मंगलवार, 31 मार्च 2009

गिद्ध के पाठकों के लिए एक विशेष लेख


भोपाल में फिल्मसिटी के लिए
‘एक रोशनी’ है प्रकाश की ‘राजनीति’


चेतन पंडित
(लेखक फिल्म अभिनेता हैं )

मैं प्रकाश झा की मल्टीस्टारर फिल्म ‘राजनीति’ कर रहा हूं। मेरे लिए यह फिल्म इस मायने में भी खास है क्योंकि इसकी शत-प्रतिशत शूटिंग भोपाल और इर्द-गिर्द हो रही है। चूंकि मैं देवास का रहने वाला हूं, इसलिए भी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। खुशी इस बात की भी है, क्योंकि मध्यप्रदेश अब बड़े बैनरों की नजर में आने लगा है। लंबे समय से भोपाल में ‘फिल्मसिटी’ की संभावनाएं ढूंढी जा रही हैं। पिछले कुछेक साल से इस विषय पर विचार-विमर्श गहन हो चला है। निश्चय ही ‘राजनीति’ की ‘लौ’ इस प्रयास में ‘नई ऊष्मा’ संचारित करेगी।

दरअसल, फिल्में हों या सीरियल, सभी में फ्रेश लोकेशंस खासा महत्व रखती हैं। मेरा मानना है कि अकेले भोपाल नहीं, समूचे मध्यप्रदेश में ऐसे स्थल प्रचुरता में हैं, जिनकी तलाश/आस सभी निर्देशकों को होती रही है। मुझे घूमने-फिरने का बहुत शौक है। मैं अगर अभिनेता न होता तो शायद ड्राइवर बनना पसंद करता। मैं अकसर फुर्सत के पलों में लांग ड्राइव पर निकल जाता हूं। इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मध्यप्रदेश के हर अंचल चाहे वो मालवा हो या रेवांचल, बुंदेलखंड अथवा महाकौशल; सब जगह शूटिंग के लिए नई और अनदेखी लोकशंस बहुतायता में मौजूद हैं। ऐसे स्थल क्यों अछूते रह जाते हैं? यह सवाल सबके मन में कौंधता होगा। दरअसल, सिर्फ खूबसूरत और फ्रेश लोकेशन होना ही सबकुछ नहीं होता, सबसे महत्वपूर्ण होता हैं वहां तक संसाधनों की पहुंच। यही वजह है कि चाहते हुए भी निर्देशक ऐसी लोकेशन पर शूटिंग करने का साहस नहीं जुटा पाते।

प्रकाशजी का साहस
मैं प्रकाश झा की तारीफ करूंगा; जो सदैव इस तरह का साहस जुटाते आ रहे हैं। प्रकाशजी ‘राजनीति’ से नहीं, ‘मृत्युदंड’ से नई लोकेशंस को एक्सपोज करते आ रहे हैं। उनके बाद इन स्थलों पर फिल्म गतिविधियां तेज हुर्इं। इसीलिए एक उम्मीद बंधती है कि ‘राजनीति’ के बाद मध्यप्रदेश दूसरे बड़े फिल्ममेकर्स को भी अपनी ओर खींचने लगेगा। मैं ‘गंगाजल’ का उदाहरण देना चाहूंगा। प्रकाशजी ने इस फिल्म की शूटिंग के लिए महाराष्ट्र का एक छोटा-सा कस्बा ‘वाय’ चुना था। इस कस्बे में बड़ी संख्या में मंदिर हैं, इसलिए इसे ‘टेम्पल टाउन’ भी कहते हैं। सोच सकते हैं कि यह कस्बा सिनेमाई नजरिये से कितना खूबसूरत होगा! उस वक्त तक यह लोकेशन अनजान थी। ‘गंगाजल’ की सफलता के बाद यहां फिल्ममेकरों का जबर्दस्त रुझान बढ़ा। शाहरुख खान अभिनीत ‘स्वदेश’ में जो कस्बा नजर आया, वो भी ‘वाय’ था। प्रकाश झा ने इस कस्बे में शूटिंग की शुरुआत की, यह सिलसिला अब भी जारी है। ऐसी अनूठी और खूबसूरत लोकेशन मध्यप्रदेश में भी हैं। मैंने प्रकाशजी के साथ चारे फिल्में की हैं- लोकनायक, गंगाजल, अपहरण और अब राजनीति-सभी में नई लोकेशंस देखने को मिलेंगी। ‘लोकनायक’ जयप्रकाश नारायणजी की जीवनी पर बनी थी, जिसमें मैंने मुख्य किरदार निभाया था। इसकी शूटिंग बिहार में की गई थी।

फिल्म सिटी की संभावना
‘अपहरण’ की शूटिंग मध्यप्रदेश के सतारा में की गई थी। दर्शकों को सदैव नई लोकेशंस लुभाती हैं। उनमें ऊब पैदा न हो और वे फिल्म का पूरा आनंद उठा सकें, इसके लिए निर्देशक हमेशा नए-नए स्थल खोजते रहते हैं। मैं मध्यप्रदेश में सिनेमाई चहल-पहल को लेकर बेहद गंभीर हूं। मेरा यही प्रयास रहता है कि फिल्ममेकरों को यहां के अनछुए ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों की ओर खींच सकूं। मध्यप्रदेश में फिल्मी गतिविधियां बढ़ने में कोई बड़ी रुकावटें नहीं हैं। मुंबई से इंदौर आना हो तो फ्लाइट से एक घंटे लगते हैं। भोपाल आने में दो घंटे। यहां ट्रकों से प्रोडक्शन इक्यूवमेंट लाने में बमुश्किल 24-25 घंटे जाया होते हैं। यानी सबकुछ पहुंच के भीतर है, जरूरत है तो सिर्फ सरकारीस्तर पर सकारात्मक क्रियान्वयन की। दरअसल, फिल्ममेकर्स तो बहुत चाहते हैं कि मध्यप्रदेश में आकर पूरी की पूरी फिल्म शूट करें, लेकिन इसके लिए यहां साधनों का होना भी बहुत जरूरी है। ये साधन सरकारी प्रयासों से ही जुटाए जा सकते हैं।

अनूठी लोकेशंस
आपने ‘बिल्लू बारबर’ में इरफान का घर देखा होगा। यह दक्षिण भारत का कोई कस्बा या गांव है। आपने ‘शोले’ में गब्बर का अड्डा देखा होगा, ये लोकेशंस शायद ही किसी दूसरी फिल्मों में देखने को मिली होंगी। धारावाहिक ‘मालगुडी डेज’ का गांव वाकई अद्भुत था। उसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता था। इन लोकशंस के बारे में मैं कहना चाहूंगा-‘न भूतो न भविष्यति...न ऐसा पहला कभी देखा और शायद न देखने को मिले।’ बार-बार एक ही लोकेशंस को दिखाने से दर्शक बोरियत महसूस करने लगते हैं। सिर्फ दर्शक ही क्यों, आम आदमी की आंखों को भी वही स्थल लुभाता है, जो अद्भुत हो और साथ में जिसे उन्होंने पहले कभी देखा न हो। मुंबई में लोकेशंस का टोटा-सा पड़ गया है। आपने एक ही मंदिर कई धारावाहिकों में देखा होगा। यह फिल्मसिटी में है। अब तो यह स्थिति आ गई है कि ‘मैं जंगल, पेड़-पत्तियां देखकर बता देता हूं कि यह फिल्मसिटी है।’ यह जुमला-सा बन गया है। निर्देशक हो या कैमरामैन वह सदा फ्रेश लोकेशंस सूंघता फिरता है। नई लोकेशंस ठीक वैसी ही होती है, जैसी तरोताजा पुष्प की सुगंध। यही खुशबू दर्शकों को चाहिए।
आपने शाहरुख की अशोका फिल्म देखी होगी। इसकी शूटिंग जामगेट के पास हुई थी। यह स्थल इंदौर से महेश्वर जाते वक्त महू के रास्ते में पड़ता है। मैं एक स्थल का जिक्र और करना चाहूंगा, जो बागली के समीप धाराजी में है। हालांकि अब धाराजी नर्मदा के डूब क्षेत्र में आ चुका है। यहां एक पहाड़ है, जिसे कौड़िया कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रकृति की अद्भुत कलाकृति इस पहाड़ सरीखा दुनिया में एक पहाड़ और है। पहाड़ के ऊपर 10-15 फीट ऊंचे स्तंभ देखने को मिलेंगे। जनश्रुति है कि नर्मदा नदी का बहाव मोड़ने के लिए भीम ने ये स्तंभ जमाए थे। ऐसी लोकेशन सदैव पसंद की जाती हैं। सच में बहुत अद्भुत जगह है वह। मैंने उसे तब देखा था जब मैं यहां आयशर कंपनी की एक कार्पोरेट फिल्म करने आया था।

अतुल्य है मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश में ऐसी एक नहीं, हजारों लोकेशंस हैं, जिन्हें कहानी के मांग के अनुसार फिल्मांकित किया जा सकता है। मैंने भोपाल में फिल्मसिटी की संभावनाओं पर प्रकाशजी से चर्चा की थी, वे मेरी बात से सहमत थे। उन्हें मध्यप्रदेश बहुत रास और पसंद आया है। राजनीति से जुड़े अजय देवगन की युवा और मनोज वाजपेयी की शूल का क्लाइमेक्स भोपाल में ही शूट किया गया था। वे भी मेरी बात से सहमत थे। उन्हें भी यहां की लोकशंस और सुकूनभरा माहौल बेहद रुचिकर लगा था। जब ‘राजनीति’ के लिए लोकेशन खोजी जा रही थी, तब मैंने प्रकाशजी की चीफ असिस्टेंट डायरेक्टर अलंकृता से भोपाल का जिक्र किया था। यह मेरा दायित्व था-दोनों ओर से, पहला-कहानी की मांग के हिसाब से नई-खूबसूरत और सुविधाजनक लोकेशन बताना, दूजा-मध्यप्रदेश का होने के नाते अपने प्रदेश के हित में कुछ करने का। बाद में प्रोडक्शन टीम ने यहां आकर लोकेशन देखी और इसे चयनित कर लिया।

सार्थक प्रयासों की जरूरत
मेरे एक निर्देशक मित्र हैं-अंशुमान किशोर सिंह। फिलहाल उनका कलर्स चैनल पर एक धारावाहिक ऑन एयर है-‘न आना इस देस लाडो’...वे भी स्वीकारते हैं कि मुंबई की सारी लोकेशंस एक्सपोज हो चुकी हैं, इसलिए फिल्ममेकरों को बाहर दूसरे प्रदेशों में निकला होगा। मैं अपनी ओर से मध्यप्रदेश का भी पक्ष रखता हूं। हालांकि यह सौ टका सच है कि फिल्ममेकरों को आकर्षित करने के लिए सरकार को ठीक वैसी पहल करनी होगी, जैसी गुजरात सरकार ने की है। इस प्रांत में मुख्यमंत्री नरेंद्र सिंह मोदी के प्रयास से मशहूर अभिनेता दिवंगत संजीव कुमार सिंह के नाम से फिल्मसिटी का निर्माण कार्य चल रहा है। इसके कानूनी सलाहकार हैं सुनील बोहरा। सुनील निर्देशक भी हैं। हम लोग ‘सिंटीकेट’ नाम से यूटीवी के लिए एक सीरियल शूट कर रहे हैं। उनके मुताबिक, ‘सबसे पहले यह बात दिमाग से निकाल देनी होगी कि फिल्मसिटी बनते ही मुनाफा शुरू हो जाएगा। इसके लिए चार-छह साल इंतजार करना होगा।’ वैसे भी ऐसे बड़े प्रोजेक्ट में व्यक्तिगतौर पर कोई भी पूंजी निवेश नहीं कर सकता। आवश्यकता जमीनी सुविधाओं की है, नफा-नुकसान का विषय तो बाद की बात है। ‘राजनीति’ के शूटिंग ने यहां फिल्मसिटी की संभावनाओं को लेकर नई सुगबुगाहट शुरू कर दी है। यह अच्छी बात है क्योंकि ऐसा पहला मौका है जब यहां कोई मल्टीस्टारर फिल्म शूट हो रही है। इससे न केवल बड़े होटलों को फायदा मिला, बल्कि स्थानीय रंगकर्मियों और स्पाट बाय जैसे छोटे वर्करों को भी काम मिला।
अपनी बात खत्म करने से पहले मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि फिल्मी गतिविधियां बढ़ने से युवाओं को अपनी क्षमतानुसार करियर ढूंढने में भी सहायता मिलेगी, क्योंकि मुंबई में ज्यादातर भीड़ सिर्फ ग्लैमर से वशीभूत होकर पहुंचती है, जबकि फिल्म मेकिंग में बहुत परिश्रम लगता है, उसमें अपनी जान फूंकनी पड़ती है। उम्मीद रहेगी कि सरकार इस दिशा में सकारात्मक पहलुओं के साथ सोचेगी, ताकि मध्यप्रदेश की माटी से जन्मी प्रकाश की ‘राजनीति’ ‘रोशनी’ बनकर ‘मार्ग’ प्रशस्त कर सके।
(जैसा कि उन्होंने पीपुल्स समाचार पत्र के लिए अमिताभ फरोग को बताया)

2 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

इस जानकारी के लिए शुक्रिया !

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छी जानकारी दी है ... धन्‍यवाद।