बुधवार, 16 सितंबर 2009


‘लोकनायक’ अभिनय नहीं; तपस्या थी’
अमिताभ फरोग
प्रकाश झा कृत ‘राजनीति’ के अभिनेता चेतन पंडित कतई नहीं मानते कि; वे लगातार नेता और पुलिस का रोल करते-करते ‘टाइप्ड’ हो चुके हैं। वे दार्शनिक और आध्यात्मिक लहजे में धाराप्रवाह बोलते हैं-‘हर किरदार का अपना एक चरित्र होता है। जब आप एक पुलिसकर्मी का रोल करते हैं, तो आपका व्यक्तित्व/चरित्र अलग बोलता है...और कमिश्नर के चरित्र में उतरने वक्त आपके अभिनय का अंदाज एकदम जुदा हो जाता है। कोई पात्र; जितनी बार बदलेगा, उसके मूल चरित्र में फर्क आता जाएगा। चेतन ‘राजनीति’ करने इन दिनों भोपाल में हैं। रील और रियल लाइफ के विभिन्न शेड्स पर वे बेबाक बतियाए...
एक ‘फिल्मी पंडित(आलोचक)’ के अंदाज में चेतन कहते हैं-‘अभिनेता कोई भी हो; उस पर ‘टाइप्ड’ होने का तमगा चस्पा नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर चरित्र का अपना एक वजूद होता है। अगर आप गंगाजल देखेंगे, अपहरण देखेंगे या लोकनायक; मेरा कोई भी किरदार एक-दूसरे के चरित्र से मेल नहीं खाता। सच तो यही है कि रील और रियल दोनों लाइफ में कोई एक चरित्र; दूसरे चरित्र-सा हो ही नहीं सकता।
अपने कहे हर शब्द को एक ‘नई वैचारिक परिभाषा’ में रूपांतरित करते हुए चेतन ‘लोकनायक’ फिल्म को कसौटी पर रखते हैं-‘मेरे लिए हर चरित्र महत्वपूर्ण रहा, लेकिन जहां अति शब्द जुड़ेगा; वहां मैं लोकनायक का जिक्र करूंगा। वो किरदार मेरे लिए काम नहीं; तपस्या था। उसमें अटल बिहारी वाजपेयीजी, भैरो सिंह शेखावत जैसे पारखियों के कमेंट भी हैं। प्रकाश झा ने मुझे 10-15 मिनट की एक डाक्यूमेंट्री दिखाई दी, उसे देखकर मैंने लोकनायक को जीया। रियल लाइफ के किरदारों में खुद को उतारना अत्यंत कठिन कार्य है। फिक्शन में आपको निर्देशक के नरेशन पर निर्भर रहना पड़ता है। ज्यादातर इनपुट उसी का होता है। इसमें अभिनेता सिर्फ थोड़ा-बहुत इनपुट डाल सकता है। रियल लाइफ पोट्रेट में आप और निर्देशक अपनी ओर से बहुत-कुछ नहीं कर सकते। बेन किंग्सले इंडियन नहीं थे, फिर भी उन्होंने गांधी को संतुलित धड़कनों के साथ जिया; अभिनय किया। इसके पीछे केवल अभिनय की अच्छी समझ-परख ही काम आई।’
चेतन के लिए ‘रंगमंच’ एक जीवन है; एक ऐसी जिंदगी, जिसको वे भरपूर जीते हैं। वे अपनी ‘रंगमंचीय शैली’ पर फोकस करते हैं-‘इन दिनों मैं एक प्ले की तैयारी कर रहा हूं, जो हरमेन हेस रचित पुस्तक सिद्धार्थ पर केंद्रित है। इसे भोपाल, इंदौर, देवास और उज्जैन में मंचित करने का प्लान है। यह एक जर्मन प्ले है, जिसमें मैं एकल अभिनय कर रहा हूं। हालांकि इसी प्ले को मैं 29 दिसंबर, 1999 में देवास में मंचित कर चुका हूं, लेकिन हर बार यह मेरे लिए एक नई चुनौती होता है। पहली बार इसे मैंने 140 फीट लंबे मंच पर पेश किया था। दर्शकों को संवाद ठीक से समझ आएं, इसलिए मल्टी ट्रेक रिकार्डिंग की थी। इस बार इसमें मंच कुछ यूं डिजाइन होगा, जिसमें संवाद रिकार्ड नहीं करने पड़ेंगे। इस प्ले में मैं आर्ट डायरेक्टर, डायरेक्टर, लाइट डिजायनर, म्यूजिक कम्पोजर के अलावा अभिनेता; सबकी भूमिका में दिखूंगा। मेरा मानना है कि अगर आपके हाथ में ये सभी चीजें आ जाएं, तो मीडियम ऑफ़ एक्सप्रेशन का पावर बढ़ जाता है। इस प्ले की एक लाइन मेरी चेतना-शक्ति का आधार है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि उपदेशों से कभी मोझ नहीं मिलता। यही कारण है कि मेरा हर दिन; हर कार्य और हर रास्ता हर बार अलग/सकारात्मक ऊर्जा से भरा/संरचनात्मक होता है।’
प्रकृति के विविध रंगों/रचनाओं से ‘सबक’ सीखने को सदैव आतुर रहने वाले चेतन कहते हैं-‘मुझे ट्रैवलिंग में बहुत आनंद की प्राप्ति होती है। दरअसल, हम उसे ही अपनी दुनिया मानकर चलते हैं, जिसे हमने देखा-सुना-पाया, लेकिन संसार इससे कहीं बड़ा है। मैं जहां भी जाता हूं, यूं महसूस होता है कि मेरा संसार थोड़ा और बढ़ा हो गया। कला का संसार जितना व्यापक रहे, अभिनय के रंग उतने अधिक चटख होते हैं। मैं जहां भी जाता हूं, वहां की स्मृतियां मेरे जेहन में सदा के लिए शैलचित्रों-सरीखी अंकित हो जाती हैं। स्वाभाविक है, जब संसार बढ़ेगा, तो आपके सोचने/समझने का नजरिया भी विकसित होगा, आपकी परफार्मेंस में निखार आएगा।’
लोकतंत्र के बदलते ‘राजनीतिज्ञ चरित्र’ पर चेतन कड़वा सच बोलते हैं-‘लोकतंत्र पारिभाषिक रूप में अच्छा है, लेकिन सही मायने में लोक का तंत्र अब देखने को कहीं नहीं मिलता। हर भारतीय अधिकांशतौर पर करप्ट है, इससे दु:ख होता है। हमें पता है कि सिस्टम में लूप होल है, फिर भी चुप हैं। आखिर इस जन्मभूमि के प्रति हमारा भी कुछ दायित्व बनता है?’
चेतन: प्रोजेक्ट और प्रायोरिटी
-चेतन की पत्नी कनुप्रिया पंडित मजदूर बच्चों के हितों को लेकर थियेटर करती हैं। चेतन उसमें हेल्प करते हैं।
-चेतन निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म के अलावा जूम चैनल का एक फिक्शन भी कर रहे हैं।
-चेतन बुधवार को देवास में नवरत्न सम्मान से नवाजे गए हैं। वे कहते हैं-‘देश/समाज के प्रति मेरा दायित्व थोड़ा और बढ़ गया है।’

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