रविवार, 27 दिसंबर 2009

ये मजाक नहीं आसां, इतना जान लीजिए!


‘पप्पू’ ने चिढ़ाया, ‘पा’ ने रुलाया अब ‘थ्री इडियट्स’ का पंच

अमिताभ फरोग
ये सारे ‘पंच’ उपहास और ठिठौली का फ्यूजन हैं, लेकिन हैं बड़ी मुसीबत। दरअसल, ‘मुन्नाभाई फेम’ राजकुमार हीरानी की फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ हर तिकड़ी के लिए मुसीबत बन गई है। जहां तीन यार संग दिखे, चिढ़ाने वालों पे पंच मारा-‘थ्री इडियट्स!’ इससे पहले सिली यूथ को ‘पप्पू’ का तमगा मिला। यह फिर भी ठीक है, लेकिन अमिताभ बच्चन की ‘पा’ कई लोगों के लिए ‘चिढ़’ की एक बड़ी वजह बन गई है। शरारती लोग थोड़े से असामान्य (मैंटली या फिजिकली) लोगों को ‘पा’ पुकारकर उपहास उड़ाने लगे हैं। पप्पू से थ्री इडियट्स तक मजाक के नये जुमलों पर नजर...

इंजीनियरिंग की तीन सहेलियां दीपा श्रीवास्तव, गुरमीत कौर और संध्या दुबे जब ज्योति टाकीज से आमिर खान की बहुचर्चित फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ देखकर निकलीं, तो प्रफुल्लित थीं। फिल्म उन्हें बहुत पसंद आई थी। वे जब पार्किंग से अपनी गाड़ियां उठाने पहुंचीं, तभी उनके कानों में एक ‘उपहासमयी’ आवाज गूंजी-‘ओये थ्री इडियट्स?’ दीपा ने पलटकर देखा, तो पाया कि; सामने उनकी कुछ सहेलियां खड़ी हुई थीं। उन्होंने ही समवेत स्वर में दीपा, गुरमीत और संध्या को ‘थ्री इडियट्स’ पुकारा था। यह एक मजाक था, लेकिन जब आसपास के लोग यह सुनकर व्यंग्यात्मक मुस्कराहट बिखरने लगे; तब तीनों का मूड आॅफ हो गया।
‘फिल्मी यूथ’ अपने मित्रों के संग हंसी-ठिठोली करने अकसर ‘पप्पू’ या ‘थ्री इडियट्स’ जैसे शब्दों को जुमला बना लेते हैं। हालांकि यह होता तो एक मजाक है, लेकिन कभी-कभार झगड़े का कारण बन जाता है, जैसा कि; भुवनेश और विशाल के संग हुआ था। यह पिछले वर्ष जुलाई की बात है, जब इमरान खान अभिनीत ‘जाने तू या जाने न ‘फिल्म रिलीज हुई थी। कम्प्यूटर साइंस से बीई कर रहे दोनों मित्र इस फिल्म का नाइट शो देखकर होस्टल लौट रहे थे। भुवनेश के बार-बार किक मारने के बावजूद बाइक स्टार्ट नहीं हुई। संयोग से विशाल की एक किक ने ही काम कर दिया। विशाल ने इतराते हुए भुवनेश को ‘पप्पू‘ बोल दिया। पप्पू बोले तो;‘ढक्कन/बेवकूफ या नकारा!’ भुवनेश ने भी हंसते हुए कोई उदाहरण देकर विशाल को ‘पप्पू’ कह डाला। मजाक का यह सिलसिल धीरे-धीरे बहस में तब्दील हो गया...और आखिरकार मामला तूतू-मैंमैं से होते हुए हाथापाई तक जा पहुंचा। बस, एक ‘पप्पू’ शब्द ने दोनों की दोस्ती हमेशा के लिए तोड़ डाली।
‘पप्पू’ से उबरे तो ‘इडियट्स’ पर अटके :
‘जाने तू...’ के पहले ‘पप्पू’ का पास होना भी तमाम लोगों के उपहास का कारण बनता रहा। दरअसल, अमिताभ बच्चन ने कैडबरी चॉकलेट के एक कमर्शियल एड में ‘पप्पू पास हो गया..’ जिंगल यूज किया था। इस एड. की लोकप्रियता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि; आज भी जब कोई व्यक्ति हैरतअंगेज/अप्रत्याशित/आश्चर्यजनक तरीके से कामयाबी हासिल करता है, तो लोगों के मुंह से उसके लिए अनायास ही निकल जाता है-‘पप्पू पास हो गया!’ यह जुमला एजूकेशन से लेकर इलेक्शन सभी फील्ड में खूब इस्तेमाल होता है। यह जुमला भले ही ‘कान्फिडेंस लेबल’ का परिचायक है, लेकिन कहीं-कहीं उपहास का रंग भी ले लेता है, जैसा सौरभ सरकार के संग हुआ।
सौरभ 12वीं में दो बार फेल हुए। तीसरी बार 40 प्रतिशत अंकों से ही सही, लेकिन वे जैसे-तैसे पास हो गए। सौरभ जब पहले दिन कॉलेज पहुंचे, तो उनके पुराने मित्रों ने चुटकी ले डाली-‘ओह! तो पप्पू पास हो गया?’ सौरभ तब से अपने इन मित्रों से ठीक से बात नहीं करते।
‘पप्पू’ का यह फेमस जुमला लोगों की जुबान से अभी उतरा भी नहीं है कि; ‘मुन्नाभाई’ फेम राजकुमार हीरानी ‘ने लोगों को थ्री इडियट्स’ का ‘पंच’ थमा दिया है। जहां तक ‘पप्पू’ और ‘मुन्नाभाई’ में बेसिक अंतर है- ‘पप्पू’ इडियट है, लेकिन ‘मुन्नाभाई’ की तरह 420 तो कतई नहीं! यह दीगर बात है कि, ‘मुन्नाभाई’ अच्छे रास्ते पर आने के लिए निरंतर गांधीजी के पीछे ‘लगे रहे’ तब कहीं गांधीगीरी से उनका सर्किट जुड़ पाया। कुछ भी हो, लेकिन हीरानी ने मुन्नाभाई के बाद ‘इडियट’ के रूप में यूथ को एक नया ‘उस्तरा’ थमा दिया है, जिसकी ‘धार’ मजाक-मजाक में कइयों की इज्जत तार-तार करने लगी है।
दु:खद साबित हो रहा है ‘पा’ का मजाक:
पप्पू, मुन्नाभाई या थ्री इडियट्स को जुमले के रूप में इस्तेमाल करना उतना कष्टकर नहीं है, जितना ‘पा’ मजाक साबित हो रहा है। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में प्रोजेरिया बीमारी से ग्रस्त एक बच्चे ‘आरो’ का रोल निभाया है। पर्दे पर उनके हाव-भाव ने लोगों का ध्यान तो अवश्य खींचा, लेकिन उनके ‘पा’ पुकारने की स्टाइल को जुमला बना लिया है। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो थोड़ा-बहुत भी ‘आरो’ सा दिखता है या उसके हाव-भाव उस जैसे हैं, लोग उसे ‘पा’ कहकर चिढ़ाने लगते हैं। यानी ‘पा’ का जुमला यहां परेशानी बन गया है।
पहले भी मुसीबत बने हैं फिल्मी जुमले:
सिर्फ पप्पू, मुन्नाभाई या थ्री इडियट्स ही क्यों, पहले भी फिल्मी जुमले लोगों के लिए मुसीबत बनते रहे हैं। वर्ष, 1989 में आई फिल्म ‘त्रिदेव’ के एक गीत ने तब पब्लिक ही नहीं, प्रशासन तक की नाक में दम कर दी थी। गाने के बोल थे-‘ओये-ओये...!’ मनचलों से लेकर ऑटो , साइकिल रिक्शा चालक सब इसका जमकर इस्तेमाल करने लगे थे। लड़कियों को छेड़ना हो तो-ओये-ओये, ट्रैफिक से निकलना है तो-ओये-ओये...यहां तक कि किसी को पुकारना हो तब भी-ओये-ओये...शब्द यूज होने लगा था। यह शब्द प्रशासन के लिए भी मुसीबत बन गया था।
फिलहाल, लोग ‘पप्पू’ से उबर भी नहीं पाए थे कि आमिर के कारण इडियट साबित होने लगे हैं।


फिल्म रिलीज बाद में होती है, लेकिन उसका टाइटल होर्डिंग या पब्लिसिटी के अन्य माध्यमों से लोगों में पहले पहुंच जाता है। ऐसे में टाइटल का सब्जेक्टिव के संग अट्रेक्टिव होना भी अनिवार्य हो गया है, ताकि रोजमर्रा की जिंदगी में लोग उसे खूब यूज करें। कौन बनेगा करोड़पति के दौरान कुछ शब्द जैसे लॉक कर दिया जाए, कन्फर्म जुमला बन गए थे। अब तो शब्दों पर खूब वर्क होने लगा है, ताकि कुछ अनूठा टाइटल निकलकर सामने आए।
वीरेंद्र राठौर, फिल्ममेकर्स

यह काम्पटीशन में खुद को बनाए रखने का सक्सेस फंडा है। कुछ शब्द स्वत: ही लोगों की जुबान पर बैठ जाते हैं, यह ह्यूमन साइकोलॉजी है। पहले फिल्मों के टाइटल गानों से लिए जाते थे, अब ऐसे वर्ड चुने जाने लगे हैं, जिन्हें यूज करते वक्त लोगों को मजा आए। बॉबी, बुड्ढा मिल गया आदि फिल्मों के टाइटल भी लोगों की लाइफ में खूब इस्तेमाल हुए। इडियट एक तकनीक वर्ड है। जिस व्यक्ति का बौद्धिकस्तर 70-90 प्रतिशत के बीच होता है, साइंस में उसे मंदबुद्धि कहते हैं, लेकिन अब इस वर्ड का आम बोलचाल में भी बहुत प्रयोग हो रहा है। फिल्ममेकर्स टाइटल में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल इसलिए करते हैं, ताकि उन्हें माउथ पब्लिसिटी का बेनिफिट मिल सके।
डॉ. विनय मिश्रा, मनोवैज्ञानिक

पप्पू हो या थ्री इडियट्स, ऐसे शब्दों का प्रयोग अपने मित्रों पर करते वक्त इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि मजाक तूतू-मैंमैं में परिवर्तिन न होने पाए। इन शब्दों का एंज्वाय लें, लेकिन संभलकर।
दीपा खरे, प्रोफेशनल
(यह खबर पीपुल्स समाचार, भोपाल में प्रकाशित हुई है।)

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