गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

मेरी सांसें अभी थमी नहीं...
फिर उठूंगा, चल पडूंगा
चुप हूँ लेकिन थमा नहीं...
आग हूँ, फूंको जरा...
फिर जल पडूंगा
अमिताभ

7 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

जि‍सने सांसे थाम रखी हैं

जि‍सने कदम रोक रखे हैं

जि‍सने चुप्‍पी बांध रखी है

देखो कहीं वो अंगारे सी दि‍खती

राख ही तो नहीं बची ??

Jandunia ने कहा…

सही है आग को जलने ही दीजिए

Girish Billore Mukul ने कहा…

bahut khoob jee mazaa aa gayaa

M VERMA ने कहा…

हौसला तो बुलन्द है
सुन्दर अभिव्यक्ति

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!

nilesh mathur ने कहा…

कमाल की रचनाएँ है आपकी ! बहुत दिनों बाद कुछ अलग पढने को मिला है, धन्यवाद ! जितनी तारीफ़ की जाए कम है

प्रदीप ने कहा…

सही है आग को जलने ही दीजिए