मियां मसूरी बाहें चढ़ाए/सीना ताने आते दिखाई दिए। मैंने उन्हें आवाज दी-क्यों खां, लपर-झपर करत कहां जा रिये हो? मियां ने मुझे घूरा, फिर लरजती-गरजती आवाज में बोले-‘लेखक महोदय; दिल्ली जा रिया हूं...आप भी हमारे साथ तशरीफ लाएंगे?’ मैं भांप गया कि; मियां ने पलटवार किया है। मैंने तीर छोड़ा-‘अमां खां; दिल्ली तो दिलवालों की है, अब इस उमर में आप जैसे लोग वहां जाकर क्या करेंगे?’
मियां बिदक गए-‘लेखक महोदय, आप हर बात को हल्के में लेते हैं?’ मैंने व्यंग्य कसा-‘क्यों करूं...महंगाई ने कमर तोड़कर रख दी है, सो भारी-भरकम चीजें उठाने का साहस/दुस्साहस अब हमारे वश में नहीं है!’ मियां ने आखें तरेरी-‘महोदय, चीजों से मेरा मतलब उपभोग की वस्तुओं से नहीं; आपके नजरिये से है।’ मेरा लहजा थोड़ा मजाकिया हो चला-‘ क्यों खां, कहीं आप शशांत शाह के निर्देशन में बनी फिल्म चलो दिल्ली...देखने तो नहीं जा रहे?’ इस बार मियां का लहजा तल्ख था-‘महोदय, बेवजह भेजा फ्राय न कीजिए...!’ मैंने बीच में बात काट दी-‘अरे हां, याद आया...चलो दिल्ली वाले विनय पाठक की भेजा फ्राय-2 भी रिलीज होने वाली है।’ मियां उखड़ गए-‘महोदय, इस वक्त सारा हिंदुस्तान भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है और आपको सिनेमा की पड़ी है।’
मैंने व्यंग्य-शब्द छोड़े-‘मियां, सिनेमा और करप्शन दोनों का भी गहरा नाता रहा है। सिनेमाई रंगों के पीछे भी कई बार काली कमाई छिपी रहती है।’ मियां थोड़े नरम पड़े-‘महोदय, आपका कहना एकदम बाजिव है, लेकिन इस वक्त मैं बाबा रामदेव के अनशन की बात कर रहा हूं।’
मैंने कटाक्ष शैली अख्तियार की-‘मियां क्या आपको लगता है कि; बाबा के आसन से शासन हिल जाएगा? वो भी तब जब; कालेधन के मामले में वे कांग्रेस के महासचिव दिग्गी राजा बयानबाजी कर रहे हैं कि; बाबा ने भी खूब काला-पीला किया है!’ मियां थोड़े चिढ़-से गए-‘आप कहना क्या चाहते हैं?’
मैंने काव्यात्मक शैली अपनाई-‘बोले तो; कीचड़ में खड़े होकर कीचड़ न उछालिये/हो सके तो अपने आप को बाहर निकालिए।’ मियां बिफर-से पड़े-‘महोदय, आप भी क्या आलतू-फालतू के तर्क लेकर बैठ गए?’ मैंने पलटवार किया-‘मैं कहां बैठा; अनशन में तो वे लोग भी बैठ गए हैं, जिनके दामन पर भी दाग लगे हैं!’ मियां सोच-विचार की मुद्रा में बोले-‘कहीं आप 1992 में अयोध्याकांड की आरोपी साध्वी ऋतंभरा और स्कॉटलैंड में बाबा को बतौर उपहार द्वीप देने वाले एनआरआई की बात तो नहीं कर रहे?’ मैंने कहा-‘मियां; बड़बोले दिग्गी राजा की बात पर भले ही विश्वास न करो, लेकिन रामदेव टोली के सही अहम सदस्य स्वामी अग्निवेश और गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने यह मामला उठाया है, तो मन आशंकित तो होगा ही?’
मियां ने तर्क दिया-‘इस देश में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन यहां सबसे बड़ा मुद्दा कालेधन का है। अली हसन, ए. राजा, सुरेश कलमाड़ी, करीम मोरानी जैसी बीमारियों का उपचार तो होना ही चाहिए।’
मैं गंभीर हो उठा-‘मियां, आप की चिंता सौ टका सही है, क्योंकि भ्रष्टाचार से सारा देश त्रस्त है।’ मियां चिंतातुर थे-‘महोदय, कभी-कभार तो लगता है कि सारा सिस्टम ही भ्रष्ट है!’ मैंने चिकोटी काटी-मियां, सिस्टम भी तो हम हीं जैसे लोग बनाते हैं। मियां ने नजरें चुराई-‘इसीलिए करप्शन सिस्टम में घुलमिल चुका है।’ मैंने चिकोटी काटी-‘मियां, कहिए कि; करप्शन भी सिस्टेमिटक हो चला है।’ मियां ने प्रश्न दागा-‘आप मेरी एक जिज्ञासा का समाधान कीजिए?’ मैंने फौरन कहा-‘हां, हां, क्यों नहीं; आप एक क्या; 10 सवाल कीजिए!’ मियां ने पूछा-‘आप को क्या लगता है कि; रामदेव के अनशन के बाद काले कारनामों पर थोड़ा-बहुत अंकुश लग पाएगा या नहीं?’ मैंने आखिरी व्यंग्य तीर छोड़ा और आगे बढ़ लिया-‘मियां, रामलीला मैदान पर रामदेव की अनशन लीला क्या गुल खिलाती है, यह तो समय ही तय करेगा, लेकिन इतना अवश्य हुआ है कि बाबा के प्रयासों ने मन मोह लिया है। सो संभव है कि जनता-जनार्दन के योग से आसन पर बैठे बाबा आगे चलकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठ जाएं।’
5 टिप्पणियां:
जनता-जनार्दन के योग से आसन पर बैठे बाबा आगे चलकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठ जाएं।’bahoot khoob...amitabhji...maza aa gaya
जनता-जनार्दन के योग से आसन पर बैठे बाबा आगे चलकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठ जाएं।’bahut khoob amitabhji maza aa gaya...
dil ko chu gya sir
अमिताभ भाई, दरअसल में आपने परदे के पीछे की व्यथा कथा को शब्द दे दिये हैं । आज सबसे बडा सवाल यही है ।
कहीं बाबा की नज़र सिंहासन पर ही तो नहीं है?
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