शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008


ये युद्ध नहीं आसां

इन दिनों समूचे हिंदुस्तान में एक जंगी माहौल है। पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान को मटियामेट करने का जोश और जुनून बच्चे-बच्चे में तूफान बरपा रहा है। युद्ध और क्रिकेट के उन्माद में जैसे बहुत ज्यादा फर्क नजर नहीं आ रहा। क्रिकेट में हर बॉल पर चिल्लाते दर्शकों की भांति युद्ध के प्रति भी लोगों में ऐसी ही भावना और जोश दिखाई दे रहा है। इसे पड़ौसी मुल्क के प्रति नफरत का नतीजा कह सकते हैं, जो इस्लामिक आतंकवाद की उपज है।
पाकिस्तान के प्रति इतनी घृणा शायद पहले कभी नहीं देखी गई। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि कुछ साल पहले तक आतंकवाद सिर्फ कश्मीर घाटी तक ही सीमित था। आम भारतीय इसे कश्मीरी अवाम की राजनीतिक और सामाजिक समस्या ही मानता रहा है, लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी हैं। मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के प्रति समूचे हिंदुस्तान में गुस्से को जो व्यापक रूप देखा जा रहा है, उसे ठंडा करने के लिए यूपीए सरकार के पास सिवाय युद्ध के जैसे कोई विकल्प ही नहीं बचा है। लेकिन क्या युद्ध से आतंकवाद को जड़ से मिटाया जा सकता है? इस मुद्दे को नजरअंदाज करना उचित नहीं होगा। खासकर तब, जब दुनियाभर में हुए तमाम युद्धों के बावजूद परेशानियां और अधिक बढ़ी हैं।
11 सितंबर, 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सेनाओं ने 7 अक्टूबर, 2००1 में अफगानिस्तान पर चढ़ाई कर दी थी। यह लड़ाई अब भी जारी है। इस जंग में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। अमेरिका की तमाम कोशिशों के बाद भी अफगानिस्तान में लोकतंत्र अपनी जड़ें नहीं जमा सका है और न ही तालिबान का पूरी तरह से सफाया हो पाया है। सद्दाम हुसैन की तानाशाही खत्म करने अमेरिका ने 2० मार्च, 2००3 में ईराक के विरुद्ध युद्ध का आगाज किया था, जिस पर अभी तक पूर्णविराम नहीं लग पाया है। बुश पर एक पत्रकार द्वारा जूता फेंकने की घटना स्पष्ट इशारा करती है कि जिस समस्या के समाधान के लिए अमेरिका ने सद्दाम की सल्तनत ढहाई, वो अब भी सिरदर्द बनी हुई है।
मुझे एक घटना याद आ रही है। यह मई, 1999 में हुए कारगिल युद्ध के करीब दो साल बाद की बात है। सीमा पर तनाव बना हुआ था। मैं उस वक्त नवभारत, भोपाल में रिपोर्टर था। मुझे एक असाइनमेंट दिया गया, जिसमें सीमा पर तैनात फौजियों के माता-पिता की मनोस्थिति का आकलन करना था। कोई लाख कहे, लेकिन कोई भी मां नहीं चाहती थी कि लड़ाई छिड़े। उन्हें अपने बेटों की वीरता पर पूरा भरोसा था, लेकिन भीतर से वे बेहद व्याकुल थीं। मैंने हैडिंग लगाई थी-सरहद पर हो बेटा, तो क्यों न रोये मां का दिल....दरअसल, शहीद हिन्दुस्तानी हों या पाकिस्तानी, अपनों को खोने का दर्द सबका एक-सरीखा होता है। यह दर्द कसाब की मां को भी महसूस होता होगा...और उन मांओं को भी रुला रहा होगा, जिनके बच्चे युद्ध के लिए सीमाओं पर डेरा डाल चुके हैं। युद्ध करना भारत सरकार की विवशता हो सकती है, लेकिन उन परिवारों के बारे में कौन सोचेगा, जिनका कोई न कोई इस युद्ध में अपनी जान गंवाएगा? काश युद्ध न हो, क्योंकि अपनों को कोई खोना नहीं चाहता। जिन्होंने अपनों को खोया या जो खोएंगे, उनकी पीड़ा दुश्मन फिल्म के इस गीत में स्पष्ट महसूस की जा सकती है...
चिठ्ठी न कोई संदेश...
हूँ, चिठ्ठी न कोई संदेश...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
चिठ्ठी न कोई संदेश...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
जहाँ तुम चले गए।
इस दिल को लगा के ठेस...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
एक आह भरी होगी...
हमने न सुनी होगी...
जाते-जाते तुमने...
आवाज तो दी होगी...
हर वक्त यही है गम...
उस वक्त कहाँ थे हम...
कहाँ तुम चले गए।
चिठ्ठी न कोई संदेश...
जाने वो कौन सा देश...
जहां तुम चले गए
जहाँ तुम चले गए।
इस दिल को लगा के ठेस...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
हर चीज पे अश्कों से...
लिखा है तुम्हारा नाम...
ये रस्ते, घर, गलियां...
तुम्हें कर न सके सलाम...
यही दिल में रह गयी बात...
जल्दी से छुडाकर हाथ...
कहाँ तुम चले गए।
चिठ्ठी न कोई संदेश...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
जहाँ तुम चले गए।
इस दिल को लगा के ठेस...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
अब यादों के कांटे...
इस दिल में चुभते हैं...
न दर्द ठहरता है...
न आँसू रुकते हैं...
तुम्हें ढूँढ रहा है प्यार...
हम कैसे करें इकरार...
के हाँ तुम चले गए।
चिठ्ठी न कोई संदेश...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
जहाँ तुम चले गए।
इस दिल को लगा के ठेस...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
हाँ जहाँ तुम चले गए।

अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

ईशिता पंचाल : बेस्ट चाइल्ड अवार्ड के लिए नामांकित

नटखट छोरी का गंभीर अभिनय
6 दिसंबर को रात 7:11 बजे मोबाइल पर एक एसएमएस आता है, जो चर्चित चाइल्ड एक्ट्रेस ईशिता पंचाल की मां ने भेजा था। करीब 9-10 साल की ईशिता सहारा वन पर प्रसारित हो रहे राजश्री प्रोडक्शन के धारावाहिक 'वो रहने वाली महलों की' के लिए 'इंडियन टेली अवार्ड' में 'बेस्ट चाइल्ड कैटेगरी' में नामांकित हुई है।एसएमएस ने पिछले साल की याद दिला दी, जब ईशिता राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'एक विवाह ऐसा भी' की शूटिंग के लिए भोपाल आई हुई थी।यह पिछली जनवरी, 08 की बात है। इस फिल्म में एक खास किरदार निभा रहे कुनाल कुमार से मेरा उस वक्त ठीक-ठाक परिचय था। मैं सर्द रात में उनसे मिलने होटल पलाश पहुंचा। मेरे साथ सीरियल लेखक राज शांडिल्य भी थे। हम जब होटल पहुंचे, तो फिल्म के तमाम कलाकार रिसेप्शन हाल में रखे सोफे पर गपशप में व्यस्त थे। दिनभर की शूटिंग की थकावट उन सभी के चेहरे पर स्पष्ट देखी जा सकती थी। इस शांत माहौल में दो बच्चे खूब हुड़दंग मचा रहे थे। चूंकि होटल में किसी की शादी का रिसेप्शन चल रहा था, इसलिए लगा कि ये बच्चे वहां मेहमान होंगे। तभी राज 8-9 साल के एक लड़के को अपने समीप बुलाता है। बातचीत के दौरान मालूम चला कि वो छोरा चर्चित बाल कलाकार है। उसके साथ एक लड़की भी खेल रही थी, उसे परिचय हुआ, वह ईशिता थी। ईशिता से बतियाते हुए महसूस हुआ कि बच्ची वाकई कमाल की है।दरअसल, हर बच्चा जन्मजात नटखट होता है। उनकी बालसुलभ क्रीड़ाएं देखकर कोई भी आकलन नहीं कर सकता कि बच्चा कितना प्रतिभाशाली है। खेलती-कूदती ईशिता भी अन्य बच्चों की तरह की खूब हुड़दंग मचा रही थी, लेकिन जब उसको मैंने बतौर एक जर्नलिस्ट परिचय दिया, तो उसके हावभाव ही बदल गए। यूं लगा कि उस बच्ची में अचानक बड़ों-सी गंभीरता आ गई हो। पूरी बातचीत के दौरान उसने जिस अंदाज और नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल किया, वो किसी को भी कायल कर सकता था। इन दिनों ईशिता कलर पर प्रसारित उतरन में एक अमीर फैमिली की लड़की तपस्या का किरदार निभाते देखी जा सकती है।बहरहाल, ईशिता की प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए उसे www.indiantellyawards.com पर खूब वोट करें, यही कामना है।
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008


किसी से मत पूछो

कैसे हैं हालात देश के मत पूछो।
सभी हुए गद्दार किसी से मत पूछो।।
मिटता है मिट जाए वतन से क्या लेना।
सर्वोपरी है स्वार्थ किसी से मत पूछो।।
मरता है कोई भूख से हमको क्या लेना।
हम हों मालामाल किसी से मत पूछो।।
बच्चे थे मायूस, हे भगवन कौन सुने।
गायब था प्रसाद किसी से मत पूछो।।
न समझे हम ताकत अपनी यकीं करो...
क्या होगा अंजाम, किसी से मत पूछो॥
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'