रविवार, 7 सितंबर 2008

कन्या भ्रूण ह्त्या रोकने और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की मुहिम

लड़कियों के हक में उठी मुहिम



  • अलीराजपुर से लौटकर पल्लवी वाघेला
    कन्या भ्रूण हत्या रोकने और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में धीरे-धीरे ग्रामीण महिलाएं भी जागृत हो रही हैं। इनमें से कुछ ने तो सामूहिक रूप से कन्या भ्रूण हत्या का विरोध करने और शिक्षा को बढ़ावा देने का बीड़ा भी उठाया है। ग्रामीण महिलाओं का ऐसा ही एक दल ग्राम पंचायत चिचलगुडा में क्रियाशील है। अलीराजपुर जिले की छोटी सी ग्राम पंचायत की यह सभी महिलाएं अनपढ़ हैं, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या और अंगूठा छाप होने का दर्द खूब समझती हैं।
    हर तीज-त्यौहार पर गीतों के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या का विरोध और लड़कियों को पढाने की अलख या फिर छोटे-छोटे नाटक। कुछ इसी तरह के प्रयास इन दिनों अलीराजपुर जिले की ग्राम पंचायत चिचलगुडा में नजर आ रहे हैं। इस पंचायत की सरपंच केकडी बाई के नेतृत्व में पंचायत की लगभग 22 महिलाएं मिलकर पिछले पांच माह से कन्या भ्रूण हत्या के विरोध और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में अपने स्तर पर मुहिम चलाए हुए हैं। हालांकि अनुसूचित जनजाति में पहले कन्या भ्रूण हत्या अधिक बडी समस्या नहीं थी, लेकिन पिछले दो वर्षों में इस क्षेत्र में इस समस्या ने आकार लेना शुरू किया है। इसी तरह बालिका शिक्षा के मामले में भी यह क्षेत्र पिछडा रहा है। इसी को ध्यान में रखकर इस पंचायत की सरपंच केकडी बाई और कुछ महिलाओं ने इस क्षेत्र में सकारात्मक प्रयास शुरू किया।

आधुनिकता की देन है यह कुप्रथा
इस दल की एक महिला रामजी बाई कहती हैं-’कन्या भ्रूण हत्या जैसी गंदी रीति पहले हमारे यहां नहीं थी, यह सब शहरी हवा लगने के बाद हुआ है।‘ दरअसल वैसे तो अनुसूचित जनजाति में बेटी की शादी में दहेज लेने का रिवाज है। इसलिए पुराने समय में इस क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या का रूप विकराल नहीं था। हां, लडकी को बोझ मानने की सोच तब भी बनी हुई थी। इस दल की सदस्यों के अनुसार आधुनिकता की हवा ने कन्या भ्रूण हत्या की सोच को बढावा दिया है। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से यहां भी कन्या भ्रूण हत्या का अपराध बढ रहा है।

कैसे करती हैं काम
इस दल ने लोक भाषा में बालिका शिक्षा को बढावा देने और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कुछ गीत, नाटक और तोरण तैयार किए हैं। अपने घर होने वाले कार्यक्रमों और ग्राम सभा में यह महिलाएं इन तोरण का इस्तेमाल करती हैं। इसी तरह व्रत-त्यौहार और शादी में गाए जाने वाले गीतों के बीच अपने गीत और नाटक का प्रयोग भी यह महिलाएं जागरुकता लाने में करती हैं। इन गीत और नाटकों में उनकी लोक संस्कृति और पुरानी परंपराओं का हवाला भी दिया गया है।

इनका कहना है
'मेरे घर में चार बेटियां हैं। मैं उन्हें और अपने गांव की बेटियों को खूब पढाना चाहती हूं। अब हमारे यहां भी लोग बेटियों को मारने लगे हैं, इसलिए हम गांव की औरतों ने सोचा कि हमें ही कुछ करना चाहिए। इसके लिए मुझे मेरी बेटियों ने भी बढावा दिया।'


केकडी बाई, सरपंच ग्राम पंचायत चिचलगुडा


( यह रपट दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में प्रकाशित हुई है। देवी अहिल्याबाई यूनिवर्सिटी, इंदौर से पत्रकारिता की डिग्री लेने वालीं पल्लवी इन दिनों संवाद फेलोशिप के तहत पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर काम कर रही हैं)

4 टिप्‍पणियां:

manvinder bhimber ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखा है ......
विचार भी अच्छे हैं .....
जरी रखें

mamta ने कहा…

अच्छी जानकारी बांटने का शुक्रिया। इस मुहिम से बदलाव आना लाजमी है।

ओमप्रकाश तिवारी ने कहा…

अच्छी जानकारी बांटने का शुक्रिया।
इसी संदर्भ मे मेरी कहानी kudimar katha-kahani.blogspot.com par pad sakten hain.

बेनामी ने कहा…

Hradesh Goyal : kanya bhurn hatya ko lekar 1 aachi pehal dekhne ko mili hai. is pehal ko isi prakar aage badhate rehna. iskliye aapko hardik-hardik badhai