शनिवार, 7 मार्च 2009


मन बदल रहे, तो दुनिया भी बदलेगी
अमिताभ फरोग
हाल में ‘स्त्री ताकत’ का एक नया उदाहरण सामने आया। यह ताकत उन महिलाओं में पैदा हुई, जो सदियों तक बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ रहीं।...और जब उनका जुड़ाव आधुनिक कहे जाने वाले समाज से हुआ, तब भी वे घर-परिवार और खेती-बाड़ी के कामकाज से उबर नहीं सकी। कुछ दिन पहले इन आदिवासी महिलाओं ने भरे त्यौहार के बीच शराबबंदी का ऐलान कर दिया। भील और भिलाला आदिवासियों के ब्याह पर्व-‘भगोरिया’ में मदिरा का तिरस्कार सचमुच चमत्कारिक परिवर्तन ही कहा जाएगा।
बड़वानी के पार्टी में आयोजित भगोरिया के रंग में मदिरा भंग नहीं डाल सकी। यह इस मायने में भी यादगार रहेगा, क्योंकि मदिरालयों का विरोध उन आदिवासी औरतों ने किया, जिन्हें खेती-बाड़ी और बच्चों के पालन-पोषण के अलावा दुनियादारी से सीधा कोई सरोकार नहीं रहता। चूंकि यहां महिलाओं की गांधीगिरी पहली बार सामने आई, इसलिए उम्मीद बंधती है कि ‘शराबबंदी’ की यह पहल आगे और रंग लाएगी। झाबुआ, आलीराजपुर और पश्चिमी निमाड़ के आदिवासी अंचल में जगह-जगह ताड़ के पेड़ दिखाई दे जाएंगे। ताड़ का फल नारियल-सरीखा होता है, जिसमें पानी भरा रहता है, जिसे ताड़ी कहा जाता है। ताड़ी आदिवासियों का प्रिय और परंपरागत पेय है। औरत-पुरुष, युवा-बच्चे सभी इसका नियमित सेवन करते हैं। इस पूरे अंचल में पानिया पकवान खूब चाव से खाया जाता है। मक्के के आटे से बनने वाले पानिया(बाटी) में आदिवासी लोग ताड़ी का इस्तेमाल भी करते हैं। ताड़ी पीना, मदिरा पीने से एकदम भिन्न है। पहला आदिवासी परंपराओं का एक हिस्सा है, जबकि दूसरा आधुनिक होते ‘आदि समाज' की एक भयंकर बुराई। यह शासन-प्रशासन के लिए भी चिंता का विषय है। उन्मुक्त जीवन बसर करने वाले आदिवासी मदिरापान के बाद अकसर उदंड हो जाते हैं, जो पारिवारिक कलह और आपसी मनमुटाव का कारण बन जाते हैं। तमाम सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं के बावजूद यहां के आदिवासियों के जीवनस्तर में उम्मीद के मुताबिक सुधार नहीं दिखता। हालांकि इसके पीछे कई कारण हैं। आदिवासियों की अज्ञानता और शराब जैसे व्यसनों को आधुनिकता का पैमाना मानने की गलती उनके विकास में रोड़ा बनती रही है। इस पूरे इलाके में माना जाता है कि जब फसल घर आती है, तो आदिवासी बतौर जश्न छककर मदिरापान करते हैं। मदिरा पीकर उत्पात करते हैं और इस मौसम में अपराध भी खूब बढ़ जाते हैं। पुलिस को मार्च से अप्रैल के बीच काफी सजग रहना पड़Þता है। मदिरा आदिवासियों के विकास में एक बड़ी बाधा रही है। भगोरिया आदिवासियों का प्रमुख पर्व माना जाता है, ऐसे मौके पर किसी दुर्व्यसन के प्रति जागरूकता लाने की कोशिश किसी साहस से कम नहीं आकी जा सकती। खासकर तब, जब आवाज औरतों ने बुलंद की हो। पाटी बड़वानी से करीब 26 किलोमीटर दूर है। यहां शराब की दो दुकानें हैं। गुरुवार को जब यहां आदिवासी पूरे उल्लास से मांदल की थाप पर थिरक रहे थे, उसी वक्त‘जाग्रत आदिवासी दलित संगठन’ की महिलाएं शराब की दुकानों के सामने गांधीगिरी कर रही थीं। लाउडस्पीकर पर शराब की बुराइयां गिनाई जा रही थीं। यकीनन इस शराबबंदी मुहिम ने कइयों के मन बदल दिए होंगे।इन दिनों कलर्स चैनल पर एक सीरियल प्रसारित हो रहा है-‘बालिका वधू।’ इस सीरियल में दादी-सा (कल्याणी) का किरदार निभा रही हैं सुरेखा सीकरी। संभव है स्क्रीन पर उनकी परंपरागत सोच देखकर दर्शक उन्हें खरी-खोटी सुनाते होंगे, लेकिन वास्तविक जीवन में सुरेखा स्त्री शिक्षा और स्वावलंबन की प्रबल पक्षधर हैं। वे तर्क देती हैं-‘स्त्री के स्वाभिमान के बगैर समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है।’ बाल विवाह भारतीय समाज की एक ऐसी बीमारी है, जिसका दर्द रह-रहकर बार-बार उठता रहता है। इस बीच एक अच्छी खबर जरूर मिली। कपूरथला में एक महिला ने अपनी चार वर्षीय बेटी शकीना को बालिका वधू बनने से बचा लिया। शकीना का निकाह उसका पिता ही करने जा रहा था। बच्ची की मां रानी का यह साहस इसलिए भी सराहनीय है, क्योंकि वह उस अंचल/समुदाय और प्रांत में निवास करती है, जहां बाल विवाह होना आम बात है। महिलाओं की एक और पहल बुंदेलखंड की धरोहर को बचाने के रूप में सामने आई है। समूचे बुंदेलखंड में वीर हरदौल को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। ओरछा में बने हरदौल मंदिर में गाई जाने वाली गालियां (परम्परागत गीत), उन्हें चढ़ाया जाने वाला प्रसाद और उनकी पूजा में लगने वाली सामग्री गहन शोध का विषय है। इसकी जिम्मेदारी उठाई है जर्मनी की हम्बुर्ग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर तत्याना ओरान्स्काया ने। वे बुंदेलखंड में बने हरदौल मंदिर और चबूतरों को खोज कर मंदिरों में महिलाओं को इकट्ठा करती हैं और उनसे वीर हरदौल की गालियां सुनकर रिकार्डिंग करती हैं। बुंदेलखंड का अपना एक वैभवशाली इतिहास रहा है, लेकिन इसे हमारा दुर्भाग्य और लापरवाही ही कहेंगे कि हम अपनी पुरा संपदा और धरोहरों को बचाने में दिलचस्पी नहीं ले सके। बहरहाल, इन प्रयासों ने भारतीय समाज को एक नई ऊर्जा प्रदान की है, जो हमें सकारात्मक शक्ति देगी। इन कोशिशों की लौ स्त्री शक्ति से जागृत हुई है, इसलिए रोशनी दूर तक फैलने की उम्मीद है।

1 टिप्पणी:

L.Goswami ने कहा…

प्रेरणास्पद ...
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