बुधवार, 3 सितंबर 2008

कोसी को वोट नहीं चाहिए

  • सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव की कलम से
कोसी को वोट नहीं चाहिए। वो अल्हड़ है, उफनती-फुफकारती, जिधर रास्ता मिला, उधर निकल गई। लील गई जिंदगियां, उजाड़ दिया आशियाना।नेताओं को वोट चाहिए। वो भी बिहार के नेता। चारा तक नहीं छोड़ते तो वो कोसी के इस कहर जैसे मौके को अपने हाथ से कैसे जाने देंगे। जितना ज्यादा पानी का लेवल, उतनी ज्यादा राजनीति। राहत और बचाव में जितनी देर, जितनी अनियमितताएं हो, उतना ही भला। एक दूसरे पर निशाना साधने और जनता का शुभचिंतक दिखने का इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता है।कुछ बानगी देखिए--लालू ने कहा कि केंद्र ने खजाना खोल दिया है, जी खोलकर मदद कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार राहत पहुंचा नहीं पा रही है। अगर केंद्र ने एक हजार करोड़ रुपए और ढेर सारी राहत सामग्री देने का ऐलान कर दिया है तो क्या ये सारे सामान बिहार सरकार के मंत्रियों और नेताओं ने अपने घर में रख लिया है? जाहिर है ऐसे में नीतीश कुमार अगर भड़कते हैं तो सही है कि जनता परेशान है और इन्हें राजनीति सूझ रही है। इस भड़कने में कहीं न कहीं अपनी नाकामी की खींझ भी है। कुशहा बांध के कटाव को समय रहते रोकने की नाकामी से लाखों लोगों को बाढ़ प्रभावित इलाकों से निकालने और उन्हें दो वक्त की रोटी मुहैया कराने तक की नाकामी की खीझ.दरअसल अगर तंत्र ही भ्रष्ट हो, लोग ही संवेदनहीन हों तो अकेले सरकार क्या कर लेगी? बिहार में बाढ़ घोटाले पहले भी हो चुके हैं। जितनी भयावह बाढ़, उतना बड़ा घोटाला। बाढ़ पीड़ितों का हाल देखकर इस बार भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि घोटालों का खेल बदस्तूर जारी है वरना इतनी मदद, इतनी राहत, जा कहां रही है?संवेदनहीनता की जो ख़बरें आ रही हैं, उसे देख-सुनकर रोंगटे खड़े हो जायं। शायद बिहार में ही ऐसा हो सकता है। बाढ़ में फंसे लोगों को जिंदगी देने के लिए मोटी रकम भी वसूली जा रही है। बचाव के लिए सरकारी बोट कम हैं, ऐसे में प्राइवेट नाव वाले लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने के लिए मोटी रकम वसूल रहे हैं। ये सरकार की नहीं, मानवता की नाकामी है। मानवता नाम की कोई चीज नहीं है। दबंग ऐसे हालात में भी अपनी दबंगई से बाज नहीं आ रहे हैं। राहत कैंपों में उनके मवेशियों के लिए जगह जरूर होनी चाहिए, गरीब ज़नता चाहे पानी में डूब जायं।बाढ़ प्रभावित इलाकों से जो तस्वीरें आ रही हैं, वो विचलित करने वाली हैं। लेकिन अपने ही लोगों की आंखों से टपकते आंसू उनकी संवेदना को जागृत नहीं कर पा रहे हैं, जिनसे उम्मीद है कि वो उन्हें इस आपदा से बचा लेंगे।

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