अमिताभ बुधौलिया
मैं गुमठी पर पान चबा रहा था, सामने से मियां मसूरी कुछ बड़बड़ाते-से आते दिखे। मैंने मुंह ऊपर उठाया, थोड़ी-सी पीक गटकी और तुरंत प्रश्न दागा-‘अमां खां! क्यों खामख्वाह बड़बड़ा रहे हो?’
मियां ने आंखें तरेरीं-‘लेखक महोदय, आप मुंह उठाकर कुछ भी बक देते हैं!’
मैंने तुरंत पीक थूकी और मुस्कराया-‘मियां; मुंह तो इस खातिर ऊपर उठाया था, ताकि पान की पीक आपके वस्त्रों को खराब न कर दे।’ मियां ने व्यंग्य मारा-‘आपके प्रश्न से तो भला पीक थी!’
मैंने हैरानी जताई-‘मियां आपके कहने का आशय नहीं समझा?’ मियां ने आंखें घुमाईं -‘आपके सवाल दिमाग खराब कर देते हैं, पीक तो सिर्फ वस्त्र ही गंदा करती!’
मैंने पलटवार किया-‘मियां; पीक-वीक की छोड़िये और अपने बड़बड़ाने का खुलासा कीजिए।’ मियां कुछ सोचते हुए बोले-‘लेखक महोदय; इस भारत में अब आगे क्या होगा...?’
मैं बीच में लपका-‘महाभारत और क्या!’
मियां ने मुझे घूरा-‘महोदय, आप शब्दों से खुराफात करना कब छोड़ेंगे?’ मैं गुनगुनाया-‘छोड़ेंगे न हम तेरा साथ हो साथी मरते दम तक...!’ मियां के अधरों पर शरारतभरी मुस्कान प्रकट हुई-‘ महोदय; आप शब्दों की जुगाली बंद कीजिए और तनिक स्पष्ट कीजिए कि; देश की राजनीति में इन दिनों जो कुछ चल रहा है, वो कहां तक ठीक है? बाबा के साथ रामलीला मैदान में जो बर्ताव हुआ, उससे मैं अत्यंत दु:खी हूं।’ मैंने दार्शनिक शैली अपनाई-‘मियां, रामलीला हो या महाभारत दोनों में हार/जीत का सूत्र हरि बोले तो; भगवान विष्णु के हाथों में था। रामायण में राम के रूप में तो; महाभारत में कृष्णा के अवतार में हरि ने रावण और कंस जैसे दुराचारियों को नेस्तनाबूत किया। अब कलयुग में बाबाजी राम और कृष्ण बोले तो; रामकृष्ण यादव दोनों का संयुक्त अवतार लेकर पैदा हुए हैं। बाबा योद्ध संन्यासी हैं, सो सियासत की महाभारत और मोहन-लीला दोनों में हुड़ दबंग-दबंग साबित होंगे।’
मियां ने जिज्ञासा व्यक्त की-‘लेखक महोदय; वो तो ठीक है कि; बाबा के शरीर में राम और कृष्ण दोनों की ऊर्जा निहित है, लेकिन मौजूदा सियासी महाभारत में उनका मुकाबला अपने ही अवतार यानि मोहन से है। गोया रजनीकांत की फिल्म रोबोट रियल लाइफ में चल रही हो।’
मैं समझाइश की मुद्रा में था-‘मियां; आप दुरुस्त फरमा रहे हैं, लेकिन आप इससे भली-भांति वाकिफ होंगे कि; सम्प्रंग के सरदार मनमोहन के सींग निकल आए हैं। वे सिंह की भांति जो दहाड़ मार रहे हैं, उसके पीछे कौन हवा भर रहा है!’
मियां ने चिकोटी काटी-‘...महोदय; आप सटीक फरमा रहे हैं। रोबोट में नकली रजनीकांत शर्मिली उर्फ ऐश्वर्या राय के मोहजाल में फंस गया था और यहां हमारे प्यारे मोहन के मन और चक्षुओं पर सोनियाजी का मायाजाल पड़ा हुआ है।’
मैंने व्यंग्य मारा-‘...सही कहा; इसीलिए मनमोहन ने रामलीला मैदान को महाभारत स्थल बनाने में कोई शर्म नहीं की।’
मियां ने व्यंग्य मारा-‘लेकिन इस महाभारत में तो जूते भी चल रहे हैं।’ मैंने लोकतांत्रिक-दर्शन व्यक्त किया-‘जूते कहीं भी चल सकते हैं,
सभा हो संसद!’ मियां ने व्यंग्यात्मक शैली अख्तियार की-‘महोदय; जूते और मायाजाल से याद आया कि; अब यूपी में क्या होगा?’ मैं मियां का आशय समझ गया था। मैंने इतना कहते हुए मुंह में एक पान और दबा लिया-‘जिज्जी की भाजपा में वापसी क्या रंग दिखाएगी; यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि माया मेम साब, जिज्जी और हमारे बड़बोले दिग्गी राजा का त्रिकोणीय मुकाबला देखने योग्य होगा। जिज्जी यूपी में रामराज्य ला पाएंगी या नहीं; यह अलग प्रश्न है, लेकिन वहां महाभारत के आसार साफ नजर आ रहे हैं। हे राम!’
1 टिप्पणी:
Report · 4:15pmबहुत ही बढ़िया है....थोड़ा पंच और चाहिए...व्यंग्य मारा और व्यंग्यात्मक शैली दोनों ही शब्दों का जिक्र नहीं होना चाहिए ये तो व्यंग्य से स्वतः ही निकलना चाहिए। लेकिन सही दिशा में बढ़ रहे हो जरा से प्रयास से खासे व्यंग्य लिख सकते हो ....बधाई....
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