तकिये के नीचे छिपे प्रेम-पत्रों की तरह।
मेरे अल्फाज़ भी जुबां में छटपटाते हैं।
आंखों कुछ कहती हैं, भाव कुछ बताते हैं।
तुम समझ लेना; मेरी अनकही बातें।
मैंने काटी हैं, जागते-जागते कई रातें।
इस वेलेंटाइन भी शायद कुछ न कह सकूंगा।
लेकिन यह तय है तुम्हारी जुदाई न सह सकूंगा।
तुम पढ़ लेना मेरी आंखें और चेहरे की भाषा।
तुम ही हो मेरी आस और जीने की आशा।
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