मियां मसूरी अत्यंत दु:खी थे,
चिंतन में थे, अंतर्मुखी थे।
मैंने पूछा-किस चिंता में खां?
मियां ने घूरा, बोले-
न कचोटो खामख्वाह।
मैं मुस्कराया-फिर भी;
क्यों हो परेशान, कुछ तो सुनाइए?
लो राणा भी छूट गया,
अब आप बताइए!
मैं बोला-गुस्सा थूकिये,
आप पान खाइए।
मियां चिल्लाये-ये आपको
क्या सनक चढ़ी है?
यहां सारा देश आतंकवाद से पीड़ित है
और आपको पान की पड़ी है?
मैं बोला-मियां, पान खाएंगे,
तो बेकार-के प्रश्न नहीं उठाएंगे
क्योंकि पान खोल देता है
बंद अकल का ताला..
और आपको ज्ञात हो जाएगा
कहां है दाल में काला।
वैसे भी राणाजी को पकड़कर
हमारा तंत्र क्या कर पाता?
अफजलजी, कसाबजी पहले ही बोझ हैं
एक और खर्चा जबरिया बढ़ जाता।
मियां बोले-हम में अमेरिका सा साहस कब आएगा?
मैं बोला- तब तक तो नहीं, जब तक सियासी सभाओं में ओसामा, ओसामाजी कहलाएगा।
अमिताभ बुधौलिया
8 टिप्पणियां:
बिल्कुल सटीक बात कह रहे हैं...ये दो तो पहले हू सरकार की मेहमानदारी काट रहे हैं मजे से.
superb... bahut sateek or shandaar shaily main likhi gai kavita jo ek jhatke main click kar rahi hai
धांसू है अमिताभ भाई ।
sahi hai is tarah ki tipaadiyon ki aavyashakta hai
बहुत बढ़िया. बधाई!
बहुत बेहतर लिखा है अमिताभ भाई। सच्ची बात।
बहुत बेहतर अमिताभ भाई लगे रहिए। शुभकामनाएं। सच लिखने का साहस बनाए रखें।
-संजय द्विवेदी, भोपाल
wah...amitabh ji.gazab kr diya. bahut khoob.aapki pratibha ke kayal ho gaye...
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