शनिवार, 25 अप्रैल 2009

अरूंधति राय, लेखिका,मानवाधिकार कार्यकर्ता व एक्टिविस्ट जो दो दिन पहले छत्तीसगढ़ आईं थी

अरुंधती रॉय के नाम एक छत्तीसगढ़िया का ख़त

प्रति,
आदरणीया,
आप 2007 में रायपुर आईं थी। जब छत्तीसगढ़ सरकार ने राजधानी रायपुर में एक "मानवाधिकार कार्यकर्ता" को नक्सलियों को मदद पहुंचाने व उनसे संपर्क रखने का आरोप लगाते हुए गिरफ़्तार किया तो आप सबने रायपुर आकर यहां की भूमि को धन्य किया इसके लिए आप सबका आभार।
आप अभी दो दिन पहले भी रायपुर आईं और सही कहा कि हर लेखक को समाज सेवा करना चाहिये,और इस मुल्क मे जो भी चल रहा है उस पर लिखा जाना चाहिए।पत्रकारो को भी लिखना चाहिए।
यह तो सही बात कही आपने, पर एक बात, क्या बहते निर्दोष खून के खिलाफ लेखक को आवाज नहीं उठानी चाहिए? आप या आपके साथी कार्यकर्ता जो अक्सर रायपुर आते हैं, नक्सलियों द्वारा निर्दोष खून बहाए जाने के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाते?
ऐसा क्यों, क्या वे सही कर रहे है खून बहाकर?
आप लोगों ने यहां अपने साथी के लिए धरना दिया,प्रेसवार्ता ली और ज्ञापन सौंपे हैं। सच मानिए मेरा दिल भर आया कि अपने साथी की ऐसी चिंता करने वाले लोग आज के जमाने में भी मौजूद है। लेकिन कई बार एक सवाल मन में उठता है। लगता है आज आप लोगों से पूछ ही लूं,वो यह कि पिछले कई सालों से जब नक्सली आम लोगों की हत्याएं कर रहे हैं,बारूदी सुरंगे लगाकर विस्फोट कर पुलिस जवान समेत आम लोगों की हत्याएं कर रहे। सरकारी संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं,ना जाने कितने मासूमों को अनाथ बनाए जा रहे हैं,बस्तर में रहने वाले व्यापारियों को जबरिया उनकी ज़मीन-ज़ायदाद से बेदखल कर बाहर भगा रहे हैं।
आप सबकी नज़र इन सब पर क्यों नहीं जाती?
क्या मारे जा रहे पुलिसकर्मी या आम लोग मानव नहीं हैं,क्या जीना उनका मौलिक अधिकार नहीं है?
जब नक्सली ऐसे नरसंहार करते हैं तो उसके विरोध में आप लोग छत्तीसगढ़ या राजधानी रायपुर में पधारकर इसे धन्य क्यों करते?
क्या नक्सली जो कर रहे थे/हैं, सही कर रहे थे/हैं?
और पिछली बार 2007 में आप सबके रायपुर से लौटने के बाद नक्सली और उग्र होकर जानलेवा गर्मी में समूचे बस्तर में जगह-जगह बिज़ली टावर गिरा रहें थे,बिज़ली सप्लाई लाईन काट जा रहे थे,यातायात बाधित किए जा रहे थे जिसके कारण वहां लोगो को खाद्यान्न व सब्जियां ढंग़ से नहीं मिली ना ही बिज़ली।
नक्सली बस्तर में "ब्लैक-आउट" के हालात पैदा कर रहे थे। तब, तब आप सब ने इसका विरोध क्यों नहीं किया, क्यों नहीं तब आप सब आए रायपुर विरोध प्रदर्शन करने, प्रेसवार्ताएं लेने व ज्ञापन देने या धरना प्रदर्शन करने?
आपका क्या विचार है नक्सली जो भी कर रहें हैं सही ही कर रहे हैं?
आप सब बहते निर्दोष खून को देखकर चुप कैसे रह जाते हैं? स्कूलों को तोड़े जाते देखकर भी खामोश कैसे रह लेते हैं? जान बचाने के लिए आदिवासियों को अपना गांव-घर-खेत छोड़ते देखकर भी आप कैसे निस्पृह रह लेते हैं? लेकिन जो मामले अदालत में चल रहे हैं उसके लिए आवाज जरुर लगा सकते हैं?
यह कैसा विरोध आपका?
हे विदूषी अरूंधति ज़ी,
दरअसल मैं ज्यादा समझदार नहीं हूं,दिमाग से पैदल हूं अत: ज्यादा सोच समझ नहीं पाता। बस जो देखा उसी के आधार पर यह पत्र दूसरे से लिखवा रहा हूं क्योंकि मुझे तो लिखना पढ़ना भी नहीं आता। क्या आप सब इस छत्तीसगढ़िया का आमंत्रण स्वीकार करेंगे कि आइए फ़िर से एक बार रायपुर,छत्तीसगढ़। आइए इस बार नक्सलियों के तांडव का विरोध करें,धरना दें और ज्ञापन दें नक्सलियों के खिलाफ़ क्योंकि जो मारे जा रहे हैं, तकलीफ़ पा रहे हैं वह भी मानव ही हैं और न केवल जीना बल्कि चैन से जीना उनका भी मौलिक अधिकार है।
निवेदन इतना ही है कि मै एक गरीब छत्तीसगढ़िया हूं। आप सबके आने-जाने का "एयर फ़ेयर" नहीं दे सकता न ही किसी अच्छे होटल में आपके रुकने का प्रबंध करवा सकता। बस! इतना ही कह सकता हूं कि अगर आप ऐसे नेक काम के लिए आएंगे तो इस गरीब की कुटिया हमेशा अपने लिए खुला पाएंगे और घरवालो के साथ बैठकर चटनी के साथ दाल-भात खाने की व्यवस्था तो रहेगी ही।
आपके उत्तर की नहीं बल्कि आपके आने के इंतजार में
आपका विनम्र
भोला छत्तीसगढ़िया

4 टिप्‍पणियां:

संजय बेंगाणी ने कहा…

यह बात आपको कब समझ में आएगी कि क्या मारे जा रहे पुलिसकर्मी या आम लोग मानव नहीं हैं....


कुछ महान आत्माएं देशद्रोहियों के हितों में लगी हुई है. पैसा बड़ा होता है बाबा...आम आदमी पर आँसू बहाएंगे तो उस पर आप एक पोस्ट भी नहीं लिखेंगे...पैसे तो दूर की बात है.

Anil Pusadkar ने कहा…

अमिताभ जी आभार आपका जो आपने छत्तीसगढ और भोला छतीसगढिया की भावनओ को अपने ब्लोग पर जगह दी।रहा सवाल परम विदूषी राय का तो क्या कहा जा सकता है उन्हे तो खून-खून मे फ़र्क़ नज़र आता हैं। नक्सलियो द्वारा बहाया जा रहा खून उन्हे पानी नज़र आता है और अत्याचार का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ विनायक सेन का जेल मे बंद होना ही है।

drdhabhai ने कहा…

अरे तुच्छ प्राणी तुमने नक्सलियों को हत्यारा कहा...लगता है तुम्हे हत्यारों का वर्गीकरण पता नहीं ...तुम पर बुद्धिजीवियों का कहर टूटेगा...तुम्हे पता होना चाहिये नक्सलवाद के नाम पर चाहे तिरंगा जलाया जाये या मासूमों की हत्या की जाये या धर्मांतरण किया जाये सब वैचारिक संघर्ष मैं आता है...लगता है तुमने कभी बुद्धिजीवियों(जो बुद्धि के दम पर किसी का भी भक्षण कर सकें ऐसे परजीवी) का सान्निध्य प्राप्र नहीं किया

Raravi ने कहा…

hamare budhhujeevi nischay hi ek behad pakshpaat poorn raviyya ikhtyaar kiye hue hain. aapne bilkul hi sahi kaha hai.
aisa hi kuchch pahale bhi kaha gaya tha- vardhmaan.blogspot.com.
kareeb chand maheene pahle madhya bhaarat ke ek sajjan ne is vishaya per bahut hi sunder likha tha, logon ne use prakashit karwaane ka bhi sujhao rakha tha.