रविवार, 12 अप्रैल 2009

भोपाल के वनविहार का मामला


'शेर' पर शनि सवार

सितंबर 09 तक रहेगा शनि का कोप

अमिताभ फरोग

यदि शनिदेव कुपित हो जाएं तो रंक की छोड़िए, राजा-महाराजों की हालत भी पतली हो जाती है। इन दिनों भोपाल स्थित वन विहार के शेर शनि-प्रकोप के दायरे में हैं। नतीजा एक दहाड़ से सारा जंगल थर्रा देने वाले ‘वनराज’ शनि के आगे भींगी बिल्ली साबित हो रहे हैं। यहां पिछले पांच सालों में 13 बाघों और तीन सिंहों की मौत हो चुकी है।

इसी 2 अप्रैल को डेढ़ वर्षीय बाघिन रानी की ‘भूख’ की वजह से मौत हो गई। हालांकि प्रबंधन शॉर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए सफाई देता है कि रानी भूख से नहीं, फेफड़ों में संक्रमण के चलते मरी। यह तो हुई प्रबंधन की सफाई, लेकिन ज्योतिष, वास्तु और अंकगणित का आकलन बताता है कि वन विहार बेहद बुरे दौर से गुजर रहा है। उस पर शनि की साढ़े साती चल रही है। इसके अलावा इसमें वास्तु दोष भी अपार हैं, जो अभिशाप बने हुए हैं। इस बात को वन विहार प्रबंधन भी दबी जुबान से स्वीकारता है। हालांकि वह यह भी सफाई देता है कि,‘हमने बाघों के बाड़ों में हवा और रोशनी का पूरा ध्यान रखा है। मेरा मानना है कि इसके बाद भी वास्तु दोष नहीं होने चाहिए। हां, फिर भी अगर किसी वास्तुविद् को यहां वास्तु दोष नजर आते हैं, तो हम उनके उपायों पर विचार जरूर करेंगे। जहां तक शनि के प्रकोप की बात है, तो हम इसके समाधान को भी तैयार हैं। हमारा मकसद सिर्फ बाघों को बचाना है।’

ज्योतिष आकलन :
पंडित अशोक पांडेय जानकारी देते हैं- वन विहार की राशि मिथुन है, जबकि प्रवेश कुंडली (स्थापना-दिवस 26 जनवरी, 1983) में मकर लग्न है। वर्तमान परिस्थिति में ग्रहों की दिशा देखें, तो लग्न के आठवें भाव में शनि अआौर मंगल भ्रमण कर रहे हैं। आठवें भाव को मौत और दुर्घटनाओं का सूचक माना जाता है। ऐसे में इन दोनों अशुभ ग्रहों का घालमेल वन विहार के सुख चैन में विघ्न बना हुआ है। शनि दिसम्बर, 2006 से आठवें भाव में विचरण कर रहा है। इसे आम बोलचाल में शनि का ढैया कहा जाता है। यही वजह है कि पिछले ढाई वर्ष से वन विहार बुरे हालात से गुजर रहा है। हालांकि मकर लग्न के लिए शनि शुभ होता है, लेकिन वर्तमान में गोचर का शनि लग्न से आठवें सिंह राशि में स्थित होकर सकारात्मक असर न देकर, बुरे प्रभाव छोड़ रहा है।

सफेद बाघ पर शनि की घात :
काल और अकाल मौत का शिकार हुए 13 बाघों में 6 दुर्लभ सफेद प्रजाति के थे। सफेद बाघों पर मंडराती मौत पर ज्योतिषीय आकलन कहता है-कुंडली के सातवें भाव की राशि कर्क है। इसका स्वामी चंद्र होता है, जिसका प्रतिनिधि रंग सफेद है। दरअसल, सातवां भावक मारक प्रवृत्ति का होता है, जो पिछले ढाई सालों से शनि के अशुभ प्रभाव में है। दरअसल, शनि एक राशि पीछे और एक राशि आगे अपना असर बनाए रखता है, जो वर्तमान में सिंह राशि पर विराजमान है। यही वजह है कि यह कष्टकारण साबित हो रहा है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि कर्क राशि पर शनि की उतरती हुई साढ़े साती चल रही है।

शनि की मारक क्षमता :
शनि का असर मारक होने से कई बीमारियां जानलेवा साबित होती हैं। जैसे- पैर, घुटने, हड्डी, बाल, नाखून, दांत, कान और श्वांस से संबंधित रोगों में मुख्य रूप से बहरापन, दाढ़ की बीमारी, पेट में तेज दर्द उठना, आर्थराइटिस, कैंसर, रीढ की हड्डी में दर्द, पंजों में कंपन, बेहोशी और स्नायु से संबंधित लाइलाज बीमारियां पैदा हो जाती हैं।

शेरों का ही क्यों शिकार :
लग्न कुंडली के आठवें भाव की राशि सिंह है। जब भी शनि किसी राशि में प्रवेश करता है, तो उसका नकारात्मक असर छह माह पहले से ही दिखाई देने लगता है। चूंकि सिंह राशि पर भी 2004 से शनि की साढ़े साती कुदृष्टि जमाए हुए है, इसलिए इसकी मारक रेंज में शेर सबसे अधिक आ रहे हैं। चूंकि शनि का प्रकोप वन विहार की राशि पर भी असर दिखा रहा है, इसलिए तेंदुए भी इसका शिकार बने हैं।

एक उपाय
पश्चिम या वायव्य दिशा में शमी का प्लांटेशन करें। इसे शनि का प्रतीक माना जाता है। यह पेड़े शनि के गर्म मिजाजों में नरमी लाएगा और मुसीबतों को दूर करेगा। इन वृक्षों के प्रभाव से शनि ग्रह अनुकूल हो जाते हैं या वे प्रसन्न होते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से यह भी कहा जा सकता है कि इनसे स्थान विशेष का पर्यावरण जीवनदायी बनता है। यह आकस्मिक घटना-दुर्घटना और बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। मतलब शनि जनित बाधाएं दूर होती हैं।

वास्तु आकलन
वास्तुविद सुयश कुलश्रेष्ठ के मुताबिक, वन विहार में बहुत वास्तु दोष हैं, जिनके कारण प्रबंधन और वन्य जीवों को कष्ट उठाने पड़ रहे हैं।
कहां- कहां हैं वास्तु दोष

रामू द्वार से सटा टायलेट (उत्तर-पूर्व) वन्य प्राणियों के स्वास्थ्य और अफसरों की कार्यशैली में रोड़ा बना हुआ है।
उपाय: टायलेट को कछुए के बाड़े (वेस्ट) में स्थानांतरित किया जा सकता है।
चीता, बाघ और सफेद बाघों का बाड़ा उत्तर में है। वन के मुखिया के लिए यह दिशा दु:खदायी है। अल्प आयु और स्वास्थ्य में गड़बड़ी इसके नतीजे हैं।
उपाय: वनराज और इन बाकी प्राणियों को दक्षिण-पश्चिम में स्थानांतरित करना होगा।
मुख्य दफ्तर और विहार वीथिक दक्षिण दिशा में है। वन विहार का दक्षिण-पूर्व कोना अंदर की ओर है। दफ्तर का दक्षिण-पूर्व (आग्नेय-कोण) में होना अफसरों के लिए मानसिक और शारीरिक कष्टों के अलावा विभिन्न झंझटों की वजह बना हुआ है।
उपाय: निदेशक और अन्य अफसरों की कुर्सी आफिस की नैऋत्य दिशा (पश्चिम-दक्षिण में रखें, तो समस्याओं में कमी लाई जा सकती है।

न्यूम्रोलॉजी आकलन
न्यूम्रोलॉजिस्ट विजय सिंह परमार के अनुसार, पिछले 5 सालों के दौरान जिन 13 बाघों और 3 सिंहों की मौत हुई है, उनके डेस्टनी या डेस्टिनेश्न अंक 3, 6 या 9 हैं। 3 का अंक गुरु, 6 का अंक शुक्र और 9 का अंक मंगल का प्रतिनिधित्व करता है। ये तीनों ही अंक शनि के अंक 8 से तालमेल नहीं बैठा पाते। वन विहार की स्थापना 26 तारीख को हुई और इसका डेस्टनी अंक 8 है। यही वजह रही कि ज्यादातर बाघों को अकाल मौत का शिकार होना पड़ा। वन विहार में वही जानवर सामान्य जीवन गुजार पाएगा, जिसने यहीं पर जन्म लिया है। बाहर से आए जानवर हमेशा कोई न कोई कष्ट भोगते रहेंगे।

मौतों का सिलसिला

सफेद बाघ
1. 21 जून, 2004: रुस्तम, डेस्टिनी अंक 3
2. 12 अक्टूबर, 2007: ईशु, डेस्टिनी अंक 3
3. 14 मार्च, 2008: रश्मी : डेस्टिनेशन अंक 9
4. 30 जून, 2008: कीकू, डेस्टिनी अंक 3
5. 6 सितंबर, 2008: रिनी, डेस्टिनी अंक 6
पीला बाघ
1. 15 जून, 2006 : राम, डेस्टिनी अंक 6
2. 26 जून, 2007: छोटू, डेस्टिनी अंक 8
3. 6 दिसंबर, 2007: गौतम, डेस्टिनी अंक 6
4. 2 अप्रैल, 2009: रानी, डेस्टिनेशन अंक 8
सिंह
1. 21 जून, 2004: रुस्तम, डेस्टिनी अंक 3
2. 28 दिसंबर, 2006: राजा, डेस्टिनेशन अंक 3
3. 15 मई, 2008 : इंद्राणी, डेस्टिनी अंक 6
तेंदुआ
1. 21 जून, 2004 : रुस्तम, डेस्टिनी अंक 3
2. 19 अप्रैल, 2005 : जग्गू, डेस्टिनेशन अंक 3
3. 16 जुलाई, 2005: पृथ्वी, डेस्टिनेशन अंक ३


‘टाइगर प्रदेश’ का बुरा हाल

मध्यप्रदेश में बाघों पर जैसे मौत मंडरा रही है। चिंताजनक बात यह है कि इसे ‘टाइगर प्रदेश’ के नाम से भी पुकारा जाता है। केंद्र सरकार की वॉइल्ड लाइफ विंग ने जब 1973 में ‘टाइगर प्रोजेक्ट’ की शुरुआत की, तो चुने गए 9 संरक्षित क्षेत्रों में कान्हा नेश्नल पार्क को भी शामिल किया गया था। फिलहाल, यहां पांच नेशनल पार्कों में बाघों को बचाने की मुहिम चल रही है। ये हैं- कान्हा, पन्ना, बांधवगढ़, पेंच और सतपुड़ा। प्रदेश में पूरी दुनिया के लगभग 10 फीसदी बाघ पाए जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थिति बिगड़ी है। हाल में ‘वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्य़ूट आफ इंडिया, देहरादून’ और ‘नेशनल टाइगर कन्जर्वेशन अथॉरिटी’ के सर्वे से चौंका देने वाला खुलासा हुआ। इसके मुताबिक, मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में 60 फीसदी कमी आई है। 2001- 2002 की गणना में मध्यप्रदेश में 710 बाघ पाए गए थे, जो अब 265 रह गए हैं।

इनका तर्क
‘सफेद बाघिन रिनी की बीमारी के दौरान हमने रैकी की इजाजत दी थी। ऐसा कोई भी उपाय, जो जानवरों के संरक्षण और उनकी जान बचाने के काम आ सकता है, उसे अनुमति देने में मेरे हिसाब से कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।’
डॉ. एके भट्टाचार्य
(चीफ कंजरवेटिव आफिसर, भोपाल संभाग और पूर्व निदेशक, वन विहार)

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