घोड़े हैं स्वतंत्र, सवारों पर लगाम है...
आपके राज्य का बढ़िया इंतजाम है।
जो पचा गया लोहा-सीमेंट-जंगल...
बलशाली महाप्रभु को मेरा प्रणाम है।
राम-राम, दुआ-सलाम का हुक्का बंद...
जब से गांव पहुँचा जय श्रीराम है।
तालियाँ ही तालियाँ बजें हर बात पर...
ऐसी परिचर्चा में मेरा क्या काम है।
खूंटा से बंधो मौज करो, खुद्दार बने...
तो भोगो सद्दाम-सा परिणाम है।
बोफोर्स,हवाला,राम-जन्म भूमि के चंदे...
बटोरो-बटोरो आँधियों के आम हैं।
अब्दुल्ला,बुखारी,आडवानी, सिंहल देश में...
शपथ-पूर्वक कहो-इनका क्या काम है।
कंठमणि बुधौलिया
3 टिप्पणियां:
जो पचा गया लोहा-सीमेंट-जंगल...
बलशाली महाप्रभु को मेरा प्रणाम है।
कंठमणि जी
बहुत ही sateek और saarthak रचना. हर pankti बोलती है yathath को
तालियाँ ही तालियाँ बजें हर बात पर...
ऐसी परिचर्चा में मेरा क्या काम है।
बहुत अच्छे । गजल के शेर,शेर नहीं 'परमाणु' हैं। सुन्दर।
घोड़े हैं स्वतंत्र, सवारों पर लगाम है...
आपके राज्य का बढ़िया इंतजाम है।
बहुत अच्छी गजल
एक टिप्पणी भेजें