सोमवार, 26 मार्च 2012



यह व्यंग्य मेरे पहले व्यंग्य संग्रह-‘फोकट की वाहवाही’ का एक हिस्सा है। मेरा सौभाग्य है कि

संग्रह का नामकरण मशहूर फिल्म लेखक अशोक मिश्राजी (वेलडन अब्बा, वेलकम टू सज्जनपुर आदि ) ने किया है। वे ही इस संग्रह की प्रस्तावना भी लिखेंगे।
सभी का सहयोग और मार्गदर्शन अपेक्षित है।

अमिताभ बुधौलिया


(लेखन समय : 18 अप्रैल 2005। पाकिस्तान के तात्कालिक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत आए थे)
शनि पर शंका


मियां मसूरी मुझे पान की गुमठी पर टकरा गए। गुमसुम... किसी गहरी सोच में डूबे हुए। मैंने उन्हें चिकोटी भरी-अमां मियां, क्या बात है? उन्होंने तिरछी नजरों से मुझे ऐसे घूरा, मानो मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी हो। कुछ देर यूं ही टकटकी लगए देखते रहने के बाद उन्होंने अचानक ऐसे सवाल किया, मानो कोई किसी पर सांप छोड़ देता है- जनाब, सुना है सारे ग्रहों ने इस बार शनिदेव को राजा चुना है? मैंने सहज अंदाज में कंधे उचकाते हुए कहा- मियां शनि राजा बने या भिखारी, आपका क्या बिगाड़ लेगा?

उनके शब्दों में नाराजगी झलकी-कहा जाता है कि शनिदेव जब भी पावर में आते हैं, कुछ न कुछ गड़बड़ी जरूर करते हैं?

इस बार मेरा लहजा व्यंग्यात्मक था-मियां शनिदेव को तेल लगाना... मेरा मतलब, दान दक्षिणा शुरू कर दीजिए, कोई बाल बांका भी नहीं कर सकेगा! वे पिनक पड़े-आप हर वक्त मजाक न किया करें। सालों पापड़ बेलने और मिन्नते करने के बाद कहीं पड़ोसी मुल्क से रिश्ते ठीक ठाक होने जा रहे हैं.. ऐसे में शनिदेव का मिजाज बिगड़ गया तो...? मैं थोड़ा गंभीर हुआ-मियां, क्या आपको भरोसा है कि मुशर्रफ की इस दिल्ली यात्रा के बाद दिलों की दूरियां सिमट जाएंगी? वे आसमान की ओर हाथ उठाते हुए बोले- या खुदा इस बार ऐसा ही हो?

मैंने फायर किया-खुदा आमीन... लेकिन मियां, जब आगरा आकर भी मुशरर्फ का दिमाग ठिकाने पर नहीं आया, तो क्या दिल्ली में पुराना मर्ज ठीक हो पाएगा। उनके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं। वे बोले-मेरी चिंता एक और भी है...? मैंने उत्सुकता से पूछा-वो क्या...? वे बेहद गंभीर होकर बोले- दरअसल जब से शनिदेव के राज्याभिषेक की बात मालूम पड़ी है, चिंता और बढ़ गई है। मैंने हैरानी जताई-मियां मुशर्रफ की यात्रा का शनिदेव के राजा बनने से भला क्या ताल्लुक..? उनके शब्द इस बार बेहद तीखे थे-जनाब, मुशर्रफ शनिवार को भारत पधारे हैं।

मैं उनकी बात समझ गया था। मैंने व्यंग्य तीर छोड़ा- मियां राहु (अमेरिका) और केतु (चीन) अपने देश का कुछ नहीं बिगाड़ सके तो अकेला शनि (मुशर्रफ) क्या कर लेगा? वे ठंडी सांस लेते हुए बोले-फिर भी सतर्कता तो जरूरी है। मैंने आखिरी तीर छोड़ा- फिलहाल तो मियां शनिदेव को जमकर तेल मलिए, संभव है, उनकी दृष्टि बदल जाए।

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