शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

आजमगढ़ की रोजा

अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

आजमगढ़ इन दिनों सुर्खियों में है, आतंकवाद की वजह से। निःसंदेह यह कलंक उन लोगों को ठेस ही पहुंचाता होगा, जिनकी पैदाइश आजमगढ़ में हुई है...और जिन्होंने विविध क्षेत्रों में खासी पहचान स्थापित की है। ईद के ठीक एक दिन पहले सीमा मलिक का फोन आता है। उन्होंने ईद के दिन मुझे अपने घर पर आमंत्रित किया था। भोपाल की रहने वाली सीमा चर्चित और प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। हाल में रिलीज 'ए वेन्ज्डे' में उन्होंने छोटा, किंतु प्रभावी किरदार निभाया है। सहारा वन पर प्रसारित सीरियल 'माता की चौकी' में भी वे अभिनय कर रही हैं। वे कुछ बड़े बैनरों की फिल्में भी कर रही हैं।
सीमा के बारे में इतना कुछ बताने का मकसद सिर्फ इतना है कि लोग जाने कि अभिनेत्रियों को अभिनय के अलावा घर-परिवार की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ती है। खैर, ईद के दिन दोपहर के वक्त हम उनके घर पहुंचते हैं। मेरा सीमा के पिताजी से एक दिली रिश्ता है। उनका अपनापन और बातचीत के सलीके ने मुझे खासा प्रभावित किया है। सीमा, उनकी मम्मी और पापा की मेहमाननवाजी वाकई लाजवाब है। सीमा ईद के ठीक एक दिन पहले ही भोपाल पहुंचीं थीं, वाबजूद उन्होंने स्वयं अपने हाथों से दही बड़े, सिवइयां, छोले तैयार किए। सचमुच पहली बार लगा कि सीमा जितनी अच्छी अभिनेत्री हैं, उतनी ही संस्कारित लड़की भी। उनके बनाए गए व्यंजन बेहद स्वादिष्ट थे।
बहरहाल, मैं वापस आजमगढ़ की बात पर आता हूं। देशभर में आतंकी घटनाओं के बाद आजमगढ़ का नाम सुनते ही कान खड़े हो उठते हैं। सीमा के साथ मुंबई से उनकी हम उम्र सहेली रोजा भी आई हुई थीं। सीमा ने उनका परिचय कराया, तब मालूम चला कि वो साधारण नैन-नक्श वाली लड़की भोजपुरी की लोकप्रिय अभिनेत्री और निर्देशक है। रोजा हिंदी सिनेमा में भी खूब काम रही हैं। वे बोनी कपूर के प्रोडक्शन हाउस से जुडी हुई हैं। बहुत जल्द उनकी फिल्म 'हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं' रिलीज होने जा रही है। इसमें रोजा राजपाल यादव की हीरोइन बनी हुई हैं। रोजा रंगमंच को भी उतना समय देती हैं, जितना फिल्मों को। वे भोपाल में अपने नए प्ले की संभावनाएं तलाशने आई थीं। रोजा मूलतः आजमगढ़ की हैं, लेकिन वर्षों दिल्ली में रहीं और उसके बाद मुंबई आ गईं।
रोजा ने जब बताया कि वे मूल रूप से आजमगढ़ की हैं, तो मैं चौंक-सा गया। सच कहूं, तो भीतर से बेहद पीडा-सी हुई। दरअसल, कुछ फिरकापरस्त युवाओं की करतूतों ने आजमगढ़ पर जो कलंक पोता है, उसका दर्द हर उस शख्स के चेहरे पर साफ पढा जा सकता है, जो थोड़ा-बहुत भी इस शहर से जुडा रहा है। रोजा अत्यंत प्रतिभाशाली लड़की हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व में सफलता का सुरूर ढूंढें से भी नहीं मिलेगा। सफलता का मापदंड प्रतिभा के अलावा निष्ठा, परिश्रम और संयमित बर्ताव आदि के आधार पर तय होता है...और रोजा इन सबमें सौ टका खरी उतरती हैं। यह इसलिए कहना उचित होगा क्योंकि आमतौर पर यही प्रचारित किया जाता रहा है कि ग्लैमर अच्छे-खासे व्यक्ति का मिजाज और दिमाग बिगाड़ देता है। फिल्मी इंडस्ट्री के लोग इस मामले में खासे बदनाम है। रोजा ने दर्जनभर सफल भोजपुरी फिल्में की हैं और कई नामी-गिरामी निर्देशकों की सहायक रही हैं, फिर भी वे हर बार एक नई शुरुआत करती हैं। यह जीवन की सच्चाई भी है, क्योंकि हर नया कार्य एक नई चुनौती लाता है, जिसकी कसौटी पर तभी खरा उतरा जा सकता है, जब पुरानी सफलताओं का मद सिर पर न बैठा हो।
रोजा का आजमगढ़ से जुडा होना शर्म की बात कतई नहीं है, बल्कि धिक्कार उन्हें हैं, जो अपनी मातृभूमि की जगहंसाई करा रहे हैं। रोजा रचनात्मक रूप से अत्यंत दक्ष हैं और व्यावहारिक भी। उनके भीतर भोपाल में सुषुप्त पड़ीं रचनात्मक गतिविधियों की तड़प स्प्ष्ट दिखाई दी। चूंकि जितनी देर भी उनसे चर्चा हुई विषय रचनात्मक मुद्दे ही रहे, इसलिए आजमगढ़ पर बात करना उचित नहीं लगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि रोजा से मिलकर मेरे अंदर उनके शहर के प्रति प्यार और पीड़ा घुमड-सी पड़ी। प्यार इसलिए क्योंकि मुझे आजमगढ़ की सुसंस्कारित लड़की और चर्चित अभिनेत्री से अनौपचारिक चर्चा करने का अवसर मिला...और पीड़ा यह कि कुछ लोगों की वजह से शहर क्यों बदनाम होते हैं?
ईद के दो दिन बाद मैंने रोजा से आजमगढ़ का जिक्र किया तो उनका कहना था-कुछ लोगों के कारण पूरे शहर पर अंगुली उठाना ठीक बात नहीं है, हाँ, जो गलत हैं, उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए.

रोजा का विस्तृत साक्षात्कार दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में प्रकाशित हुआ था, जिसे पल्लवी वाघेला ने लिया था। जानिए रोजा के बारे में...

भोजपुरी और हिंदी दोनों साथ-साथ
मैं भोजपुरी और हिंदी दोनों मीडिया में बराबर काम कर रही हूं। भोजपुरी में मेरी 12-13 फिल्में आ चुकी हैं, जिनमें मैंने अभिनय किया है। कई भोजपुरी फिल्मों का निर्देशन भी किया है।

फिल्मी सफर
परिवार से कोई इस फील्ड में नहीं था, इसलिए दिक्कतें भी आई। ग्रेजुएशन के बाद थिएटर से जुड़ाव हुआ। दिल्ली में दिल लगाकर थिएटर किया। एनएसडी से जुड़ी यहां सतीश(कौशिक)जी के साथ भी काम किया। जब बांबे गई तो उनसे मुलाकात हुई। मैंने कहा अब यहां कुछ करना है। उन्होंने डायरेक्शन में असिस्ट करने का ऑफर दिया। मेरी पहली फिल्म उनके साथ आई कोई मेरे दिल से पूछे। इस फिल्म से ईशा देओल लांच हुई थीं। इसके बाद क्यूं हो गया न, रन, नो इंट्री और इसी तरह की कई और अच्छी फिल्में बनाई।

निर्देशन से अभिनय
डायरेक्शन के दौरान में पांच साल तक बोनी कपूर के प्रोडक्शन हाउस से जुड़ी रही। इसमें सहारा वन के लिए एक सीरियल तैयार हो रहा था मालिनी अय्यर। सीरियल में मालिनी का लीड रोल श्रीदेवी जी कर रही थीं और उनकी देवरानी के रोल के लिए लड़की की तलाश थी। मैं इस सीरियल में असिस्ट भी कर रही थी। मुझे यह रोल दिया गया और बस डायरेक्शन के साथ परदे पर भी वापस एक्टिंग शुरू हो गई। वर्तमान में महुआ चैनल पर एक सीरियल चल रहा है आंचरा के मोती इसके अलावा जल्द ही मेरी हिंदी फिल्म हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं रिलीज होने वाली है। इसमें मैं राजपाल यादव की प्रेमिका जिन्की का किरदार कर रही हूं। इसके अलावा सीरियल धर्मवीर के डायरेक्टर आलोक कुमार जी के साथ एक प्रोजेक्ट चल रहा है। कलर्स चैनल पर आने वाले इनके सीरियल श्रीकृष्णा में भी मैं नजर आ सकती हूं।
एक्टिंग संग डायरेक्शन
सच कहूं, बेहद मजा आता है। मालिनी अय्यर की शूटिंग के दौरान मैं अपने गेटअप में ही डायरेक्शन करती थी। कई बार मेरा ही शूट होता था और डायरेक्शन में खो जाने के कारण मैं चिल्लाती रहती -किसका शूट है भई जल्दी आओ। इस स्थिति को बेहद इंज्वाय किया है।

थिएटर से लगाव
थिएटर मेरा पहला प्यार है। जब तक जिंदा रहूंगी थिएटर करूंगी। आज भी दिल्ली फेस्टिवल का बेसब्री से इंतजार करती हूं। मेरा सपना यहीं है कि अच्छा थिएटर हमेशा जिंदा रहे और उसमें मैं योगदान कर सकूं। हमारा थिएटर ग्रुप है पुनर्नवा। हम इंडिया के बाहर भी कई प्ले करते हैं। इनमें भोजपुरी नाटक बिदेसिया तो व‌र्ल्ड में फेमस है। भोपाल आने का मकसद भी थिएटर ही था। यह हबीब तनवीर साहब का शहर है, इसलिए यहां प्ले करने का बड़ा मन है और भी कई लोगों से भोपाल की तारीफ सुनी थी। अब इरादा पक्का हो गया है।

भोपाल में होंगे प्ले
मैंने भोपाल में दो प्ले करने का प्लान किया है। पहला तो ऑल टाइम हिट बिदेसिया और दूसरा कॉमेडी प्ले होगा। दोनों प्ले भारत भवन में होंगे और इनमें भोपाल की कलाकार सीमा मलिक भी शामिल होंगी।
अफसोस हुआ
सच कहूं भोपाल की खूबसूरती देखकर जितनी खुश हुई, भारत भवन की वीरानी देखकर उतना ही अफसोस हुआ। वह इतनी खूबसूरत जगह है उसे बनाने वाले व्यक्ति ने कई सपने देखे होंगे, वहां वीरानी चुभती है। मेरा भोपाल थिएटर ग्रुप्स से कहना है कि थिएटर के लिए फेस्टिवल का रास्ता न देखे इसे निरंतर रखें। इसके लिए गवर्नमेंट द्वारा दी जाने वाली फंडिंग का लगातार पता लगाए और इसे जिंदा रखे।

6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

what happened to the other one?

बेनामी ने कहा…

wow, very special, i like it.

बेनामी ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

when will you go online?

Udan Tashtari ने कहा…

सीमा जी और रोजा जी से मिलवाने और साक्षात्कार पढ़वाने का आभार.