सोमवार, 16 फ़रवरी 2009


बचे-खुचे सब गांधीवादी...

कहते थे, मैं उड़ूं गगन में...
और काट लिए तुमने ही पर।

बेखौफ में रहता कैसे बताओ?
कुछ ज्यादा था अपनों से डर।

लगी बोझ जब मां को बिटिया...
करी विदा हाथ पीले कर।

न मिली नौकरी बाप ने झिड़का...
निकल निकम्मे, कुछ भी कर।

बचे-खुचे सब गांधीवादी...
क्यों नहीं जाते शर्म से मर।

अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लगी बोझ जब मां को बिटिया...
करी विदा हाथ पीले कर।

न मिली नौकरी बाप ने झिड़का...
निकल निकम्मे, कुछ भी कर।

जीवन के निष्ठुर सत्य को बाखूबी लिखा है आपने
अक्सर ऐसा ही होता है