बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

जीवन की मझधार में;

जीवन की मझधार में;

या जीवन की धार में।

चिंतन में या चिंता में;

या किसी के प्यार में,

कलकल बहती नदी केबीच;

... क्या कोई रहा है खींच?

संन्यासिन के भेष में;

क्या छिपा अवशेष में?

क्या आंखों में हैं नमी?

या सपनों में कोई कमी?

दिल में कोई दर्द लिए?

कोई ऐसा जीवन क्यों जिये?

क्यों सोच रही तुम ऐसा?

सब दोस्त मांगे तुम जैसा।

खुश रहो, आबाद रहो?

ईश्वर को धन्यवाद कहो?

जो तुमने पाया; आसान नहीं था।

प्रयत्न कोई नाकाम नहीं था?

चलो; बढ़ो; लहरों के संग।

अवश्य निखरेंगे भूमिका के रंग।

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