सोमवार, 26 जनवरी 2009


बहुत भोंका करते थे जो कुत्ते...

उनके खाद का प्रचार तो देखो...
कुकुर-मुत्ते भी दरख्त हो गए।

बहुत भोंका करते थे जो कुत्ते...
वे शिकार के बख्त सो गए।

संगीनों से हो गई दोस्ती जब से...
मोम के पुतले भी सख्त हो गए।

न जलन न तपन गर्मी भी नहीं...
कैसी आग कमबख्त बो गए।

उनके घर कि है महिमा...
नौनिहाल देशभक्त हो गए।

कंठमणि बुधौलिया

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

न जलन न तपन गर्मी भी नहीं...
कैसी आग कमबख्त बो गए।


बहुत उम्दा!!

आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

संगीनों से हो गई दोस्ती जब से...
मोम के पुतले भी सख्त हो गए।

वाह .........क्या बात कही है, बहुत खूब लिखा है आपने...........ये शेर कुछ ख़ास लगा

रंजना ने कहा…

Waah ! Bahut jabardast aur durust kaha.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

संगीनों से हो गई....बेहद खूबसूरत शेर है...पूरी ग़ज़ल ही असरदार है...लिखते रहें...
नीरज