सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

उमा अय्यर रावला (ख्यात वायस आर्टिस्ट/एनाउंसर)


मैं प्रदेश की बेटी हूं,
बुलाएंगे, तो अवश्य माइक थामूंगी

अमिताभ फरोग
आप ही आकलन कीजिए! एक एनाउंसर/वाइस आर्टिस्ट, जिसकी लगभग हरेक कार्यक्रम में ठीक वैसी ही आव-भगत की जाती रही हो, जैसी वहां आमंत्रित अतिथियों की होती है...उसे आप कला की किस श्रेणी में रखेंगे? दरअसल, ज्वलंत मुद्दा यही है, जिसे ‘बहस’ का विषय बनाया है चर्चित एनाउंसर सेलेब्रिटी उमा अय्यर रावला ने। केंद्र सरकार के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को अपनी ‘दमखमभरी आवाज’ के बूते अविस्मरणीय बना चुकीं उमा ने मध्यप्रदेश में वायस आर्टिस्ट्स के एमपैनलमेंट की वकालत की है।

पिछले हफ्ते नई दिल्ली में आयोजित ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005-नरेगा’ सम्मेलन में एनाउंसमेंट के दौरान उमा को काफी काम्पलीमेंट मिले थे। सुश्री उमा ‘नरेगा सम्मेलन’ को संदर्भित करते हुए मध्यप्रदेश पर फोकस करती हैं-‘केंद्र सरकार के लगभग सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीयस्तर के कार्यक्रम कराने की जिम्मेदारी इंडियन टूरिज्म डेवलपमेंट की ईवेंट विंग संभालती है। विज्ञान भवन ने देशभर के चुनिंदा एनाउंसर्स का पैनल बनाया हुआ है। इसका मकसद सिर्फ इतना है कि; इस विधा को न सिर्फ कला की हैसियत से सम्मान मिले, बल्कि एनाउसंर्स की काबिलियत को भी उचित मुकाम हासिल हो। मैं सोचती हूं कि; मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग को भी यहां के एनाउंसर्स/वाइस आर्टिस्ट्स का एमपैनलमेंट करना चाहिए। यह तर्क संगत मुद्दा है, क्योंकि इससे न सिर्फ कुछेक एनाउंसर्स की मोनोपॉली खत्म होगी, बल्कि युवा पीढ़ी भी इस विधा को करियर बनाने में दिलचस्पी दिखाएगी।’
वे बिहार सरकार का उदाहरण देती हैं-‘एक कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार ने स्वयं आकर मेरे कार्य की तारीफ की थी। गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी अपने कार्यक्रमों के दौरान एनाउंसमेंट में व्यक्तिगत दिलचस्पी लेते हैं। वहां एनाउंसर्स/ कम्पेयर्स को उचित पैसा और सम्मान मिलता है। यह व्यवस्था/माहौल मध्यप्रदेश में क्यों नहीं हो सकता? आप एनाउंसर/कम्पेयर का काम हल्केपन से क्यों तौलते हैं? एक फिल्म/टेलीविजन की सेलेब्रिटी को एंकरिंग के एवज में अच्छे होटल में ठहराया जाता है, खिलाया-पिलाया जाता है, आने-जाने के लिए गाड़ी दी जाती है और विदाई के वक्त खासा पारिश्रमिक भी दिया जाता है, लेकिन हम लोगों के लिए ऐसी भावनाएं क्यों नहीं? हमारे साथ अछूतों-सा बर्ताव किसलिए? हम सरकारी आयोजनों में प्रदेश के माउथ पीस होते हैं। एक सेलेब्रिटी का एंकर होना और एक एंकर का सेलेब्रिटी बन जाना, दोनों अलग-अगल बात हैं। जिस दिन हम अपने अंदर एंकर्स के लिए सेलेब्रिटी के भाव पैदा कर लेंगे, उसी दिन से यह फील्ड करियर का एक बेहतर विकल्प बनकर सामने आ जाएगी।’
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखने वालीं उमा नई पीढ़Þी का संशय दूर करती हैं-‘यह सिर्फ भ्रम है कि इस फील्ड में पैसा और नाम नहीं है। आप क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोंगले का उदाहरण लीजिए, अमीन सयानी को याद कीजिए या प्रदेश के सुनील वैद्य को देखिए, ये वायस आर्टिस्ट एक सेलेब्रिटी बन चुके हैं।’
सुश्री उमा ऐसी अफवाहों को विराम लगाती हैं, जिसमें अकसर कहा जाता रहा है कि; उनके पास प्रदेश सरकार के कार्यक्रमों के लिए वक्त नहीं है। वे साफगोई से बोलती हैं-‘हर व्यक्ति की ख्वाहिश होती है कि वो जिस फील्ड में भी कार्य करे; उसमें ऊंचाइयों तक पहुंचे, उसके पास पैसा और नाम दोनों बेशुमार हों। यदि मुझे आज केंद्र सरकार ससम्मान आमंत्रित करती है, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री कार्यालयों या कार्पोरेट वर्ल्ड की बड़ी कंपनियों के अति महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में एनाउंसिंग/कम्पेयरिंग की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, तो इसमें बुरा क्या है? इससे तो प्रदेश का गौरव ही बढ़ता है कि; देखो, फलां एनाउंसर मध्यप्रदेश की है! मैं प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग की निंदा नहीं कर रही, लेकिन यदि वो मुझे उचित पारिश्रमिक और सम्मान के साथ आमंत्रित करेंगे, तो मैं कभी इनकार कर ही नहीं सकती।’
वे गर्मजोशी से बोलती हैं-‘उमा मध्यप्रदेश की बेटी है, उसे तो खुशी होगी।’ उमा वर्ष, 2000 में हुई ‘भोपाल कान्फ्रेंस’ का उदाहरण देते हुए अपने यादगार पल शेयर करती हैं-‘पूर्व प्रमुख सचिव राकेश साहनी, तब प्रमुख सचिव थे। यह आयोजन उनकी के नेतृत्व में हो रहा था। आपको जानकार ताज्जुब होगा कि जब उन्हें मालूम चला कि कार्यक्रम की एनाउंसिंग/कम्पेयरिंग उमा कर रही है, तो उन्होंने बेफिक्र होकर कान्फ्रेंस की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी थी।’
उमा कुछ अनुभव बताती हैं-‘बहुत कम लोगों को पता है कि मैं करीब डेढ़ साल राष्ट्रपति भवन में बतौर वायस आर्टिस्ट रहकर आई हूं। दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सेटेलाइट के माध्यम से दुनियाभर के स्टूडेंट्स को लेक्चर देते थे। मैं ठीक उसी वक्त उनके लेक्चर का हिंदी अनुवाद करती जाती थी। एक एनाउंसर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल अपने करीब बैठाकर हौसला अफजाई करें, सोनिया गांधी स्पेशली थैंक्स भेजें, मनमोहन सिंह मुस्कराकर अभिभावदन करें, इसे आप क्या कहेंगे? मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि इस फील्ड में भी ग्लैमर है, पैसा है और नाम है। मैं तो नॉन ग्लैमरस लेडी हूं। उसके बाद मुझे मेरी मुंहमांगी कीमत पर कार्यक्रमों के लिए बुलाया जाता है, इसलिए यह कतई मत सोचिए कि एनाउंसर मंच पर सिर्फ मेहमानों को बोलने के लिए आमंत्रित करने वाला एक सूत्रधार होता है, यह एक आर्ट है। आप अपनी वायस से फ्लर्ट करके तो देखिए, शब्दों को सहेजना तो सीखिए, उनसे खेलना तो शुरू कीजिए, पेशन तो दिखाइए; वक्ताओं के बनिस्वत आपको लोग अधिक सुनेंगे।’

उमा के अचीवमेंट
-नई दिल्ली में हुए नासा के सेमिनार-2009 मे एनाउंसिंग।
-स्वाधीनता संग्राम 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर लाल किले पर हुए राष्ट्रीय समारोह-2008 में एनाउंसिंग।
- राष्ट्रपति भवन में आयोजित अर्जुन अवार्ड सेरेमनी-2008 में कम्पेयरिंग।
-पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम के संग मप्र के चार प्रमुख ईवेंट-2007-08 में एनाउंसिंग।
-हाल में उमा को केंद्र सरकार के फिल्म डिवीजन में हिंदी और अंग्रेजी में वायस ओवर के लिए सिलेक्ट किया गया है।
-विज्ञान भवन में केंद्र सरकार के दर्जनभर कार्यक्रमों में एनाउंसिंग।
-बैंकॉक(थाइलैंड) में आयोजित इन्वेस्टर्स सप्ताह-2009 में कम्पेयरिंग।
-मप्र इन्वेस्टर्स मीट(खजुराहो, इंदौर, जबलपुर और सागर) में कम्पेयरिंग।
-मप्र पुलिस विभाग के प्रमुख कार्यक्रमों में एंकरिंग-1995-2008 तक।

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