बुधवार, 7 अप्रैल 2010


एक क्रांति बनकर सारी दुनिया बदल जाऊंगा

दो-चार पंख क्या काट लिए
सोचते हो मैं उड़ना भूल जाऊंगा...
हौसलों की उड़ान अभी बाकी है...
तुम देखनाएक दिन...
आसमान छूकर आऊंगा।

अपनी हद से भी गुजरकर देख लो...
मैं नहीं डरूंगा...
तुम्हारे बीच से निकलूंगा....
और तुम्हारा गढ ढ़हा जाऊंगा।

मेरी दुम नहीं, जो हिलाता फिरूं
यहां-वहां, सबके आगे...
तुम तानाशाह बनकर देख लो...
मैं आंधियों-सा आऊंगा...
एक क्रांति बनकर..
सारी दुनिया बदल जाऊंगा।

अमिताभ बुधौलिया

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही जोशीली रचना!

बेनामी ने कहा…

aur failunga jo rokoge aawaaz meri
Itna gunjunga ki sadiyon ko sunayi dunga.
mast likh rahe hain......waise lagta hai ki koi sankat aan pada hai mere mitr per....
your
Abhishek Ishteyak

nilesh mathur ने कहा…

कमाल का लेखन