शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
‘चाय के बहाने’ से हिट हुए अभिषेक-इश्तयाक
अमिताभ फरोग
हालिया रिलीज फिल्म ‘चिंटूजी’ के लोकप्रिय गीत-‘चाय के बहाने...’ से प्रदेश की दो और प्रतिभाएं बॉलीवुड में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रही हैं। संगीत और रंगकर्म में पिछले 20 वर्षों से सक्रिय रीवा के अभिषेक त्रिपाठी और पन्ना के इश्तयाक का यह कम्पोज किया गीत प्रियांशु चटर्जी और कुलराज रंधावा पर फिल्माया गया है। संभवत: मध्यप्रदेश की यह पहली संगीतकार जोड़ी है, जो बॉलीवुड में अपने मुकाम पर निकल पड़ी है। इस जोड़ी ने की अपनी बातें...
इश्तयाक-अभिषेक त्रिपाठी की जोड़ी वर्ष, 2006 में अपने उड़िया एलबम ‘ओढ़नी रोंगेयिली तोनारे’ से चर्चा में आई थी। इसका एक गीत-‘ओ पिया पिया...’ उस साल सुपर-डुपर हिट रहा था। अभिषेक बताते हैं-‘बचपन में एक रोज सर्कस देखने गया। वहां बैंड की धुनों ने मुझे बहुत आनंदित किया। बस, तभी से मैं धीरे-धीरे संगीत ओर कदम बढ़ाता गया। वर्ष,1993 से 2000 तक कई नाटकों का संगीत निर्देशन किया।’
और मिला दोस्त...
इश्तयाक ने ‘चिंटूजी’ में अभिनय भी किया है। अभिषेक यादें ताजा करते हैं-‘मैं दिल्ली में प्लेबैक और लाइट म्यूजिक के गुर सीखने सुप्रसिद्ध संगीतकार पं. ज्वालाप्रसादजी के पास गया था। वहीं इश्तयाक से मुलाकात हुई। इश्तयाक उन दिनों नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा में अभिनय-कला सीख रहा था। यहां हम दोनों ने मिलकर संगीत सीखा और वर्ष, 2004 में मुंबई आ गए।’ इस जोड़ी ने कई विज्ञापन फिल्मों और सीरियल्स में संगीत दिया है। बतौर म्यूजिक डायरेक्टर ‘चिंटूजी’ उनकी पहली फिल्म है। अभिषेक ने मुम्बई में प्रतिष्ठित संगीतकार प्रीतम और अमर हल्दीपुर आदि के साथ रहकर अपने काम की शुरुआत की थी।
इश्तयाक कहते हैं-‘जैसा मुझे रिस्पांस मिला है, लोगों को चाय के बहाने...काफी पसंद आया है। चूंकि इसमें यादों के झरोखे, रोमांस और मेलोडी; सबरंग निहित हैं, इसलिए इसका फिल्मांकन भी दर्शकों को भा रहा है।’ अभिषेक बताते हैं-‘हमारी जोड़ी का एक सूफियाना म्यूजिक एलबम-मीरा बहुत जल्द मार्केट में आ रहा है। इसमें आपको प्योर डिवोशनल टच नहीं; बल्कि ग्लोबल म्यूजिक-फ्यूजन की सुमधुरता भी सुनने को मिलेगी।’
रीवा के टीआरएस कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. सेवाराम त्रिपाठी के सुपुत्र अभिषेक आरडी बर्मन को अपना गुरु मानते हैं। वे कहते हैं-‘एकलव्य की तरह मैंने उनके संगीत और वैचारिक विधि का शोध-अनुसंधान किया और उसे आत्मसात किया। सुरों को नए आयाम देना और उसे कम्पोजिशन में एक्सप्रेशन की अधिकतम ऊंचाई तक ले जाना तथा प्रयोगधर्मिता की नवीनता मैंने बर्मन साहब से ही सीखी है। मैं मानता हूं कि मेरे भीतर बर्मन-इफेक्ट काम करता है।’
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