गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

रहस्य: मई, 1911 की घटना



क्या पिकासो ने मोनालिसा चुराई थी?


यह बड़ी सामान्य सी बात है कि यूरोप से लौटते वक्त लोग इस महान कृति की कॉपी अपने साथ लाते हैं। इस साल यह छठां मौका था, जब वालफियर्नो अपने साथ इस महान कलाकृति की तस्वीर लाए थे। वह कस्टम अधिकारी उतना सतर्क नहीं था, जितना उसे होना चाहिए था। यदि उसने बैग में झांका होता तो उसे पता चलता कि मोनालिसा की यह कृति उसकी नकल नहीं है, बल्कि 16वीं सदी में बनाई गई दुर्लभ कृति मोनालिसा ही है। मोनालिसा की चोरी उस समय तक की सबसे साहसिक कला चोरी थी। हालांकि इसकी शुरुआत मई, 1911 में हो गई थी, लेकिन इस चोरी की घटना को खबर बनने में तीन माह लग गए। इससे दो साल पहले फ्लोरेंटाइन आर्ट डीलर अल्फ्रेडो गेरी को एक पत्र मिला था, जिसे किसी ‘लियोनार्दो’ नामक व्यक्ति ने भेजा था। उस पत्र में इस प्रसिद्ध कलाकृति को बेचे जाने की बात कही गई थी।
अगस्त, 1911 के एक रविवार को पेरिस से लॉवरे म्यूजियम के गार्ड पूर्व आर्मी अधिकारी मैक्सीमिलियेन अलफोंसे पाउपार्डिन ने तीन इटेलियन मजदूरों को बातें करते देखा था, लेकिन थोड़ी देर बाद वे गायब हो गए। इसके बाद अपनी शिफ्ट खत्म होने पर पाउपार्डिन भी चला गया। मोनालिसा तब की चोरी तब ही हो गई। म्यूजियम सोमवार को बंद था, इसलिए अगले 24 घंटों तक किसी को इस बात की जानकारी नहीं हुई कि यह महान कलाकृति गायब है। मंगलवार को विजिटिंग पेंटर लूइस बेरोड को पता लगा कि मोनालिसा अपने स्थान पर नहीं है। म्यूजियम की दीवार से पेंटिंग उतारकर उसकी तस्वीर लेना एक सामान्य बात थी। इसके लिए किसी से इजाजत लेने की आवश्यकता नहीं होती थी। साथ ही पेंटिंग को दीवार से उतारना कोई कठिन कार्य भी नहीं था, क्योंकि वह केवल हुक पर टंगी थी। तस्वीर हालांकि कांच के कवर में रखी थी लेकिन वह भी सुरक्षित नहीं था। बहरहाल जब चोरी की बात उजागर हुई तो म्यूजियम के डायरेक्टर को नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद तो यह खबर आग की तरह फैल गई कि मोनालिसा चोरी हो गई है। म्यूजियम बंद कर दिया गया और मामला पुलिस में चला गया। पुलिस को फिंगरप्रिंट्स और तस्वीर की फ्रेम जैसे कुछ सुराग मिले। मामले की तफ्तीश कर रहे पुलिस अधिकारी परफेक्ट लेपाइन का मानना था कि इस घटना के 48 घंटों के भीतर फिरौती की मांग की जाएगी, लेकिन वह गलत था।

पिकासो के मित्र पर शक
इस दौरान समाचार-पत्र ‘पेरिस जरनल’ ने उस चोर के सनसनीखेज इंटरव्यू प्रकाशित करने शुरू कर दिए, जिसने उस म्यूजियम से कई मूर्तियां महज शौक के लिए चुराई थीं। उस चोर का नाम बैरन इगनैस दिओर्मेसन था। मोनालिसा की चोरी के मामले में बैरन पर ही सबसे ज्यादा शक था, लेकिन समस्या यह थी कि उसका अस्तित्व ही नहीं था। बैरन दरअसल कवि गुलाउमे अपोलिनेयर का एक काल्पनिक पात्र था। अपोलिनेयर पाबलो पिकासो के परम मित्र थे। अपोलिनेयर ने एक समय म्यूजियम को जला डालने की धमकी दी थी।
वह, पिकासो और उनके सहयोगी पेरिस में जंगली पुरुष के नाम से जाने जाते थे। बहरहाल, उन्होंने इस चोरी की घटना को अंजाम नहीं दिया था। यह कारनामा किया था जोसेफ गेरी पियरेट नाम के व्यक्ति ने जो अपोलिनेयर के अपार्टमेंट में रह रहा था। उसने केवल शरारत के लिए यह चोरी की। पिकासो ने दो मूर्तियां खरीदी थीं, जिसके बारे में गेरी को पता था। पिकासो और अपोलिनेयर पर शक जाने के बाद पुलिस को ये जल्द ही पता चल गया था कि इन लोगों का चोरी से कोई लेना-देना नहीं है। दो साल बाद अल्फ्रेडो गेरी नाम के आर्ट डीलर ने इटली के कई अखबारों में बेहतरीन कलाकृतियों को बेचे जाने के लिए विज्ञापन निकलवाया। उसे एक पत्र मिला जिसमें लिखा था -‘लियोनार्डो दा विंची की चोरी हुई कलाकृति मेरे कब्जे में है। ’
उसने लिखा था कि यह इटली की है, क्योंकि इसे बनाने वाला इटली का था। मेरा सपना है कि इसे उस देश में वापस कर दूं जहां की यह है। पत्र में लियोनार्दो के दस्तखत थे। गेरी प्रसिद्ध उफ्फीजी गैलरी के डायरेक्टर पोगी से मिला और वे दोनों लियोनार्दो से मिले, जो उन्हें होटल के एक में ले गया। वहां मोनालिसा थी। पोगी ने उसे उफ्फीजी ले जाने की इच्छा जाहिर की, जिस पर लियोनार्दो राजी हो गए। पेंटिंग ले जाते वक्त पोगी को होटल में ही रोक लिया गया। उसपर पेंटिंग की नकल चुराने का आरोप लगाया गया। लियोनार्दो नाम के व्यक्ति का असल नाम विंसेंजो पेरूगिया था, जिसने पेरिस के म्यूजियम में दो साल तक काम किया था। उसने पेंटिंग के लिए कांच के कवर बनाए थे। विंसेंजो का आपराधिक रिकॉर्ड था। उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

वो रविवार का दिन
गिरफ्तारी के बाद विंसेंजो ने बताया कि उसने अपनी मदद के लिए दो लोगों को भाड़े पर रखा था। वे लोग रविवार को म्यूजियम में घुसे। उनके साथ म्यूजियम के कर्मचारियों की यूनिफॉर्म थी। वे रात भर म्यूजियम में छिपे रहे। सुबह उन्होंने यूनिफॉर्म पहनी और मोनालिसा अपने साथ ले आए। किसी को जरा भी शक नहीं हुआ। विंसेंट ने दावा किया कि उसने यह काम इटली के गौरव के लिए किया है। उसे इसके लिए रिवार्ड मिलना चाहिए। खैर उसे रिवार्ड तो नहीं मिला पर जेल जरूर पहुंच गया। विंसेंट को सजा होने के एक साल बाद अमेरिकी पत्रकार कार्ल डेकर मार्कस इडुआर्डो डि वालफियर्नो से मिले जिसने उसे पूरी कहानी बताई। वालफियर्नो वेस चाउड्रोन नामक अपराधी से लंबे अरसे से जुड़ा रहा है। ये लोग मिलकर नकली कलाकृतियों से लोगों को ठगने का काम करते थे। इन्होंने सबसे बड़ी वारदात को विंसेंट की मदद से अंजाम दिया। इसके लिए उन्होंने विंसेंट के दिमाग में यह भर दिया कि मोलालिसा की चोरी इटली के लिए की जा रही है। इसके बाद चाउड्रोन और वालफियर्नो ने मोनालिसा की छह नकल तैयार की और छह रईसों लोगों से मिलकर प्रत्येक से यह कहा कि पांच अन्य लोग भी इसके लिए बोली लगा रहे हैं। जो सर्वाधिक बोली लगाएगा उसे यह मिलेगी। यह आश्चर्यजनक था कि सभी छह रईस ये सोच रहे थे कि उनके पास असली पेंटिंग है, जबकि असली पेंटिंग पेरूगिया ने छिपा कर रखी थी। बहरहाल डेकर को सनसनीखेज कहानी मिल गई। वालफियर्नो एक ठग था। क्या पता उसने सच कहा या नहीं।

1 टिप्पणी:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

अच्छी जानकारी है. पर मित्र वहां एक चोरी हुई, वह भी सन 1911 में और उसकी चर्चा हम अब तक कर रहे हैं. पटना के राजकीय संग्रहालय से राहुल जी द्वारा दान की गई सैकड़ों दुर्लभ कलाकृतियां ग़ायब हो गईं और आज उसकी चर्चा तक नहीं है. हमारी कितनी मोटी खाल है और अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति हम कितने बेपरवाह हैं!