही कहानी!
करना होगी बगावत, आजादी फिर से लानी होगी!!


जो भूल चुके हैं मानवता, देशप्रेम और अपनेपन की भाषा!
इन्हें सबक याद दिलाने अलग से क्लास लगानी होगी।


चूस-चूसके मुल्क का खून, जो मुटियाते जा रहे मुसंडे!
खींचके इनकी चमड़ी-दमड़ी, खाकी की साख बचानी होगी!!


एक-एक खरपतवार उखाडऩे का वक्त चला गया यारो!
खेत बचाना है, तो यकीं मानों , चप्पे-चप्पे में आग लगानी होगी!

अमिताभ क. बुधौलिया