मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009


मैं इतना तो बुरा आदमी नहीं हूं
अमिताभ फरोग
‘देशद्रोही’ जैसी देशभक्ति फिल्म के कारण सुर्खियों में आए कमाल राशिद खान दु:खी हैं कि; ‘बिग बॉस-3’ में उनकी छवि को मटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई, जबकि वे इतने बुरे इंसान कतई नहीं हैं। ‘बिग बॉस’ से बाहर किए जाने के बाद कमाल अपने गुण-दोषों का विश्लेषण करने में लगे हैं।
हिंदी फिल्म ‘सितम’ के अलावा कुछ भोजपुरी फिल्मों के निर्माता कमाल आश्चर्य जताते हैं-‘मैं अब भी नहीं समझ पाया हूं कि; आखिर बिग बॉस का कन्सेप्ट क्या है? दरअसल, हर व्यक्ति का अपना एक अलग मिजाज होता है। उनमें अच्छाई भी होती हैं, तो बुराई भी। ऐसी स्थिति में एक घर में; 13 लोगों में एक संग रहते हुए वाद-विवाद होना स्वाभाविक है। लेकिन मैं हैरान हूं कि; आखिर मैं ही क्यों बाहर हुआ?’खुद को शॉर्ट नेम ‘केआरके’ कहलाना पसंद करने वाले कमाल थोड़े भावुक होकर कहते हैं-‘मैंने शो के 20 दिनों की सीडीज मंगाकर देखी हैं। मेरा जैसा उग्र रूप टेलीविजन पर दिखाया गया; वैसा मैं नहीं हूं। रोहित वर्मा और राजू श्रीवास्तव से मेरा झगड़ा हुआ, लेकिन ऐसे छोटे-मोटे विवाद किस घर में नहीं होते?’अपने दोस्तों के बीच हेल्पफुल नेचर के कारण लोकप्रिय कमाल दो टूक कहते हैं-‘मुझसे ज्यादा तो बिंदु ने झगड़ा किया। कभी वह पूनम पर भड़का, तो कभी बख्तियार को मारने दौड़ा। इस्माइल का झगड़ा भी तो हुआ था? मुझे लगता है कि मेरी बॉडी लैंग्वेज, लाइफस्टाइल और बातचीत के तरीके में शो वालों को मसाला नजर आया, तभी उन्होंने चुन-चुनकर छोटे-मोटे विवादास्पद दृश्य दर्शकों को दिखाए?’कमाल खुलकर बतियाते हैं-‘मैं वहां जिंदगी का एक अनूठा अनुभव लेने गया था। वहां आनंद और तकलीफ दोनों की अनुभूति हुई। माइक नहीं पहनने के कारण जेल गया, तो घर-परिवार के कामकाज में भी हाथ बटाना पड़ा। फिर भी मैं यही कहूंगा कि; घर के भीतर भी मजे में था और अब बाहर आने के बाद भी खुश हूं।’‘देशद्रोही-2’ की तैयारियों में जुटे कमाल इस अफवाह का खंडन करते हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि; वे शर्लिन को इस फिल्म में हीरोइन ले सकते हैं। कमाल के मुताबिक,‘देशद्रोही एक देशभक्ति फिल्म है, इसमें शर्लिन का क्या काम? हां, अगली जो भी फिल्म बनाऊंगा; यदि उसमें सेक्सी गर्ल का कैरेक्टर निकला, तो उसे अवश्य मौका दूंगा।’कमाल निवेदन करते हैं-‘मैं दर्शकों से कहना चाहूंगा कि वे बिग बॉस को एक प्रोग्राम के नजरिये से देखें और किसी की छवि को लेकर कोई धारणा न पालें।’उल्लेखनीय है कि ‘बिग बॉस-3’ के प्रसारण के बाद ‘कलर्स चैनल’ की टीआरपी में जबर्दस्त उछाल आया है।

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

बिंदास चैनल का रियलिटी शो-‘बिग स्विच’


बोले तो; अपुन की तो लाइफ बन गई
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
बिंदास चैनल पर शनिवार से रियलिटी शो-‘बिग स्विच’ ऑन एयर हुआ है। एक घंटे के इस शो में 10 रिच फैमिली के यूथ स्लम में रहने वाले इतने ही युवाओं के संग 14 दिन बिताएंगे। हाई सोसायटी की लाइफस्टाइल को छोड़कर स्लम में पहुंचे ये रिच यूथ अपने साथी ‘स्लम बॉय/गर्ल’ के ख्वाब को पूरा करने में हेल्प करेंगे। इस शो के रिच यूथ सन्नी सारा और ‘स्लम बॉय’ अभिषेक प्रसाद गुरुवार को मीडिया से मुखातिब हुए।
मैं रिस्पांसिबल हो गया हूं(रिच यूथ : सन्नी सारा)
मुंबई के एक रईस परिवार के युवक 28 वर्षीय सन्नी सारा अपने पार्टनर स्लम बॉय ‘अभिषेक प्रसाद’ के संपर्क में आकर खुद में काफी बदलाव महसूस कर रहे हैं। वे बताते हैं-‘मैंने कभी अभावों की जिंदगी नहीं जी। स्लम में जाकर मैं काफी रिस्पोंसिबल हो गया हूं। मुझे लगता है कि; हमें दूसरों की हेल्प करनी चाहिए। इस शो में शामिल हुए बाकी रिच बॉय और गर्ल्स सबने मिलकर फैसला किया है कि; शो के बाद भी अभावों में जीने वाले स्लम बॉयज/गर्ल्स के सपने साकार करने में हम हेल्प करते रहेंगे।’सन्नी के मुंबई में कई रेस्टोरेंट और नाइट क्लब हैं। वे एक ईवेंट मैनेजमेंट कंपनी का संचालन भी करते हैं। सन्नी हाई सोसायटी से अचानक स्लम लाइफ में जाने का अनुभव शेयर करते हैं-‘मैं सिंगापुर में छुट्टियां मनाकर जैसे ही लौटा, अगले दिन शो के लिए स्लम एरिया जा पहुंचा। पहले शो को लेकर काफी एक्साइटमेंट था, लेकिन जब स्लम लाइफ जीनी पड़ी; तो दिल बोला-चल भाग जा। बाद मैं मैंने आत्मचिंतन किया कि; नहीं, यहां रहकर एक स्लम बॉय की जिंदगी बदलना मेरी रिस्पांसबिलिटी है।’ अभिषेक में आए बदलाव पर सन्नी उत्साह से बोलते हैं-‘पहले वह बेहद शर्मिला था, अब उसका कान्फिडेंस लेवल हाई हो गया है। वह अपने फ्यूचर को लेकर अवेयर भी हो गया है।’
मैंने जीतना सीखा है(स्लम बॉय : अभिषेक प्रसाद)
सन्नी के पार्टनर अभिषेक अपनी जिंदगी में इस अप्रत्याशित बदलाव से बेहद अभिभूत हैं। बीकॉम थर्ड ईयर के स्टूडेंट अभिषेक बिंदास बोलते हैं-‘यह मेरे और परिवार वालों के लिए किसी सपने जैसा था। सन्नी ने मुझे काफी कुछ सिखाया। उठने-बैठने, बातचीत का तरीका; कहूं तो बॉडी लैंग्वेज से लेकर लाइफस्टाइल सब कुछ चेंज हो गई है। सन्नी ने मुझे जिम्मेदार भी बना दिया है। हां, फिर भी मैं यह जरूर कहूंगा कि-कितने भी ऊंचे मुकाम पर पहुंच जाओ, जहां से चले थे; उस जगह को कभी नहीं भूलो। मेरी लाइफ बदली है, एट्टीट्यूट नहीं।’अभिषेक शेफ बनना चाहते हैं। वे बताते हैं-‘मैंने बेकरी का शॉर्ट टर्म कोर्स किया है। मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि; किसी बड़े इंस्टीट्यूट में पढ़ सकूं। पर मैं अपने ड्रीम को लेकर कान्फिडेंट हूं। सन्नी कहता है कि; कुछ भी हो जाए, स्ट्रगल करते रहना, कभी हार न मानना। मैं भी जीतकर दिखाऊंगा, अपने सपने साकार करके रहूंगा।
‘बिग स्विच’ के बारे में
इस रियलिटी शो का निर्माण एंडेमॉल कंपनी ने किया है। शो के लिए वर्सोवा(मुंबई) के एक स्लम एरिया में स्टूडियो बनाया गया है। इस स्टूडियो में स्लम बस्ती बनाई गई है। यहां रहने वाले प्रतिभागियों को भौतिक सुख-सुविधाओं से परे स्लम लाइफ जीना पड़ेगी। इसमें फिल्म, पॉलिटिक्स और बिजनेस से जुड़ीं नामचीन हस्तियों के 10 लड़के-लड़कियों को बतौर रिच यूथ शामिल किया गया है। ये लोग इतने ही स्लम बॉय/गर्ल्स के संग रहकर उनकी जिंदगी बदलने का टॉस्क पूरा करेंगे। इसके विनर को बतौर प्राइज 10 लाख रुपए मिलेंगे। यह मनी स्लम बॉय/गर्ल के सपने पूरा करने में काम आएगी।

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009


मैं अपने अभिनय को खुद के मापदंड पर परखता हूं
अमिताभ फरोग
मनोज वाजपेयी; एक ऐसा नाम हैं, जिनका अभिनय सिनेप्रेमियों के मस्तिष्क पर स्थायी छाप छोड़ जाता है-वे मानते हैं कि; ज्यादातर अच्छी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पैसा नहीं बंटोर पातीं, जबकि वे सिनेमाई संस्कृति के लिहाज से श्रेष्ठ कही जा सकती हैं। उनका इशारा ‘1971’ की ओर था, जिसे हाल में बेस्ट फीचर फिल्म का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला है। ‘राजनीति’ में महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे मनोज पीपुल्स समाचार ’ से मुखातिब थे...


मनोज वाजपेयी शब्दों की जुगाली किए बगैर दो टूक कहते हैं-‘जो फिल्में आत्मसंतुष्टि देती हैं, सिनेमा की धारा बदलती हैं, वे फिल्में हिट नहीं हो पातीं। जब कोई मुझसे पिंजर की बात करता है, स्वामी पर चर्चा छेड़ता है या 1971 में मेरे अभिनय को याद रखता है; तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। भले ही पिंजर नहीं चली, तमन्ना, जुबैदा पैसा नहीं कमा सकीं; लेकिन वे अच्छी फिल्में थीं। अक्स नहीं चली, लेकिन उसे क्लासिकल सिनेमा की श्रेणी में रखा गया।’
‘अक्स’ में बिग-बी के आगे ‘कद्दावर’ साबित होने के टेढ़े प्रश्न पर वे सुलझे शब्द ‘यूज’ करते हैं-‘अमिताभ बच्चन बहुत गुणी अभिनेता हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलेवरी; सबकुछ अनुकरणीय है। मैं फिल्म इंडस्ट्री से सिर्फ दो अभिनेताओं अमिताभ और दिलीप कुमार का जिक्र करना चाहूंगा, जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा है।’
अपने डेढ़ दशक के फिल्मी करियर से संतुष्ट श्री मनोज अपना दृष्टिकोण सामने रखते हैं-‘मैंने अच्छा अभिनय किया या नहीं; यह मैं अपने मापदंड पर परखता हूं। यदि कोई अभिनेता अपनी दृष्टि में संतुष्ट है, तो यही उसका सम्मान है। कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों कमाए या घटिया साबित हो जाए, यह कोई कसौटी नहीं होती कि; मैंने अच्छा काम किया या नहीं! हालांकि मैं फिल्में चलने के लिए नहीं करता। फिर भी उनका चलना इसलिए आवश्यक है क्योंकि; उनसे प्रोड्यूसर की कमाई होती है और मुझे काम मिलता है।’
मनोजजी खुद के मूल्यांकन का निचोड़ पेश करते हैं-‘कुछ फिल्में अच्छी बनती हैं, कुछ बुरी या कुछ अच्छी नहीं बन पातीं; यह और बात है, लेकिन मैं हर तरह की भूमिकाओं के लिए जाना जाता हूं।’ ‘जुगाड़’ जैसी फिल्म पर वे दो टूक कहते हैं-‘मैं हिट नहीं; अच्छी फिल्मों के लिए पहचाना जाता हूं। ऐसी मिस्टेक कम ही होती हैं। 15 साल के करियर में मैं दो राष्ट्रीय पुरस्कार ले चुका हूं, दर्शकों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए और क्या चाहिए?’
आलोचकों के मापदंड पर खरी नहीं उतरी ‘मनी है तो हनी है’ को लेकर मनोजजी ‘खरे शब्दों’ का वाक्य विन्यास संजोते हैं-‘मैं गोविंदाजी के साथ काम करना चाहता था। मैं खुद को उनके सामने परखना चाहता था। मैं मानता हूं कि; मेरे अभिनय ने निराश नहीं किया।’
‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ में सिलेक्शन न हो पाना आज भी इस ‘मझे अभिनेता’ के भीतर टीस बनकर मौजूद है-‘उस वक्त एनएसडी को लेकर ठीक वैसा जुनून था, जैसा एक फिल्म अभिनेता बनने को लेकर होता है। वह मेरी एक ऐसी चाहत थी, जो अधूरी रह गई।’
भोपाल में ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ की संभावनाओं पर मनोज स्वीकृति की मुहर लगाते हैं-‘देश में टैलेंट की कोई कमी नहीं है। अगर नहीं हैं, तो अच्छे संस्थान और सही व्यक्ति; जो उनका ठीक मार्गदर्शन कर सकें। भोपाल सक्षम है। यदि यहां एनएसडी आए, तो इससे अच्छी बात और क्या होगी! ऐसे विद्यालय तो हर प्रांत में होना चाहिए।’
‘सत्या’ के भीकू म्हात्रे का जिक्र छेड़ते ही वे दार्शनिक अंदाज में बोलते हैं-‘सत्या एक ही बनती है। शोले और दीवार भी एक ही बनती है। मनोज बाजपेयी सरीखे अभिनेता और आ जाएंगे, कुछ और फिल्में बनेंगी; लेकिन इन जैसी लैंडमार्क फिल्में दुबारा नहीं बन सकतीं।’
भोपाल में फिल्म प्रोडक्शन की बढ़ती संभावनाओं पर मनोजजी प्रशंसकीय लहजे में कहते हैं-‘निश्चय ही यह भोपाल के लिए एक कॉम्पलीमेंट है। प्रोड्यूसर/डायरेक्टर भोपाल को शूटिंग के लिहाज से सुरक्षित मान रहे हैं। अगर वो बोल रहे हैं कि; यहां के लोग सहयोगी हैं, अच्छे हैं, तो इससे बड़ी प्रशंसा और क्या होगी!’
अक्टूबर में रिलीज होने जा रही ‘एसिड फैक्ट्री’ को लेकर मनोजजी उत्साहित हैं-‘काफी उम्मीदें हैं। बहुत अच्छी फिल्म बनी है। यह मेरे लिए एक नया प्रयोग है।’
‘ब्लॉग’ लेखन के सवाल पर मनोज खुलासा करते हैं-‘अभी कम्प्यूटर फ्रैंडली नहीं हूं। टाइप भी ठीक से नहीं आती, इसलिए जब भी वक्त मिलता है, किसी से डिक्टेड करात हूं और फिर उसे ब्लॉग पर पोस्ट करता हूं।’