गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

वैचारिक पत्रकारिता के अग्रणी अभय छजलानी का साक्षात्कार


अखबार तो वही टिकेंगे, जो जिम्मेदार होंगे

राजेश पांडेय
(लेख़क वरिष्ठ पत्रकार हैं )
दुनिया संपादकीय बोर्ड के अध्यक्ष अभय छजलानी मानते हैं, वे समाचार पत्र ही लंबे समय तक टिक पाएंगे, जो समाज और आम लोगों के प्रति अपनी जवाबदेही का निर्वाह करेंगे। बेहतर और आला दरजे की पठनीय सामग्री देने वाले अखबारों का भविष्य उज्जवल है। उनका कहना है, समग्र रूप से मीडिया और अखबारों को बाजार के दबाव और सामाजिक दायित्व के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा।
31 मार्च को राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के हाथों पद्मश्री से विभूषित श्री छजलानी का हिंदी पत्रकारिता में बहुत खास योगदान है। उन्होंने, पिछले 50 वर्षों में नईदुनिया को भारतीय भाषायी पत्रकारिता का वटवृक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका सम्मान पत्रकारिता से जुड़े उच्च आदर्शों और मूल्यों का सम्मान है।
पद्म अलंकरण से सम्मानित किए जाने के संबंध में उनका मानना है, ‘‘पत्रकारिता में अब भी ऐसे गुण, ऐसे मूल्य और आदर्श मौजूद हैं, जिनका समाज सम्मान करता है। बदलाव के दौर में यह बात सामने आई है कि अखबारों को उद्योग जैसा चलाया जाए। समाचारपत्र को प्रोडक्ट बनाया जाए। पर, अखबार को विशुद्ध रूप से उद्योग नहीं माना जा सकता है। अधिकांश उद्योग केवल धन पैदा करते हैं, लेकिन समाचारपत्र सामाजिक दायित्व का निर्वाह भी करते हैं। अखबारों की देश, समाज और आमजन के प्रति जवाबदारी है। मैं महसूस करता हूं, हमारा समाज अखबारों की सकारात्मक भूमिका का सम्मान करता है।’’
श्री छजलानी स्वीकार करते हैं, ‘‘अखबार निकालने की लागत बढ़ी है। व्यावसायिकता के चलते दबाव बने हैं। वैसे इसमें कोई नई बात नहीं है। अखबारों को हमेशा आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ा है। इधर, व्यावसायिकता के चरित्र में बदलाव आया है। कृत्रिम आकर्षण और दिखावे के जरिए कारोबार को सफल बनाने के नुस्खे आजमाए जाने लगे हैं। ऐसी स्थिति में अखबार इस प्रक्रिया से कैसे बच सकते हैं। फिर भी अखबारों को पाठकों और अपने ग्राहकों की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है।’’
नईदुनिया संपादकीय बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा, ‘‘कठिन प्रतिस्पर्धा के दौर में जीत उन समाचारपत्रों की होगी, जो सामाजिक सरोकारों का निर्वाह करेंगे। और प्रभावशाली तरीके से समाचारों, विचारों को पेश करने वाले और जनता के प्रति जवाबदेह अखबारों का अस्तित्व बना रहेगा।’’
1950 के दशक में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले श्री छजलानी यादों के झरोखे से झांकते हुए बताते हैं, ‘‘हमेशा पठनीय और सकारात्मक सामग्री ने पाठकों के बीच अपनी जगह बनाई है। हिंदी भाषी क्षेत्रों में अखबार परिवार के बजट की प्राथमिकता सूची में नहीं रहे हैं। अखबार केवल विज्ञापनों के आधार पर नहीं चलते हैं। वे तात्कालिक आवश्यकता पूरी करते हैं। जिस तरह हमारे भोजन में छप्पन भोग का स्थान है। उसी तरह समाचारपत्रों में दैनंदिनी गतिविधियों से जुड़ी बातों, घटनाओं, प्रसंगों का प्रकाशन होता है। पिछले 50 सालों में एक बात नहीं बदली है। सकारात्मक लेखन और प्रभावशाली सामग्री का औचित्य पहले भी था और आज भी है।’’वे भारत में समाचारपत्रों के भविष्य को सुनहरा मानते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट की चुनौती के बावजूद अखबारों की प्रसार संख्या लगातार बढ़ रही है। समाचारपत्रों के पेज बढ़े हैं। कलेवर आकर्षक हुआ है। सामग्री में विविधता और विभिन्नता आई है। यह समूचा परिदृश्य निराशा का नहीं, बल्कि सफलता का सूचक है। श्री छजलानी ने नईदुनिया में विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह किया है। अखबार मालिक से लेकर संपादक तक उन्होंने नईदुनिया की विशिष्ट पहचान बनाने में अग्रणी भूमिका अदा की है, वे अपने अनुभव को सामने रखते हुए कहते हैं, ‘‘अखबार की सफलता का निश्चित फार्मूला नहीं है। केवल चटपटी और मसालेदार सामग्री के बल पर ही अखबार चलाना संभव नहीं है। हर युग और हर जमाने के साथ उसके मूल्य बदलते हैं व प्राथमिकताओं में परिवर्तन आता है। समाचारपत्रों को बाजार की होड़, सामाजिक प्रतिबद्धता, पाठकों की रुचि और बेहतर मापदंडों के बीच संतुलन कायम करना होगा।’’ अभय छजलानी मानते हैं, राजनीति का मौजूदा स्वरूप प्रजातंत्र के लिए खतरनाक है। जाति, धर्म और वर्ग भेद के आधार पर राजनीति चलती रही, तो प्रजातंत्र स्वस्थ और सबल नहीं हो सकता है। राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ के लिए समाज में विभाजन की जितनी रेखाएं खींचें, उन्हें बेअसर बनाने में अखबारों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

(यह साक्षात्कार भोपाल से प्रकाशित पीपुल्स समाचार में छपा है )