शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

दिस वेलेंटाइन-डे


किताबों के बीच रखे गुलाबों की तरह।

तकिये के नीचे छिपे प्रेम-पत्रों की तरह।

मेरे अल्फाज़ भी जुबां में छटपटाते हैं।

आंखों कुछ कहती हैं, भाव कुछ बताते हैं।

तुम समझ लेना; मेरी अनकही बातें।

मैंने काटी हैं, जागते-जागते कई रातें।

इस वेलेंटाइन भी शायद कुछ न कह सकूंगा।

लेकिन यह तय है तुम्हारी जुदाई न सह सकूंगा।

तुम पढ़ लेना मेरी आंखें और चेहरे की भाषा।

तुम ही हो मेरी आस और जीने की आशा।

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