इन्कलाब तो महामंत्र है बोल कर देखो हड़ताल में!
राष्ट्रभक्तों की स्टेचू देखो है किस हाल में...
लावारिस लाश पड़ी हो सरकारी अस्पताल में!
देखो भव्य प्रतिमाएँ गुलाम-वंशों की देश में...
बैठा दूल्हा मंडप नीचे तिलक लगाता है भाल में!
हेंचू-हेंचू कर लीद करेंगे जरा डंडा तो मारिए...
बंद कमरें में दहाड़ा करते जो शेरों की खाल में!
तेंदुओं से कर दोस्ती सियारों के तेवर तो देखिये...
वृन्दगान गाया करते थे जो आपातकाल में!
सौ यज्ञों का एक यज्ञ है दमन विरोधी जन-आन्दोलन...
इन्कलाब तो महामंत्र है बोल कर देखो हड़ताल में!
भगतसिंह की सहादत पर देखो गद्दारों का बयान...
सिरफिरे उन्मादी लड़के करें ऐसी हरकत यौवनकाल में!
ठुंसी हुई हैं जिनके मुंह में सत्ता की चचोर बट्टियां...
हनुमान-सा रखना चाहते हैं वो सूरज को गाल में!
ग़ज़ल कोई कनीज़ नहीं जो नाचे नए नवाबों में...
यह लाड़ली दुष्यंत की है झूमती है भूचाल में!
कंठमणि बुधौलिया
2 टिप्पणियां:
बहुत सशक्त व सामयिक गज़ल है।बधाई स्वीकारें।+
ठुंसी हुई हैं जिनके मुंह में सत्ता की चचोर बट्टियां...
हनुमान-सा रखना चाहते हैं वो सूरज को गाल में!
शशक्त और समय नुसार बेहतरीन रचना
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