शनिवार, 7 मार्च 2009

इंटरव्यू- सुरेखा सीकरी


असल जिंदगी में महिला शिक्षा की
पक्षधर हैं बालिका वधू की दादी सा
कलर्स चैनल पर प्रसारित हो रहे सीरियल बालिका वधू की दादी सा यानी सुरेखा सीकरी सीरियल में बेशक औरतों को पुरानी विचारधाराओं में जीने का उपदेश देती रहती हों, लेकिन असल जीवन में वे महिला शिक्षा और उनकी आत्मनिर्भरता की प्रबल पक्षधर हैं। हां, वे इस बात से अवश्य चिंतित हैं कि महिला सशक्तिकरण की अंधी होड़ में कहीं औरत मर्द-सरीखी कठोर न हो जाए, वह अपना स्त्रीत्व न बिसरा दे। महिला दिवस के संदर्भ में सुरेखा सीकरी से खास बातचीत॥
बालिका वधू ने सुरेखा सीकरी को आधुनिक महिलाओं के आंख की किरकिरी बना दिया है। जब तक वे स्क्रीन पर दिखाई देती हैं, तब तक महिलाएं उन्हें कोसती ही रहती हैं। हालांकि ऐसा व्यक्तिगत रूप से नहीं, अपितु किरदार के लिए होता है। दरअसल, वे जितनी शिद्दत से अपने किरदार में जीती हैं, वह दर्शकों के मन-मस्तिष्क को भेद जाता है। वास्तविक जीवन में कलाप्रेमी उनके अभिनय को सिर आंखों पर बैठाते हैं। यह बुजुर्ग कलाकार स्क्रीन पर जितनी रूढि़वादी और पुरातनपंथी रहती है, वास्तविक जीवन में भारतीय महिलाओं की तरक्की को लेकर उससे कहीं ज्यादा खुशी महसूस करती है।
दादी सा के चरित्र से समानता
जैसा कल्याणी(दादी सा) करती है, वैसा असल जीवन में मैं कभी नहीं चाहती। हां, कल्याणी की कही कुछ बातों से मैं जरूर इत्तेफाक रखती हूं। मसलन घर के काम में कुशलता के लिए कल्याणी बार-बार बहुओं को टोकती है, उसकी ये बात किसी तरह गलत नहीं। मैंने कभी भेदभाव नहीं देखा मैं मानती हूं कि शायद आज भी कुछ घरों में बेटे-बेटी के बीच भेदभाव होता होगा, लेकिन मैं खुशकिस्मत हूं क्योंकि मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। लोग पूछते हैं, इस केरेक्टर को निभाने के लिए मैंने किसे स्टडी किया? सच कहूं तो मैंने अपनी जिंदगी में इस तरह का केरेक्टर कभी देखा ही नहीं। मेरा परिवार चिकित्सकों और शिक्षकों का परिवार था, जिसमें सोच काफी व्यापक थी। मुझे अच्छी शिक्षा दिलाई गई। परिवार से कोई भी अभिनय के क्षेत्र में नहीं था, बावजूद मेरे निर्णय पर किसी ने आपत्ति नहीं जताई।
समाज से भी मिली स्वीकृति
अपनी किशोरावस्था में मैंने कभी अपने कैरियर के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा था। इसी दौरान मैंने कुछ प्ले देखे और उन्होंने मुझे अभिनय क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया। जब 1965 में मैंने थियेटर ज्वाइन किया तो उस वक्त इस क्षेत्र में महिलाएं काफी कम थीं, लेकिन प्रबल इच्छाशक्ति आपकी राहें आसान कर देती है। अभिनय मेरे खून में नहीं था, लेकिन मुझे लगता है मैंने इसे अपने खून में प्रवाहित कर दिया है।
अहं को आड़े न आने दें
मैंने देखा है कि कई जगह मर्द अपने अहंकार के कारण महिलाओं को सपोर्ट नहीं करते या उनकी प्रतिभा को दबाते हैं। कहीं न कहीं इसके लिए घर का माहौल भी जिम्मेदार है। मेरे पति प्रोडक्शन से जुड़े हैं और मेरे हर फैसले में मेरे साथ खड़े होते हैं। अपने बेटे को भी मैंने इसी तरह के संस्कार दिए हैं, जो उसे महिलाओं के सम्मान के साथ ही उन्हें सपोर्ट करना भी सिखाए।
बदली है स्थिति
महिलाओं की स्थिति में सुखद बदलाव नजर आ रहा है। वे खुली हवा में सांस ले रही हैं। वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। हालांकि इस सब के बीच एक डर भी सताता है कि कहीं कैरियर की दौड़ में वे खुद की पहचान ही न भूल जाएं। कई महिलाओं को देखा है, जो घर के काम को दोयम दर्जे का समझती हैं। महिला सशक्तिरण यह नहीं। मेरी नजर में महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिला अपने आप को समझे, अपनी जरूरतों को समझे। अपनी क्षमताओं को समझ कर अपनी पहचान कायम करें और सबसे खास बात दूसरों के बहकावे में न आए।
सुरेखा सीकरी के बारे में
देहरादून में जन्मीं सुरेखा सीकरी ने थियेटर के जरिए अभिनय क्षेत्र में कदम रखा। अपने अभिनय के जरिए इन्होंने नारी के कई चुनौतीपूर्ण किरदारों को पर्दे पर जीवंत किया। सुरेखाजी द्वारा अभिनीत फिल्मों में किस्सा कुर्सी का, परिणति, लिटिल बुद्धा, मम्मो, सरदारी बेगम, जुबैदा, मिस्टर एंड मिसेस अय्यर, रेनकोट आदि फिल्में शामिल हैं। इसके अलावा टेलीविजन के कई प्रोजेक्ट का हिस्सा भी ये रही हैं। उत्कृष्ट अभिनय के लिए दो नेशनल और संगीत अकादमी अवार्ड जीत चुकी सुरेखा जी को हाल ही में आइटा अवार्ड दिया गया है।
(यह साक्षात्कार दैनिक जागरण, भोपाल के लिए पल्लवी वाघेला ने लिया था )

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सुरेखा जी जैसे अभिनेत्रियाँ सदियों में पैदा होती हैं...एक्टिंग का चलता फिरता विश्व विद्यालय हैं वो...
नीरज