मंगलवार, 31 जनवरी 2012

मैं! मैं हूँ/ कुछ और हो ही नहीं सकता!


मैं! मैं हूँ/ कुछ और हो ही नहीं सकता!
मैं....मैं ही रहूँगा!
किसी के जैसा क्यों बनूँ?
क्यों बनूँ..उसके जैसा-इसके जैसा?
मैं...जो बनूँगा...मैं ही बनूँगा!
मैं क्यों चलूँ किसी की परछाई देखकर?
मैं अपनी परछाई भी नहीं बनूँगा!
जो बनूँगा, जैसा बनूँगा..
अपने बूते...मैं हूँ, तो मैं ही बनूँगा!
मैं 'अहम' नहीं...पर अहमियत जरूर होगी मेरी/
मैं...मैं हूँ, जो बनूँगा अहम बनूँगा!

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