रविवार, 31 अगस्त 2008

हल्ला बोल

गर होता समुंदर जो गहरा...
थाह न ले पाता कोई।
चांद होता दूर अगर तो...
जा न पाता वहां कोई।
मुश्किल नहीं है कुछ भी...
बस थोड़ी आग दिल में चाहिए।
जुनून हो खूं में...
तनिक विश्वास मन में चाहिए।

यह संदेह उन सभी हिंदुस्तानियों के लिए है, जो अपने देश और समाज से थोड़ा-बहुत भी प्रेम करते हैं। उनके दिलों में एक आग है, एक छटपटाहट है, एक उन्माद है हर तरह की बुराइयों के प्रति। वैसे हिंदुस्तान में 100 में से 99 बेईमान, भ्रष्ट, कामचोर या गद्दार हो सकते हैं, लेकिन सिर्फ 1 प्रतिशत हिंदुस्तानी भी काफी हैं, देश की सूरत बदलने के लिए। यह भी सच है कि कामकाज और स्वार्थ में हम इतने डूब चुके हैं कि हमारे पास अपने देश-समाज के लिए थोड़ा-सा भी समय नहीं बचा। हममें से ज्यादातर यही मानकर चुप बैठ जाते हैं कि एक अकेला क्या कर सकता है? लेकिन यह अधूरा सच है। कहीं से तो शुरुआत होती ही है। भले ही हम सौ बार असफल हो जाएं, लेकिन एक बार की कामयाबी भी बहुत कुछ बदलाव ला सकती है।
हल्ला बोल एक मंच है, एक ऐसी क्रांति का शंखनाद है, जिसका मकसद सबको जोड़ते हुए तमाम बुराइयों के प्रति एक साथ उठ खड़े होना है। अगर किसी मुद्दे या समस्या पर अधिकारी या विभाग को हम एक साथ ई-मेल करेंगे, ब्लॉग या पोर्टल पर लिखेंगे तो यकीन मानिए, बदलाव अवश्य आएगा। हमें अपना ब्लॉग या पोर्टल लिंक ई-मेल farogh_amitabh@yahoo.com पर भेजें और मुद्दे या समस्या उठाएं।
दुष्यंत कुमार ये पंक्तियां अपने दिलो-दिमाग में बसा लीजिये ...

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए।
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगाम खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
जय हिंद
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

1 टिप्पणी:

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

आपके जोश और जज्बे को सलाम..