
शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

सोमवार, 27 अक्टूबर 2008
शनिवार, 25 अक्टूबर 2008
मत पूछिए हाल शहर का...
जैसे इन्तजार हो कहर का।
खून पीकर मुसंडे हो रहे हैं खटमल...
असर नहीं होता उन पर जहर का।
ठूंठों के बीच खड़े हैं बिजूका...
सूखा पड़ा है कंठ नहर का।
कब चल जायें छुरियां पता नहीं...
उजड्ड है मूड चुनावी लहर का।
कत्ल हुई इंसानियत बीच चौराहे पर...
सड़कें सुनसान थीं, वक्त था दोपहर का।
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008
पुरस्कारों का सच!
इक्के-दुक्के पुरस्कारों को छोड़ दिया जाए, तो शायद ही कोई पुरस्कृत व्यक्ति दूध का धुला निकला हो। पुरस्कृत होना भी एक कला है,...और इसमें वही माहिर होता है, जो सत्ताई मठ में कुंडली मारकर बैठे धीशों को सदैव खुश रखने का हुनर रखता हो। पुरस्कारों के पीछे का सच सब जानते-समझते हैं, लेकिन कौन मुंह खोलेगा? खासकर तब, जब सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हों! बहरहाल, ब्लाग की दुनिया घूमते-घामते मेरी दृष्टि ब्लॉग निर्मल आनंद पर पड़ी । यह ब्लाग अभय तिवारी संचालित करते हैं। अभयजी के बारे में पढ़ने के बाद इतना जान सका हूं कि वे इन दिनों मुंबई में रहकर फिल्म और टेलीविजन दोनों में अपने बहुआयामी व्यक्तित्व का प्रभाव छोड़ रहे हैं। बहरहाल, उन्होंने अरविंद अडिगा के पहले उपन्यास द व्हाइट टाइगर को मैन बुकर प्राइज मिलने पर घोर आश्चर्य व्यक्त किया है। देश-दुनिया के लोग पुरस्कारों के पीछे की कहानी जान सकें, इस मकसद से उनका वैचारिक कम विश्लेषणात्मक लेख हम गिद्द पर प्रकाशित कर रहे हैं...


मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008
क्योंकि ये है बिग बॉस का घर!
अमिताभ फरोग
रियलिटी शो की टीआरपी विवादों पर निर्भर करती है। यह पहला मौका नहीं है, जब कलर्स चैनल के चर्चित शो बिग बॉस को लेकर देशभर से प्रतिक्रियाएं आई हैं। इस

बहरहाल, यहां मुद्दा बिग बॉस के विवादों में आने का है। समूचा विवाद राहुल, मोनिका, पाय

यहां यह प्रश्न भी उठना बाजिव है कि जब भी कोई सदस्य घर से बेघर होता है, तो शुक्रवार को शिल्पा शेट्टी उसे विदा करती हैं और शनिवार को पूजा बेदी विशेष साक्षात्कार के तहत उसके अनुभव शेयर करती हैं, लेकिन संभावना सेठ की सूखी विदाई हुई, क्यों? आखिर ऐसी क्या वजह रही कि संभावना को इस सम्मान का हकदार नहीं समझा गया?
उधर, पायल, राहुल और मोनिका का त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग भी नए मोड़ पर आ गया है। यह भी संभव था कि अगर राहुल और पायल बिग बॉस के घर में न आते तो उनके रिश्ते मधुर बने रहते। मोनिका की घर से विदाई और फिर वापसी राहुल के चाल-चरित्र की त्रुटियों को उभार दिया है। जिस मकसद को लेकर राहुल बिग बॉस के मेहमान बने थे, वे उससे भटक चुके हैं। राहुल का बिग बॉस के घर आना महाजन परिवार के लिए निश्चय ही दुःखद साबित होगा। भाजपा के कद्दावर नेता दिवंगत प्रमोद महाजन के लिए इससे बडी विडंबना और क्या होगी, कि उनकी सांसें उनके भाई ने छीनीं और बेटा टेलीविजन पर उनकी इज्जत की छीछालेदर करा रहा है। 3 मई, 2006 को प्रमोद महाजन ने इस दुनिया को अलविदा बोला था, उसके ठीक एक महीने बाद यानी 3 जून, 2006 को राहुल कोकीन को ओवरडोज के चलते अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। संभव है कि राहुल की हरकतों से प्रमोद भली-भांति वाकिफ रहे हों, लेकिन एक जननायक के लिए अपने बेटे की करतूत छिपाना मजबूरी होती है, खासकर तब, जब विरोधी पार्टी चौकन्नी होकर उसकी हर हरकत पर नजर रख रही हो। प्रमोद की मुस्कराहट के पीछे का दर्द शायद किसी को नजर नहीं आया। क्योंकि क्या यह संभव है कि किसी पिता का बेटा कोकीन जैसे घातक नशे का आदी हो और उसे पता तक न चले? प्रमोद महाजन भाजपा के नींव के पत्थर थे, लेकिन यह अंदर से कितना कमजोर रहा होगा, इसे कभी नहीं समझा जा सकेगा।
राहुल का चाल-चरित्र शायद ही कभी ठीक-ठाक रहा हो, क्योंकि बिग बॉस के घर में वे जैसा बर्ताव कर रहे हैं, वह दो-चार दिन में तो कभी नहीं पनप सकता। विशेषकर तब, जब राहुल को पता है कि उनकी हर हरकत टेलीविजन के माध्यम से घर-घर दिखाई जा रही है। यकीनन अगर राहुल के परिजन उनसे संपर्क कर पाते, तो वे उन्हें फौरन वापस बुला लेते, लेकिन शो की शर्तों और नियम के चलते ऐसा संभव नहीं है। राहुल कितने बडे दिलफेंक हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि श्वेता सिंह से उनका ब्याह दो-ढाई साल में ही टूट गया। 29 अगस्त, 2006 को राहुल की शादी हुई थी। ऐसा कहा जा रहा था कि राहुल और श्वेता एक-दूसरे को करीब 13 साल से जानते हैं। बचपन के इस प्यार में दरार क्यों आई, बिग बॉस देखकर स्पष्ट हो जाता है। पायल रोहतगी राहुल को प्यार करती थीं, उनकी आंखें इसे कभी छिपा नहीं पाईं। राहुल भी इस सच को कभी ठुकरा नहीं पाए। इसी पहली अगस्त को राहुल और श्वेता के बीच तलाक हुआ है। संभावना जताई जा रही थी कि इस शो से निकलने के बाद राहुल और पायल शादी कर लेते, लेकिन मोनिका इस रिश्ते में आड़े आ गईं। हालांकि यह जगजाहिर हो चुका है कि राहुल के दिल में अब पायल के बजाय मोनिका बसेरा कर चुकी हैं, लेकिन क्या यह प्यार परवान चढेगा, इसे लेकर भी किसी को कोई भरोसा नहीं है। इस अविश्वास की वजहें स्प्ष्ट हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब मोनिका को मालूम है कि राहुल दिलफेंक आशिक हैं, तो फिर उन्होंने राहुल को नॉमिनेट क्यों नहीं किया?
एक कहावत है-चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से नहीं! यह कहावत मोनिक पर सटीक बैठती है। दरअसल, हाल में अबू सलेम ने मोनिका को नोटिस भेजा है। मोनिका सलेम की ब्याहता हैं या नहीं, इसे लेकर संशय हो सकता है, लेकिन प्रेमी युगल रहे हैं, यह जगजाहिर है। संभव है कि अब मोनिका सलेम से अपना पिंड छुडाना चाहती हों और राहुल जैसा ऊंची पहुंच वाला लड़का दूसरा उन्हें कोई नजर नहीं आया हो? संविधान में भले ही अपने स्वार्थ के लिए किसी मूर्ख की भावनाओं का फायदा उठाना गुनाह न हो, लेकिन सामाजिक तौर पर यह निंदनीय है। शायद मोनिका इस योजना के तहत राहुल को झेल रही हों?
गुरुवार, 9 अक्टूबर 2008
तो फिर क्यों न बने अफजल आतंकवादियों का आदर्श!
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
जब आतंकवादियों की तुलना भगतसिंह जैसे देशभक्तों से होगी, तो सिमी जैसे संगठन सिर उठाएंगे ही?' पिछले दिनों देशभर में हुए बम धमाके आतंकवादियों के बढ़ते हौसले की ओर इंगित करते हैं। दरअसल, लोगों में भय बैठने की सबसे बड़ी वजह आतंकवादियों को 'तथाकथित भारतवासियों' से शह मिलना है। 13 दिसंबर, 2001 में भारतीय संसद भवन पर हुए हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरु के बचाव में आंदोलन छेडऩा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। गुरु के फेवर में एक बड़ी लॉबी ने मुहिम चला रखी है। 20 अक्टूबर,2006 को सुबह 6 बजे अफजल को फांसी दी जानी थी, लेकिन भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य गुरु जिंदा है और अब वह आतंकवादियों का आदर्श बन गया है।
अफजल गुरु के फेवर में 'साइबर वार' ने स्पष्ट कर दिया है कि गद्दार कहीं और नहीं, हमारे बीच ही मौजूद हैं। गुरु के फेवर में कूदे संगठन वेबसाईटस की हेल्प से दुनियाभर में समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। एक 'वेब फोरम' में लोगों ने अपने व्यूज देते हुए लिखा है कि गुरु और भगत सिंह की मुहिम एक सरीखी थी, फिर एक फ्रीडम फाइटर और दूसरा आतंकवादी कैसे हो सकता है?
June 21st, 2007 at 8:18 pm Nisar Deen said:
You have our full support for Afzal, hope and pray that the British govt will be able to help।
सिर्फ एक उदाहरण है, जिसे 'इस्लामिक ह्यूमन राइट मिशन' की वेबसाइट ihrc.org.uk पर पढ़ा जा सकता है। यह एक एनजीओ है, जिसका हेड आफिस वेम्बले(लंदन) में है। 1997 में शुरू हुआ यह एनजीओ मानवाधिकार खासकर 'पुलिस कस्टडी' से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप करता है। saveafzalguru.org और justiceforafzalguru.org वेबसाइट भी मानवाधिकार की दुहाई देते हुए गुरु के फेवर में समर्थन हासिल करने की मुहिम छेड़े हुए हैं। justiceforafzalguru.org वेबसाइट के पीछे तीन संगठन काम कर रहे हैं, जिनके मुखिया तीन अलग-अलग देशों में बैठे हुए हैं। इंडिया सॉलिडरिटी ग्रुप आयरलैंड, चिराग फॉर हयूमन राइट अमेरिका जबकि एकता(कमेटी फार कम्युनल एमिटी) मुंबई(इंडिया) से संचालित हो रहा है। इस वेबसाइट पर अफजल और उसकी पत्नी की चिट्ठी के अलावा विभिन्न बुद्धिजीवियों के कथन पढ़े जा सकते हैं। इनमें प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी और लेखिका अरुंधति राय जैसी शख्सियतों के लेख/ साक्षात्कार भी शामिल किए गए हैं। अफजल के फेवर में ऑनलाइन पिटीशन दाखिल करने की विश्वव्यापी अपील की गई है। इन वेबसाइटस पर बकायदा फार्मेट दिए गए हैं, जिन्हें सिर्फ फिल करना है। वहीं भारत के राष्ट्रपति का फैक्स नंबर आदि गाइडलाइन दी गई है। जो संगठन गुरु के फेवर में कैम्पेन संचालित कर रहे हैं, उनसे जुड़े कर्ताधर्ताओं के ईमेल, फोन और पते भी वेबसाइट पर दिए गए हैं। इसे petitiononline.com से लिंक किया गया है। कश्मीर की तमाम वेबसाइट्स में अफजल को 'फ्रीडम फाइटर' जैसी श्रेणी में शामिल किया गया है। इन लोगों ने एक नई बहस को जन्म दिया है-'अफजल आतंकवादी या फ्रीडम फाइटर, कौन करेगा तय?'इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि गुरु के सपोर्ट में गुलाब नबी आजाद, कम्युनिस्ट और वहां के तमाम ग्रुप अभियान चलाए हुए हैं। जम्मू एंड कश्मीर कोलिएशन आफ सिविल सोसायटी(जेकेसीसीएस) भी हस्ताक्षर अभियान छेड़े हुए है। बहरहाल, सच तो यह है कि इस देश के लिए संकट जितने आतंकवादी नहीं, उससे कहीं ज्यादा आस्तीन के सांप हैं।
बुधवार, 8 अक्टूबर 2008
प्ले 'मोहब्बत द ताज' की कहानी
शनिवार, 4 अक्टूबर 2008
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
आजमगढ़ इन दिनों सुर्खियों में है, आतंकवाद की वजह से। निःसंदेह यह कलंक उन लोगों को ठेस ही पहुंचाता होगा, जिनकी पैदाइश आजमगढ़ में हुई है...और जिन्होंने विविध क्षेत्रों में खासी पहचान स्थापित की है। ईद के ठीक एक दिन पहले सीमा मलिक का फोन आता है। उन्होंने ईद के दिन मुझे अपने घर पर आमंत्रित किया था। भोपाल की रहने वाली सीमा चर्चित और प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। हाल में रिलीज 'ए वेन्ज्डे' में उन्होंने छोटा, किंतु प्रभावी किरदार निभाया है। सहारा वन पर प्रसारित सीरियल 'माता की चौकी' में भी वे अभिनय कर रही हैं। वे कुछ बड़े बैनरों की फिल्में भी कर रही हैं।
सीमा के बारे में इतना कुछ बताने का मकसद सिर्फ इतना है कि लोग जाने कि अभिनेत्रियों को अभिनय के अलावा घर-परिवार की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ती है। खैर, ईद के दिन दोपहर के वक्त हम उनके घर पहुंचते हैं। मेरा सीमा के पिताजी से एक दिली रिश्ता है। उनका अपनापन और बातचीत के सलीके ने मुझे खासा प्रभावित किया है। सीमा, उनकी मम्मी और पापा की मेहमाननवाजी वाकई लाजवाब है। सीमा ईद के ठीक एक दिन पहले ही भोपाल पहुंचीं थीं, वाबजूद उन्होंने स्वयं अपने हाथों से दही बड़े, सिवइयां, छोले तैयार किए। सचमुच पहली बार लगा कि सीमा जितनी अच्छी अभिनेत्री हैं, उतनी ही संस्कारित लड़की भी। उनके बनाए गए व्यंजन बेहद स्वादिष्ट थे।
बहरहाल, मैं वापस आजमगढ़ की बात पर आता हूं। देशभर में आतंकी घटनाओं के बाद आजमगढ़ का नाम सुनते ही कान खड़े हो उठते हैं। सीमा के साथ मुंबई से उनकी हम उम्र सहेली रोजा भी आई हुई थीं। सीमा ने उनका परिचय कराया, तब मालूम चला कि वो साधारण नैन-नक्श वाली लड़की भोजपुरी की लोकप्रिय अभिनेत्री और निर्देशक है। रोजा हिंदी सिनेमा में भी खूब काम रही हैं। वे बोनी कपूर के प्रोडक्शन हाउस से जुडी हुई हैं। बहुत जल्द उनकी फिल्म 'हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं' रिलीज होने जा रही है। इसमें रोजा राजपाल यादव की हीरोइन बनी हुई हैं। रोजा रंगमंच को भी उतना समय देती हैं, जितना फिल्मों को। वे भोपाल में अपने नए प्ले की संभावनाएं तलाशने आई थीं। रोजा मूलतः आजमगढ़ की हैं, लेकिन वर्षों दिल्ली में रहीं और उसके बाद मुंबई आ गईं।
रोजा ने जब बताया कि वे मूल रूप से आजमगढ़ की हैं, तो मैं चौंक-सा गया। सच कहूं, तो भीतर से बेहद पीडा-सी हुई। दरअसल, कुछ फिरकापरस्त युवाओं की करतूतों ने आजमगढ़ पर जो कलंक पोता है, उसका दर्द हर उस शख्स के चेहरे पर साफ पढा जा सकता है, जो थोड़ा-बहुत भी इस शहर से जुडा रहा है। रोजा अत्यंत प्रतिभाशाली लड़की हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व में सफलता का सुरूर ढूंढें से भी नहीं मिलेगा। सफलता का मापदंड प्रतिभा के अलावा निष्ठा, परिश्रम और संयमित बर्ताव आदि के आधार पर तय होता है...और रोजा इन सबमें सौ टका खरी उतरती हैं। यह इसलिए कहना उचित होगा क्योंकि आमतौर पर यही प्रचारित किया जाता रहा है कि ग्लैमर अच्छे-खासे व्यक्ति का मिजाज और दिमाग बिगाड़ देता है। फिल्मी इंडस्ट्री के लोग इस मामले में खासे बदनाम है। रोजा ने दर्जनभर सफल भोजपुरी फिल्में की हैं और कई नामी-गिरामी निर्देशकों की सहायक रही हैं, फिर भी वे हर बार एक नई शुरुआत करती हैं। यह जीवन की सच्चाई भी है, क्योंकि हर नया कार्य एक नई चुनौती लाता है, जिसकी कसौटी पर तभी खरा उतरा जा सकता है, जब पुरानी सफलताओं का मद सिर पर न बैठा हो।
रोजा का आजमगढ़ से जुडा होना शर्म की बात कतई नहीं है, बल्कि धिक्कार उन्हें हैं, जो अपनी मातृभूमि की जगहंसाई करा रहे हैं। रोजा रचनात्मक रूप से अत्यंत दक्ष हैं और व्यावहारिक भी। उनके भीतर भोपाल में सुषुप्त पड़ीं रचनात्मक गतिविधियों की तड़प स्प्ष्ट दिखाई दी। चूंकि जितनी देर भी उनसे चर्चा हुई विषय रचनात्मक मुद्दे ही रहे, इसलिए आजमगढ़ पर बात करना उचित नहीं लगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि रोजा से मिलकर मेरे अंदर उनके शहर के प्रति प्यार और पीड़ा घुमड-सी पड़ी। प्यार इसलिए क्योंकि मुझे आजमगढ़ की सुसंस्कारित लड़की और चर्चित अभिनेत्री से अनौपचारिक चर्चा करने का अवसर मिला...और पीड़ा यह कि कुछ लोगों की वजह से शहर क्यों बदनाम होते हैं?
ईद के दो दिन बाद मैंने रोजा से आजमगढ़ का जिक्र किया तो उनका कहना था-कुछ लोगों के कारण पूरे शहर पर अंगुली उठाना ठीक बात नहीं है, हाँ, जो गलत हैं, उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए.
भोजपुरी और हिंदी दोनों साथ-साथ
मैं भोजपुरी और हिंदी दोनों मीडिया में बराबर काम कर रही हूं। भोजपुरी में मेरी 12-13 फिल्में आ चुकी हैं, जिनमें मैंने अभिनय किया है। कई भोजपुरी फिल्मों का निर्देशन भी किया है।
फिल्मी सफर
परिवार से कोई इस फील्ड में नहीं था, इसलिए दिक्कतें भी आई। ग्रेजुएशन के बाद थिएटर से जुड़ाव हुआ। दिल्ली में दिल लगाकर थिएटर किया। एनएसडी से जुड़ी यहां सतीश(कौशिक)जी के साथ भी काम किया। जब बांबे गई तो उनसे मुलाकात हुई। मैंने कहा अब यहां कुछ करना है। उन्होंने डायरेक्शन में असिस्ट करने का ऑफर दिया। मेरी पहली फिल्म उनके साथ आई कोई मेरे दिल से पूछे। इस फिल्म से ईशा देओल लांच हुई थीं। इसके बाद क्यूं हो गया न, रन, नो इंट्री और इसी तरह की कई और अच्छी फिल्में बनाई।
निर्देशन से अभिनय
डायरेक्शन के दौरान में पांच साल तक बोनी कपूर के प्रोडक्शन हाउस से जुड़ी रही। इसमें सहारा वन के लिए एक सीरियल तैयार हो रहा था मालिनी अय्यर। सीरियल में मालिनी का लीड रोल श्रीदेवी जी कर रही थीं और उनकी देवरानी के रोल के लिए लड़की की तलाश थी। मैं इस सीरियल में असिस्ट भी कर रही थी। मुझे यह रोल दिया गया और बस डायरेक्शन के साथ परदे पर भी वापस एक्टिंग शुरू हो गई। वर्तमान में महुआ चैनल पर एक सीरियल चल रहा है आंचरा के मोती इसके अलावा जल्द ही मेरी हिंदी फिल्म हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं रिलीज होने वाली है। इसमें मैं राजपाल यादव की प्रेमिका जिन्की का किरदार कर रही हूं। इसके अलावा सीरियल धर्मवीर के डायरेक्टर आलोक कुमार जी के साथ एक प्रोजेक्ट चल रहा है। कलर्स चैनल पर आने वाले इनके सीरियल श्रीकृष्णा में भी मैं नजर आ सकती हूं।
एक्टिंग संग डायरेक्शन
सच कहूं, बेहद मजा आता है। मालिनी अय्यर की शूटिंग के दौरान मैं अपने गेटअप में ही डायरेक्शन करती थी। कई बार मेरा ही शूट होता था और डायरेक्शन में खो जाने के कारण मैं चिल्लाती रहती -किसका शूट है भई जल्दी आओ। इस स्थिति को बेहद इंज्वाय किया है।
थिएटर से लगाव
थिएटर मेरा पहला प्यार है। जब तक जिंदा रहूंगी थिएटर करूंगी। आज भी दिल्ली फेस्टिवल का बेसब्री से इंतजार करती हूं। मेरा सपना यहीं है कि अच्छा थिएटर हमेशा जिंदा रहे और उसमें मैं योगदान कर सकूं। हमारा थिएटर ग्रुप है पुनर्नवा। हम इंडिया के बाहर भी कई प्ले करते हैं। इनमें भोजपुरी नाटक बिदेसिया तो वर्ल्ड में फेमस है। भोपाल आने का मकसद भी थिएटर ही था। यह हबीब तनवीर साहब का शहर है, इसलिए यहां प्ले करने का बड़ा मन है और भी कई लोगों से भोपाल की तारीफ सुनी थी। अब इरादा पक्का हो गया है।
भोपाल में होंगे प्ले
मैंने भोपाल में दो प्ले करने का प्लान किया है। पहला तो ऑल टाइम हिट बिदेसिया और दूसरा कॉमेडी प्ले होगा। दोनों प्ले भारत भवन में होंगे और इनमें भोपाल की कलाकार सीमा मलिक भी शामिल होंगी।
अफसोस हुआ
सच कहूं भोपाल की खूबसूरती देखकर जितनी खुश हुई, भारत भवन की वीरानी देखकर उतना ही अफसोस हुआ। वह इतनी खूबसूरत जगह है उसे बनाने वाले व्यक्ति ने कई सपने देखे होंगे, वहां वीरानी चुभती है। मेरा भोपाल थिएटर ग्रुप्स से कहना है कि थिएटर के लिए फेस्टिवल का रास्ता न देखे इसे निरंतर रखें। इसके लिए गवर्नमेंट द्वारा दी जाने वाली फंडिंग का लगातार पता लगाए और इसे जिंदा रखे।
शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008
घर तक ही बची है पहचान मेरी...
यहां तो बस गुमनाम रहता हूं।
बैचेनी-सी बसी रहती है भीतर...
मुस्कुराता हूं,मिलनसार रहता हूं।
भागता रहता हूं, यहां से वहां...
थका हूं, लेकिन शांत रहता हूं।
मन कहता है चीख पडूं सब पर..
घर-परिवार वाला हूं....
सो...चुपचाप रहता हूं।
ईश्वर!
हे ईश्वर!
तुम कहां हो....
सुना था कि
कण-कण में बसे हो तुम...
हे ईश्वर!
मैंने तो कण-कण छान मारा!
पत्रकार
रातभर नींद नहीं आई...
क्या लिखूंगा आज...
कल वो बच्चा भूख से न मरता तो...
हे ईश्वर!
मेरा तो मरण हो जाता!
नेता
सब एक थाली के चट्टे-बट्टे हैं...
इसलिए हट्टे-कट्टे हैं।
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
बुधवार, 1 अक्टूबर 2008

साझ ढले मंदिर को निकली थी...