मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

सम ‘आयनिक’ व्यंग्य


ये है ‘जूता’ हिन्दुस्तानी!

अमिताभ फरोग

लो, ईराक से चलता हुआ ‘जूता’ भारत तक आ ही पहुंचा। यह उम्मीद से अधिक आश्चर्य होने सरीखी स्थिति है, क्यों ? दोनों ही जगह जूता ठीक निशाने पर नहीं बैठा, एकदम ‘नाक’ के निकट से निकल गया...सो नाक बच गई ! दूसरा आश्चर्य यह है कि बुश सरीखी फुर्ती चिदम्बरम में कहां से आ गई?
सवाल लाजिमी है, क्योंकि भारत में ‘धोती या लुंगी ’ पहनने वाले उतने फुर्तीले नहीं माने जाते; हाँ वे 'ताक़तवर' जरूर होते हैं। उनकी ‘लुंगियां ’ तो औरतें भी सरलता से खींचती रही हैं। यहां प्रसंग जयललिता और एम. करुणानिधी का नहीं है, संदर्भ ‘जूता’ है, लेकिन ‘ धोती और लुंगी ’ पार्श्व में अपनी बहुधा विराट-विकराल संस्कृति के साथ दोनों समय मौजूद रही है।

बुश लुंगी नहीं पहनते। वे नियमित व्यायाम करते हैं, इसलिए फिट हैं। वे पैंट पहनते हैं, सो उन्हें बार-बार अपनी लुंगी नहीं संभालनी पड़ती। ...और न ही कभी अपनी ‘सरकार’ की धोती संभालने में वक्त जाया करना पड़ा होगा ! शायद यही एक मूल कारण रहा कि बुश ने अपनी ‘नाक’ पर जूता नहीं पड़ने दिया, लेकिन चिदम्बरम के मामले में ऐसा नहीं है। इसीलिए घोर आश्चर्य होता है कि उन्होंने ‘जूते’ से खुद को कैसा बचा लिया?
मुंबई के ताज होटल पर हुए आतंकी हमलों के बाद शिवराज पाटिल की विदाई और अर्थ मंत्री पी. चिदम्बरम का गृहमंत्री बनना शायद इस ‘स्टेमिना’ का जनक हो सकता है। ‘अर्थ’ के अनेक अर्थ निकाले जा सकते हैं। लोगों को उलझाए रखा जा सकता है, ऐसे में उन्हें जूता फेंकने की सुध ही नहीं रहती। हालांकि इसमें काफी ज्ञान-गणित और कला कौशल आवश्यकता होती है, जो चिदम्बरम खूब जानते हैं।
हां, गृहमंत्रालय संभालते हुए जूतम-पैजार का सामना करना आम बात है। संभव है कि गृहमंत्री बनने के बाद विरोधी दलों के इस जूतम-पैजार के आदी हो चुके पी. चिदम्बरम जूतों से बचने की कला सीख चुके हों ! बचने-बचाने की यह ‘आर्टिफिशियल स्टेमिना’ चिदम्बरम के लिए काफी मुफीद साबित हुई है। यह भी कयास लगाए जा सकते हैं कि पी.चिदम्बरम को पूर्व से आभास हो कि चुनावी दौर में कहीं भी, किसी भी वक्त ‘जूता’ चल सकता है, इसलिए वे सदैव सतर्कता बरतते रहते हों?
जनरैल सिंह एक सरदार है, लेकिन भिंडरावाला नहीं!...और न ही उसने भिंडरावाला जैसा दुस्साहसपूर्ण कृत्य किया है। लेकिन दोनों के कृत्य-कुकृत्य में ‘जूता’ और ’लुंगी- धोती’ पूर्ण हैसियत के संग मौजूद रही है। लुंगी पहनने वाले पंजाबियों को एक धोती पहनने वाली ‘मर्दानी नारी’ ने जूतों तले खूब रौंदा। जूतम-पैजार से शुरू हुए झगड़े में भिंडरावाला मारा गया। ‘खूब लड़ी मर्दानी’ लेकिन अंतत: उसे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सरदारों का ‘असर’ खत्म करने दंगों के दौरान उन्हें मसलने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। जिन्होंने सरदारों का दमन किया, वे दंगई एक सरदार के सरकार में ‘सरदार’ होने के बावजूद साफ़ बच निकले, जबकि आवश्यकता उन्हें ‘टाइट’ करने की थी। जनरैल के जूते में यही दर्द भरा हुआ था, जो गृहमंत्री के ह्रदय को छू तक न सका।
‘जूता’ से साफ बच निकलने के बाद गृहमंत्री के होंठों पर जो कुटिल मुस्कान देखी गई, उसके तमाम मायने हैं। पहला-वे ‘धोती’ की ‘धाक’ अच्छी तरह से जानते हैं। उन्हें पता है कि देश में असली सरदार तो ‘धोतियां’वाली और वाले ही रहे हैं और आगे भी रहेंगे। समय, काल, परिस्थिति, संस्कृति और समाज हर जगह धोती का वर्चस्व रहा है। चाहे यह दैविक रूप में हो या गांधी से लेकर सोनिया तक। इसलिए ‘सिक्ख दंगों’ से उपजा रोष दो-चार जूते चलने के बाद स्वत: ही ठंडा पड़ जाएगा...और न भी पड़ा तो इस महंगाई के दौर में कौन कितने और जूते चलाएगा ? अगर जूता यूं ही चलने लगा, तो उसकी कोई ‘वैल्यू’ भी कहां बचेगी?

वैसे भी ‘लुंगी वाले’ चिदम्बरम जानते हैं कि वैल्यू ‘जूते’ की नहीं, ‘जूतेवाले’ की होती है। इसलिए अगर जनरैल को हवालात में भेज देते, तो वो सिक्खो का ‘जनरैल’ बन बैठता!
खैर चुनावी मौसम है, ‘आमों’ और ‘आमजनों’ की खैर-खबर लेने का वक्त है, इसलिए नेताओं का पूरा-पूरा ध्यान ‘आम’ चूसने पर है। जूते तो चलते ही रहेंगे....अगर अधिक चले तो उन पर टैक्स लगा दिया जाएगा! टैक्स थोपने का फंडा पी. चिदम्बरम अच्छे से जानते हैं। इसलिए फिलहाल, उनका लक्ष्य ‘आमों’ को चूसने का है। अगर सरकार बनी तो सरदारों से कैसे निपटना है ‘सरदार’ खूब जानते हैं!
‘जय हो जूता!’

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहूत अच्छा लिखा है अमिताभ जी.............
जूता प्रकरण पूरे विश्व को अपने दौर में खेंच लेगा............

अच्छा व्यंग है

Unknown ने कहा…

aapki is post ko ratlam, Jhabua(M.P.), dahood(Gujarat) se Prakashit Danik Prasaran me prakashit karane ja rahan hoon.

kripaya, aap apan postal addres send karen, taki aapko ek prati pahoonchayi ja saken.

pan_vya@yahoo.co.in

विष्‍णु बैरागी ने कहा…

धार तो बहुत ही तीखी रही प्रभु किन्‍तु थोडा सा चूक गए चौहान।
चिदम्‍बरम तो 'लुंगीधारी' हैं, 'धोतीधारी' नहीं।
पूरी पोस्‍ट पढने के दौरान 'धोती' की जगह 'लुंगी' नजर आती रही।
बहरहाल, व्‍यंजना बहुत ही शानदार है।
ये तेवर बने रहें।

शिखा शुक्ला ने कहा…

jai ho sir gi,
juta tha bhee bada shandar.PC ko bhe phayada,chunav ke mousam me muft ki publicity aur jarnail paji bhee ki bhee balle-balle.

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

joota puraan ki jay ho..
is dour me joota mahimaa ke badhne par man isliye bhi khush ho jaata he ki ab sendilo kaa dour lagta he khatm ho gaya..
maznuo ko kam se kam raahat milegi ki ab sirf vo hi sendil nahi khaa rahe he..neta log joote khaa kar unka maan sammaan bhi badha rahe he..