टट्टू बनकर जीने की आदत छोड़िए जनाब।
संड़ाध मारते नालों की धारा मोड़िए जनाब।
कब तक कहोगे, जो हुक्म मेरा आका।
बात-बेबात दुम हिलाना छोड़िए जनाब।
शुतुरमुर्ग बनने से न बदलेगी तस्वीर कभी।
पत्थर उठाइए, पाप का मटका फोड़िए जनाब।
मिल-बैठकर निकलता है समस्याओं का हल।
एक-दूसरे को टोपी पहनाना छोड़िए जनाब।
अमिताभ बुधौलिया
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