मंगलवार, 30 सितंबर 2008

संदर्भ: फिल्म 'एक विवाह ऐसा भी' और अभिनेता कुनाल कुमार


रियल लाइफ में अभिनय से कोसों दूर

संयम न खोना कभी...
बहते रहो, न ठहरो कभी...
लगे रहो लक्ष्य पर...
सपने होंगे पूरे सभी।

मेरे एक मित्र हैं राज शांडिल्य। फिलहाल, राज मुंबई में रहते हैं और स्क्रिप्ट राइटर हैं। इन्होंने टेलीविजन के कई चर्चित कार्यक्रमों की स्क्रिप्ट राइटिंग की है। इन दिनों वे कुछ फिल्मी विषयों पर भी काम कर रहे हैं। बहरहाल, इनका यहां जिक्र इसलिए लाजिमी है, क्योंकि मैं अब जिनके बारे में बताने जा रहा हूं, उनसे मेरी मुलाकात इन्हीं के माध्यम से हुई थी। जनवरी की सर्द रात थी। राज मुझे मोबाइल पर फोन करके पलाश होटल पहुंचने को कहते हैं। वे मुझे अपने एक मित्र से मिलाना चाहते थे, जो 'राजश्री प्रोडक्शन' की फिल्म 'एक विवाह ऐसा भी' की शूटिंग के सिलसिले में भोपाल आए हुए थे। उस समय मैं दैनिक जागरण से जुड़ा हुआ था। रात करीब 8-9 बजे मैं पलाश होटल पहुंचता हूं। राज पहले से ही वहां मौजूद थे। मैं कमरे का दरवाजा खटखटाता हूं, तो सामने एक मुस्कराता हुआ चेहरा नजर आता है। मैं कमरे में पहुंचकर राज से कहता हूं कि इन महोदय की सूरत कुछ जानी-पहचानी है। उस वक्त मुझे नहीं मालूम था कि राज इन्हीं शख्स से मिलवाना चाहते थे। तब राज हंसते हुए बताते हैं कि ये कुनाल कुमार हैं और टेलीविजन-फिल्म दोनों क्षेत्रों में काफी बेहतर काम कर रहे हैं।
फिल्मी कलाकारों के बारे में आम धारणा यही है कि वे बहुत घमंडी होते हैं, ग्लैमर का रंग उनका दिमाग और मिजाज दोनों बिगाड़ देता है, लेकिन सब एक थाली के चट्टे-बट्टे नहीं कहे जा सकते। हालांकि यह भी सच है कि मीडिया से इनका बर्ताव काफी मीठा और संयमित रहता है, बनिस्बत आम लोगों के, लेकिन ऐसे कड़वे लोग फिल्म इंडस्ट्री में 1 या 2 प्रतिशत ही होंगे। बाकी लोग ऊंचाइयों के साथ और भी विनम्र होते चले जाते हैं। फिल्मी कलाकारों के व्यवहार का जिक्र यहां इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कुनाल जितने मझे हुए अभिनेता हैं, उतने ही अच्छे इनसान भी।
कुनाल कुमार के बारे में लिखते वक्त उनकी मुस्कराहट और बातचीत का सलीका स्मरण में आ जाता है। दरअसल, यहां कुनाल को संदर्भित बनाते हुए मैंने यह बताने का प्रयास किया है, कि एक सफल हीरो और हीराइन के पीछे कितना परिश्रम और निष्ठा छिपी होती है। हुनर भी तभी निखरता है, जब हम उसे निरंतर कसौटी पर परखते रहें। स्वाभाविक है इसके लिए हमें अपने कार्यों के प्रति पूरी निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी बरतनी होगी।
कुनाल करीब एक महीने से अधिक समय तक भोपाल में रहे। इस दौरान कई मर्तबा हमारी मुलाकात हुई। एक रोज रात को जब मैं उनसे मिलने होटल पहुंचा, तो वे फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ रहे थे। समीप ही पठानी कुर्ता-पजाम टंगा हुआ था। मेरे पूछने पर वे हंसते हुए बोले- सुबह-सुबह रेलवे स्टेशन पर शूट है, इसलिए यहीं से तैयार होकर निकलूंगा। कुनाल उस दिन देर रात तक अपने संवादों काम करते रहे। दरअसल, आम फिल्म दर्शक यही मानते हैं कि अभिनेता और अभिनेताओं की जिंदगी ऐशभरी होती है, लेकिन यह अधूरा सच है। उन्हें अपने करियर में आम नौकरीपेशा व्यक्तियों से कहीं अधिक परिश्रम और समय देना पड़ता है। एक दिन रात के वक्त मैं राज और कुनाल लेक व्यू (भोपाल की बडी झील) पर सैर-सपाटे को निकले। बातचीत के दौरान कुनाल बार-बार अपनी हथेलियों को मल रहे थे। पूछने पर ज्ञात हुआ कि दिन में फिल्म के गाने की शूटिंग थी, जिसमें उन्हें तबला बजाना था। सही शूट के लिए जरूरी था कि रिदम के साथ-साथ उनके हाथ तबले पर चलें। इसलिए एक तबलावादक ने उन्हें तबले पर सही तौर-तरीके से हाथ चलाने का प्रशिक्षण दिया था। कुनाल अपने अभिनय के साथ पूरा न्याय चाहते थे, इसलिए उन्होंने करीब दो-ढाई घंटे तबले पर हाथ साधे। इस वजह से उनकी हथेलियां छिल-सी गई थीं। कुनाल और हम जब भी मिलते वे फिल्म के अपने संवादों पर गहरी गुफ्तगू जरूर करते थे, शायद कुछ इनोवेटिव आइडियाज निकल आएं।
कुनाल इन दिनों कई बड़े बैनरों की फिल्म कर रहे हैं, लेकिन स्टार होने का अहम उन्हें छू तक नहीं पाया है। बहरहाल, तब कुनाल का दैनिक जागरण में एक साक्षात्कार भी प्रकाशित हुआ था, जिसके कुछ अंश यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
फरीदाबाद से मुंबई का सफर
एक्टिंग का तो बचपन में ही चस्का लग गया था। दरअसल जब सातवीं कक्षा में था दूरदर्शन के सीरियल में नेहरूजी के बचपन का किरदार निभाया था। हां, इसके बाद पढ़ाई के दौरान पूरा फोकस इंजीनियरिंग पर हो गया। रूढकी की एग्जाम देने के लिए दिल्ली गया। वहां पेपर खत्म होने पर यूं ही घूम रहा था कि बिड़ला मंदिर के पास लंबी लाइन नजर आई। पता चला कि यह लाइन एक्टर बनने के लिए लगी है। बचपन का शौक जाग गया। पास में और कोई फोटो तो था नहीं, एक्जाम का स्टाम्प लगा फोटो ही जमा करवा दिया। मुझे सीरियल 'स्वीकार है मुझे' के लिए सिलेक्ट कर लिया गया। बस स्टीयरिंग इंजीनियरिंग से एक्टिंग की ओर घूम गया।
मुंबई नगरिया का स्ट्रगल
काफी सारे एड किए। एड करते-करते कई सीरियल जैसे कुसुम, कुमकुम, भाभी, शाकालाका बूम-बूम आदि किए। इसके बाद फिल्मों में आया। (हंसते हुए) बर्दाश्त फिल्म आई, जिसे दर्शकों ने बर्दाश्त नहीं किया। इसके बाद साथिया, मैं हूँ न और बंटी-बबली फिल्में करते हुए लगा कि कही बेस्ट फ्रेंड का अवार्ड लेकर ही न रह जाऊं। लेकिन मालिक की जब जो मर्जी होती है वही होता है। यूं कहूं कि मैंने खुद केवल प्रयास किए, बाकि जो सफलता मिली वह तो ऊपर वाले की देन है।
भविष्य की योजनाएं
मैं हमेशा सरेंडर वाली अवस्था में रहता हूं। कभी प्लानिंग नहीं करता, जो करवाता है मेरा भगवान करवाता है। मैं अपनी अभी चल रही जिंदगी से बेहद खुश हूं। मुझे हमेशा से एक्टर बनने की चाह थी, स्टार नहीं। (मजाकिया लहजे में) मैं क्रीज पर खड़ा रहकर धीरे-धीरे रन बनाने में विश्वास रखता हूं। चौके-छक्के मारने में नहीं।
शौक
फोनेटोग्राफी करता हूं। मैंने अपने मोबाइल से खींची तस्वीरों का 4 मिनट का वीडियो तैयार किया है 'लाइफ एन एब्सट्रेक्ट'। यह दुनिया का पहला मोबाइल से बना म्यूजिक वीडियो है। इसके अलावा कई लघु फिल्में भी बनाई हैं। इनमें 'टाइम लेस लाइफ' को न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में 'बेस्ट डिजिटली शार्ट फीचर फिल्म' का अवार्ड मिला है। इसी तरह 'लेट्स स्माइल' भी ब्रिटिश काउंसिल डिजीटल फिल्म फेस्टिवल में प्राइज जीत चुकी है। इसके अलावा ह्यूमेनिटी एट इट्स बेस्ट और वाटर बाटल ने भी विभिन्न फेस्टिवल में प्रशंसा पाई है।
( खिलखिलाता बचपन : कुनाल के फोनेटोग्राफी हुनर की एक तस्वीर )
(राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म-एक विवाह ऐसा भी बहुत जल्द रिलीज होने जा रही है। इसमें सोनू सूद और ईशा कोप्पिकर के साथ कुनाल कुमार बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।)

  • अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

3 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

'wow very interesting artical about kunal kapoor, ya rightly said that all film star are not alike or proudy, some are very polite freindly calm also and very hard worker. great artical to read about'

regards

mamta ने कहा…

एक नए कलाकार से परिचय कराने का शुक्रिया ।

बेनामी ने कहा…

bhiya apna konal kumar ke molakat ka accha bardan kiya