फट चुकी जो तस्वीर दीवार से उतारी जाए...
नए फ्रेम में नई तस्वीर ही संवारी जाए।
चरणामृत देवता का पीने से करे मना...
ऐसे शख्स की अब आरती उतारी जाए।
फट चुका दूध इसमें जब-जब किया गरम...
बदमिजाज देगची ठीक से खंगारी जाए।
जीप, ट्रैक्टर, मोटरें जाएं तो जाएं खुशी से...
आदिवासी क्षेत्र में न रथ-घुड़सवारी जाए।
धर्म बेचें, न्याय बेचें और मरीजों की दवा...
ऐसे लोगों की गर्दन धड़ से उतारी जाए।
कंठमणि बुधौलिया
5 टिप्पणियां:
अच्छी और खरी बात। ईश्वर करे, आपके मन की हो जाए।
धर्म बेचें, न्याय बेचें और मरीजों की दावा...
ऐसे लोगों की गर्दन धड़ से उतारी जाए।
ये तो हम कबसे कह रहे हैं. कोई सुनता ही नहीं है.
पाँच वर्ष में दीवारों से,
चित्र उतारे जाते हैं।
कुर्सी वाले नेता के ही,
चित्र सँवारे जाते हैं।
निर्वाचन पर सीधे-सीधे,
इन पर करना चोट सही।
भ्रष्टाचारी नेताओ को,
आगे करना वोट नही ।
प्रेम सागर सिंह जी।
रावेन्द्र कुमार रवि के सरस पायस के द्वारा आप तक पहुँचा हूँ। मैं कोई कवि नही हूँ, बस शब्दों को जोड़ लेता हूँ। कभी मेरे ब्लाग पर भी आयें। मेरा ब्लाग है-
http://uchcharan.blogspot.com
E-Mail: roopchandrashastri@gmail.com
nice
sneha
बहूत ही यथार्त लिखा है, जिंदगी का सच बहुत खूबसूरत............
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