रविवार, 29 नवंबर 2009

‘यहां मैं घर-घर खेली’ की सुहासी धामी


आर्टिस्ट को एक्सपीरिमेंट करते रहना चाहिए
अमिताभ फरोग
सुहासी धामी वरुण वडोला के संग कॉमेडी का जबर्दस्त फ्यूजन रचने के बाद राजश्री प्रोडक्शन के शो-‘यहां मैं घर-घर खेली’ में एक जिम्मेदार/भावुक बिटिया का किरदार निभाने जा रही हैं। यह डेली शोप कुछ दिन पहले जीटीवी पर सोमवार से शुक्रवार रात 8.30 बजे आन एयर हुआ है।
मध्यप्रदेश के नैसर्गिक सौंदर्य से वशीभूत राजश्री प्रोडक्शन के सूरज बड़जात्या अपनी फिल्म ‘एक विवाह ऐसा भी’ के बाद ‘यहां मैं घर-घर खेली’ सीरियल के माध्यम से पुन: अपनी इन्हीं भावनाओं/प्यार का इजहार करने जा रहे हैं। जीटीवी पर कुछ दिनों पहले ऑन एयर हुए इस सीरियल की पृष्ठभूमि में महाकाल की नगरी उज्जैन मौजूद है। सुहासी इस सीरियल में स्वर्ण आभा नाम से लीड रोल कर रही हैं।
वे इस सीरियल को लेकर काफी उत्साहित हैं-‘राजश्री प्रोडक्शन फैमिली सिनेमा के लिए ख्यात है। यहां मैं घर... भी निश्चय ही इंडियल फैमिली को बहुत पसंद आएगा। इसमें सिर्फ सेट के रूप में भव्यता ही देखने को नहीं मिलेगी; डायलॉग, कास्ट्यूम, ज्वैलरी सभी पर बहुत मेहनत की गई है। यह सीरियल दूसरे फैमिली ड्रा से हटकर मनोरंजन पेश करेगा। हमारा फोकस भारतीय समाज है, खासकर ऐसे परिवार; जो सास-बहू के षड्यंत्रों, ईर्ष्या/रोने-धोने से आजिज हो चुके हैं, यहां मैं घर...उनकी भावनाओं का पूरा ख्याल रखेगा। इसमें सनसनी नहीं; इमोशन्स हैं।’
गुजराती रंगमंच की जानीमानी कलाकार लता धामी की छोटी बिटिया सुहासी भरतनाट्यम में दक्ष हैं। वे कहती हैं-‘मां कहती हैं कि; कुछ बेहतर करने के लिए निरंतर सीखते रहना चाहिए। मां ने कुछ हिंदी सीरियल भी किए हैं। उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से ही मैंने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। नादिरा बब्बर की वर्कशॉप में जाती रही हूं।’
सुहासी स्टार प्लस के वीकली कॉमेडी शो-‘एक चाबी है पड़ोस में’ में वरुण वडोला के संग अभिनय कर चुकी हैं। कॉमेडी के बाद सीरियस कैरेक्टर करने के सवाल पर वे दो टूक कहती हैं-‘मुझे दोनों शेड पसंद हैं। वैसे भी मेरा मानना है कि एक आर्टिस्ट को हमेशा एक्सपेरिमेंट करते रहना चाहिए।’
सुहासी कितने घंटे शूटिंग करती हैं? वे शब्दों का मायाजाल बुन डालती हैं-‘सूरजजी मुझे पूरे 7 घंटे सोने का मौका देते हैं। पैकअप होने से 5 मिनिट पहले मुझे फ्री कर दिया जाता है।’ हालांकि बाद में हंसते हुए सुहासी स्वीकारती हैं कि; वे 12-13 घंटे शूट करती हैं। सुहासी और स्वर्णप्रभा(किरदार) में समानता/असमानता पर वे स्पष्ट करती हैं-‘रियल लाइफ में भी मैं घर में सबसे छोटी हूं। सबकी लाड़ली हूं, लेकिन मनमानी नहीं करती। थोड़ा-बहुत घर का काम भी आता है।’ इतना कहते हुए सुहासी हंस पड़ती हैं।
सुहासी उज्जैन को कितना जानती हैं? वे मुस्कराते हुए जवाब देती हैं-‘सीरियल में मेरा घर उज्जैन में है, लेकिन अभी तक मैं वहां नहीं गई हूं। सूरजीजी ने थोड़ा-बहुत उज्जैन के बारे में बताया था। वहां भी सीरियल की शूटिंग होनी है, तब जाकर घूमूंगी।’

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

रवि किशन (अभिनेता और एंकर)


पिछले जन्म के ‘कर्म’ कभी पीछा नहीं छोड़ते
अमिताभ फरोग
रवि किशन उन अभिनेताओं/एंकर्स में शुमार हैं, जो प्रत्येक आर्ट-क्राफ्ट को पूरी शिद्दत से जी लेते हैं। ...लेकिन इस बार बात एकदम अलग है! 7 दिसंबर से ‘एनडीटीवी इमेजिन’ पर शुरू हो रहे अनूठे रियलिटी शो-‘ राज: पिछले जन्म का’ को होस्ट कर रहे रवि किशन मानते हैं कि; इस शो ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी है।

इस वैज्ञानिक युग में पिछले जन्म की बातें कहां तक उचित हैं? रवि किशन आध्यात्मिक अंदाज में बोलते हैं-‘पिछले जन्म पर अब सभी को विश्वास करना होगा। जब कोई व्यक्ति मुझसे अपने पिछले जन्म की बातें करता है; तो मैं उस पर हंसता नहीं हूं। उसे अंधविश्वासी नहीं ठहराता। दरअसल, मैंने भी कई बार महसूस किया है कि; इंसान आज जो कुछ भोग रहा है, वह उसके पिछले कर्मों: पाप-पुण्य का परिणाम है। मुझे पिछले जन्म पर पूरा बिलीव है। इस शो के बाद साइंस भी इसे सच मानेगा।’
रवि किशन वैज्ञानिक प्रमाण देते हुए खुलासा करते हैं-‘इस शो में पास्ट लाइफ रिग्रेशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। हम किसी के कहे पर आसानी से बिलीव नहीं कर लेते। हम उसे तथ्यों जैसे तारीख, स्थान आदि के साथ टेली करते हैं। जैसे इस शो में आए एक व्यक्ति ने बताया कि पिछले जन्म में उसका निधन एक दुर्घटना में हुआ था। हमने इंटरनेट, दस्तावेजों आदि के माध्यम से उसके द्वारा बताई गई तारीख और घटना स्थल को चेक किया। वह एकदम ठीक थी। यह केवल एक उदाहरण है। इस शो में कई सेलेब्रिटीज के अलावा कुछ लोगों ने अपने पिछले जन्म के ऐसे-ऐसे राज खोले हैं कि; हम भी हैरत में पड़ गए।’ वे मशहूर अभिनेता शेखर सुमन का उदाहरण भी देते हैं-‘शो के माध्यम से शेखरजी अपने दिवंगत पुत्र से मिलकर आए हैं।’
भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार रवि किशन कहते हैं-‘मैंने ढेरों भोजपुरी/हिंदी फिल्में की हैं, तमाम रियलिटी शो किए हैं, लेकिन यह पहला मौका है, जब किसी शो ने मेरा पूरा वजूद बदल दिया-लाइफ चेंज कर दी। मेरी चंचलता जैसे काफूर हो उठी है, मैं अत्यंत गंभीर व्यक्ति हो गया हूं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि; ऐसा अद्भुत शो भी होस्ट करूंगा।’
शब्दों के चयन और उनके प्रस्तुतिकरण की विशिष्ट शैली के कारण हमेशा सुर्खियों में रहने वाले रवि किशन ‘राज...’ को लेकर बेहद गंभीर और उत्सुक हैं-‘मुझे विश्वास है कि यह टेलीविजन के इतिहास का सबसे अद्भुत शो साबित होगा। हम लोगों को मृत्यु और मोक्ष का साक्षात्कार कराने जा रहे हैं। मेरा मानना है कि; आदमी अपने पिछले जन्म में जो भी कर्म-दुष्कर्म करता है, उसे इस जीवन में भुगतना ही पड़ता है। वह लाख बचना चाहे, लेकिन पाप-पुण्य का लेखा-जोखा उसका पीछा नहीं छोड़ता।’
रवि किशन शो की खासियत बताते हैं-‘मैं तो सिर्फ होस्ट हूं, इस अनूठे कंसेप्ट के पीछे एनडीटीवी की दक्ष टीम कार्य कर रही है। इसमें पास्ट लाइफ रिग्रेशन तकनीक से कान्शस मेडिटेटिव की मदद से व्यक्ति को पिछले जन्म में ले जाया जाता है। पिछले जन्म के किस कर्म-दुष्कर्म के कारण व्यक्ति को वर्तमान जीवन में डर, फोबिया और दु:ख-तकलीफें घेरे हुए हैं? इससे मालूम चल जाता है। इसमें जानी-मानी साइकोलॉजिस्ट डॉ. तृप्ति जेईन व्यक्ति को इस तकनीक से पिछले जन्म की यादों में पहुंचाएंगी।’
रवि किशन दार्शनिक लहजे में कहते हैं-‘जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा! यह शो लोगों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा भी देगा, ताकि उन्हें अगले जन्म में कष्ट न भोगने पड़ें।’

रविवार, 22 नवंबर 2009

दयाशंकर पांडे(अभिनेता)


मैं लाउड एक्टिंग में बिलीव नहीं करता
अमिताभ फरोग
आशुतोष गोवारीकर और प्रकाश झा! दोनों विपरीत वैचारिक-धाराओं में बहने वाले निर्देशक। इनकी कार्य-निर्देशकीय शैली की कसौटी पर ‘खरा उतरना’ अत्यंत ‘टेढ़ी खीर’ माना जाता है। दयाशंकर पांडे; साधारण शक्ल-सूरत के ऐसे असाधारण क्रियेटिव पर्सन/अभिनेता हैं, जो इन दोनों के प्रिय पात्र हैं। यदि इन निर्देशकों के पास उनके लायक कोई रोल न भी हो; तब भी उन्हें इनकी फिल्मों में ‘थैंक्स क्रेडिट’ अवश्य मिलता है। ‘जोधा-अकबर’ इसका सशक्त उदाहरण है। सिनेमा के थोड़े सांस्कृतिक और वैचारिक पहलुओं पर उनसे गुफ्तगू...
प्रकाश झा और आशुतोष गोवारीकर को कैसे विश्लेषित करेंगे? इस सवाल पर दयाशंकर शब्दों को तौलने-परखने के बाद उन्हें विचारों में विन्यासित करते हैं-‘भाईजी(प्रकाश झा) के साथ यह मेरी तीसरी फिल्म है। गंगाजल और अपहरण में भी उनकी निर्देशकीय शैली करीब से देखी है। वे एक अनुभवी शिक्षक-सा बर्ताव करते हैं। उनकी लेखनशैली और निर्देशकीय समझ इतनी सधी हुई होती है कि; बस एक साधारण-सा अभिनेता भी एक बार ठीक से/मन से संवाद पढ़ ले, तो वह असाधारण अभिनय की छाप छोड़ जाता है। वे त्रुटियों पर डांटते भी हैं, तो सम्मान भी खूब देते हैं। आशु अत्यंत अनुशासनबद्ध निर्देशक हैं। उनकी कार्यशैली में कड़क मिजाज झलकता है। शायद यही कारण है कि मीडिया में उनकी छवि नकारात्मक चली गई है। मेरी और उनकी शुरुआत एक ही फिल्म-पहला नशा से हुई है। वो मेरे अच्छे दोस्त भी हैं।’
बनारसी बाबू दयाशंकर अभिनय की बारीकियों को अपने नजरिये से पेश करते हैं-‘मैं तो सिर्फ इतना मानता हूं कि; आप जो भी किरदार निभाएं, यदि उसमें आपका आत्मिक समर्पण है; तो दर्शक उसे सदैव याद रखेंगे। लगान, स्वदेश, गंगाजल, अपहरण, दिल्ली-6 और धर्म; में लोग मुझे नहीं, मेरे किरदार को याद करते/रखते हैं। मैंने अपने अभिनय में 100 परसेंट आउटपुट देने की कोशिश की। कितना सफल रहा; यह तो नहीं मालूम, लेकिन लोग मुझे जानते हैं-यही मेरी खुशी है।’
हालिया रिलीज फिल्म-‘व्हाट्स योर राशि’ में अपनी छाप छोड़ने वाले दयाशंकर खुद क्या हैं? इस सवाल पर उनके हाव-भाव नैसर्गिक हो उठते हैं-‘मेरा बेसिक नेचर ह्यूमर है। मेरा मानना है कि अगर आदमी में अच्छा सेंस ऑफ़ ह्यूमर हो, तो उसकी तमाम कमियां/पाप दूर हो जाते हैं। हां, इसके लिए नॉलेज भी आवश्यक है। वर्षों पहले के मेरे मित्र आज तक मुझसे जुड़े हुए हैं, तो यह मेरे बेसिक नेचर के कारण है। आपने लगान देखी होगी, मेरा कैरेक्टर सीरियस था, लेकिन उसकी बॉलिंग करने की स्टाइल में भी एक ह्यूमर टच था। यह और बात है कि मेरे हिस्से में गंभीर किरदार अधिक आए। हां, यह भी सच है कि मैं लाउड कॉमेडी/एक्टिंग में बिलीव नहीं करता। आप धर्म देखिए, वेलकम टू सज्जनपुर, माय नेम इज अंथानी गोंसालविस या एक अजनबी का विश्लेषण करिए; मैं कहीं भी लाउड नहीं दिखा, फिर भी मेरा किरदार उभर कर सामने आया।’
दयाशंकर की संतुष्टि? इस प्रश्न पर वे कभी भावुक, कभी दार्शनिक तो अगले पल दार्शनिक लहजे में जवाब देते वक्त कई सवाल छोड़ते हैं-‘संतुष्टि कब किसको मिली है? लोग अपनी बड़ी छवि गढ़ लेते हैं-मैं ऐसा बनूंगा; वैसा करूंगा! सपने मुट्ठीभर लोगों के ही साकार हो पाते हैं, लेकिन वे भी संतुष्ट नहीं मिलेंगे। मैं तो अपने सपने से अभी बहुत दूर हूं। सदैव अच्छे किरदार की तलाश रहती है, पर जो भी काम मिलता है; उसे पूरी ईमानदारी-समर्पण से बेहतर करने का प्रयास करता हूं। अच्छा अभिनय करूंगा, तभी निर्माता/निर्देशक मुझे बुलाएंगे; दर्शक याद रखेंगे। आपके वर्क में कोई करप्शन नहीं आना चाहिए। आप जो भी वर्क करो, अगर दर्शक उसे 25-50 साल बाद भी याद रखते हैं, तभी माना जाएगा कि आपकी कार्यशैली प्योर थी।’
दयाशंकर ‘कर्म और धर्म’ दोनों में अटूट आस्था रखते हैं। वे विशुद्ध आध्यात्मिक वाक्य शैली में संवाद करते हैं-‘ मैं इन दिनों एनडीटीवी इमेजिन पर प्रसारित मायथालॉजिकल क्लासिक महिमा शनिदेव की...मैं शनिदेव का किरदार कर रहा हूं। इसलिए यह बात नहीं कह रहा? दरअसल, सच यही है। व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है-देर-सवेर ही सही। शनिदेव की भूमिका करते वक्त मुझे खुद ऐसी अनुभूति हुई है। यह टेलीविजन की दुनिया में एक मात्र पुरुष प्रधान सीरियल है। इसमें शनिदेव एक शिक्षक-सा व्यवहार करते हैं। वे बताते हैं कि अगर आपने पाप किया है, तो सजा अवश्य भुगतनी होगी।’
ठेठ बनारसी अंदाज में पान चबाने के शौकीन दयाशंकर कहते हैं-‘पान छोड़ने की कोशिश कर रहा हूं।’ दयाशंकर एक गुजराती प्ले भी करने जा रहे हैं। यह ख्यात शायर मरीज पर आधारित है। मरीज को गुजरात का गालिब कहा जाता था। दयाशंकर इसमें सहादत हसन मंटो का किरदार निभाने जा रहे हैं।
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-गांधी फिल्म का एक संवाद मेरा मूल मंत्र है-‘लगातार झूठ की जीत होती है, तो यह मत मानना कि सच हार गया।’ -‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की क्रियेटिव टीम से जुड़ना एक अलग ही अनुभूति है। इसके निर्माता आसित मोदी मेरे कॉलेज टाइम के मित्र हैं। यह संयुक्त प्रयासों का नतीजा है कि तारक... खूब पसंद किया जा रहा है। इसमें हमने नेचुरल कॉमेडी लाने पर जोर/ध्यान दिया है।

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

प्रदीप खरब (फिल्म अभिनेता)



खुशी है इस ‘इडियट’ को सबने सराहा
अमिताभ फरोग
दो ‘सुपर सितारों’ के बीच खुद की ‘चमक ढूंढना’ अत्यंत जोखिमभरा और कठिन प्रयास होता है। यह ऐसा कार्य होता है, जिसमें ‘करियर फिसलने’ की आशंका निरंतर बनी रहती है। अभिनेता प्रदीप खरब भी ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ में अपने रोल को लेकर आशंकित थे। उन्हें डर था कि; कहीं वे रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ की जोड़ी के बीच ‘इडियट’ साबित न हो जाएं, लेकिन अब वे अपने डिसीजन पर बेहद खुश हैं। उभरते सितारे प्रदीप खरब शेयर कर रहे हैं कुछ बातें...

प्योर कॉमेडी तड़के से तैयार ‘अजब प्रेम..’ के निर्देशक राजकुमार संतोषी की छवि ‘सीरियस-सोशल’ फिल्ममेकर की मानी जाती रही रही है। सामाजिक बुराइयों के प्रति ‘उत्तेजना’ पैदा करने वाले घायल, दामिनी और लज्जा जैसे सिनेमा के जनक संतोषी के ‘अजब प्रेम..’ के रूप में ‘नए प्रयोग’ में स्वयं को खरा साबित करना प्रदीप खरब के लिए एक कड़ी चुनौती थी। प्रदीप खुलासा करते हैं-‘खोया-खोया चांद हो या एक: द पॉवर ऑफ़ वन या फिर फैशन; मैंने विविध शेड के किरदार किए, लेकिन एक इडियट का रोल प्ले करना इन सबसे बेहद अलग-अनूठा और चुनौतीपूर्ण कार्य था। शुरुआत में कुछ आशंकित था कि; क्या पुरानी छवि के इतर दर्शक मुझे इस शेड में पसंद करेंगे भी या नहीं? दरअसल, यह रोल थोड़ा मुश्किल था। इसके लिए ईगो को साइड में रखकर काम करना था। मैं बहुत खुश हूं कि; मैं सफल रहा। मैं खुद को अत्यंत लकी भी मानता हूं, जो मैंने इस अपोरचुनिटी को स्वीकार किया।’
‘अजब प्रेम...’ में प्रदीप ने टॉनी का रोल प्ले किया है। प्रदीप खुशी जताते हैं-‘मुझे अच्छा लगा कि; रणबीर और कैटरीना के बीच मैं अपनी चमक बिखरेने में सफल रहा। जाने भी दो यारो...जैसी बेमिसाल फिल्म के निर्देशक कुंदन शाह ने मेरे काम को सराहा। कॉमेडी सिनेमा पर खासी पकड़ रखने वाले नीरज वोरा को भी मेरा अभिनय पसंद आया। इससे बड़ा अचीवमेंट और काम्प्लीमेंट मेरे लिए क्या हो सकता है! ओवरल ऑल मैं इडियट बनकर बेहद खुश हूं।’
प्रदीप निर्देशक संतोषी के ‘अजब-गजब क्राफ्ट’ की प्रशंसा करते हुए बोलते हैं-‘संतोषीजी का विजन एकदम क्लियर होता है। उन्हें क्या करना है, कैसे कराना है, इसे लेकर वे कभी कन्फ्यूज्ड नहीं दिखते। उन्हें फिल्म क्राफ्ट की गहरी सोच-समझ है। वे जब तक किसी कार्य से संतुष्ट नहीं होते, उसे निरंतर करते रहते हैं। मैं तो यही मानता हूं कि; मैं सही हाथों में था।’
प्रदीप खरब ने मधुर भंडारकर के संग ‘फैशन’ और सुधीर मिश्रा के निर्देशन में ‘खोया-खोया चांद’ भी की है। प्रदीप दोनों को लेकर अपनी विचार व्यक्त करते हैं-‘सुधीरजी इंस्टीट्यूशन हैं। उनके संग काम करने का मतलब है, आप परफेक्ट आउटपुट दे पाएंगे। जहां तक मधुरजी की बात है; वे बहुत ईजी-वे कार्य करते हैं।’
करीब 6 फुट हाइट के प्रदीप देश के चर्चित मॉडल्स में भी शुमार हैं। ‘ऐसे में जबकि कुछेक को छोड़कर ज्यादातर मॉडल्स एक्टिंग में असफल साबित हुए हैं; प्रदीप खुद के बारे में क्या सोचते हैं?’ वे दो टूक कहते हैं-‘एज ए मॉडल लोग मुझे कितना जानते हैं, यह तो पता नहीं; लेकिन मैं खुद को एक्टर मानता हूं, मॉडल नहीं।’
संजय लीला भंसाली, फरहान अख्तर, विशाल भारद्वाज जैसे फिल्मेकर्स से इम्प्रेस प्रदीप कहते हैं-‘इन्होंने फिल्म मनोरंजन को एक नई सोच दी है। पिछले दिनों मैं हॉलीवुड गया था, विशालजी का कार्य वहां भी खूब पसंद किया जाता है।’ अपनी क्षमताओं पर प्रदीप स्पष्ट करते हैं-‘मैं किसी एक इमेज में बंधना पसंद नहीं करूंगा। कोशिश है, अलग-अलग शेड के किरदार मिलें।’
खरब को एक्टिंग की बारीकियां सिखाने वालों में भोपालवासी विनोद थारानी भी शामिल हैं।

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

पुस्तक समीक्षा


चिल्लर चिंतन: एक संभावना का स्वागत...

ऐसा मानने में भी में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हिन्दी साहित्य में हास्य लेखन की परंपरा कम पाई जाती है। यहां व्यंग्य, इस तरह के लेखन का बुनियादी विषय रहा है। आजकल आ रहे हास्य-व्यंग्य संग्रहों में भी व्यंग्य की मात्रा काफी दिखाई देती है, हास्य पर जोर काफी कम हैं। इस नजरिए से अनुज खरे का हास्य-व्यंग्य संग्रह 'चिल्लर चिंतन' विशिष्ट घटना है।
इसमें हास्य केन्द्र में है, रचनाओं में व्यंग्य सायास आता चला जाता है। कई जगह व्यंग्य इतनी शिद्दत के साथ दिखाई देता है कि बेहद ताजगी का अहसास होता है। किताब की भूमिका में प्रख्यात व्यंग्यकार श्री ज्ञान चतुर्वेदी लिखते हैं-अनुज में व्यंग्य की बुनियादी समझ है, और लीक से हटकर कुछ करने की तड़प भी। वे विषय चयन से लेकर व्यंग्य की भाषा तथा शैली तक व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र के समस्त उपादानों का बखूबी से प्रयोग करते हैं। वे लोकभाषा में बिखरे व्यंग्य का प्रयोग करना भी जानते हैं। उनकी रचनाएं बताती हैं कि वे अलग हैं, ताजेपन के साथ हैं, और नया करने को आतुर भी। कई जगह वे पात्रों को स्थापित करने में इतनी जबर्दस्त शैली का प्रयोग करते हैं कि पात्र संपूर्ण मारकता के साथ 'मार्मिक' होकर आपसे तादात्म्य स्थापित कर लेता है। कई रचनाओं में पाठक खुद पात्रों की हैसियत में दिखाई देने लगता है। कई जगह भाषा शिल्प चमत्कृत करता है। हालांकि उनके लेखन में एक तरह की दरदरी अनगढ़ता दिखाई देती है। अधिकांश रचनाओं में वे व्यंग्य के स्थापित प्रतिमानों का भी अतिक्रमण करते नजर आते हैं। दोनों ही बातें कई स्थानों में अखरती हैं, तो कई रचनाओं में इसी वजह नई जमीन टूटती दिखाई देती है। कुल मिलाकर उनका संग्रह प्रयोगात्मक शैली में परिस्थितियों-पात्रों के माध्यम से सहज हास्य की तलाश करने वालों के लिए विशिष्ट किस्म की अनुभूति से गुजरने जैसा है। एक नए लेखक के नजरिए से श्री ज्ञान चतुर्वेदी की भूमिका का शीर्षक 'एक संभावना के स्वागत में इस मामले में बेहद सटीक दिखाई देता है।

चिल्लर चिंतन (व्यंग्य संग्रह)
लेखक: अनुज खरे
बोधि प्रकाशन, जयपुर
कीमत: 150 रुपए
पृष्ठ: 160
लेखक से संपर्क : 9826658739