बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

भूपिंदर सिंह और मिताली (फिल्म और गजल गायक जोड़ी)


मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे

अमिताभ फरोग
गुलजार साहब के गीतों से सजे अलबम ‘चांद परोसा है’ को अपनी मीठी आवाज से उन्मादित करने वाली गायक जोड़ी भूपिंदर सिंह और मिताली बुधवार को एक कार्यक्रम के सिलसिले में भोपाल में थे।

बीती न बिताई रैना, दिल ढूंढता है, एक अकेला इस शहर में और मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे जैसे नग्मों को अपनी आवाज से सदाबहार बनाने वाले भूपिंदर और ‘जीवन-गायन’ में उनकी संगिनी मिताली दोनों मानते हैं कि, म्यूजिक का दौर कितना भी बदल जाए, लोग उन्हें हमेशा प्यार करते रहेंगे। भूपिंदर कहते हैं-‘मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे।’
विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘इश्किया’ के गीत ‘इब्नबतूता, बगल में जूता...’ को लेकर उठे विवाद पर भूपिंदर तल्ख लहजा अख्तियार करते हैं-‘क्या शब्द किसी की पर्सनल प्रॉपर्टी होते हैं? हम-आप जो बातें कर रहे हैं, क्या उन्हें कोई दूसरा इस्तेमाल नहीं कर सकता? मैंने भी गालिब की एक गजल दिल ढूंढता है...गाई है, तब तो कोई कुछ नहीं बोला? हमें तो गुलजार साहब का शुक्रगुजार होना चाहिए, जो उन्होंने सर्वेश्वर दयालजी की कविता को दुनियाभर में मशहूर कर दिया।’
मिताली कहती हैं-‘गुलजार साहब ग्रेट फिलास्फर हैं। वे जो सोचते हैं, उस तक शायद दूसरा शायर पहुंच तक नहीं सकता। हम बहुतों से प्रभावित होते हैं। हमारी गजलों, गायिकी और शब्दों में उस्तादों की झलक आती ही है, इसे विवाद का रूप नहीं देना चाहिए।’
भूपिंदर और मिताली दोनों गुलजार साहब से बेहद प्रभावित हैं। मिताली कहती हैं-‘वे मेरे फैमिली मेंबर की तरह हैं।’ भूपिंदर बोलते हैं-‘उनके पास बैठकर हमने बहुत कुछ सीखा है।’
उल्लेखनीय है कि भूपिंदर और गुलजार साहब ने ऐसी रचनाएं गढ़ी हैं, जो गायन की जटिल विधाओं में शुमार हैं। जैसे म्यूजिक में एक शब्द प्रचलित है-‘ब्लैक वर्स’ यानी जिसके गीतों में कोई मीटर नहीं होता। ‘ब्लैक वर्स’ कविताओं/गीतों को गाना सरल काम नहीं होता। दरअसल उन्हें गाते वक्त मीटर पर ले जाना अत्यंत जटिल प्रक्रिया है। इसके बावजूद गुलजार और भूपिंदर ने इस पर प्रयोग किए और ‘दिल ढूंढता है फिर वही, फुर्सत के रात दिन (फिल्म मौसम)’ जैसे लोकप्रिय गाने की रचना की।
भूपिंदर और मिताली को क्या पसंद है? भूपिंदर कहते हैं-‘मैं जितनी भी कम्पोजिशन करता हूं, उनमें सबके लिए कुछ न कुछ रखते हैं। बेशक संजीदा गजलें गाना मेरा सब्जेक्ट है, लेकिन महफिलों में ऐसी गजलें लोग सुनते कहां हैं, इसलिए रोमांटिक आदि गजलें भी सुनानी पड़ती हैं।’
सरहद से बाहर गजल की स्थिति पर मिताली फोकस करती हैं-‘विदेशों में हिंदुस्तानी गजलों को सुनने वाले बहुतायता में हैं। हालांकि भ्रम यह है कि वहां गजलों के श्रोता कम हैं। दरअसल, हम टेलीविजन को ही पूरा संसार समझ लेते हैं, जबकि ऐसा है नहीं। हम जब देश से बाहर प्रोग्राम्स देने जाते हैं, तो वहां हिंदुस्तानी श्रोताओं की तादाद काफी होती है और सबसे बड़ी बात; वे गजलों के परंपरागत मिजाज को ही सुनना पसंद करते हैं।’
यदि भूपिंदर का नाम हटा दिया जाए, तो मिताली की कितनी पहचान रह जाएगी? इस सवाल पर पहले भूपिंंदर बोलते हैं-‘ऐसा नहीं है, मिताली अच्छी सिंगर है, उसकी अपनी अलग पहचान है।’
मिताली हसंती हैं-‘यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भूपिंदरजी मिले, लेकिन जहां तक मेरी व्यक्तिगत पहचान की बात है, तो मैंने सोलो परफार्मेंस भी खूब दी है। साहिल, तौबा-तौबा, आपके नाम, अर्ज किया है आदि ऐसे कई अलबम हैं, जिनमें सिर्फ मेरी आवाज है।’
म्यूजिक में तबले के कम होते प्रयोग पर भूपिंदर चिंता जाहिर करते हैं-‘अब आप कोई भी हिंदुस्तानी इंस्ट्रूमेंट्स देख लीजिए, चाहे बांसुरी हो या तबला; सभी की धुनें की-बोर्ड में सुनने को मिल जाएंगी। मेरा मानना है कि तबले का इस्तेमाल होना चाहिए, तभी इस इंस्ट्रूमेंट को बचाया जा सकता है।’

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