सोमवार, 12 सितंबर 2011

बच्चों को बिगाड़ देती है बात-बात पर सजा




स्कूली बच्चों को पनिशमेंट


अमिताभ बुधौलिया

प्रदेश में स्कूली बच्चों को दंड देने के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, वो भी तब; जब सरकार और प्रशासन इस मामले में कड़ा रुख अख्तियार कर चुका है। पिछले दिनों सीहोर के नौगांव में एक महिला शिक्षक ने छात्राओं के बाल काट दिए। छात्राओं को यह सजा इसलिए मिली क्योंकि वे घर से चोटी बनाकर नहीं आई थीं। सिर्फ चोटी बनाकर स्कूल न आना क्या कोई अपराध है? नि:संदेह नहीं, यह मामला स्वच्छता से संबंधित है। छात्राओं को सजा देने वालीं नौगांव स्थित इस सरकारी स्कूल की संविदा शिक्षक वर्ग-2 की मीता सिंह भी यही मानती हैं। ...और वे भी यही चाहती थीं कि छात्राएं साफ-सफाई का महत्व समझें, लेकिन दंड देने का तरीका गलत निकला।

वरिष्ठ अधिवक्ता कमलाकर चतुर्वेदी के मुताबिक, मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 17(1) के अनुसार बच्चों को किसी भी तरह से शरीरिक दंड या मानसिक उत्पीड़न नहीं दिया जा सकता। इसमें बच्चों को मुर्गा बनाना, छड़ी आदि से मारना, बेंच या धूप में खड़ा करना या किसी कार्य करने को मजबूर करना इत्यादि पहलू शामिल हैं। धारा 17(2) के मुताबिक इसका उल्लंघन पाए जाने पर संबंधित व्यक्ति पर अनुशनात्म कार्रवाई की जाएगी।
सरकारी स्कूल भुगतेंगे खामियाजा: शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) से भले ही निजी संस्थानों के दरवाजे वंचित तबकों के लिए खुल गए हों, लेकिन इसकी भारी कीमत सरकारी स्कूलों को चुकानी पड़ सकती है। इसके शुरुआती संकेत इस साल पहली कक्षा में दर्ज बच्चों की संख्या में हुई कमी से मिलते हैं। भोपाल जिले के स्कूलों के सरकारी आंकड़ों और राजधानी भोपाल के ग्रामीण अंचलों की चुनिंदा स्कूलों के सर्वे से पता चलता है कि अभिभावकों का रुझान बड़ी तेजी से निजी स्कूलों की ओर हो रहा है।

हाल ए मध्यप्रदेश : प्रदेश के 50 जिलों में स्थित 22,387 निजी स्कूलों में एक लाख 70 हजार 987 सीटें वंचित तबकों के बच्चों के लिए रखी गई हैं। इनमें अब तक एक लाख चार हजार बच्चों को प्रवेश दिया जा चुका है। जानकार लोगों के अनुसार ये वे बच्चे हैं, जो अगर शिक्षा का अधिकार कानून नहीं होता तो निश्चित तौर पर सरकारी स्कूलों में प्रवेश लेते। इस तरह सरकारी स्कूलों से करीब एक लाख बच्चे सीधे-सीधे तौर पर बाहर हो गए हैं।

यह है प्रदेश की स्थिति : प्राथमिक स्तर पर क्षेत्रफल व आबादी के अनुसार राज्य के औसत से अधिक स्कूल टीकमगढ़, उमरिया, धार, झाबुआ, खरगोन, बड़वानी, सिवनी, मंडला, शहडोल, सीधी, सतना, रायसेन, डिंडौरी, अलीराजपुर जिले में हैं। माध्यमिक स्तर पर क्षेत्रफल व आबादी के अनुसार राज्य के औसत से अधिक स्कूल रीवा, सीहोर, बालाघाट, बड़वानी, बैतूत, खरगौन, सिवनी, सीधी, उमरिया, मंडला, सिंगरौली में हैं। जबकि पूर्व से ही प्राथमिक शाला के विरुद्ध माध्यमिक शालाओं का अनुपात अपेक्षाकृत भोपाल, उज्जैन, शाजापुर, उमरिया, होंशगाबाद, सीहोर, नीमच, बैतूल, सागर, मंदसौर, जबलपुर, नरसिंहपुर, देवास, कटनी, बुरहानपुर, दमोह, खंडवा, राजगढ़, रायसेन, सीधी, विदिशा में अधिक हैं।

राजधानी की पड़ताल : भोपाल जिले के सरकारी स्कूलों पर नजर दौड़ाएं तो इस साल पहली कक्षा में बच्चों की संख्या में छह फीसदी तक की कमी आई है। जिले के 1050 स्कूलों के आंकड़े बताते हैं कि वहां पिछले वर्ष पहली कक्षा में करीब 28 हजार बच्चों ने दाखिला लिया था। इस साल अब तक यह आंकड़ा सिर्फ 12 हजार तक ही पहुंच सका है। हालांकि अधिकारियों के अनुसार सभी स्कूलों से अभी पूरे आंकड़े आ नहीं पाए हैं, इसलिए इस संख्या में इजाफा होना लाजिमी है। लेकिन इसके बावजूद वे स्वीकारते हैं कि सरकारी स्कूलों में विद्याथिर्यों की संख्या में कमी तो आई है।

सर्वे से सामने आई हकीकत: भोपाल शहर के आसपास स्थित स्कूलों के सर्वे से भी पता चलता है कि सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता हो चुकी है। भदभदा रोड स्थित गौरा गांव में स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल में पिछले साल 70 बच्चे थे। इस साल घटकर 59 रह गए हैं। और ये बच्चे भी कितने नियमित हैं, इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि सर्वे के दौरान केवल 18 बच्चे ही स्कूल में उपस्थित थे। पड़ोस के बिसनखेड़ी गांव की प्राइमरी स्कूल तो दोपहर तीन बजे ही बंद मिली, जबकि उसे साढ़े चार बजे तक खुला होना चाहिए था। गांव के लोगों ने बताया कि जब स्कूल में बच्चे ही नहीं हो, तो शिक्षक भी रहकर क्या करेगा। इन गांवों के करीब ही अरुणोदय नामक निजी स्कूल में 150 बच्चे पढ़ते हैं। इसी तरह बरखेड़ीकलां की सरकारी स्कूल में 150 बच्चे पढ़ते थे। अब यहां 4 बच्चों के ही नाम दर्ज हैं। बीलखेड़ा की शासकीय स्कूल में 130 बच्चे पढ़ते थे। अब इस साल 90 बच्चे पढ़ रहे हैं।

बदलती मानसिकता, सक्रीय एजेंट: ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे एक स्वयंसेवी संस्था के अनुसार सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि बच्चे सरकारी स्कूलों से निकलकर निजी स्कूलों में दाखिला दिलवाया जाए। संभवत: इसके लिए वे निजी स्कूलों के साथ साठगांठ भी कर रहे हैं, क्योंकि चूंकि निजी स्कूलों में 25 फीसदी बच्चों का खर्च सरकार देगी। वहीं शासकीय स्कूलों की अव्यवस्था की कमी का फायदा उठाते हुए एंजेट मोटा कमीशन लेकर बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में करवाने में अपना जोर लगा रहे हैं।
पैर पसारते निजी स्कूल : उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्टÑ के बाद सबसे ज्यादा निजी स्कूल मप्र में ही हैं। यहां निजी स्कूलों की संख्या में इजाफा भी हो रहा है। डिस्ट्रिक्ट इंफार्मेशन सिस्टम फर एजूकेशन (डाइस) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008-09 में प्रदेश में जहां 22,989 स्कूलें थीं, वहीं वर्ष 2009-10 में यह संख्या बढकर 23,455 हो गई। यानी प्रदेश में हर रोज एक नई निजी स्कूल खोली गई।

निजी बनाम सरकारी स्कूल : प्रदेश में निजी स्कूलों की संख्या कुल स्कूलों में 17 फीसदी ही है, लेकिन शिक्षकों की संख्या 35 फीसदी से ज्यादा है। यही वजह है कि निजी स्कूलों में जहां प्रति स्कूल सात शिक्षक हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में यह औसत 25 ही है। इसके अलावा ढांचागत सुविधाओं के मामले में भी सरकारी स्कूलों की स्थिति बदतर है। डाइस की रिपोर्ट के अनुसार केवल 25 फीसदी स्कूलों में ही बायस टयलट और 38 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए टायलट हैं। 43 फीसदी स्कूलों की ही बाउंड्री वल है, जबकि बिजली का कनेक्शन केवल 20 फीसदी स्कूलों में ही हैं।

कुछ ऐसे हैं मैदानी हालात: आंकड़ों पर गौर किया जाए तो शासकीय स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति लगातार कम होती जा रही है। इसका बड़ा कारण शासकीय योजनाओं का लचर रवैया और निचले स्तर तक योजनाओं का भली भांति प्रबंध ना होना पाना है। बच्चों को स्कूल का वातावरण और दी जाने वाली ना काफी सुविधाएं भी शिक्षा का अधिकार कानून पर भारी पड़ती दिखाई देती है। एमडीएम से लेकर यूनिफार्म और पुस्तकों का वितरण भी बच्चों को स्कूल का रुख कराने में पर्याप्त साबित नहीं हो रहा है। ऐसे में प्रदेश सरकार ने शिक्षा के लिए अपनी नीतियों में सभी विकल्प खुले रखे है।

अब बदलेंगे हालात, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सामने आइं : ग्रामीण भारत में बच्चों की शिक्षा के लिए अब अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने पहल की है। अंतरराष्ट्रीय संस्था एमएसडी ने ‘सपोर्ट माइ स्कूल’अभियान के तहत भोपाल क्लस्टर में पहला स्कूल समर्पित करने के लिए भारत में कोका कोला और यूएन एचएबीआईटीएटी से हाथ मिलाया है। रायसेन रोड भोपाल पर आदमपुर के शासकीय प्राइमरी स्कूल का चयन ‘सपोर्ट माय स्कूल’ अभियान में हुआ है। सपोर्ट माय स्कूल अभियान में कोका कोल इंडिया, एनडीटीवी, यूएन हेबिटेड, केफ इंडिया, पियरसन इंटरनेशनल और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन के संयुक्त तत्वावधान में चलाया जा रहा है। एमएसडी अब कोका कोला इंडिया एनडीटीवी सपोर्ट माइस्कूल अभियान में शामिल होकर काम करेगा। देश में इस अभियान की शुरूआत अभियान (एनजीओ) कैंपेन एंबेसडर सचिन तेंलुकर ने जनवरी 2011 में की। इस अभियान का लक्ष्य भारत में 10 राज्यों और 14 क्लस्टरों के ग्रामीण और अर्धशासकीय स्कूलों की पुर्नसंरचना के लिए धन और सुविधाएं प्रदान करना है।
इस अभियान के अंतर्गत भोपाल क्लस्टर के 18 स्कूलों की पुनर्संरचना के लिए राशी प्रदान की जाएगी।
आदमपुर के सरकारी स्कूल में छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, बेहतर और स्वच्छ जल आपूर्ति, खेल-कूद के सामान और लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं प्रदान की गई हैं। इस तरह गांवों में बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करने में सहायता मिलेगी। यह ऐसा अभियान होगा जिसमें बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ने-लिखने का मौका मिलेगा। स्वाभाविक है कि जब बच्चों को माहौल अच्छा मिलेगा, तो वे तहजीब सीखेंगे, उदंडता नहीं करेंगे, सो उन्हें दंड भी नहीं मिलेगा।
/////////////////////////////////////////

मध्यप्रदेश के स्कूलों की स्थिति
कुल शासकीय प्रायमरी स्कूलों की संख्या 83266
कुल शासकीय प्रायमरी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 193026
कुल शासकीय मिडिल स्कूलों की संख्या 27534
कुल शासकीय मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 78163
कुल बच्चों ने स्कूल छोड़ा 70316
--------------
सीहोर जिले का ब्यौरा

कुल शासकीय प्रायमरी स्कूलों की संख्या 1443
कुल शासकीय प्रायमरी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 3398
कुल शासकीय मिडिल स्कूलों की संख्या 611
कुल शासकीय मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 1476
कुल बच्चों ने स्कूल छोड़ा 306
--------------

भोपाल जिले का ब्यौरा

कुल शासकीय प्रायमरी स्कूलों की संख्या 837
कुल शासकीय प्रायमरी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 2676
कुल शासकीय मिडिल स्कूलों की संख्या 368
कुल शासकीय मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 1328



कुल बच्चों ने स्कूल छोड़ा 957

-----------------
बच्चों को शिक्षा अधिकार कानून के अंतर्गत सभी आदेशों का पालन किया जा रहा है। किसी भी तरह का संज्ञान मिलने पर अनुशनात्मक कार्रवाई की जाएगी। हाल में प्राप्त मामलों की जांच समिति गठित कर जांच करवाई जा रही है।

- मनोज झालानी, आयुक्त स्कूल शिक्षा



कोई टिप्पणी नहीं: