मंगलवार, 15 सितंबर 2009

केएम सदाशिवन ‘सिदु’ ‘आर्यन्स’ म्यूजिकल पॉप ग्रुप aryans.co.uk


आत्मा से गाओ पब्लिक क्या ईश्वर भी सुनेंगे

अमिताभ फरोग
हिंदुस्तान के श्रेष्ठतम ‘म्यूजिकल-पॉप ग्रुप’ में शुमार ‘आर्यन्स’ के सदाशिव ‘सिदु’ का मानना है कि सिनेमाई संगीत ‘फास्ट फूड’ सरीखा कार्य करता है; इससे पेट भरता है, आत्मा नहीं। परफॉर्मेंस के दौरान सुरों में मन-मष्तिष्क को ‘तृप्ति’ देने वाली मिठास घोलने वाले सिदु अपनी बात रखते वक्त कड़वे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं-‘आज स्थिति यह है कि फिल्मी गाने कब-कहां गुम हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता? दरअसल, फिल्मी गाने फैक्ट्री प्रोडक्ट-सरीखी उपज होते हैं। इनमें कलाकार का आत्मिक-समर्पण न के बराबर होता है।’
दुनियाभर में लाइव प्रोग्राम कर चुके सिदु ‘मैलोडी’ की नई परिभाषा गढ़ते हैं-‘नुसरत फतेह अली खान हों या रहमान; इनके शब्दों में स्मूथनेस नहीं है, बावजूद वे शिद्दत से सुने जाते हैं-सुकून देते हैं। कारण सिर्फ इतना है कि वे गाते नहीं; साधना करते हैं, शब्दों में आत्मा उड़ेल देते हैं।’ सिदु ‘फिल्म स्टार्स के लाइव शो’ को कतई ‘लाइव’ नहीं मानते। वे विवेचना करते हैं-‘आप मैडोना का शो देखिए, ब्रिटनी को सुनिए; उसके बाद विश्लेषण करना कि शाहरुख आदि कहां टिकते हैं? महज बॉडी एक्सप्रेशन किसी शो को लाइव नहीं बनाता। मेरे लिए लाइव शो वो है, जो श्रोताओं/दर्शकों को ऊर्जित कर दे, उसकी धड़कनों की रफ्तार बढ़ा दे/घटा दे।’
दुनियाभर में शो कर चुका ‘आर्यन्स’ 14 दिन के यूके टूर पर जाने वाला है। सिदु दुनिया में ‘बैंड्स’की लोकप्रियता पर कुछ यूं बोलते हैं-‘आर्यन्स हो या कोई दूसरा बैंड; उनके क्रेज के पीछे मौलिकता का भाव निहित है। वे गाने रचते हैं, उन्हें कम्पोज करते हैं और फिर खुद परफर्म भी करते हैं। फिल्मों में ऐसा नहीं होता। वहां गाने प्रोडक्ट बेस्ड होते हैं। एक लिखता है, दूसरा कम्पोज करता है और कोई तीसरा व्यक्ति गाता है। ऐसे में नेचुरल फीलिंग कहां से आएगी? आर्यन्स के अलावा आप किसी भी बैंड को सुनिए, चाहे वो सिल्वर रूट हो या यूफोरिया; उनके लाइव शो हर बार नई ताजगी, मधुरता लिए होते हैं।’
सिदु एक एक्सपीरियंस शेयर करते हैं-‘लास्ट ईयर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में मेरा शो था। उसी प्रोग्राम में जोशीले बैंड की परफॉर्मेंस भी होनी थी। अचानक इस बैंड के एक मैंबर मेरे पास आए और मुस्कराते हुए बोले; आपके अलबम-देखा है, तेरी आंखों को...के दूसरे सांग-तेरी यादों में...कुछ रशियंस को बहुत पसंद आया है। मैंने उन्हें वह सीडी खरीद कर दी है, उसके कीमत (500 रुपए ) लौटा दीजिए। वो मेरे लिए कॉम्पलीमेंट था।’
‘आर्यन्स’ किस शैली/विधा को फॉलो करता है? इस सवाल पर सिदु दो टूक कहते हैं-‘मैं आर्यन्स को क्लासीफाइड नहीं कर सकता। हम फ्यूजन भी रचते हैं, सूफी भी गाते हैं, क्लासिकल/सेमी क्लासिकल की फीलिंग भी होती है। हमारा ध्येय गीत-संगीत में आत्मिकभाव उतारना होता है। कोई अपने म्यूजिक की लाख प्रशंसा करे; लेकिन कर्णप्रिय वो गीत-संगीत है, जिसे पारखी भी सुनें; अज्ञानी भी गुनगुनाएं।’
सिनेमा में बैंड...
सिदु कहते हैं-‘हम बैंड वाले फिल्मों की ओर नहीं भागते। चूंकि फिल्मी गाने सिचुएशन पर रचे जाते हैं, इसलिए इस क्रियेटिविटी में नेचुरल-टच/फीलिंग मिस हो जाती है। आर्यन्स गाने रचता है और उन्हें कम्पोज भी करता है। जिस निर्माता/निर्देशक को वो जंच जाते हैं, वे उनके मुताबिक फिल्मों में सिचुएशन पैदा कर देते हैं। जैसा आपने वुड स्टॉक विला फिल्म में देखा होगा। इसमें हमने एक रॉक सांग-क्यूं...परफर्म किया था। बहरहाल, विक्रम भट्ट और स्मिता ठाकरे के साथ कुछ प्रोजेक्ट पर कार्य चल रहा है। बहुत जल्द मार्केट में एक नया अलबम आ रहा है, जिसमें 9 गाने हैं। उनमें आपको इमोशन, क्रियेशन, फ्यूजन, सूफी सभी फीलिंग मिलेंगी।’
इंडिया में म्यूजिक के स्तर पर सिदु साफ-साफ शब्दों का इस्तेमाल करते हैं-‘इंडिया में टैलेंट बहुत है, लेकिन उन्हें सही रास्ता नहीं मिलता। कुछ फिल्मों की ओर भागते हैं, तो कुछ अपने हुनर को प्रोडक्ट-सा बना देते हैं। उसमें मौलिकता, कर्णप्रियता सबकुछ होच-पौंच हो जाती है। मैं उस टैलेंट की कद्र करता हूं, हेल्प करने का भरोसा दिलाता हूं, जिसकी क्रियेटिविटी में नेचुरल फीलिंग हो।’

आर्यन्स के बारे में
-यह ग्रुप दो लोगों के क्रियेशन पर चलता है-सिदु और धर्मेंद जय नारायण।
-यह पॉप ग्रुप अब तक कई हिट अलबम-आंखों में तेरा ही चेहरा, ये हवा कहती है क्या, देखा है तेरी आंखों को, विक्टरी, बेस्ट आॅफ आर्यन्स, हाय दिल, कहता है दिल यही बार-बार...म्यूजिक इंडस्ट्री में उतार चुका है।
-भारतभर में 700 से अधिक शो करने के अलावा यह ग्रुप दुनियाभर में अपनी परफार्मेंस दे चुका है। जैसे; यूके, यूएसए, साउथ अफ्रीका, दुबई, मलेशिया, थाइलैंड, मॉरीशस, शारजहां, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया आदि।

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