ऊंची हवेली जगमग-जगमग; झोपड़ी क्यों वीरान है?
गोदामों में गेंहू सड़ता, पब्लिक रोटी को परेशान है।
बिना रुपया काम न होता; छोटा हो या बड़ा दफ्तर
सड़ांध मारती व्यवस्था में फिर कैसे देश महान है?
चाट रहा लगतार कुपोषण लाखों नन्हीं-सी जान को!
गोल-मटोल तोंद सेठों की; अब भारत की शान है।
दिनभर भटकें युवा देश के मिलती नहीं कहीं नौकरी।
एक हमारे नेता-अफसर देखो सोने की खदान है।
मैं तो कहता; आग लगा दो इस निकम्मी सरकार को।
लगा मुखौटा जनसेवका का, जो चलाते अपनी दुकान है।
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