बुरे दौर में देवियां
नौ शक्ति का त्यौहार नवरात्र नारी के विविध रूपों का प्रतिनिधित्व करता है। भारत में नारी को जगत जननी का दर्जा दिया जाता है, बावजूद आधुनिक रूप में देखें तो ‘नारी सर्वत्र पूज्यते’ की मान्यता वाले इस देश में महिलाओं से संबंधित क्राइम का रेशो सबसे ज्यादा है। इसमें मप्र की स्थिति भी अच्छी नहीं। देवी के नौ रूप और नारी की मौजूदा स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण करती स्टोरी...
पल्लवी वाघेला
पूरे देश में वूमेन से जुड़े क्राइम का बोलबाला है। इसमें मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जिसमें वूमन क्राइम की स्थिति को लेकर खुद ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की अध्यक्ष डॉ. गिरिजा व्यास अपनी चिंता जता चुकी हैं।
जगत जननी बनाम कन्या भ्रूण हत्या :
यह विडंबना ही है कि मां दुर्गा, काली और सरस्वती को पूजने वाले इस देश में कन्या भ्रूण हत्या बड़ी समस्या है। इससे न सिर्फ सेक्स रेशो बिगड़ा है, बल्कि सोसाइटी को ढेरों प्रॉब्लम्स फेस करनी पड़ रही हैं। हजारों बेटियों को आज भी मां की कोख में ही मार दिया जाता है।
फैक्ट:
प्रदेश के श्योपुर, मुरैना, दतिया, भिंड, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, टीकमगढ़ और छतरपुर वे जिले हैं, जहां चाइल्ड सेक्स रेशो 900 लड़कियां/1000 लड़कों से भी कम है।
शक्ति का रूप बनाम घरेलू हिंसा:
शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न तीनों ही घरेलू हिंसा के अंतर्गत आते हैं। मप्र की स्थिति यहां भी अच्छी नहीं है, पिछले 9 सालों में घरेलू हिंसा की शिकायतों में 5 गुना बढ़ोतरी हुई है।
फैक्ट:
पुलिस रिकार्ड के अनुसार 2009 में घरेलू हिंसा के 36, 215 केस दर्ज हैं, जबकि 2001 में इनकी संख्या मात्र 7,283 थी।
लज्जा स्वरूपा बनाम बलात्कार:
भारत व प्रदेश में ऐसे केसेस की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिनमें नारी की लज्जा को तार-तार किया जा रहा है। दु:ख की बात यह कि इनमें ज्यादातर बलात्कारी घर के सदस्य या परिचित होते हैं।
फैक्ट:
नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2009 में प्रदेश में बलात्कार के 2,900 केस दर्ज हुए। पिछले वर्ष इस क्राइम में मप्र पूरे देश में अग्रणी था। दो सालों में प्रदेश में गैंग रेप का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है।
अन्नपूर्णा बनाम कुपोषण:
नारी पूरे घर की धुरी होती है। वह परिवार के भोजन व पोषण का ध्यान रखती है, लेकिन बचपन से ही कन्या के साथ खान-पान में भेदभाव किया जाता है। दूध, दही हो या खाने की अन्य चीज; पहला अधिकार बेटे का माना जाता है। इसी वजह से कुपोषित कन्याओं की संख्या कहीं अधिक है। इसके अलावा एनीमिया और आॅस्टोपोरायसिस जैसी समस्याएं भी महिलाओं में अधिक होती हैं।
फैक्ट:
मप्र को देश का सबसे कुपोषित राज्य माना जाता है। इनमें कन्याओं में कुपोषण का कोई स्पष्ट आंकड़ा तो सामने नहीं है, लेकिन प्रदेश में कुपोषित बच्चों का प्रतिशत 60.3 है और एक निजी संस्था के सर्वे के अनुसार इनमें कन्याओं की संख्या ज्यादा है। इसके अलावा 15 से 40 साल तक की की महिलाओं में 58 प्रतिशत एनिमिक हैं।
लक्ष्मी रूप बनाम दहेज का लालच:
घर की लक्ष्मी मानी जाने वाली नारी को लक्ष्मी के लालच में होम कर दिया जाता है। इस मामले में मप्र देश में तीसरे स्थान पर है। यूपी और बिहार मप्र से आगे हैं।
फैक्ट:
लोकसभा में ‘वूमेन डेवलपमेंट डिपाटर्मेंट’ द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 2009 में दहेज के लिए मारी जाने वालीं महिलाओं की संख्या 834 है, जबकि दहेज प्रताड़ना संबंधी केस की संख्या इससे कई गुना अधिक।
और भी हैं मसले
-आए दिन महिलाओं को छेड़छाड़ जैसी परेशानियों से निपटना पड़ता है। बुद्धि देने वाली सरस्वती मां के देश में बच्चियों के लिए शिक्षा की राह भी आसान नहीं। कहीं रूढ़िवादी समाज के कारण उन्हें पढ़ाना उचित नहीं माना जाता, तो कहीं बुनियादी सुविधाएं राह में रोड़ा बन जाती हैं। बाल विवाह और कम उम्र में मां बनने के कारण कई कन्याएं हेल्थ प्रॉब्लम से गुजरती हैं। ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-3’ के अनुसार मध्यप्रदेश में डिलेवरी के 42 दिन के अंदर मरने वाली माताओं की संख्या 27-30 प्रतिदिन है। इनमें से 42 प्रतिशत नाबालिक माताएं होती हैं।
-एक सर्वे के अनुसार केवल 45 फीसदी महिलाएं ही घर के निर्णयों में भागीदारी लेती हैं। यह भी विडंबना है कि महिला आरक्षण के बाद भी महिलाएं सरपंच पति की छाया से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। उन्हें आज भी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
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