रविवार, 27 दिसंबर 2009

ये मजाक नहीं आसां, इतना जान लीजिए!


‘पप्पू’ ने चिढ़ाया, ‘पा’ ने रुलाया अब ‘थ्री इडियट्स’ का पंच

अमिताभ फरोग
ये सारे ‘पंच’ उपहास और ठिठौली का फ्यूजन हैं, लेकिन हैं बड़ी मुसीबत। दरअसल, ‘मुन्नाभाई फेम’ राजकुमार हीरानी की फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ हर तिकड़ी के लिए मुसीबत बन गई है। जहां तीन यार संग दिखे, चिढ़ाने वालों पे पंच मारा-‘थ्री इडियट्स!’ इससे पहले सिली यूथ को ‘पप्पू’ का तमगा मिला। यह फिर भी ठीक है, लेकिन अमिताभ बच्चन की ‘पा’ कई लोगों के लिए ‘चिढ़’ की एक बड़ी वजह बन गई है। शरारती लोग थोड़े से असामान्य (मैंटली या फिजिकली) लोगों को ‘पा’ पुकारकर उपहास उड़ाने लगे हैं। पप्पू से थ्री इडियट्स तक मजाक के नये जुमलों पर नजर...

इंजीनियरिंग की तीन सहेलियां दीपा श्रीवास्तव, गुरमीत कौर और संध्या दुबे जब ज्योति टाकीज से आमिर खान की बहुचर्चित फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ देखकर निकलीं, तो प्रफुल्लित थीं। फिल्म उन्हें बहुत पसंद आई थी। वे जब पार्किंग से अपनी गाड़ियां उठाने पहुंचीं, तभी उनके कानों में एक ‘उपहासमयी’ आवाज गूंजी-‘ओये थ्री इडियट्स?’ दीपा ने पलटकर देखा, तो पाया कि; सामने उनकी कुछ सहेलियां खड़ी हुई थीं। उन्होंने ही समवेत स्वर में दीपा, गुरमीत और संध्या को ‘थ्री इडियट्स’ पुकारा था। यह एक मजाक था, लेकिन जब आसपास के लोग यह सुनकर व्यंग्यात्मक मुस्कराहट बिखरने लगे; तब तीनों का मूड आॅफ हो गया।
‘फिल्मी यूथ’ अपने मित्रों के संग हंसी-ठिठोली करने अकसर ‘पप्पू’ या ‘थ्री इडियट्स’ जैसे शब्दों को जुमला बना लेते हैं। हालांकि यह होता तो एक मजाक है, लेकिन कभी-कभार झगड़े का कारण बन जाता है, जैसा कि; भुवनेश और विशाल के संग हुआ था। यह पिछले वर्ष जुलाई की बात है, जब इमरान खान अभिनीत ‘जाने तू या जाने न ‘फिल्म रिलीज हुई थी। कम्प्यूटर साइंस से बीई कर रहे दोनों मित्र इस फिल्म का नाइट शो देखकर होस्टल लौट रहे थे। भुवनेश के बार-बार किक मारने के बावजूद बाइक स्टार्ट नहीं हुई। संयोग से विशाल की एक किक ने ही काम कर दिया। विशाल ने इतराते हुए भुवनेश को ‘पप्पू‘ बोल दिया। पप्पू बोले तो;‘ढक्कन/बेवकूफ या नकारा!’ भुवनेश ने भी हंसते हुए कोई उदाहरण देकर विशाल को ‘पप्पू’ कह डाला। मजाक का यह सिलसिल धीरे-धीरे बहस में तब्दील हो गया...और आखिरकार मामला तूतू-मैंमैं से होते हुए हाथापाई तक जा पहुंचा। बस, एक ‘पप्पू’ शब्द ने दोनों की दोस्ती हमेशा के लिए तोड़ डाली।
‘पप्पू’ से उबरे तो ‘इडियट्स’ पर अटके :
‘जाने तू...’ के पहले ‘पप्पू’ का पास होना भी तमाम लोगों के उपहास का कारण बनता रहा। दरअसल, अमिताभ बच्चन ने कैडबरी चॉकलेट के एक कमर्शियल एड में ‘पप्पू पास हो गया..’ जिंगल यूज किया था। इस एड. की लोकप्रियता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि; आज भी जब कोई व्यक्ति हैरतअंगेज/अप्रत्याशित/आश्चर्यजनक तरीके से कामयाबी हासिल करता है, तो लोगों के मुंह से उसके लिए अनायास ही निकल जाता है-‘पप्पू पास हो गया!’ यह जुमला एजूकेशन से लेकर इलेक्शन सभी फील्ड में खूब इस्तेमाल होता है। यह जुमला भले ही ‘कान्फिडेंस लेबल’ का परिचायक है, लेकिन कहीं-कहीं उपहास का रंग भी ले लेता है, जैसा सौरभ सरकार के संग हुआ।
सौरभ 12वीं में दो बार फेल हुए। तीसरी बार 40 प्रतिशत अंकों से ही सही, लेकिन वे जैसे-तैसे पास हो गए। सौरभ जब पहले दिन कॉलेज पहुंचे, तो उनके पुराने मित्रों ने चुटकी ले डाली-‘ओह! तो पप्पू पास हो गया?’ सौरभ तब से अपने इन मित्रों से ठीक से बात नहीं करते।
‘पप्पू’ का यह फेमस जुमला लोगों की जुबान से अभी उतरा भी नहीं है कि; ‘मुन्नाभाई’ फेम राजकुमार हीरानी ‘ने लोगों को थ्री इडियट्स’ का ‘पंच’ थमा दिया है। जहां तक ‘पप्पू’ और ‘मुन्नाभाई’ में बेसिक अंतर है- ‘पप्पू’ इडियट है, लेकिन ‘मुन्नाभाई’ की तरह 420 तो कतई नहीं! यह दीगर बात है कि, ‘मुन्नाभाई’ अच्छे रास्ते पर आने के लिए निरंतर गांधीजी के पीछे ‘लगे रहे’ तब कहीं गांधीगीरी से उनका सर्किट जुड़ पाया। कुछ भी हो, लेकिन हीरानी ने मुन्नाभाई के बाद ‘इडियट’ के रूप में यूथ को एक नया ‘उस्तरा’ थमा दिया है, जिसकी ‘धार’ मजाक-मजाक में कइयों की इज्जत तार-तार करने लगी है।
दु:खद साबित हो रहा है ‘पा’ का मजाक:
पप्पू, मुन्नाभाई या थ्री इडियट्स को जुमले के रूप में इस्तेमाल करना उतना कष्टकर नहीं है, जितना ‘पा’ मजाक साबित हो रहा है। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में प्रोजेरिया बीमारी से ग्रस्त एक बच्चे ‘आरो’ का रोल निभाया है। पर्दे पर उनके हाव-भाव ने लोगों का ध्यान तो अवश्य खींचा, लेकिन उनके ‘पा’ पुकारने की स्टाइल को जुमला बना लिया है। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो थोड़ा-बहुत भी ‘आरो’ सा दिखता है या उसके हाव-भाव उस जैसे हैं, लोग उसे ‘पा’ कहकर चिढ़ाने लगते हैं। यानी ‘पा’ का जुमला यहां परेशानी बन गया है।
पहले भी मुसीबत बने हैं फिल्मी जुमले:
सिर्फ पप्पू, मुन्नाभाई या थ्री इडियट्स ही क्यों, पहले भी फिल्मी जुमले लोगों के लिए मुसीबत बनते रहे हैं। वर्ष, 1989 में आई फिल्म ‘त्रिदेव’ के एक गीत ने तब पब्लिक ही नहीं, प्रशासन तक की नाक में दम कर दी थी। गाने के बोल थे-‘ओये-ओये...!’ मनचलों से लेकर ऑटो , साइकिल रिक्शा चालक सब इसका जमकर इस्तेमाल करने लगे थे। लड़कियों को छेड़ना हो तो-ओये-ओये, ट्रैफिक से निकलना है तो-ओये-ओये...यहां तक कि किसी को पुकारना हो तब भी-ओये-ओये...शब्द यूज होने लगा था। यह शब्द प्रशासन के लिए भी मुसीबत बन गया था।
फिलहाल, लोग ‘पप्पू’ से उबर भी नहीं पाए थे कि आमिर के कारण इडियट साबित होने लगे हैं।


फिल्म रिलीज बाद में होती है, लेकिन उसका टाइटल होर्डिंग या पब्लिसिटी के अन्य माध्यमों से लोगों में पहले पहुंच जाता है। ऐसे में टाइटल का सब्जेक्टिव के संग अट्रेक्टिव होना भी अनिवार्य हो गया है, ताकि रोजमर्रा की जिंदगी में लोग उसे खूब यूज करें। कौन बनेगा करोड़पति के दौरान कुछ शब्द जैसे लॉक कर दिया जाए, कन्फर्म जुमला बन गए थे। अब तो शब्दों पर खूब वर्क होने लगा है, ताकि कुछ अनूठा टाइटल निकलकर सामने आए।
वीरेंद्र राठौर, फिल्ममेकर्स

यह काम्पटीशन में खुद को बनाए रखने का सक्सेस फंडा है। कुछ शब्द स्वत: ही लोगों की जुबान पर बैठ जाते हैं, यह ह्यूमन साइकोलॉजी है। पहले फिल्मों के टाइटल गानों से लिए जाते थे, अब ऐसे वर्ड चुने जाने लगे हैं, जिन्हें यूज करते वक्त लोगों को मजा आए। बॉबी, बुड्ढा मिल गया आदि फिल्मों के टाइटल भी लोगों की लाइफ में खूब इस्तेमाल हुए। इडियट एक तकनीक वर्ड है। जिस व्यक्ति का बौद्धिकस्तर 70-90 प्रतिशत के बीच होता है, साइंस में उसे मंदबुद्धि कहते हैं, लेकिन अब इस वर्ड का आम बोलचाल में भी बहुत प्रयोग हो रहा है। फिल्ममेकर्स टाइटल में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल इसलिए करते हैं, ताकि उन्हें माउथ पब्लिसिटी का बेनिफिट मिल सके।
डॉ. विनय मिश्रा, मनोवैज्ञानिक

पप्पू हो या थ्री इडियट्स, ऐसे शब्दों का प्रयोग अपने मित्रों पर करते वक्त इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि मजाक तूतू-मैंमैं में परिवर्तिन न होने पाए। इन शब्दों का एंज्वाय लें, लेकिन संभलकर।
दीपा खरे, प्रोफेशनल
(यह खबर पीपुल्स समाचार, भोपाल में प्रकाशित हुई है।)

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

बिग बॉस के फिक्स होने की आशंका


मध्यप्रदेश में बिग बॉस पर 1।10 करोड़ का दांव
अमिताभ फरोग
‘कलर्स चैनल’ के बहुचर्चित रियलिटी शो ‘बिग बॉस-3’ पर मध्यप्रदेश से लगभग 1.10 करोड़ रुपए का दांव खेला गया है। यह शो का अंतिम सप्ताह है। बख्तियार के अचानक जाने के बाद घर में अब प्रवेश राणा, विंदु दारा सिंह और पूनम ढिल्लन बचे हैं। संदेह है कि ‘बिग बॉस’ प्रवेश को मोहरा बनाकर विंदु को विनर बना सकते हैं।

‘कलर्स चैनल’ के रियलिटी शो ‘बिग बॉस-तृतीय’ के फिक्स होने की आशंका जताई गई है। ‘बिग बॉस’ के सबसे ‘उद्दंड खिलाड़ी’ रहे कमाल खान का बयान कि,‘प्रवेश राणा विनर हो सकते हैं...’ भी संदेश के घेरे में आ गया है। दरअसल, माना यह जा रहा है कि, ‘बिग बॉस’ की निर्माता कंपनी ‘वायाकॉम-18’ के कहने पर ही कमाल खान ने इस ‘तथाकथित संभावना’ को हवा दी है। इसके पीछे विंदु से कोई ‘गुप्त करार’ माना जा रहा है।
‘बिग बॉस’ एक साथ दो दांव खेल रहे हैं। पहला-प्रवेश को तगड़ा दावेदार बताकर सट्टा मार्केट में उनकी पोजीशन पहले नंबर पर लाना है। लाजिमी है कि यदि प्रवेश हारते हैं और विंदु जीतते हैं, तो इससे कंपनी के साथ-साथ सटोरियों को भी काफी फायदा होगा। सूत्रों के अनुसार विंदु को इस समय पैसों की सख्त आवश्यकता है और अब वे ‘बिग-बॉस’ के हाथों की कठपुतली बन गए हैं।
पहले भी लगे हैं आरोप
‘बिग-बॉस-2’ के एक प्रतिभागी संदेश जताते हैं-‘शो पर फिक्सिंग का आरोप यूं ही नहीं लगता? दरसअल, सीजन-2 में भी राहुल महाजन के जीतने के पूरे आसार थे। लेकिन वे नियम तोड़ते हुए घर की दीवार फांदकर भाग खड़े हुए। तब आशंका व्यक्त की गई थी कि राहुल का यह ‘तथाकथित दुस्साहस’ बिग बॉस के षड्यंत्र का ही एक हिस्सा था। आशंका जताई गई थी कि ऐसा इसलिए किया गया था ताकि सटोरियों को नुकसान से बचाया जा सके। गौरतलब है कि राहुल महाजन पर करीब 150 करोड़ रुपए का सट्टा लगा हुआ था। आशुतोष की ‘अप्रत्याशित’ जीत से सटोरियों को भी काफी मुनाफा हुआ था। यह घटना इसलिए भी शक के दायरे में आई थी, क्योंकि आशुतोष इसी कंपनी के एक शो ‘रोडीज’ के विनर थे। ऐसा सुनने में आया था कि उनका कंपनी से करार है कि शो जीतने के बाद वे आधी राशि वापस लौटा देंगे।’ दरअसल, कंपनी ही ऐसे गणित फिट करती है, ताकि वह जिसको चाहे, उसे जिता ले। ‘बिग बॉस’ घर में ऐसा माहौल क्रियेट कर देते हैं, ताकि प्रबल दावेदार फ्रस्टेशन में आकर खुद की इमेज खराब कर ले, या रेस से बाहर हो जाए। जैसा- पहले राहुल महाजन और अब बख्तियार के साथ हुआ है!
प्रवेश मोहरा तो नहीं?
‘बिग बॉस’ जो गणित अपना रहा है, उसमें प्रवेश के विनर होने की प्रबल संभावनाएं प्रचारित की जा रही हैं। यह इसलिए, ताकि उन पर सबसे ज्यादा पैसा लगे। इसमें दूसरा नाम विंदु का लिया जा रहा है। बख्तियार ईरानी और पूनम ढिल्लन क्रमश: तीसरे और चौथे नंबर पर आते हैं। इन चारों पर करोड़ों रुपए का सट्टा लगा हुआ है। अकेले मध्यप्रदेश से करीब 1.10 करोड़ रुपए सट्टे पर लगे होने के आसार हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि, दांव लगाने वालों में करीब 25 फीसदी महिलाएं भी हैं। ‘वर्ष, 2008’ में ‘मिस्टर इंडिया’ रहे मेरठ के प्रवेश राणा की घर में एंट्री भी शक जाहिर करती है। दरअसल, कंपनी ने शो के दौरान एक नये सदस्य की एंट्री बाबत प्रतियोगिता आयोजित की थी।
इसमें कोई भी फोन के माध्यम से अपना रजिस्ट्रेशन करा सकता था। बिग बॉस के घर का नया सदस्य बनने देशभर से लाखों लोगों ने कॉल किए। लेकिन प्रवेश को बतौर नए मेंबर घर में एंट्री दे दी गई। प्रतियोगिता का क्या हुआ? कंपनी ने दर्शकों को ठीक से इसकी जानकारी तक नहीं दी। सूत्रों के अनुसार, दरअसल कंपनी घर में एक ऐसे सदस्य की एंट्री कराती है, जो उसके इशारे पर कार्य करे। वो ‘मोहरा’ बनकर ‘बिग-बॉस’ के अनुरूप खेल का रुख मोड़ता रहे। ‘सीजन-2’ में आशुतोष और ‘सीजन-3’ में प्रवेश इसका उदाहरण हैं। दोनों खुद की पहचान स्थापित करने के लालच में ही बिग-बॉस के घर में आए। संभव है, इसके लिए उनके और बिग-बॉस के बीच कोई ‘करार’ हुआ हो?

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

एचआईवी पॉजिटिव पर्सन अपने नेटवर्क में तलाश रहे हमसफर


शुरुआत नई जिंदगी की

पल्लवी वाघेला
अभिषेक व ऐश्वर्या की शादी का दिन भोपाल के लिए दो कारणों से खास था। एक तो अभिषेक का भोपाल से नाता है और दूसरा भोपाल और प्रदेश के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन था। उस दिन भोपाल में एक विशेष शादी हुई थी, जिसमें पहली बार भोपाल के एक एचआईवी पॉजिटिव युवा ने इंदौर की पॉजिटिव लडक़ी से विवाह रचाया था। ये शादी एक विशेष मेट्रीमोनियल वेबसाइट के जरिए तय हुई थी, जो केवल एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए काम करती है। www.positivesaathi.com इस मेट्रीमोनियल वेबसाइट के जरिए पिछले दो साल में मप्र में अब तक चार एचआईवी कपल्स की मैरिज रजिस्टर्ड की जा चुकी है। इसके अलावा मप्र पॉजिटिव पीपुल नेटवर्क द्वारा भी प्रदेश में ऐसी चार शादियां रजिस्टर्ड हैं। इनमें से एक लव मैरिज भी है। यह एक शुभ संकेत हैं जहां एचआईवी पॉजिटिव लोग एक दूसरे में अपना हमसफर तलाश नई जिंदगी की शुरुआत कर रहे हैं।

न केवल भोपाल व मप्र बल्कि पूरे देश में एचआईवी पॉजिटिव शादियों की रफ्तार में तेजी आई है। इसके लिए कई एनजीओ काम कर रहे हैं, साथ ही एचआईवी पॉजिटिव विशेष मेट्रीमोनियल वेबसाइट पॉजिटिव साथी डॉट कॉम का सहारा भी ले रहे हैं।
रजिस्टर करें, साथी खोजे
वेबसाइट पर एचआईवी पॉजिटिव पर्सन अपनी पर्सनल और मेडिकल डिटेल देकर इसके सदस्य बन सकते हैं। इसके बाद वे मेंबर लॉगइन के जरिए अन्य लोगों को सर्च कर अपना पसंदीदा जीवन साथी चुन सकते हैं।
एमपी पॉजिटिव पीपुल नेटवर्क भी सहायक
एचआईवी पॉजिटिव लोगों का यह ग्रुप एड्स अवेयरनेस के साथ-साथ इस दिशा में भी तेजी से काम कर रहा है। संस्था के मुताबिक अधिकांश पॉजिटिव पर्सन पहले लोकल ग्रुप में ही अपने हमसफर की तलाश करते हैं। मप्र पॉजिटिव नेटवर्क के साथियों के बीच यदि उनकी तलाश पूरी नहीं होती तो मप्र नेटवर्क अन्य राज्यों के नेटवर्क से संपर्क करता है और इस तरह सही जीवनसाथी की तलाश पूरी करने की कोशिश की जाती है। इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों को आमने-सामने कर उनकी काउंसलिंग भी की जाती है।
वेबसाइट भी एक बेहतर शुरुआत
एमपी पॉजिटिव पीपुल नेटवर्क के सदस्य भोपाल के अजीत (परिवर्तित नाम) कहते हैं कि एचआईवी पॉजिटिव के लिए स्पेशल मेट्रीमोनियल वेबसाइट एक अच्छी शुरुआत है। हां, इसमें इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि जिस तरह हमारे यहां वर-वधू दोनों की काउंसलिंग की जाती है, उसी तरह शादी के पहले वेबसाइट के जरिए भी काउंसलिंग हो। इससे उनको छोटी-छोटी बातों की भी पूरी जानकारी मिल पाएगी।
भोपाल के सनी की हुई अनीता
भोपाल के सनी और इंदौर की अनीता की शादी इस वेबसाइट के जरिए हुई है। सनी कहते हैं धीरे-धीरे लोगों कि समझ में ये आने लगा है कि पॉजिटिव कपल्स न सिर्फ शादी कर सकते हैं, बल्कि बच्चे भी पैदा कर सकते हैं और ये कोई जरूरी नहीं कि उनका बच्चा भी एचआईवी पॉजिटिव हो। वे वेबसाइट के जरिए अपना जीवन साथी चुनने के आप्शन को बेहतर मानते हैं। उनकी नजर में इसमें ऐसे लोगों को बेहद लाभ होगा जो एचआईवी पॉजिटिव होने की झिझक के कारण सामने नहीं आते।
सोच में बदलाव जरूरी
सनी और अनीता दोनों एचआईवी पॉजिटिव लोगों के संबंध में समाज की सोच पर दुख व्यक्त करते हैं। अनीता कहती है ऐसा नहीं कि एचआईवी पॉजिटिव लोगों को अपनी पहचान बताने में आपत्ति है, लेकिन पहचान बताने पर लोगों का उनके प्रति नजरिया बदल जाता है। दरअसल समाज में कोई भी व्यक्ति यदि सामने आकर यह स्वीकार कर लेता है कि वह एचआईवी पॉजिटिव है तो लोगों को सिर्फ यही लगता है कि इस व्यक्ति ने अनसेफ सेक्स किया होगा और इसका चरित्र गिरा हुआ है। विशेषतौर पर लड़कियों के लिए जीना मुश्किल हो जाता है। उनके आस-पास की दुनिया ही पूरी तरह से बदल जाती है। अनीता और सनी कहते हैं कि एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति मेडिकल साइंस के मुताबिक वर्षो तक स्वस्थ्य जिंदगी जी सकता है, लेकिन समाज का बॉयकाट उसे मेंटली तोड़ देता है।

'इस वेबसाइट के जरिए हमारा मुख्य उद्देश्य पॉजिटिव पर्सन को नई जिंदगी की खुशियां देना है। इस साल एड्स दिवस पर हमने वेबसाइट से नई लिंक जोड़ी है, जिसमें एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए लोग चैरेटी कर सकते हैं। कुल मिलाकर हम अपनी वेबसाइट के जरिए अवेयरनेस और केयर प्रोग्राम में सहायक बनना चाहते हैं।
अनिल वालिव, संस्थापक पॉजिटिव साथी डॉट कॉम

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

bollywoodhunts.com/ Calendar 2010 Brand Ambassadors Competition


वोट फॉर संचिता
अमिताभ फरोग
ऑस्कर विनर’ फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में महत्वपूर्ण रोल निभाने वालीं मध्यप्रदेश की लाड़ली बिटिया संचिता चौधरी bollywoodhunts.com द्वारा Calendar 2010 के लिए आयोजित Brand Ambassadors Competition की दौड़ में शामिल हैं। इसके लिए वेबसाइट पर ऑनलाइन वोटिंग की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि; इस काम्पटीशन में ग्लैमर फील्ड से जुड़े 69 मेल और फीमेल यूथ कड़े चयन मापदंडों के बाद वोटिंग श्रेणी तक पहुंचे हैं।

नागदा में जन्मीं संचिता ने ‘स्लमडॉग...’ में जमील की मां का किरदार निभाया था। वे अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘सिंह इज किंग’ में तान्या का छोटा-सा किरदार भी निभा चुकी हैं। संचिता की सबसे बड़ी उपलब्धि एशिया के पहले और दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इंटरनेशनल स्क्रीन प्ले ‘मोहब्बत द ताज’ में मुमताज महल का कैरेक्टर निभाना रहा। यह प्ले ताजमहल को दुनिया के 7 अजूबों में शामिल करने की खुशी में तैयार किया गया था। इसका प्ले कई दिनों तक आगरा में हुआ था।
संचिता बताती हैं-‘कैलेंडर 2010 के ब्रांड अम्बसडर्स काम्पटीशन के लिए देशभर से 18-30 वर्ष आयु के मेल और फीमेल से एंट्री इनवाइट की गई थीं। इन हजारों एंट्री में से 69 मेल और फीमेल यूथ का सिलेक्शन किया गया है।’
संचिता के मुताबिक; ‘इस काम्पटीशन में शामिल होना ही एक बड़ा अचीवमेंट है, क्योंकि इसके लिए फीमेल मॉडल को ब्यूटी और फिटनेस के कई मापदंडों से होकर गुजरना पड़ा। जैसे-ग्रेट एथलेटिक्स बॉडी, गुड स्माइल, गुड प्रोफाइल एंड ग्रेट हेयर, सबकुछ बारीकी से परखा गया।’
5 फीट 7 इंच हाइट की संचिता एक मझी हुई क्लासिकल डांसर भी हैं। फिलहाल, संचिता कुछ नए प्रोजेक्ट पर वर्क कर रही हैं।

रविवार, 13 दिसंबर 2009

एनडीटीवी इमेजिन पर ‘राहुल दुल्हनिया ले जाएंगे’


mp में राहुल का मार्केट आसमान पर
अमिताभ फरोग
‘कलर्स चैनल’ के रियलिटी शो ‘बिग बॉस-2’ में ‘कृष्ण-टाइप इमेज’ के कारण सुर्खियों में आए राहुल महाजन की हमसफर बनने की दौड़ में 25 प्रतिशत अकेले मध्यप्रदेश की लड़कियां हैं। इसमें भोपाल से भी बड़ी संख्या में प्रपोजल गए हैं। उल्लेखनीय है कि ‘एनडीटीवी इमेजिन’ पर ‘स्वयंवर-2’ यानी ‘राहुल दुल्हनिया ले जाएंगे’ बहुत जल्द ऑन एयर होने जा रहा है। यह शो करीब 30 एपीसोड का रहेगा।

‘बिग बॉस-2’ में पहले पायल रोहतगी; फिर मोनिका बेदी से इश्क लड़ाने के चक्कर में राहुल महाजन की छवि ‘दिलफेंक आशिक’ की बन चुकी है, लेकिन उनका मानना है कि, वे अपनी मैरिज को लेकर अत्यंत गंभीर हैं।
हालांकि ऐसी अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि यह रियलिटी शो भी ‘सट्टा मार्केट’ को ध्यान में रखकर प्लान किया गया है। दरअसल, इन अफवाहों को इस वजह से भी बल मिलता है क्योंकि, ‘बिग बॉस-2’ में राहुल पर करीब 150 करोड़ रुपए का दांव खेला गया था। राहुल के ‘स्वयंवर’ के लिए देशभर में ऑडिशन लिए गए थे। इसमें आखिरी चरण में करीब 16800 प्रपोजल्स को टेबल पर रखा गया। इनमें 16 लड़कियां रियलिटी शो ‘राहुल दुल्हनिया ले जाएंगे’ में स्क्रीन पर दिखाई देंगी। उन्हें खुद को साबित करना होगा कि वे, राहुल की आदर्श दुल्हनिया बनने के काबिल हैं।
दिलचस्प पहलू यह है कि इन प्रपोजल्स में से 25 प्रतिशत मध्यप्रदेश से पहुंचे। भोपाल से भी बड़ी संख्या में लड़कियां राहुल की हमसफर बनने को उतावली देखी गर्इं। अंतिम 16 में भोपाल की कोई लड़की है या नहीं? चैनल के सूत्रों ने इसका खुलासा नहीं किया, लेकिन उन्होंने इस संभावना को खारिज भी नहीं किया।
कैदियों ने भी भेजे थे प्रपोजल
उल्लेखनीय है कि; भोपाल की जिस सेंट्रल जेल में राहुल की ‘अंतरंग मित्र’ मोनिका बेदी ने कई रातें काटीं, वहां की 9 महिला कैदियों ने भी ‘स्वयंवर’ में जाने की ख्वाहिश जताई थी। इसके लिए उन्होंने बकायदा लंबा-चौड़ा आवेदन भी जेल अधीक्षक को लिखा था। इन कैदियों में कई हत्या के आरोप में सजा काट रही हैं। इनकी उम्र 18 से 32 साल के बीच है। हालांकि कानूनी अड़चनों के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिल सकी। दूसरी ओर सूत्रों के मुताबिक, यह एक अफसर की सोची-समझी प्लानिंग थी। दरअसल, उन्हें सुर्खियों में बने रहने का चस्का है।
राहुल बोले, अब घर बसाना चाहता हूं
उदयपुर के होटल फतेहगढ़ पैलेस में स्वयंवर के लिए चुनी गईं 16 लड़कियों के संग शूटिंग में व्यस्त राहुल महाजन ने कहा-‘मैंने अपने जीवन में ढेरों उतार-चढ़ाव देखे हैं। इसलिए अब एक सिरे से जीवन की शुरुआत करने की सोची है।’ वे कहते हैं-‘पिछले तीन वर्ष मेरे जीवन के लिए काफी जटिल रहे। अब मेरे जीवन का नया अध्याय प्रारंभ हो रहा है। मैं इस स्वयंवर के माध्यम से अपने लिए एक अच्छी जीवन संगिनी चुन लूंगा।’ उन्हें कैसी संगिनी चाहिए? इस सवाल पर राहुल स्पष्ट करते हैं-‘मेरी संगिनी ट्रेडिशनल और मार्डन दोनों का मिलाजुला रूप हो तो अच्छा रहेगा। मैं जिस फैमिली को बिलांग करता हूं, उसे ध्यान में रखकर भी मुझे अपना जीवन साथी चुनना है।’
बोले ‘बिग बॉस-2’ के साथी
उन्हें अच्छा जीवनसाथी मिले, इसके लिए उन्हें मेरी तरफ से उनका ढेर-सारी बधाई।
डायना हेडेन, पूर्व मिस वर्ल्ड
राहुल अच्छा लड़का है। नेकदिल है। अच्छी बात होगी कि उनका स्वयंवर सफल हो जाए। मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।
एहसान कुरैशी, हास्य कवि
जो भी हो, अच्छा हो। उनका स्वयंवर सफल रहे, मेरी ओर से उन्हें ऑल द बेस्ट। राहुल बहुत अच्छे इंसान हैं। वो मेरे अच्छे दोस्त भी हैं।
सैयद जुल्फी, मॉडल और अभिनेता
अच्छी बात है कि; राहुल मैरिज करने जा रहे हैं। उनके अफेयर पर पहले ही बहुत हंगामे हो चुके हैं, इसलिए बेहतर होगा कि इस बार वे मैरिज कर ही लें।
संभावना सेठ, अभिनेत्री
स्वयंवर की शूटिंग उदयपुर(राजस्थान) के आलीशान होटल फतेहगढ़ पैलेस में शुरू हो चुकी है। इसी होटल में राखी ने भी स्वयंवर रचाया था, जो विफल साबित हुआ है।

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

एहसान कुरैशी ने लिया राजू श्रीवास्तव का इंटरव्यू





‘निठल्ली जिंदगी से ऊब गया था
अमिताभ फरोग
यह रोचक संयोग है कि दो कॉमेडियन ‘बिग बॉस’ के घर से पहले ही नॉमिनेशन में आउट हो गए। दोनों 62 दिन घर में रहे, लेकिन बाकी सदस्यों के बीच दोनों की केमिस्ट्री में बड़ा अंतर देखने को मिला। एक तटस्थ रहा, तो दूसरे ने विवादों को ‘एंज्वाय’ किया। ‘बिग बॉस-2’ के प्रतिभागी रहे एहसान कुरैशी ने ‘बिग बॉस-तृतीय’ से बाहर हुए राजू श्रीवास्तव से पूछे ‘शो’ से जुड़े खास लम्हे और जानी उनकी फीलिंग...

‘कलर्स चैनल’ के चर्चित रियलिटी शो ‘बिग बॉस-तृतीय’ से पहले ही नॉमिनेशन में बाहर हुए ‘स्टैंडअप कॉमेडी के किंग’ राजू श्रीवास्तव भले ही ‘बिग बॉस’ के खिलाफ मुंह नहीं खोल रहे, लेकिन उनकी चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। हालांकि वे खुशी व्यक्त करते हैं-‘62 दिन परिवार और बच्चों से दूर रहा, यह एक दु:खभरा समय ही तो था! वहां रहकर महसूस हुआ कि; इस दुनिया में सिर्फ अपना परिवार ही आपका सच्चा हमदर्द होता है। पत्नी से बड़ा कोई साथी नहीं और बच्चों-सा कोई सहयोगी नहीं। उनके बगैर जीवन अधूरा-सा जान पड़ा।’
‘देश के आदेश’ को राजू शॉकिंग खबर अवश्य मानते हैं। उनके मुताबिक,‘मुझे बिलीव नहीं होता कि; देश में मेरे इतने चाहने वालों के होने के बावजूद मुझे कम वोट मिले? मुझे लगता है कि दर्शक अब इस शो का दूसरा रंग भी देखना चाहते हैं। मैं यही कहूंगा कि; बात बिग बॉस के घर की हो, या आम जिंदगी की; हर जगह धैर्य बहुत जरूरी है। कोई चुगली करे, बिचिंग करे, तो दोनों पक्षों की सुने बगैर किसी फैसले पर पहुंचना बेवकूफी है।’
राजू बुरे वक्त का कुछ यूं बखान करते हैं-‘वहां आपकी जिंदगी निठल्ली हो जाती है। सुबह उठे, चाय पी, नाश्ता किया, खाना खाया, शाम हुई फिर डिनर किया और सो गए! वहां कोई किसी का मीत नहीं, कोई किसी का दोस्त नहीं। सब पैसे के पीछे भागते हैं, जीतने के लिए तिकड़में लड़ाते हैं। नकाब ओढ़े घूमते हैं, फिर भी अपना चरित्र बचा नहीं पाते। इंसानियत भूल जाते हैं।’
घर की दो महिला सदस्यों द्वारा हंसी-ठिठोली में नेकर उतारने की घटना पर राजू दार्शनिक नजरिया अख्तियार करते हैं-‘लड़कियों ने जो किया; वो उनके संस्कार थे, मैंने उन्हें क्षमा किया; यह मेरी परवरिश थी। वैसे भी यहां क्रिया की प्रतिक्रिया तो संभव थी नहीं, इसलिए चुप रहना ही मुनासिब समझा। हां, यह जानकर अवश्य आश्चर्य और हैरानी हुई कि; चैनल ने इस घटना की वीडियो क्लिपिंग मीडिया को उपलब्ध करा दीं। यह बिग बॉस की हरकत है। दरअसल, जो कुछ हुआ; वह मजाक था और लड़कियों को नहीं मालूम था कि मैंने नेकर के नीचे कुछ नहीं पहना है। हम सब यही समझ रहे थे कि; बिग बॉस इस घटना को प्रचारित/प्रसारित नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने टीआरपी के चक्कर में यह औछा कदम उठा लिया।’
कमाल खान से हुई ‘तू-तू, मैं-मैं’ पर बोलते वक्त राजू ‘अहिंसावादी शैली’ अपनाते हैं-‘मैं लड़ाकू नहीं हूं, इसलिए कमाल खान का गांधीवादी तरीके से विरोध किया। वे गाली बकते रहे, मैं सेम टू यू रिपीट करता रहा। हां, इतना अवश्य कहूंगा कि वो अच्छा कैरेक्टर नहीं है। उसे मैं कभी नहीं समझ पाया। विंदू मुझे साफ दिल लगता है।’
राजू मानते हैं कि वे ‘बिग बॉस’ का ‘गंदा खेल’ भी सफाई से खेले। वे दो टूक कहते हैं-‘मुझे खुशी है कि; मैं घर में दुश्मन बनाकर नहीं आया। मैं एक सीधा-सादा इंसान हूं, आलतू-फालतू बातों में नहीं पड़ता। हालांकि यह भी सच है कि; वहां कोई गहरा दोस्त भी नहीं बना। वैसे अब घर में झगड़े बढ़ने की आशंका प्रबल है।’
विनर कौन होगा? इस सवाल पर राजू विश्लेषण करते हैं-‘विंदू और पूनम सेफ खेल रही हैं। फिर भी कुछ नहीं कहा जा सकता।’
राजू ‘बिग बॉस’ में अपने यादगार लम्हे पर फोकस करते हैं-‘पहले हफ्ते में मैं मामा बना था। वह कैरेक्टर मुझे बेहद अच्छा लगा था। जब मैं मेंटल पेंशेंट बना, तब नई अनुभूति हुई। मैं अपने कैटवाक पर खूब हंसा था। जैक एंड जिल का मैंने भोजपुरी रीमिक्स बनाया था-जैकवा एंड जिलवा। वह विंदु को बहुत पसंद आया।’
आगे की प्लानिंग? राजू कहते हैं-‘कुछ दिन परिवार के साथ सुकून से गुजारूंगा, उसके बाद फिर अपने काम में व्यस्त हो जाऊंगा। तमाम ऑफ़र आए हैं। कुछ फिल्मों के भी हैं। वैसे लाइव शो मेरा फर्स्ट लव है।’
बिग बॉस भ्रष्ट और हिटलर हैं : एहसान
पहले ही नॉमिनेशन में ‘बिग बॉस’ के घर से राजू श्रीवास्तव के आउट हो जाने पर एहसान कुरैशी भी हैरान हैं। वे शंका जाहिर करते हैं-‘संभवत: राजू इस शो के सबसे महंगे प्रतिभागी थे, इसलिए भी उनका बाहर होना हैरानी पैदा करता है। मुझे तो लगता है कि; कंपनी ने जिस प्रतिभागी से सीक्रेट एग्रीमेंट किया होगा, वही विजेता रहेगा। कंपनी कभी यह नहीं बताती कि आपके लिए कितनी वोटिंग हुई।’ एहसान बिग बॉस पर खुलकर इल्जाम मढ़ते हैं-‘किसको कितने वोट मिले, एक-दो, दस, हजार, 10 हजार; बिग बॉस को इसका खुलासा करने में आपत्ति क्यों होती है? यह पारदर्शिता का खेल नहीं है। बिग बॉस भ्रष्ट और हिटलर हैं।’
राजू और एहसान में अंतर? एहसान खुलकर बोलते हैं-‘जब बिग बॉस को लगता है कि; फलां प्रतिभागी से मसाला नहीं मिल रहा, तो वे षड्यंत्र पैदा करके उसे बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। आप चाहकर भी बीच में गेम छोड़ नहीं सकते, वर्ना आपको एक पैसा भी नहीं मिलेगा। कंपनी ने मुझे एक कॉमेडियन की हैसियत से बुलाया था। उसे उम्मीद थी कि; मैं चौबीसों घंटे मनोरंजन करता रहूंगा, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। मैंने गंभीरता ओढ़े रखी, खेल का अंग नहीं बना। शो की टीआरपी बढ़ाने जो मसाला चाहिए था, बिग बॉस को मुझसे ऐसा कुछ हासिल नहीं हुआ। मैंने चमचागीरी नहीं की, आखिर शो को उठाने का अकेले मैंने ठेका नहीं ले रखा था? इसलिए मेरा निकलना ठीक था, लेकिन राजू खेल का हिस्सा बने। टीआरपी बढ़ाने जो बन सका उन्होंने किया, फिर भी वे पहले ही नॉमिनेशन में बाहर हो गए; यह बात तमाम शंकाओं को जन्म देती है।’

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

अजय सिन्हा (निर्देशक, केसरिया बालम आवो हमारे देस)


मैं रियलिटी में बिलीव करता हूं
अमिताभ फरोग
जिस ‘सिनेमाई रंग-कलेवर और ऊर्जा’ के लिए सिनेप्रेमी मधुर भंडारकर को पहचानते हैं, टेलीविजन पर ठीक वैसी ही ‘साख’ अजय सिन्हा की है। एक्सट्रा मटेरियल रिलेशनशिप जैसे असोशल; किंतु यथार्थपरक विषय पर ‘हसरतें’ जैसा विचारोत्तक सीरियल रचने वाले अजय सिन्हा इस बार ‘सहारा वन चैनल’ पर ‘केसरिया बालम आवो हमारे देस’ लेकर आए हैं, जिसमें हादसों से उपजे ‘जीवन-संघर्ष’ को कम्पलीट इमोशन के संग जिया गया है।

अभिनय और निर्देशन; दोनों अलग-अलग ‘कर्म-विधाएं’ हैं। दोनों को अपने अंदर साधे रखना; वो भी सम्पूर्ण मौलिकता के संग, एक कड़ी चुनौती से कम नहीं आंका जा सकता। अजय सिन्हा समय-समय पर दोनों को जीते हैं, मौलिकता के संग प्रस्तुत करते हैं।
इससे पहले कि; ‘केसरिया बालम...’ और जीनत अमान अभिनीत फिल्म‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में समानता? का प्रश्न खड़ा होता; वे स्वयं स्पष्ट कर देते हैं-‘ शुरुआत में ऐसा आभास हो सकता है कि; केसरिया...और सत्यम शिवम...का प्लॉट कहीं एक तो नहीं, लेकिन ऐसा नहीं है। केसरिया...की कहानी मेरे मित्र रघुवीर शेखावत ने करीब 4-5 साल पहले सुनाई थी। कंसेप्ट दिल को छू गया। बस तभी निश्चय कर लिया था कि; इसे टेलीविजन पर साकार करना है।’
टेलीवजन पर देहाती विषयों के बढ़ते क्रेज पर श्री सिन्हा साफगोई से बोलते हैं-‘मेरा मानना है कि; टेलीविजन पर सास-बहू या धनाढ्य फैमिली की जगह अगर ग्रामीण परिवेश ले रहा है, तो इसे एक नए अध्याय के रूप में देखा जाना चाहिए। यह लोगों के बदलते नजरिये की ओर इंगित करता है।’
श्री सिन्हा ‘केसरिया बालम...’ को देहाती माटी से उपजे दूसरे सीरियल्स से कुछ यूं खास बताते हैं-‘इसमें हमने सिर्फ एक इश्यू नहीं उठाया, बल्कि इसमें राजस्थानी लोक संस्कृति, गीत-संगीत, सामाजिक विद्रूपताएं-विविधताएं सब समेटने की कोशिश की है। इसमें एक ऐसी लड़की की व्यथा है, जो ब्याह के लिए कई बार रिजेक्ट कर दी जाती है। यह एक आम लड़की का परिचायक है। केसरिया...में इमोशन हैं, कल्चर है और हमारी टीम का बेहतर प्रोफेशनल वर्क।’
‘हत्या चक्र’ जैसी लो-प्रोफाइल फिल्म का निर्देशन कर चुके अजय कहते हैं-‘टेलीविजन और सिनेमा दोनों की ठीक वैसी स्थिति है जैसे सागर और तालाब, लेकिन दोनों की मझधार में आप तभी संघर्ष कर सकते हैं; लहरों को चीरकर किनारे पर आ सकते हैं, जब आप एक उम्दा तैराक हों। कह सकते हैं कि; फिल्म में अधिक मजा है, लेकिन टेलीविजन का भी अपना एक सुख है। मैं मजा और सुख दोनों का आनंद उठाता हूं।’
अभिनय और निर्देशन दोनों में कहां ‘चैन’ महसूस करते हैं? अजय तर्क देते हैं-‘दोनों अलग-अलग विधाएं हैं और पूरा समर्पण-ईमानदारी मांगती हैं। हां, निर्देशन में कुछ जिम्मेदारियां अधिक बढ़ जाती हैं। फाइनेंसिशल प्रेशर होता है, आउटपुट समय पर देने का कमिटमेंट होता है। दोनों में एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन निर्देशन में कभी-कभी ये पे्रशर उसे भग्न भी कर देते हैं। हालांकि यह सच है कि मैं अभिनेता बनना चाहता था, लेकिन अकसर महसूस होता रहा कि; मैं कैमरे के पीछे रहकर कुछ बेहतर आउटपुट दे सकता हूं।’
अजय सिन्हा किस विषय में सहजता महसूस करते हैं? वे दो टूक कहते हैं-‘मैं हर विषय पर कार्य करना चाहता हूं। हसरतें अगर एक्सट्रा मटेरियल रिलेशनशिप पर निर्मित था, तो समय अल्जाइमर रोग पर आधारित था। जुस्तजू एक ऐसे आदमी की कहानी थी, जो अपनी साली से अट्रेक्ट था। वहीं केसरिया..एक अलग विषय को जीता है। मैं प्रमाणिकता में बिलीव करता हूं। मैं जो भी कार्य करूं, वह रियल दिखाई देना चाहिए, महसूस होना चाहिए।’
महबूब खान, ऋषिकेश मुखर्जी, बिमल रॉय और राज कपूर जैसे लीजेंड डायरेक्टर्स से प्रभावित अजय सिन्हा नसीहत देते हैं-‘मैं हूं क्यों, हर किसी को एक नई सोच के साथ कार्य करना चाहिए, तभी एक नई राह बनेगी, दिशा नजर आएगी।’

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

‘राज-पिछले जनम का’ में भोपाल की स्वाति सिंह


1966 की हवाई दुर्घटना में गंवाया था पिछला जीवन
अमिताभ फरोग
7 दिसंबर से ‘एनडीटीवी इमेजिन’ पर शुरू हो रहे रियलिटी शो-‘राज-पिछले जनम का’ में भोपाल की स्वाति सिंह ने अपनी पिछली दुनिया के कई रहस्यों से पर्दा से उठाया है।
यह शो का पहला एपीसोड रहेगा...


भोपाल की रहने वालीं स्वाति सिंह रियलिटी शो-‘राज पिछले जनम का’ के जरिये अपना पिछला जन्म देखने के बाद से हैरान हैं। स्वाति सिंह ऐसी पहली प्रतिभागी हैं, जिनके पिछले जन्म का राज पहले ही एपीसोड में दुनिया के सामने आने वाला है।
शो के मुताबिक, पिछले जन्म में स्वाति सिंह की मौत वर्ष 1966 में एक हवाई दुर्घटना में हुई थी। एयर इंडिया की फ्लाइट नंबर 101 ‘बोइंग-707’ प्लेन अपनी नियमित उड़ान के तहत मुंबई से न्यूयार्क के लिए उड़ा था, जो फ्रांस की मोंट ब्लैंक पहाड़ियों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। गौरतलब है कि इस हवाई हादसे में विश्वप्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक और ‘इंडियन अटोमिक एनर्जी कमिशन’ के चेयरमैन डॉ. होमी जहांगीर भाभा की भी मौत हो गई थी। वे वियना जा रहे थे। तब ऐसा प्रचारित हुआ था कि; इस दुर्घटना के पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी-‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी-सीआईए’ का षड्यंत्र है।
शो में स्वाति सिंह को ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन टेक्निक’ से कान्शस मेडिटेटिव की सहायता से उनके पिछले जन्म में ले जाया गया। इस तकनीक को हैंडल कर रही हैं जानी-मानी साइकोलॉजिस्ट डॉ. तृप्ति जेईन। पिछले जन्म में स्वाति सिंह ने खुद को एक सेलर मि. डी. सिंह के रूप में पाया। उनके मुताबिक, अचानक एयरक्राफ्ट में धुंआ भरने लगा था और पैसेंजर घबराकर इधर-उधर भागने लगे। उन्हें अपनी मौत नजदीक आते दिखाई पड़ रही थी। इस विमान में कुल 106 पैसेंजर और 11 क्रू मैंबर्स सवार थे। इस दुर्घटना कोई जिंदा नहीं बच सका था।
दरअसल, स्वाति सिंह जब भी हवाई यात्रा करती हैं, तो उनके भीतर एक डर-सा बैठा रहता है। खासकर प्लेन के टेक-आॅफ और लैंडिंग के दरमियान तो वे कंपकपाने लगती हैं। स्वाति सिंह के मुताबिक, इस शो के माध्यम से अपने पिछले जन्म में जाने से पहले वे ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन’ को कोरा अंधविश्वास ही मानती थीं, लेकिन अब उनकी सोच बदल गई है। उन्होंने शो में कहा-‘मैंने अपने पिछले जन्म में जाकर जो कुछ देखा; वह मेरी कल्पना से परे है। मुझे महसूस होने लगा है कि; इस दुनिया से परे भी कुछ चीज तो है!’
पहले मैं भी ऐसी बातों पर बिलीव
नहीं करता था। लेकिन अब कह सकता हूं कि यह भी एक साइंस है।
रवि किशन, होस्ट

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

भोपाली कुड़ी के बड़े-बड़े नखरे



क्या DPL से निकाली गई हैं सारा?
अमिताभ फरोग
स्टार प्लस के बहुचर्चित सीरियल ‘विदाई’ की साधना बोले तो, सारा खान की ‘तुनकमिजाजी’ और ‘बदतमीजियों’ ने उनकी इमेज को ‘बट्टा’ लगा दिया है।
सोनी टेलीविजन के रियलिटी शो ‘डांस प्रीमियर लीग’ की होस्ट बनकर सातवें आसमान पर जा चढ़ीं सारा के बारे में खबर है कि; उनके नखरों के चलते डीपीएल से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। किस्मत की धनी सारा ‘विदाई’ के कारण घर-घर में लोकप्रिय हो चुकी हैं। इस कामयाबी ने उन्हें ‘घमंडी’ बना दिया है। हालांकि ‘पीपुल्स सिटी’ से बतियाते हुए उन्होंने यही कहा कि; उन्होंने डीपीएल से कुछ एपीसोड के लिए ब्रेक लिया है। वजह? उनकी बिगड़ती सेहत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है।
डीपीएल की होस्टिंग से ‘विश्राम’ लेने की वजह सारा अपने पेट दर्द को बता रही हैं, जबकि मुंबई के सूत्रों के मुताबिक, अपने साथी होस्ट हुसैन की जबर्दस्त लोकप्रियता ने उनके ‘पेट में दर्द’ पैदा कर दिया है। हुसैन मझे हुए एंकर्स में शुमार हैं। इस वजह से शो के दौरान वे हुसैन के आगे अत्यंत फीकी साबित हो रही थीं। हालांकि सारा के अनुसार, वे दुबारा शो को होस्ट करेंगी; लेकिन इसे लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। ‘ओवर कान्फिडेंस’ के कारण सारा कॉमेडी शो ‘हंस बलिये’ में हंसी का पात्र बन चुकी हैं, जब वे स्टेज पर अपने डायलॉग भूल गई थीं।
उधर, सारा की नखरेबाजी ने ‘विदाई’ सीरियल के डायरेक्टर और साथी कलाकारों को भी खासा नाराज कर दिया है। सारा को गुस्सा क्यों आता है? वे तर्क देती हैं-‘देर रात तक शूटिंग करने के बाद यदि उन्हें सुबह जल्दी सेट पर बुलाया जाए; तो गुस्सा आना स्वाभाविक है कि नहीं?’ हालांकि यह भी बात सामने आई है कि; वे अपने साथी कलाकारों से ठीक से पेश नहीं आतीं। सबसे बड़ी बात; उनके बुरे बर्ताव से ‘विदाई’ के प्रोड्यूसर राजन साही भी नाराज हैं। ऐसी खबर है कि; सारा का ‘विदाई’ से इसी अक्टूबर में एग्रीमेंट खत्म हो चुका है और अब वे इस सीरियल में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। दरअसल, सारा भोपाल के एक नव धनाढ्य युवा द्वारा स्थापित प्रोडक्शन हाउस ‘ब्लैक बेरी’ से जुड़कर कुछ प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही हैं। माना जा रहा है कि वे इसी सिलसिले में इन दिनों भोपाल में डेरा डाले हुए हैं। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि ‘विदाई’ की स्टोरी में नया ट्रेक जोड़ा जा रहा है और हो सकता है कि पुराने कलाकारों की जगह नए चेहरे सामने आ जाएं।
सारा और अभिनेता अली मर्चेंट के रिश्ते को लेकर भी कानाफूंसी शुरू हो गई है। इसकी वजह सारा की अलग-अलग बयानबाजियां हैं। सारा करीब दो साल पहले एक अवार्ड समारोह में अली मर्चेंट से मिली थीं। कुछ महीने पहले सारा ने कहा था कि वे साल-डेढ़ साल के अंदर शादी कर लेंगी। अब उनका तर्क है कि; अभी उनकी उम्र ही क्या है, इसलिए शादी 4-5 साल बाद ही करेंगी। उल्लेखनीय है कि; पिछले साल सारा भोपाल में अली को अपने अभिभावकों से मिला चुकी हैं। सारा के बारे में कहा जाता है कि वे अपने करियर को लेकर अधिक कान्शियस हैं, रिश्ते उनकी जिंदगी में ज्यादा मायने नहीं रखते। अली से पहले सारा के ‘विदाई’ की रागिनी यानी पारुल चौहान के भाई से भी ‘मधुर संबंध’ रह चुके हैं।

रविवार, 29 नवंबर 2009

‘यहां मैं घर-घर खेली’ की सुहासी धामी


आर्टिस्ट को एक्सपीरिमेंट करते रहना चाहिए
अमिताभ फरोग
सुहासी धामी वरुण वडोला के संग कॉमेडी का जबर्दस्त फ्यूजन रचने के बाद राजश्री प्रोडक्शन के शो-‘यहां मैं घर-घर खेली’ में एक जिम्मेदार/भावुक बिटिया का किरदार निभाने जा रही हैं। यह डेली शोप कुछ दिन पहले जीटीवी पर सोमवार से शुक्रवार रात 8.30 बजे आन एयर हुआ है।
मध्यप्रदेश के नैसर्गिक सौंदर्य से वशीभूत राजश्री प्रोडक्शन के सूरज बड़जात्या अपनी फिल्म ‘एक विवाह ऐसा भी’ के बाद ‘यहां मैं घर-घर खेली’ सीरियल के माध्यम से पुन: अपनी इन्हीं भावनाओं/प्यार का इजहार करने जा रहे हैं। जीटीवी पर कुछ दिनों पहले ऑन एयर हुए इस सीरियल की पृष्ठभूमि में महाकाल की नगरी उज्जैन मौजूद है। सुहासी इस सीरियल में स्वर्ण आभा नाम से लीड रोल कर रही हैं।
वे इस सीरियल को लेकर काफी उत्साहित हैं-‘राजश्री प्रोडक्शन फैमिली सिनेमा के लिए ख्यात है। यहां मैं घर... भी निश्चय ही इंडियल फैमिली को बहुत पसंद आएगा। इसमें सिर्फ सेट के रूप में भव्यता ही देखने को नहीं मिलेगी; डायलॉग, कास्ट्यूम, ज्वैलरी सभी पर बहुत मेहनत की गई है। यह सीरियल दूसरे फैमिली ड्रा से हटकर मनोरंजन पेश करेगा। हमारा फोकस भारतीय समाज है, खासकर ऐसे परिवार; जो सास-बहू के षड्यंत्रों, ईर्ष्या/रोने-धोने से आजिज हो चुके हैं, यहां मैं घर...उनकी भावनाओं का पूरा ख्याल रखेगा। इसमें सनसनी नहीं; इमोशन्स हैं।’
गुजराती रंगमंच की जानीमानी कलाकार लता धामी की छोटी बिटिया सुहासी भरतनाट्यम में दक्ष हैं। वे कहती हैं-‘मां कहती हैं कि; कुछ बेहतर करने के लिए निरंतर सीखते रहना चाहिए। मां ने कुछ हिंदी सीरियल भी किए हैं। उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से ही मैंने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। नादिरा बब्बर की वर्कशॉप में जाती रही हूं।’
सुहासी स्टार प्लस के वीकली कॉमेडी शो-‘एक चाबी है पड़ोस में’ में वरुण वडोला के संग अभिनय कर चुकी हैं। कॉमेडी के बाद सीरियस कैरेक्टर करने के सवाल पर वे दो टूक कहती हैं-‘मुझे दोनों शेड पसंद हैं। वैसे भी मेरा मानना है कि एक आर्टिस्ट को हमेशा एक्सपेरिमेंट करते रहना चाहिए।’
सुहासी कितने घंटे शूटिंग करती हैं? वे शब्दों का मायाजाल बुन डालती हैं-‘सूरजजी मुझे पूरे 7 घंटे सोने का मौका देते हैं। पैकअप होने से 5 मिनिट पहले मुझे फ्री कर दिया जाता है।’ हालांकि बाद में हंसते हुए सुहासी स्वीकारती हैं कि; वे 12-13 घंटे शूट करती हैं। सुहासी और स्वर्णप्रभा(किरदार) में समानता/असमानता पर वे स्पष्ट करती हैं-‘रियल लाइफ में भी मैं घर में सबसे छोटी हूं। सबकी लाड़ली हूं, लेकिन मनमानी नहीं करती। थोड़ा-बहुत घर का काम भी आता है।’ इतना कहते हुए सुहासी हंस पड़ती हैं।
सुहासी उज्जैन को कितना जानती हैं? वे मुस्कराते हुए जवाब देती हैं-‘सीरियल में मेरा घर उज्जैन में है, लेकिन अभी तक मैं वहां नहीं गई हूं। सूरजीजी ने थोड़ा-बहुत उज्जैन के बारे में बताया था। वहां भी सीरियल की शूटिंग होनी है, तब जाकर घूमूंगी।’

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

रवि किशन (अभिनेता और एंकर)


पिछले जन्म के ‘कर्म’ कभी पीछा नहीं छोड़ते
अमिताभ फरोग
रवि किशन उन अभिनेताओं/एंकर्स में शुमार हैं, जो प्रत्येक आर्ट-क्राफ्ट को पूरी शिद्दत से जी लेते हैं। ...लेकिन इस बार बात एकदम अलग है! 7 दिसंबर से ‘एनडीटीवी इमेजिन’ पर शुरू हो रहे अनूठे रियलिटी शो-‘ राज: पिछले जन्म का’ को होस्ट कर रहे रवि किशन मानते हैं कि; इस शो ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी है।

इस वैज्ञानिक युग में पिछले जन्म की बातें कहां तक उचित हैं? रवि किशन आध्यात्मिक अंदाज में बोलते हैं-‘पिछले जन्म पर अब सभी को विश्वास करना होगा। जब कोई व्यक्ति मुझसे अपने पिछले जन्म की बातें करता है; तो मैं उस पर हंसता नहीं हूं। उसे अंधविश्वासी नहीं ठहराता। दरअसल, मैंने भी कई बार महसूस किया है कि; इंसान आज जो कुछ भोग रहा है, वह उसके पिछले कर्मों: पाप-पुण्य का परिणाम है। मुझे पिछले जन्म पर पूरा बिलीव है। इस शो के बाद साइंस भी इसे सच मानेगा।’
रवि किशन वैज्ञानिक प्रमाण देते हुए खुलासा करते हैं-‘इस शो में पास्ट लाइफ रिग्रेशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। हम किसी के कहे पर आसानी से बिलीव नहीं कर लेते। हम उसे तथ्यों जैसे तारीख, स्थान आदि के साथ टेली करते हैं। जैसे इस शो में आए एक व्यक्ति ने बताया कि पिछले जन्म में उसका निधन एक दुर्घटना में हुआ था। हमने इंटरनेट, दस्तावेजों आदि के माध्यम से उसके द्वारा बताई गई तारीख और घटना स्थल को चेक किया। वह एकदम ठीक थी। यह केवल एक उदाहरण है। इस शो में कई सेलेब्रिटीज के अलावा कुछ लोगों ने अपने पिछले जन्म के ऐसे-ऐसे राज खोले हैं कि; हम भी हैरत में पड़ गए।’ वे मशहूर अभिनेता शेखर सुमन का उदाहरण भी देते हैं-‘शो के माध्यम से शेखरजी अपने दिवंगत पुत्र से मिलकर आए हैं।’
भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार रवि किशन कहते हैं-‘मैंने ढेरों भोजपुरी/हिंदी फिल्में की हैं, तमाम रियलिटी शो किए हैं, लेकिन यह पहला मौका है, जब किसी शो ने मेरा पूरा वजूद बदल दिया-लाइफ चेंज कर दी। मेरी चंचलता जैसे काफूर हो उठी है, मैं अत्यंत गंभीर व्यक्ति हो गया हूं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि; ऐसा अद्भुत शो भी होस्ट करूंगा।’
शब्दों के चयन और उनके प्रस्तुतिकरण की विशिष्ट शैली के कारण हमेशा सुर्खियों में रहने वाले रवि किशन ‘राज...’ को लेकर बेहद गंभीर और उत्सुक हैं-‘मुझे विश्वास है कि यह टेलीविजन के इतिहास का सबसे अद्भुत शो साबित होगा। हम लोगों को मृत्यु और मोक्ष का साक्षात्कार कराने जा रहे हैं। मेरा मानना है कि; आदमी अपने पिछले जन्म में जो भी कर्म-दुष्कर्म करता है, उसे इस जीवन में भुगतना ही पड़ता है। वह लाख बचना चाहे, लेकिन पाप-पुण्य का लेखा-जोखा उसका पीछा नहीं छोड़ता।’
रवि किशन शो की खासियत बताते हैं-‘मैं तो सिर्फ होस्ट हूं, इस अनूठे कंसेप्ट के पीछे एनडीटीवी की दक्ष टीम कार्य कर रही है। इसमें पास्ट लाइफ रिग्रेशन तकनीक से कान्शस मेडिटेटिव की मदद से व्यक्ति को पिछले जन्म में ले जाया जाता है। पिछले जन्म के किस कर्म-दुष्कर्म के कारण व्यक्ति को वर्तमान जीवन में डर, फोबिया और दु:ख-तकलीफें घेरे हुए हैं? इससे मालूम चल जाता है। इसमें जानी-मानी साइकोलॉजिस्ट डॉ. तृप्ति जेईन व्यक्ति को इस तकनीक से पिछले जन्म की यादों में पहुंचाएंगी।’
रवि किशन दार्शनिक लहजे में कहते हैं-‘जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा! यह शो लोगों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा भी देगा, ताकि उन्हें अगले जन्म में कष्ट न भोगने पड़ें।’

रविवार, 22 नवंबर 2009

दयाशंकर पांडे(अभिनेता)


मैं लाउड एक्टिंग में बिलीव नहीं करता
अमिताभ फरोग
आशुतोष गोवारीकर और प्रकाश झा! दोनों विपरीत वैचारिक-धाराओं में बहने वाले निर्देशक। इनकी कार्य-निर्देशकीय शैली की कसौटी पर ‘खरा उतरना’ अत्यंत ‘टेढ़ी खीर’ माना जाता है। दयाशंकर पांडे; साधारण शक्ल-सूरत के ऐसे असाधारण क्रियेटिव पर्सन/अभिनेता हैं, जो इन दोनों के प्रिय पात्र हैं। यदि इन निर्देशकों के पास उनके लायक कोई रोल न भी हो; तब भी उन्हें इनकी फिल्मों में ‘थैंक्स क्रेडिट’ अवश्य मिलता है। ‘जोधा-अकबर’ इसका सशक्त उदाहरण है। सिनेमा के थोड़े सांस्कृतिक और वैचारिक पहलुओं पर उनसे गुफ्तगू...
प्रकाश झा और आशुतोष गोवारीकर को कैसे विश्लेषित करेंगे? इस सवाल पर दयाशंकर शब्दों को तौलने-परखने के बाद उन्हें विचारों में विन्यासित करते हैं-‘भाईजी(प्रकाश झा) के साथ यह मेरी तीसरी फिल्म है। गंगाजल और अपहरण में भी उनकी निर्देशकीय शैली करीब से देखी है। वे एक अनुभवी शिक्षक-सा बर्ताव करते हैं। उनकी लेखनशैली और निर्देशकीय समझ इतनी सधी हुई होती है कि; बस एक साधारण-सा अभिनेता भी एक बार ठीक से/मन से संवाद पढ़ ले, तो वह असाधारण अभिनय की छाप छोड़ जाता है। वे त्रुटियों पर डांटते भी हैं, तो सम्मान भी खूब देते हैं। आशु अत्यंत अनुशासनबद्ध निर्देशक हैं। उनकी कार्यशैली में कड़क मिजाज झलकता है। शायद यही कारण है कि मीडिया में उनकी छवि नकारात्मक चली गई है। मेरी और उनकी शुरुआत एक ही फिल्म-पहला नशा से हुई है। वो मेरे अच्छे दोस्त भी हैं।’
बनारसी बाबू दयाशंकर अभिनय की बारीकियों को अपने नजरिये से पेश करते हैं-‘मैं तो सिर्फ इतना मानता हूं कि; आप जो भी किरदार निभाएं, यदि उसमें आपका आत्मिक समर्पण है; तो दर्शक उसे सदैव याद रखेंगे। लगान, स्वदेश, गंगाजल, अपहरण, दिल्ली-6 और धर्म; में लोग मुझे नहीं, मेरे किरदार को याद करते/रखते हैं। मैंने अपने अभिनय में 100 परसेंट आउटपुट देने की कोशिश की। कितना सफल रहा; यह तो नहीं मालूम, लेकिन लोग मुझे जानते हैं-यही मेरी खुशी है।’
हालिया रिलीज फिल्म-‘व्हाट्स योर राशि’ में अपनी छाप छोड़ने वाले दयाशंकर खुद क्या हैं? इस सवाल पर उनके हाव-भाव नैसर्गिक हो उठते हैं-‘मेरा बेसिक नेचर ह्यूमर है। मेरा मानना है कि अगर आदमी में अच्छा सेंस ऑफ़ ह्यूमर हो, तो उसकी तमाम कमियां/पाप दूर हो जाते हैं। हां, इसके लिए नॉलेज भी आवश्यक है। वर्षों पहले के मेरे मित्र आज तक मुझसे जुड़े हुए हैं, तो यह मेरे बेसिक नेचर के कारण है। आपने लगान देखी होगी, मेरा कैरेक्टर सीरियस था, लेकिन उसकी बॉलिंग करने की स्टाइल में भी एक ह्यूमर टच था। यह और बात है कि मेरे हिस्से में गंभीर किरदार अधिक आए। हां, यह भी सच है कि मैं लाउड कॉमेडी/एक्टिंग में बिलीव नहीं करता। आप धर्म देखिए, वेलकम टू सज्जनपुर, माय नेम इज अंथानी गोंसालविस या एक अजनबी का विश्लेषण करिए; मैं कहीं भी लाउड नहीं दिखा, फिर भी मेरा किरदार उभर कर सामने आया।’
दयाशंकर की संतुष्टि? इस प्रश्न पर वे कभी भावुक, कभी दार्शनिक तो अगले पल दार्शनिक लहजे में जवाब देते वक्त कई सवाल छोड़ते हैं-‘संतुष्टि कब किसको मिली है? लोग अपनी बड़ी छवि गढ़ लेते हैं-मैं ऐसा बनूंगा; वैसा करूंगा! सपने मुट्ठीभर लोगों के ही साकार हो पाते हैं, लेकिन वे भी संतुष्ट नहीं मिलेंगे। मैं तो अपने सपने से अभी बहुत दूर हूं। सदैव अच्छे किरदार की तलाश रहती है, पर जो भी काम मिलता है; उसे पूरी ईमानदारी-समर्पण से बेहतर करने का प्रयास करता हूं। अच्छा अभिनय करूंगा, तभी निर्माता/निर्देशक मुझे बुलाएंगे; दर्शक याद रखेंगे। आपके वर्क में कोई करप्शन नहीं आना चाहिए। आप जो भी वर्क करो, अगर दर्शक उसे 25-50 साल बाद भी याद रखते हैं, तभी माना जाएगा कि आपकी कार्यशैली प्योर थी।’
दयाशंकर ‘कर्म और धर्म’ दोनों में अटूट आस्था रखते हैं। वे विशुद्ध आध्यात्मिक वाक्य शैली में संवाद करते हैं-‘ मैं इन दिनों एनडीटीवी इमेजिन पर प्रसारित मायथालॉजिकल क्लासिक महिमा शनिदेव की...मैं शनिदेव का किरदार कर रहा हूं। इसलिए यह बात नहीं कह रहा? दरअसल, सच यही है। व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है-देर-सवेर ही सही। शनिदेव की भूमिका करते वक्त मुझे खुद ऐसी अनुभूति हुई है। यह टेलीविजन की दुनिया में एक मात्र पुरुष प्रधान सीरियल है। इसमें शनिदेव एक शिक्षक-सा व्यवहार करते हैं। वे बताते हैं कि अगर आपने पाप किया है, तो सजा अवश्य भुगतनी होगी।’
ठेठ बनारसी अंदाज में पान चबाने के शौकीन दयाशंकर कहते हैं-‘पान छोड़ने की कोशिश कर रहा हूं।’ दयाशंकर एक गुजराती प्ले भी करने जा रहे हैं। यह ख्यात शायर मरीज पर आधारित है। मरीज को गुजरात का गालिब कहा जाता था। दयाशंकर इसमें सहादत हसन मंटो का किरदार निभाने जा रहे हैं।
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-गांधी फिल्म का एक संवाद मेरा मूल मंत्र है-‘लगातार झूठ की जीत होती है, तो यह मत मानना कि सच हार गया।’ -‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की क्रियेटिव टीम से जुड़ना एक अलग ही अनुभूति है। इसके निर्माता आसित मोदी मेरे कॉलेज टाइम के मित्र हैं। यह संयुक्त प्रयासों का नतीजा है कि तारक... खूब पसंद किया जा रहा है। इसमें हमने नेचुरल कॉमेडी लाने पर जोर/ध्यान दिया है।

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

प्रदीप खरब (फिल्म अभिनेता)



खुशी है इस ‘इडियट’ को सबने सराहा
अमिताभ फरोग
दो ‘सुपर सितारों’ के बीच खुद की ‘चमक ढूंढना’ अत्यंत जोखिमभरा और कठिन प्रयास होता है। यह ऐसा कार्य होता है, जिसमें ‘करियर फिसलने’ की आशंका निरंतर बनी रहती है। अभिनेता प्रदीप खरब भी ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ में अपने रोल को लेकर आशंकित थे। उन्हें डर था कि; कहीं वे रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ की जोड़ी के बीच ‘इडियट’ साबित न हो जाएं, लेकिन अब वे अपने डिसीजन पर बेहद खुश हैं। उभरते सितारे प्रदीप खरब शेयर कर रहे हैं कुछ बातें...

प्योर कॉमेडी तड़के से तैयार ‘अजब प्रेम..’ के निर्देशक राजकुमार संतोषी की छवि ‘सीरियस-सोशल’ फिल्ममेकर की मानी जाती रही रही है। सामाजिक बुराइयों के प्रति ‘उत्तेजना’ पैदा करने वाले घायल, दामिनी और लज्जा जैसे सिनेमा के जनक संतोषी के ‘अजब प्रेम..’ के रूप में ‘नए प्रयोग’ में स्वयं को खरा साबित करना प्रदीप खरब के लिए एक कड़ी चुनौती थी। प्रदीप खुलासा करते हैं-‘खोया-खोया चांद हो या एक: द पॉवर ऑफ़ वन या फिर फैशन; मैंने विविध शेड के किरदार किए, लेकिन एक इडियट का रोल प्ले करना इन सबसे बेहद अलग-अनूठा और चुनौतीपूर्ण कार्य था। शुरुआत में कुछ आशंकित था कि; क्या पुरानी छवि के इतर दर्शक मुझे इस शेड में पसंद करेंगे भी या नहीं? दरअसल, यह रोल थोड़ा मुश्किल था। इसके लिए ईगो को साइड में रखकर काम करना था। मैं बहुत खुश हूं कि; मैं सफल रहा। मैं खुद को अत्यंत लकी भी मानता हूं, जो मैंने इस अपोरचुनिटी को स्वीकार किया।’
‘अजब प्रेम...’ में प्रदीप ने टॉनी का रोल प्ले किया है। प्रदीप खुशी जताते हैं-‘मुझे अच्छा लगा कि; रणबीर और कैटरीना के बीच मैं अपनी चमक बिखरेने में सफल रहा। जाने भी दो यारो...जैसी बेमिसाल फिल्म के निर्देशक कुंदन शाह ने मेरे काम को सराहा। कॉमेडी सिनेमा पर खासी पकड़ रखने वाले नीरज वोरा को भी मेरा अभिनय पसंद आया। इससे बड़ा अचीवमेंट और काम्प्लीमेंट मेरे लिए क्या हो सकता है! ओवरल ऑल मैं इडियट बनकर बेहद खुश हूं।’
प्रदीप निर्देशक संतोषी के ‘अजब-गजब क्राफ्ट’ की प्रशंसा करते हुए बोलते हैं-‘संतोषीजी का विजन एकदम क्लियर होता है। उन्हें क्या करना है, कैसे कराना है, इसे लेकर वे कभी कन्फ्यूज्ड नहीं दिखते। उन्हें फिल्म क्राफ्ट की गहरी सोच-समझ है। वे जब तक किसी कार्य से संतुष्ट नहीं होते, उसे निरंतर करते रहते हैं। मैं तो यही मानता हूं कि; मैं सही हाथों में था।’
प्रदीप खरब ने मधुर भंडारकर के संग ‘फैशन’ और सुधीर मिश्रा के निर्देशन में ‘खोया-खोया चांद’ भी की है। प्रदीप दोनों को लेकर अपनी विचार व्यक्त करते हैं-‘सुधीरजी इंस्टीट्यूशन हैं। उनके संग काम करने का मतलब है, आप परफेक्ट आउटपुट दे पाएंगे। जहां तक मधुरजी की बात है; वे बहुत ईजी-वे कार्य करते हैं।’
करीब 6 फुट हाइट के प्रदीप देश के चर्चित मॉडल्स में भी शुमार हैं। ‘ऐसे में जबकि कुछेक को छोड़कर ज्यादातर मॉडल्स एक्टिंग में असफल साबित हुए हैं; प्रदीप खुद के बारे में क्या सोचते हैं?’ वे दो टूक कहते हैं-‘एज ए मॉडल लोग मुझे कितना जानते हैं, यह तो पता नहीं; लेकिन मैं खुद को एक्टर मानता हूं, मॉडल नहीं।’
संजय लीला भंसाली, फरहान अख्तर, विशाल भारद्वाज जैसे फिल्मेकर्स से इम्प्रेस प्रदीप कहते हैं-‘इन्होंने फिल्म मनोरंजन को एक नई सोच दी है। पिछले दिनों मैं हॉलीवुड गया था, विशालजी का कार्य वहां भी खूब पसंद किया जाता है।’ अपनी क्षमताओं पर प्रदीप स्पष्ट करते हैं-‘मैं किसी एक इमेज में बंधना पसंद नहीं करूंगा। कोशिश है, अलग-अलग शेड के किरदार मिलें।’
खरब को एक्टिंग की बारीकियां सिखाने वालों में भोपालवासी विनोद थारानी भी शामिल हैं।

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

पुस्तक समीक्षा


चिल्लर चिंतन: एक संभावना का स्वागत...

ऐसा मानने में भी में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हिन्दी साहित्य में हास्य लेखन की परंपरा कम पाई जाती है। यहां व्यंग्य, इस तरह के लेखन का बुनियादी विषय रहा है। आजकल आ रहे हास्य-व्यंग्य संग्रहों में भी व्यंग्य की मात्रा काफी दिखाई देती है, हास्य पर जोर काफी कम हैं। इस नजरिए से अनुज खरे का हास्य-व्यंग्य संग्रह 'चिल्लर चिंतन' विशिष्ट घटना है।
इसमें हास्य केन्द्र में है, रचनाओं में व्यंग्य सायास आता चला जाता है। कई जगह व्यंग्य इतनी शिद्दत के साथ दिखाई देता है कि बेहद ताजगी का अहसास होता है। किताब की भूमिका में प्रख्यात व्यंग्यकार श्री ज्ञान चतुर्वेदी लिखते हैं-अनुज में व्यंग्य की बुनियादी समझ है, और लीक से हटकर कुछ करने की तड़प भी। वे विषय चयन से लेकर व्यंग्य की भाषा तथा शैली तक व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र के समस्त उपादानों का बखूबी से प्रयोग करते हैं। वे लोकभाषा में बिखरे व्यंग्य का प्रयोग करना भी जानते हैं। उनकी रचनाएं बताती हैं कि वे अलग हैं, ताजेपन के साथ हैं, और नया करने को आतुर भी। कई जगह वे पात्रों को स्थापित करने में इतनी जबर्दस्त शैली का प्रयोग करते हैं कि पात्र संपूर्ण मारकता के साथ 'मार्मिक' होकर आपसे तादात्म्य स्थापित कर लेता है। कई रचनाओं में पाठक खुद पात्रों की हैसियत में दिखाई देने लगता है। कई जगह भाषा शिल्प चमत्कृत करता है। हालांकि उनके लेखन में एक तरह की दरदरी अनगढ़ता दिखाई देती है। अधिकांश रचनाओं में वे व्यंग्य के स्थापित प्रतिमानों का भी अतिक्रमण करते नजर आते हैं। दोनों ही बातें कई स्थानों में अखरती हैं, तो कई रचनाओं में इसी वजह नई जमीन टूटती दिखाई देती है। कुल मिलाकर उनका संग्रह प्रयोगात्मक शैली में परिस्थितियों-पात्रों के माध्यम से सहज हास्य की तलाश करने वालों के लिए विशिष्ट किस्म की अनुभूति से गुजरने जैसा है। एक नए लेखक के नजरिए से श्री ज्ञान चतुर्वेदी की भूमिका का शीर्षक 'एक संभावना के स्वागत में इस मामले में बेहद सटीक दिखाई देता है।

चिल्लर चिंतन (व्यंग्य संग्रह)
लेखक: अनुज खरे
बोधि प्रकाशन, जयपुर
कीमत: 150 रुपए
पृष्ठ: 160
लेखक से संपर्क : 9826658739

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009


मैं इतना तो बुरा आदमी नहीं हूं
अमिताभ फरोग
‘देशद्रोही’ जैसी देशभक्ति फिल्म के कारण सुर्खियों में आए कमाल राशिद खान दु:खी हैं कि; ‘बिग बॉस-3’ में उनकी छवि को मटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई, जबकि वे इतने बुरे इंसान कतई नहीं हैं। ‘बिग बॉस’ से बाहर किए जाने के बाद कमाल अपने गुण-दोषों का विश्लेषण करने में लगे हैं।
हिंदी फिल्म ‘सितम’ के अलावा कुछ भोजपुरी फिल्मों के निर्माता कमाल आश्चर्य जताते हैं-‘मैं अब भी नहीं समझ पाया हूं कि; आखिर बिग बॉस का कन्सेप्ट क्या है? दरअसल, हर व्यक्ति का अपना एक अलग मिजाज होता है। उनमें अच्छाई भी होती हैं, तो बुराई भी। ऐसी स्थिति में एक घर में; 13 लोगों में एक संग रहते हुए वाद-विवाद होना स्वाभाविक है। लेकिन मैं हैरान हूं कि; आखिर मैं ही क्यों बाहर हुआ?’खुद को शॉर्ट नेम ‘केआरके’ कहलाना पसंद करने वाले कमाल थोड़े भावुक होकर कहते हैं-‘मैंने शो के 20 दिनों की सीडीज मंगाकर देखी हैं। मेरा जैसा उग्र रूप टेलीविजन पर दिखाया गया; वैसा मैं नहीं हूं। रोहित वर्मा और राजू श्रीवास्तव से मेरा झगड़ा हुआ, लेकिन ऐसे छोटे-मोटे विवाद किस घर में नहीं होते?’अपने दोस्तों के बीच हेल्पफुल नेचर के कारण लोकप्रिय कमाल दो टूक कहते हैं-‘मुझसे ज्यादा तो बिंदु ने झगड़ा किया। कभी वह पूनम पर भड़का, तो कभी बख्तियार को मारने दौड़ा। इस्माइल का झगड़ा भी तो हुआ था? मुझे लगता है कि मेरी बॉडी लैंग्वेज, लाइफस्टाइल और बातचीत के तरीके में शो वालों को मसाला नजर आया, तभी उन्होंने चुन-चुनकर छोटे-मोटे विवादास्पद दृश्य दर्शकों को दिखाए?’कमाल खुलकर बतियाते हैं-‘मैं वहां जिंदगी का एक अनूठा अनुभव लेने गया था। वहां आनंद और तकलीफ दोनों की अनुभूति हुई। माइक नहीं पहनने के कारण जेल गया, तो घर-परिवार के कामकाज में भी हाथ बटाना पड़ा। फिर भी मैं यही कहूंगा कि; घर के भीतर भी मजे में था और अब बाहर आने के बाद भी खुश हूं।’‘देशद्रोही-2’ की तैयारियों में जुटे कमाल इस अफवाह का खंडन करते हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि; वे शर्लिन को इस फिल्म में हीरोइन ले सकते हैं। कमाल के मुताबिक,‘देशद्रोही एक देशभक्ति फिल्म है, इसमें शर्लिन का क्या काम? हां, अगली जो भी फिल्म बनाऊंगा; यदि उसमें सेक्सी गर्ल का कैरेक्टर निकला, तो उसे अवश्य मौका दूंगा।’कमाल निवेदन करते हैं-‘मैं दर्शकों से कहना चाहूंगा कि वे बिग बॉस को एक प्रोग्राम के नजरिये से देखें और किसी की छवि को लेकर कोई धारणा न पालें।’उल्लेखनीय है कि ‘बिग बॉस-3’ के प्रसारण के बाद ‘कलर्स चैनल’ की टीआरपी में जबर्दस्त उछाल आया है।

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

बिंदास चैनल का रियलिटी शो-‘बिग स्विच’


बोले तो; अपुन की तो लाइफ बन गई
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
बिंदास चैनल पर शनिवार से रियलिटी शो-‘बिग स्विच’ ऑन एयर हुआ है। एक घंटे के इस शो में 10 रिच फैमिली के यूथ स्लम में रहने वाले इतने ही युवाओं के संग 14 दिन बिताएंगे। हाई सोसायटी की लाइफस्टाइल को छोड़कर स्लम में पहुंचे ये रिच यूथ अपने साथी ‘स्लम बॉय/गर्ल’ के ख्वाब को पूरा करने में हेल्प करेंगे। इस शो के रिच यूथ सन्नी सारा और ‘स्लम बॉय’ अभिषेक प्रसाद गुरुवार को मीडिया से मुखातिब हुए।
मैं रिस्पांसिबल हो गया हूं(रिच यूथ : सन्नी सारा)
मुंबई के एक रईस परिवार के युवक 28 वर्षीय सन्नी सारा अपने पार्टनर स्लम बॉय ‘अभिषेक प्रसाद’ के संपर्क में आकर खुद में काफी बदलाव महसूस कर रहे हैं। वे बताते हैं-‘मैंने कभी अभावों की जिंदगी नहीं जी। स्लम में जाकर मैं काफी रिस्पोंसिबल हो गया हूं। मुझे लगता है कि; हमें दूसरों की हेल्प करनी चाहिए। इस शो में शामिल हुए बाकी रिच बॉय और गर्ल्स सबने मिलकर फैसला किया है कि; शो के बाद भी अभावों में जीने वाले स्लम बॉयज/गर्ल्स के सपने साकार करने में हम हेल्प करते रहेंगे।’सन्नी के मुंबई में कई रेस्टोरेंट और नाइट क्लब हैं। वे एक ईवेंट मैनेजमेंट कंपनी का संचालन भी करते हैं। सन्नी हाई सोसायटी से अचानक स्लम लाइफ में जाने का अनुभव शेयर करते हैं-‘मैं सिंगापुर में छुट्टियां मनाकर जैसे ही लौटा, अगले दिन शो के लिए स्लम एरिया जा पहुंचा। पहले शो को लेकर काफी एक्साइटमेंट था, लेकिन जब स्लम लाइफ जीनी पड़ी; तो दिल बोला-चल भाग जा। बाद मैं मैंने आत्मचिंतन किया कि; नहीं, यहां रहकर एक स्लम बॉय की जिंदगी बदलना मेरी रिस्पांसबिलिटी है।’ अभिषेक में आए बदलाव पर सन्नी उत्साह से बोलते हैं-‘पहले वह बेहद शर्मिला था, अब उसका कान्फिडेंस लेवल हाई हो गया है। वह अपने फ्यूचर को लेकर अवेयर भी हो गया है।’
मैंने जीतना सीखा है(स्लम बॉय : अभिषेक प्रसाद)
सन्नी के पार्टनर अभिषेक अपनी जिंदगी में इस अप्रत्याशित बदलाव से बेहद अभिभूत हैं। बीकॉम थर्ड ईयर के स्टूडेंट अभिषेक बिंदास बोलते हैं-‘यह मेरे और परिवार वालों के लिए किसी सपने जैसा था। सन्नी ने मुझे काफी कुछ सिखाया। उठने-बैठने, बातचीत का तरीका; कहूं तो बॉडी लैंग्वेज से लेकर लाइफस्टाइल सब कुछ चेंज हो गई है। सन्नी ने मुझे जिम्मेदार भी बना दिया है। हां, फिर भी मैं यह जरूर कहूंगा कि-कितने भी ऊंचे मुकाम पर पहुंच जाओ, जहां से चले थे; उस जगह को कभी नहीं भूलो। मेरी लाइफ बदली है, एट्टीट्यूट नहीं।’अभिषेक शेफ बनना चाहते हैं। वे बताते हैं-‘मैंने बेकरी का शॉर्ट टर्म कोर्स किया है। मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि; किसी बड़े इंस्टीट्यूट में पढ़ सकूं। पर मैं अपने ड्रीम को लेकर कान्फिडेंट हूं। सन्नी कहता है कि; कुछ भी हो जाए, स्ट्रगल करते रहना, कभी हार न मानना। मैं भी जीतकर दिखाऊंगा, अपने सपने साकार करके रहूंगा।
‘बिग स्विच’ के बारे में
इस रियलिटी शो का निर्माण एंडेमॉल कंपनी ने किया है। शो के लिए वर्सोवा(मुंबई) के एक स्लम एरिया में स्टूडियो बनाया गया है। इस स्टूडियो में स्लम बस्ती बनाई गई है। यहां रहने वाले प्रतिभागियों को भौतिक सुख-सुविधाओं से परे स्लम लाइफ जीना पड़ेगी। इसमें फिल्म, पॉलिटिक्स और बिजनेस से जुड़ीं नामचीन हस्तियों के 10 लड़के-लड़कियों को बतौर रिच यूथ शामिल किया गया है। ये लोग इतने ही स्लम बॉय/गर्ल्स के संग रहकर उनकी जिंदगी बदलने का टॉस्क पूरा करेंगे। इसके विनर को बतौर प्राइज 10 लाख रुपए मिलेंगे। यह मनी स्लम बॉय/गर्ल के सपने पूरा करने में काम आएगी।

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009


मैं अपने अभिनय को खुद के मापदंड पर परखता हूं
अमिताभ फरोग
मनोज वाजपेयी; एक ऐसा नाम हैं, जिनका अभिनय सिनेप्रेमियों के मस्तिष्क पर स्थायी छाप छोड़ जाता है-वे मानते हैं कि; ज्यादातर अच्छी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पैसा नहीं बंटोर पातीं, जबकि वे सिनेमाई संस्कृति के लिहाज से श्रेष्ठ कही जा सकती हैं। उनका इशारा ‘1971’ की ओर था, जिसे हाल में बेस्ट फीचर फिल्म का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला है। ‘राजनीति’ में महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे मनोज पीपुल्स समाचार ’ से मुखातिब थे...


मनोज वाजपेयी शब्दों की जुगाली किए बगैर दो टूक कहते हैं-‘जो फिल्में आत्मसंतुष्टि देती हैं, सिनेमा की धारा बदलती हैं, वे फिल्में हिट नहीं हो पातीं। जब कोई मुझसे पिंजर की बात करता है, स्वामी पर चर्चा छेड़ता है या 1971 में मेरे अभिनय को याद रखता है; तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। भले ही पिंजर नहीं चली, तमन्ना, जुबैदा पैसा नहीं कमा सकीं; लेकिन वे अच्छी फिल्में थीं। अक्स नहीं चली, लेकिन उसे क्लासिकल सिनेमा की श्रेणी में रखा गया।’
‘अक्स’ में बिग-बी के आगे ‘कद्दावर’ साबित होने के टेढ़े प्रश्न पर वे सुलझे शब्द ‘यूज’ करते हैं-‘अमिताभ बच्चन बहुत गुणी अभिनेता हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलेवरी; सबकुछ अनुकरणीय है। मैं फिल्म इंडस्ट्री से सिर्फ दो अभिनेताओं अमिताभ और दिलीप कुमार का जिक्र करना चाहूंगा, जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा है।’
अपने डेढ़ दशक के फिल्मी करियर से संतुष्ट श्री मनोज अपना दृष्टिकोण सामने रखते हैं-‘मैंने अच्छा अभिनय किया या नहीं; यह मैं अपने मापदंड पर परखता हूं। यदि कोई अभिनेता अपनी दृष्टि में संतुष्ट है, तो यही उसका सम्मान है। कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों कमाए या घटिया साबित हो जाए, यह कोई कसौटी नहीं होती कि; मैंने अच्छा काम किया या नहीं! हालांकि मैं फिल्में चलने के लिए नहीं करता। फिर भी उनका चलना इसलिए आवश्यक है क्योंकि; उनसे प्रोड्यूसर की कमाई होती है और मुझे काम मिलता है।’
मनोजजी खुद के मूल्यांकन का निचोड़ पेश करते हैं-‘कुछ फिल्में अच्छी बनती हैं, कुछ बुरी या कुछ अच्छी नहीं बन पातीं; यह और बात है, लेकिन मैं हर तरह की भूमिकाओं के लिए जाना जाता हूं।’ ‘जुगाड़’ जैसी फिल्म पर वे दो टूक कहते हैं-‘मैं हिट नहीं; अच्छी फिल्मों के लिए पहचाना जाता हूं। ऐसी मिस्टेक कम ही होती हैं। 15 साल के करियर में मैं दो राष्ट्रीय पुरस्कार ले चुका हूं, दर्शकों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए और क्या चाहिए?’
आलोचकों के मापदंड पर खरी नहीं उतरी ‘मनी है तो हनी है’ को लेकर मनोजजी ‘खरे शब्दों’ का वाक्य विन्यास संजोते हैं-‘मैं गोविंदाजी के साथ काम करना चाहता था। मैं खुद को उनके सामने परखना चाहता था। मैं मानता हूं कि; मेरे अभिनय ने निराश नहीं किया।’
‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ में सिलेक्शन न हो पाना आज भी इस ‘मझे अभिनेता’ के भीतर टीस बनकर मौजूद है-‘उस वक्त एनएसडी को लेकर ठीक वैसा जुनून था, जैसा एक फिल्म अभिनेता बनने को लेकर होता है। वह मेरी एक ऐसी चाहत थी, जो अधूरी रह गई।’
भोपाल में ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ की संभावनाओं पर मनोज स्वीकृति की मुहर लगाते हैं-‘देश में टैलेंट की कोई कमी नहीं है। अगर नहीं हैं, तो अच्छे संस्थान और सही व्यक्ति; जो उनका ठीक मार्गदर्शन कर सकें। भोपाल सक्षम है। यदि यहां एनएसडी आए, तो इससे अच्छी बात और क्या होगी! ऐसे विद्यालय तो हर प्रांत में होना चाहिए।’
‘सत्या’ के भीकू म्हात्रे का जिक्र छेड़ते ही वे दार्शनिक अंदाज में बोलते हैं-‘सत्या एक ही बनती है। शोले और दीवार भी एक ही बनती है। मनोज बाजपेयी सरीखे अभिनेता और आ जाएंगे, कुछ और फिल्में बनेंगी; लेकिन इन जैसी लैंडमार्क फिल्में दुबारा नहीं बन सकतीं।’
भोपाल में फिल्म प्रोडक्शन की बढ़ती संभावनाओं पर मनोजजी प्रशंसकीय लहजे में कहते हैं-‘निश्चय ही यह भोपाल के लिए एक कॉम्पलीमेंट है। प्रोड्यूसर/डायरेक्टर भोपाल को शूटिंग के लिहाज से सुरक्षित मान रहे हैं। अगर वो बोल रहे हैं कि; यहां के लोग सहयोगी हैं, अच्छे हैं, तो इससे बड़ी प्रशंसा और क्या होगी!’
अक्टूबर में रिलीज होने जा रही ‘एसिड फैक्ट्री’ को लेकर मनोजजी उत्साहित हैं-‘काफी उम्मीदें हैं। बहुत अच्छी फिल्म बनी है। यह मेरे लिए एक नया प्रयोग है।’
‘ब्लॉग’ लेखन के सवाल पर मनोज खुलासा करते हैं-‘अभी कम्प्यूटर फ्रैंडली नहीं हूं। टाइप भी ठीक से नहीं आती, इसलिए जब भी वक्त मिलता है, किसी से डिक्टेड करात हूं और फिर उसे ब्लॉग पर पोस्ट करता हूं।’

सोमवार, 28 सितंबर 2009

हिंदी फिल्मों में करोड़ों रुपए खपा रहे बिल्डर्स और नेता




भोपाली अमीरों का फिल्मी दांव
अमिताभ फरोग
आखिर प्रकाश झा ‘राजनीति’ लेकर भोपाल ही क्यों आए? झा ही क्यों; ‘मकबूल’ फेम विशाल भारद्वाज ‘प्रॉवोक्ड’ फेम जग मूंदड़ा, ‘कांटे’ फेम संजय गुप्ता और अब; आमिर खान भोपाल में फिल्म बनाने को लेकर इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे हैं? फिल्म प्रोडक्शंस से जुडेÞ विश्वस्त सूत्रों की मानें तो; पूंजी निवेश के हिसाब से बॉलीवुड यहां के बिल्डर्स और नेताओं के लिए सबसे चोखा धंधा साबित हो रहा है।

राजकपूर के दौर से हिंदी फिल्मों में भोपाल का पैसा लगता रहा है, लेकिन पिछले एक दशक में पैसे का गणित लाखों से करोड़ों में पहुंच गया है। इन दिनों प्रकाश झा भोपाल में ‘राजनीति’ शूट कर रहे हैं। इस प्रोडक्शन से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक,‘प्रकाश झा की भोपाल में आवाजाही पांच-छह साल के दौरान ज्यादा बढ़ी है। राजनीति भोपाल में ही क्यों शूट हो रही है? वो भी तब; जब मल्टीस्टारर फिल्म होने से यहां उसकी प्रोडक्शन कास्ट 10 से 15 प्रतिशत बढ़ गई है? दरअसल, इसमें भोपाल के कुछ लोगों का खासा पैसा लगा होने का अनुमान है।’
हाल में प्रकाश झा ने फिल्म के कलाकारों को मीडिया से मुखातिब कराया था, तब फिल्म के पटकथा लेखक अंजुम रजब अली ने खुलासा किया था कि; श्री झा कुछ साल पहले एक गवर्नमेंट प्रोजेक्ट(डाक्यूमेंट्री फिल्म) के सिलसिले में भोपाल आए थे। उसी दौरान उन्होंने राजनीति की शूटिंग के लिए भोपाल को फाइनल कर दिया था।
पिछले दिनों एक युवा निर्देशक मंगल फौजी भी एक फिल्म प्रोजेक्ट को लेकर कुछ मंत्रियों से मिले थे। यह फिल्म ‘सरकार की उपलब्धियों का डाक्यूमेंटेशन’ से अधिक कुछ नहीं है। सूत्रों के मुताबिक फाइनेंस की उम्मीद में नेताओं और उनके करीबी बिल्डर्स तक पैठ/पहुंच बनाने का यही सबसे सरल और उचित रास्ता होता है। यही कारण है कि बड़े-बड़े फिल्म निर्देशक लो बजट के सरकारी प्रोजेक्ट को भी सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।
हिंदी फिल्म ‘वाइफ है, तो लाइफ है’ और भोजपुरी फिल्म ‘दूल्हा बाबू’ के निर्माता/ निर्देशक भोपालवासी वीरेंद्र राठौर मानते हैं-‘चैनलों की भरमार होने से सेटेलाइट राइट्स भी लाखों/करोड़ों रुपए में बिक जाते हैं। अब तो 90 प्रतिशत फिल्में थोड़ा-बहुत ही सही; मुनाफा कमा ही लेती हैं।’ वीरेंद्र अक्टूबर में एक भोजपुरी अलबम शूट करने भोपाल आ रहे हैं, जिसमें भी भोपाल से ही पैसा जुटाया गया है।
पिछले दिनों ‘ओशो महोत्सव’ में फिल्ममेकर विशाल भारद्वाज सपत्नीक(गेंदा फूल फेम-रेखा भारद्वाज) शरीक हुए थे। विशाल भोपाल को अपना दूसरा घर मानते हैं? वजह; उनके करीब बताते हैं-‘विशाल की फिल्मों को भोपाल से फाइनेंसर मिलते रहे हैं।’ संभव है कि ओशो महोत्सव सिर्फ एक बहाना था, उनका ‘ध्यान’ तो अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए फाइनेंसर ढूंढना रहा होगा! बताया जाता है कि विशाल की ‘मकबूल’ को भी भोपाल के किसी बिल्डर ने फाइनेंस किया था। इसमें एक शर्त रखी गई थी कि; फिल्म यहीं शूट होनी चाहिए।’
चर्चित निर्देशक संजय गुप्ता की ‘कांटे’, जगदीप की ‘सूरमा भोपाली’, राजश्री प्रोडक्शन की ‘एक विवाह ऐसा भी’ और ग्रेवी ग्रेवाल निर्देशित ‘कुशर प्रसाद का भूत’ जैसी तमाम फिल्मों में भोपाल से पैसा लगाया गया है। उल्लेखनीय है कि ‘कांटे’ के एक प्रोड्यूसर मशहूर पत्रकार प्रीतिश नंदी भी थे, जिनकी गहरी राजनीतिक पैठ है। वहीं ‘एक विवाह...’ में म्यूजिक रविंद्र जैन ने दिया है। श्री जैन प्रदेश सरकार में खासा दखल रखते हैं। उन्होंने यहां ‘संगीत अकादमी’ की स्थापना की है।
‘कुशर प्रसाद...’ में अभिनय कर रहे पंकज त्रिपाठी कहते हैं-‘फिल्म निर्माण एक ऐसा बिजनेस है, जिसमें अब नुकसान की आशंका न के बराबर रह गई है।’
‘प्रॉवोक्ड’ फेम जग मूंदड़ा, ‘फैशन’ फेम मधुर भंडारकर की भोपाल से निकटता का एक कारण ‘पैसा’ है। ‘छोटी-सी बात’,‘खट्टा मीठा’ जैसी दर्जनों विशुद्ध पारिवारिक हास्य फिल्में बनाने वाले ख्यात निर्देशक वासु चटर्जी को सीहोर के एक फाइनेंसर ने ऑफ़र किया है। श्री चटर्जी के संग ‘बांछा का बगीचा’ नामक फिल्म का निर्माण करने जा रहे वीरेंद्र राठौर कहते हैं-‘फिल्मों में पैसा लगाना अच्छा सौदा है, लेकिन भोपाल के फाइनेंसर्स को कुछ साल पहले तक कड़वे अनुभव ही रहे हैं। दरअसल, वे ऐसे प्रोडक्शन हाउसेस या निर्देशकों पर दांव खेल जाते हैं; जो सिर्फ अपना हित देखते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों के दौरान भोपाल के फाइनेंसर मुनाफा ही कमा रहे हैं।’ इन दिनों सब टेलीविजन पर प्रसारित हो रहे कॉमेडी सीरियल ‘ये चंदा कानून है’ के प्रोड्यूसर तुषीर और राजाराम पाटीदार भी भोपाल के हैं।
लीडर सबसे आगे
मुंबई को सालाना करीब 50 करोड़ रुपए पहुंच रहा है। इसमें 50 प्रतिशत नेताओं का पैसा है। दूसरे नंबर पर बिल्डर्स आते हैं। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के एक मंत्री ने मुंबई के अंधेरी स्थित एक ‘प्रोडक्शन हाउस’ में पैसा लगाया है। वहीं कांग्रेस सरकार के मंत्रीमंडल में शामिल रहे एक नेता का बेटा बतौर हीरो एक फिल्म में आने वाला है। यह ठीक रामविलास पासवान जैसी स्थिति है। श्री पासवान के बेटे की भी बतौर हीरो एक फिल्म आ
रही है।
अफसर भी हैं मीडिएटर
निर्देशकों और नेताओं/बिल्डर्स के बीच मध्यस्थता निभाने में भोपाल के कुछ सिनेमा मालिकों के अलावा सरकारी अफसर भी मीडियेटर की भूमिका निभा रहे हैं। गौरतलब है फिल्म के कई महत्वपूर्ण संस्थानों जैसे-पूना फिल्म इंस्टीट्यूट, चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी और सेंसर बोर्ड में भोपाल से जुड़े ‘शख्स/आईएएस/आईपीएस’ महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं। कुछ महीने पहले यहां के एक बिल्डर्स ने भोपाल में ‘फिल्म स्टूडियो’ के निर्माण में रुचि दिखाते हुए फिल्म विधा से जुड़े कुछ लोगों से मीटिंग भी की थी।
यहां डूब गया पैसा
करीब 6 साल पहले भोपाल में सीरियल निर्माण करने आए फिल्म निर्माता आनंद महेंद्रू ने अपने तीन प्रोजेक्ट के लिए भोपाल से पैसा उठाया था। हालांकि बाद में यह पैसा फंस गया। ऐसी ही स्थिति मोहन चोटी की एक फिल्म को लेकर हुई थी। इसके लिए कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री ने मोहन चोटी को 5 लाख रुपए दिलाए थे, जिनमें से बमुश्किल 3 लाख ही वसूल हो पाए। करिश्मा कपूर की एक फिल्म भी इसका एक उदाहरण है। यह फिल्म बन ही नहीं पाई। इन खट्टे-कड़वे अनुभवों से सबक सीखते हुए भोपाल के फानेंसर अब मीडियेटर की हेल्प लेने लगे हैं।

भोपाल से किसका कितना पैसा


नेता 50% बिल्डर्स 30% उद्योगपति 20%
(फिल्म प्रोडक्शन में उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों से चर्चा के आधार पर। कई लोग फिल्म निर्देशकों/निर्माताओं को ब्याज पर पैसा देते हैं।)

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

डस्की डॉल पारुल चौहान

ब्लैक; कान्फिडेंस भी लाता है

अमिताभ फ़रोग
ब्लैकअंधेरे और शक्ति दोनों का प्रतीक है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो उसे किस ऊर्जा के साथ आत्मसात करता है।स्टार प्लसके लोकप्रिय सीरियलविदाईमें सांवली-सलोनी रागिनी का किरदारजीरहीं पारुल इसका सशक्त उदाहरण हैं। टेलीविजन की चुनिंदा एक्ट्रेस में शुमार पारुल सोमवार को अपने सांवले-सलोने अंदाज में मुखातिब हुईं

ब्लैक कुर्ती; ब्लैक जींस और इसी रंग के लांग बूट यानी टोटल वेस्टर्न आउटफिट में रंगीं पारुलब्लैकको कुछ यूं परिभाषित करती हैं-‘यह व्यक्ति के नजरिये पर निर्भर करता है कि वो; इसे कैसे अपनाता है? किसी को गोरापन पसंद है, तो कोई डस्की लड़कियों को अधिक तवज्जो देता है। बिपाशा बसु डस्की हैं, लेकिन उन्होंने अपने टैलेंट और कान्फिडेंस के बूते फिल्म इंडस्ट्री में एक विशिष्ट मुकाम हासिल किया। मैं डस्की हूं, इस पर मुझे गर्व है; क्योंकि इसी रंग की बदौलत लोग मुझे पहचान रहे हैं-सम्मान दे रहे हैं। कभी किसी ने यह नहीं बोला कि; छि: यह लड़की काली है!’
विदाईकी रागिनी और पारुल के अंतर पर वे खूब बतियाती हैं-‘रागिनी का किरदार हिंदुस्तानी नारी का है, जो साड़ी में जंचती है। पारुल यानी मुझे इंडियन और वेस्टर्न दोनों आउटफिट पसंद हैं।अचानक सेलेब्रिटी बन जाना; जीवन में क्या बदलाव लाता है? इस सवाल पर पारुल मुस्कराती हैं-‘मैं उत्तरप्रदेश की रहने वाली हूं। वहां और मुंबई की लाइफस्टाइल में बहुत फर्क है, इसलिए जिंदगी में बदलाव तो आता है; लेकिन मैं जैसी पहली थी, वैसी ही आज हूं। जहां तक आउटफिट की बात है, तो मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूं कि जिस शहर में जाऊं; मेरा पहनावा वहां के अनुरूप/अनुकूल हो।
जब विषयविदाईपर आकर ठहरता है, तो पारुल चहक-सी पड़ती हैं-‘दर्शकों के बीच यह सीरियल बहुत लोकप्रिय है। इसे दो साल हो गए हैं। हम पिछले दिनों यूके होकर आए हैं। वहां की भारतीय कम्यूनिटी में विदाई खूब पसंद किया जा रहा है। लोग टिकट लेकर हमसे मिलने आए।
वर्किंग टाइम को लेकर पारुल मुस्कराती हैं-‘मैंने लगातार 16 घंटे भी शूटिंग की है। जब मैं झलक दिखला जा...रियलिटी शो कर रही थी तब; मीरा रोड से अंधेरी तक 50 किलोमीटर तक गाड़ी खुद ड्राइव करके जाती थी। स्टूडियो में ही मेरे लिए अलग से बाथरूम का इंतजाम किया गया था, ताकि मैं वहीं से तैयार होकर सेट पर पहुंच जाऊं।क्या पारुल डांस करना सीख चुकी हैं? इस प्रश्न पर वे खिलखिलाती हैं-‘पहले अवश्य मुझे कई डांसिंग स्टेप करने में परेशानी होती थी, लेकिन जब झलक दिखला जा... रियलिटी शो किया; तब कोरियोग्राफर ने मेरे लिए बहुत परिश्रम किया। अब तो इंडियन-वेस्टर्न हर डांस स्टेप देखते ही उसे कॉपी कर लेती हूं।
गरबा स्टेपपर पारुल कान्फिडेंटली बोलती हैं-‘सच कहूं, तो मैंने कभी गरबा नहीं खेला। जिस सोसायटी में मेरा घर है, वहां नवरात्रि के दौरान थोड़ा-बहुत डांडिया कर लेती हूं।

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

विशाल भारद्वाज(फिल्ममेकर)


भोपाल के ‘गुड्डू-चार्ली’ से हुआ ‘कमीने’ का जन्म
बच्चों के लोकप्रिय कार्टून सीरियलमोगलीके गीत-‘चड्ढी पहनके फूल खिला है...’ को संगीत से संवारने वाले म्यूजिक कम्पोजर विशाल भारद्वाज यह बताते हुए खुशी महसूस करते हैं कि उनकी सुपरहिट फिल्मकमीनेका कैरेक्टर भोपाल के जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर शरीफ-उर-रहमान उर्फ गुड्डू चार्ली से प्रेरित है। फिल्म पंडितों द्वारा सराही गर्इंमकबूलऔरओमकाराजैसीनाटकप्रधान फिल्मबनाने वाले विशाल मीडिया से फ्रैंडली बतियाए...

हां, यह सच है कि ‘कमीने’ में शाहिद कपूर ने जिन दो किरदारों को अभिनीत किया है, वे भोपाल के गुड्डू चार्ली से प्रेरित हैं। भोपाल को अपना दूसरा घर मानने वाले प्रयोगवादी निर्देशकों में शुमार विशाल यह बताते हुए अत्यंत उत्साहित नजर आए-‘मैं जब यहां मकबूल की शूटिंग करने आया था, तब किसी ने जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर्स के लिए मुझे गुड्डू चार्ली का नाम सुझाया था। तब मुझे लगा था कि यह किन्हीं दो व्यक्तियों के नाम होंगे। बाद में जब मैं उनसे मिला, तब मालूम चला कि यह तो एक ही व्यक्ति का नाम है। शरीफ बेहद इंस्ट्रेस्टिंग पर्सन हैं। मुझे लगा कि यह नाम किसी फिल्म में अवश्य इस्तेमाल करूंगा। पहले मैं कमीने का नाम गुड्डू-चार्ली ही रखने वाला था।’
कमीने के प्रिंट में डार्कनेस के प्रश्न पर विशाल खुलासा करते हैं-‘मैं अपने प्रोडक्शन से शतप्रतिशत संतुष्ट हूं। डार्कनेस फिल्म की थीम थी। इस फिल्म में हमने हैंड हैल्ड फार्म अपनाई है, जिसमें कैमरा स्टिक पर नहीं, हाथों पर ही रहता है। इस वजह से क्लोजअप शॉट लेते वक्त भी कैमरा हिलता है।’ हालांकि वे यह भी मानते हैं कि डिजिटल और फिजिकल प्रिंट में थोड़ा फर्क आ जाता है। इसलिए आगे इस बात का मुझे ध्यान रखना होगा कि दोनों के प्रिंट ठीक रहें, उनमें बेवजह डार्कनेस न आ पाए।
शेक्सपियर से बेहद प्रभावित विशाल स्वीकारते हैं कि; वे हर फ्लेवर की फिल्म बनाने की ख्वाहिश रखते हैं-ओमकारा और मकबूल जैसी क्लासिक और सोशल, हास्यप्रधान मसाला फिल्में भी। उन्होंने माना कि; अब तक उन्होंने जितनी फिल्में बनार्इं, कमीने ने उनसबको मिलाकर अकेले बिजनेस दिया।
वीडियो पायरेसी रोक पाने में सरकार की अक्षमता पर विशाल नाराजगी जताते हैं-‘अगर मैं फिल्म इंडस्ट्री की ओर से बात करूं, तो हम अधिक प्रिंट्स के साथ इसलिए फिल्में रिलीज करते हैं ताकि पहले ही हफ्ते बिजनेस कवर हो जाए। यह पायरेसी से लड़ने का एक तरीका है।’ वे शब्दों पर जोर देते हैं-‘पायरेसी बिग...बिग...बिग क्राइम है।’
अपनी हर फिल्म में क्राइम को फोकस करने वाले विशाल दो टूक कहते हैं-‘क्राइम के बगैर मैं फिल्में बना ही नहीं सकता। अगर आध्यात्मिक कहानी पर भी फिल्म बनाऊंगा, तो उसमें भी आध्यात्मिक हिंसा का भाव निहित होगा।’ हालांकि यह कहने के साथ ही वे जोर वे हंसने भी लगते हैं। विशाल बिंदास बोलते हैं-‘मैं मैसेज देने के लिए फिल्में नहीं बनाता। एक समय में मेरे पास 10-15 फिल्में होती हैं। जब पैसा लगाने वाला मिल जाए, फिल्म शुरू कर देता हूं।’ वे यह कतई नहीं मानते कि भारत में कहानियों की कमी है-‘कमी स्क्रिप्ट की नहीं, पैसा लगाने वालो की है।’
ब्लैक टी शर्ट और इसी कलर का पॉकेट जींस पहने विशाल से जब पूछा गया कि; ब्लैक वर्चस्व का प्रतीक है, आप का पहनावा क्या यही दर्शाता है? वे दार्शनिक अंदाज में बोेलते हैं-‘बशीर बद्र साहब का एक शेर है, जिसमें चुप रहने से पैदा हुई गलतफहमियों बयां की गई हैं, ठीक यही स्थिति मेरे साथ हो रही है। मैं जो नहीं कहता, मीडिया वो सुन लेती है।’
भारतीय फिल्म उद्योग में सोनी, वार्नर ब्रदर्स और फॉक्स जैसी हॉलीवुड बेस्ट प्रोडक्शन कंपनियों के आगमन पर विशाल दो टूक कहते हैं-‘उनका सिर्फ एक मकसद है-मुनाफा कमाना, बाकी कोई दूसरा सरोकार नहीं है।’
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रेखा भारद्वाज (पार्श्व गायिका)
पति म्यूजिक डायरेक्टर हों, तो नफा-नुकसान दोनों होता है
सूफी गायन में एक अलग मुकाम रखने वालीं पार्श्व गायिका रेखा भारद्वाज स्वीकारती हैं कि अगर पति म्यूजिक कम्पोज कर रहे हों, तो रिकार्डिंग के दौरान थोड़ा डर तो बना ही रहता है। हालांकि वे आगे यह भी कहती हैं कि; विशालजी को मेरी खूबियां और कमजोरियां दोनों पता हैं, इसलिए वे मुझसे अच्छा वर्क करा लेते हैं। ‘रूह’ नाम से सूफी बैंड संचालित करने वालीं रेखा कहती हैं-‘पहले जब लोगों को मालूम चला कि ये तो विशालजी की पत्नी हैं, तो वे मुझसे गाना गंवाने में संकोच करते थे। यह देखते हुए विशालजी ने ओमकारा में नमक इश्क दा... मुझे गंवाया। यह गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि अब दूसरे म्यूजिक डायरेक्टर भी मुझे बुलाने लगे हैं।’ चर्चा के दौरान रेखाजी ने लोगों की फरमाइश पर अपना बेहद चर्चित गीत-‘सैंया छेड़ देवे, ससुरजी गारी देवे..ससुराल गेंदा फूल...’ भी सुनाया।
(यह साक्षात्कार पीपुल्स समाचार, भोपाल में प्रकाशित हुआ है)