सोमवार, 13 जून 2011

हमको राणाजी माफ करना



मियां मसूरी अत्यंत दु:खी थे,
चिंतन में थे, अंतर्मुखी थे।
मैंने पूछा-किस चिंता में खां?
मियां ने घूरा, बोले-
न कचोटो खामख्वाह।
मैं मुस्कराया-फिर भी;
क्यों हो परेशान, कुछ तो सुनाइए?
लो राणा भी छूट गया,
अब आप बताइए!
मैं बोला-गुस्सा थूकिये,
आप पान खाइए।
मियां चिल्लाये-ये आपको
क्या सनक चढ़ी है?
यहां सारा देश आतंकवाद से पीड़ित है
और आपको पान की पड़ी है?
मैं बोला-मियां, पान खाएंगे,
तो बेकार-के प्रश्न नहीं उठाएंगे
क्योंकि पान खोल देता है
बंद अकल का ताला..
और आपको ज्ञात हो जाएगा
कहां है दाल में काला।
वैसे भी राणाजी को पकड़कर
हमारा तंत्र क्या कर पाता?
अफजलजी, कसाबजी पहले ही बोझ हैं
एक और खर्चा जबरिया बढ़ जाता।
मियां बोले-हम में अमेरिका सा साहस कब आएगा?
मैं बोला- तब तक तो नहीं, जब तक सियासी सभाओं में ओसामा, ओसामाजी कहलाएगा।

  अमिताभ बुधौलिया

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बिल्कुल सटीक बात कह रहे हैं...ये दो तो पहले हू सरकार की मेहमानदारी काट रहे हैं मजे से.

Azam Ali ने कहा…

superb... bahut sateek or shandaar shaily main likhi gai kavita jo ek jhatke main click kar rahi hai

गुड्डा गुडिया ने कहा…

धांसू है अमिताभ भाई ।

shashi ने कहा…

sahi hai is tarah ki tipaadiyon ki aavyashakta hai

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

बहुत बढ़िया. बधाई!

Sanjay Dwivedi ने कहा…

बहुत बेहतर लिखा है अमिताभ भाई। सच्ची बात।

Sanjay Dwivedi ने कहा…

बहुत बेहतर अमिताभ भाई लगे रहिए। शुभकामनाएं। सच लिखने का साहस बनाए रखें।
-संजय द्विवेदी, भोपाल

पटिये ने कहा…

wah...amitabh ji.gazab kr diya. bahut khoob.aapki pratibha ke kayal ho gaye...