बुधवार, 1 अप्रैल 2009


'मध्यप्रदेश में ड्रामा स्कूल की जरूरत नहीं'

रामगोपाल बजाज नाटकों की दुनिया में चर्चित नाम है। वे पहले दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के स्टूडेंट रहे और बाद में यहां के निदेशक भी बने। वरिष्ठ रंगकर्मी बजाज मध्यप्रदेश में ड्रामा स्कूल खोलने के सख्त विरोध में हैं।

सपना हुआ पूरा
1965 में एनएसडी में छात्र बन कर रहा। तब सपना था कि मैं भी नाटक लेकर विदेश जाऊं। थोड़ी परिपक्वता आने पर नजरिया बदला। जब मैं स्वयं एनएसडी का निदेशक बना तो मेरी यह जिद बन चुकी थी, बजाए इसके कि हम अपने नाटक विदेश लेकर जाए यहां कुछ ऐसे आयोजन किए जाएं कि विदेशी नाटक यहां मंचित हो सके। मैं इसमें कामयाब भी हुआ।

सरकारों ने ड्रामे को सीरियसली नहीं लिया
अब कॉलेजों में तो ड्रामा सिलेबस में आ गया मगर स्कूलों में नाटक अब भी सिलेबस का हिस्सा नहीं बन पाया है। जब नृत्य और संगीत विषय हो सकते हैं तो नाटक क्यों नहीं? थिएटर के साथ वैसे भी नाइंसाफी हुई है। नई-नई कालोनियां बनती हैं, उनमें पार्क और स्वीमिंग पूल जैसी चीजों की व्यवस्था की जाती है पर थिएटर की नहीं। सिनेमा गृह बन जाते हैं पर थिएटर क्यों नहीं? सरकार को इस विधा को लेकर भी गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।

ड्रामा स्कूल खोलने की जरूरत नहीं
अगर प्रदेश सरकार यहां ड्रामा स्कूल खोलने की बात कर रही है, तो यह बात मेरे समझ के बाहर है। मैं इसका कट्टर विरोध करता हूं। बजाय इसके छोटी-छोटी रंग मंडलियां बनाई जानी चाहिए और पहले से मौजूद रंग संस्थानों को और मजबूत करना चाहिए। यहां तो भारत भवन है, इसका रंगमंडल पहले ही काफी नाम कर चुका है। उसे पुर्नजीवित किया जा सकता था।

मध्यप्रदेश का काम अच्छा
अगर मोटे तौर पर सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करने की बात करें तो अन्य राज्यों के मुकाबले प्रदेश सरकार काफी अच्छा काम कर रही है। खास तौर पर बाल रंगमंडल थिएटर को जिंदा रखने का सराहनीय प्रयास है। इससे नए पीढ़ी नाटक के साथ जुड़ती है। बस एक बात का अफसोस है कि सरकार भोपाल में रह रहे बड़े नाटककारों का सही उपयोग नहीं कर रही। नाम तो काफी हैं मगर मैं खास तौर पर हबीब तनवीर का नाम लेना चाहूंगा। वो लिविंग लेजेंड हैं, मगर यहां उनके अनुभवों का सही उपयोग नहीं किया जा रहा।

(यह साक्षात्कार दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में प्रकाशित हुआ है-जिसे शाहरोज आफरीदी ने लिया है)

1 टिप्पणी:

Gaurav Gautam ने कहा…

bahut kbhoob Bajaaj Sir. me ramgopa bajaaj saheb ke favour me hoon. kii bhopal me acting school, academy, yaa fir film city bhi establish nahin hona hii bhopal kii pehchchan banaye rakehga, bhopal me agar film school academy, yaa film cityu establish hoti hai to Bhopal apni praaakratik (atural) aur saamajik sanskaar aur pehchchan khodega, bhopal- bhopal hai, viaak (development jaruri hai), lekin aisa vikaas , pragati jo hume vinaash kii aor le jaye, uss kshan bhangur safaltaa ke peeche bhaagna bevakoofi hogi, bhopal waasiyon ko manch, pratibha, avsar kii koi kami naa pehle thaee, aur naa hai, agar bhopal me film city kholu gayi to bhpal kii partibha khud ke she, ghar me bhai bhatijaawaad, aur gandi kaaryashaili kaa shikaar hokar khatm ho jaaynege.

jai hind!~

Regards,
Gaurav Gautam