शनिवार, 20 सितंबर 2008

रोजगार गारंटी योजना हुई विफल

फजीहत बना पलायन

  • पल्लवी वाघेला
रोजगार गारंटी योजना की असफलता के चलते गुजरात सीमा से सटे गांवों में पलायन हो रहा है। हालांकि रोजगार की तलाश में इन इलाकों के गरीबजन पहले भी गुजरात की ओर जाते रहे हैं, लेकिन इस योजना की फ्लॉप हो जाने से पलायन तेजी से बढ़ा है। सीमावर्ती इन गांवों में भुखमरी जैसे हालात निर्मित हो गए हैं। बीमारियां लोगों के मनोबल को तोड़ रही हैं और शिक्षा की लौ बुझती दिखाई पड़ रही है।
लगातार जारी पलायन के पीछे रोजगार गारंटी में हो रहा भ्रष्टाचार मुख्य कारण बताया जा रहा है। अलीराजपुर और झाबुआ जिले के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां जॉब कार्ड तो बने हैं, लेकिन वे पंचायत सचिव के पास पड़े रहते हैं। इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में फर्जी जॉब कार्ड का इस्तेमाल भी हो रहा है। दूसरी ओर कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां काम तो शुरू कर दिए गए, लेकिन वह अधूरे पड़े हैं। समय पर पैसा नहीं मिलता : जिन क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना के तहत सही तरह से काम हो रहे हैं, वहां समय पर पैसा न मिलने के कारण मजदूर बगावती हो उठते हैं और अंतत: पलायन के लिए मजबूर हो जाते हैं। दरअसल काम तो शुरू कर दिए जाते हैं, लेकिन प्रशासनिक फाइलों में उलझा पैसा बाहर आने में इतना समय ले लेता है कि मजदूर इसकी अपेक्षा गुजरात जाना बेहतर समझते हैं। कहते हैं सरपंच गुजरात से लगी ग्राम पंचायत बड़ा उंडवा की सरपंच बिरजा बाई बताती हैं कि पढ़ी-लिखी न होने के कारण यह काम सचिव ही देखता था। उन्हें गांव वालों से पता चला कि मजदूरों के जॉब कार्ड सचिव के पास ही रखे रहते हैं और उन्हें काम नहीं मिल पाता। उन्होंने लिखित में जनपद पंचायत में सचिव मुकाम सिंह की शिकायत की। अब उनके यहां योजना का क्रियान्वयन सही तरीके से हो रहा है। ग्राम पंचायत बेहड़वा के सरपंच विश्राम सिंह चौगढ़ लाख प्रयासों के बाद भी पलायन नहीं रोक पा रहे हैं। वे कहते हैं कि लोगों को समझाना बहुत कठिन है। वह अपने 14-15 साल के लड़कों के लिए भी काम चाहते हैं। वह चाहते हैं उनके भी जॉब कार्ड बनें, जो संभव नहीं। गुजरात के मुकाबले यहां मजदूरी भी कम है और समय पर पैसा भी नहीं मिल पाता। ऐसे में हम चाह कर भी उन्हें रोक नहीं पाते।
यह भी समस्या
  • क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि गुजरात में अधिक और इका पैसा मिलता है, यह व्यवस्था यहां नहीं।
  • ग्रामीणों द्वारा रोजगार गारंटी के तहत बच्चों को रोजगार दिलाने की जिद की जाती है, जिसे पंचायत पूरा नहीं कर सकती।
  • कई जगह निर्धारित राशि 85 रुपए से कम का भुगतान किया जाता है।

( यह रपट दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में 20 सितंबर,08 प्रकाशित हुई है। देवी अहिल्याबाई यूनिवर्सिटी, इंदौर से पत्रकारिता की डिग्री लेने वालीं पल्लवी इन दिनों संवाद फेलोशिप के तहत पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर काम कर रही हैं)


कोई टिप्पणी नहीं: