सोमवार, 29 सितंबर 2008


1
ईश्वर भी न बचा सका उसे....
कत्ल कर दिया गया...
मंदिर की चौखट पर...
उस पर यह इल्जाम था...
वो एक मुसलमान था।

2
अपनों ने ही झोंक दिया आग में...
हिंदू होकर भी उसने एक मुस्लिम लड़की की इज्जत बचाई थी...
बस इतना-सा गुनाह था...
प्यार उससे बेपनाह था।

3
कृष्ण भी न रोक सके उसका चीरहरण...
ईश्वर देखता रहा और वो बेलाज हो गई...
वे कौरव नहीं थे...
...और न उसे जुए में हारा गया था...
दोष इतना था...
उसके मोहल्ले में एक मुसलमान मारा गया था।

4
मुझे न राम कहो, न रहीम कहो...
मैं बेनाम रहना चाहता हूं...
क्योंकि नामों से भी आती है अब साम्प्रदायिकता की बू।

5
जब मैं जन्म लूं तेरी कोख से ओ मां... मुझे कोई नाम न देना।
न मुझे हिंदू बनाना, न मुसलमान बनाना...
हर दिल में समा जाऊं... ऐसा इनसान बनेगा।

अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

1 टिप्पणी:

arun prakash ने कहा…

bahut samvedana purn kavita dil ko va ishwar dono ko hila dene wali kavita yadi aapki anumati ho to ise main apne blog par aapke reference ke saath punah prakashit kar sakta hun. main aapki sweekritri ka intejar karunga mere e mail apdbali@gmail.com par reply kijiyega