बुधवार, 6 जनवरी 2010

सुनील पाल (फिल्म निर्माता और निर्देशक ‘भावनाओं को समझो’)


‘भावनाओं को समझो’ मूवी देखिए, मजा आएगा
अमिताभ फरोग
‘स्टैंडअप कॉमेडियन’ से फिल्ममेकर बने सुनील पाल अपने प्रोडक्शन की पहली फिल्म ‘भावनाओं को समझो’ को लेकर काफी उत्साहित हैं। वे देशभर में फिल्म के प्रमोशन बाबत विजिट कर रहे हैं और सिने प्रेमियों से अपनी गुदगुदाने वाली शैली में आग्रह कर रहे हैं कि; हमारी ‘भावनाओं को समझो’ मूवी देखिए, बहुत मजा आएगा।

महाराष्ट्र के चंदनपुर में जन्मे सुनील पाल संभवत: ऐसे पहले स्टैंडअप कॉमेडियन हैं, जिन्होंने मंच से ऊंची छलांग मारते हुए फिल्म प्रोडक्शन में कदम रखा है। वे अपने ‘मल्टीपरपज टैलेंट’ की उपज ‘भावनाओं को समझो’ को लेकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं-‘वाकई यह बहुत अच्छी मूवी बन पड़ी है। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा, क्योंकि मैं इसका प्रोड्यूसर/डायरेक्टर और राइटर हूं; आप मूवी देखना, बहुत मजा आएगा।’
सुनील की भावनाएं दर्शकों को कितना गुदगुदाएंगी? वे मूवी की खासियत बयां करते हैं-‘यह बेहद अनूठी फिल्म है। इसमें सिर्फ कॉमिक टच भर नहीं है, इसमें इमोशन है, ड्रामा है, एक्शन है...यानी आर्ट/क्राफ्ट एंड टेक्निक; हर पहलू से मूवी की बेहतर बुनावट हुई है। इसमें हमने मधुर संगीत भी संजोया है। श्रेया घोषाल, सोनू निगम, शान और सुनिधि चौहान जैसे फेमस सिंगर्स के नग्मे आपके कानों में रस घोल देंगे। यह बॉलीवुड की ऐसी इकलौती मूवी है, जिसमें एक-दो नहीं, 51 स्टैंडअप कॉमेडियंस आपको हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देंगे। इसी विशेषता के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के प्रतिनिधियों को मूवी के प्रीमियर पर आमंत्रित किया गया है। मुझे यकीन है कि; वो लोग हमसब की भावनाओं को समझेंगे और मूवी को गिनीज बुक में जगह मिलेगी।’
इससे पहले पाल वर्ष, 2007 में आई ‘बाम्बे टू गोवा’ में बस मालिक लाल का कैरेक्टर निभा चुके हैं। इस फिल्म में कॉमेडियन एहसान कुरैशी और राजू श्रीवास्तव भी मौजूद थे। स्क्रिप्ट की बेसिक थीम धन के पीछे भागभमभाग थी। फिर ‘भावनाओं को समझो’ में नया क्या है? सुनील दोनों फिल्मों का विश्लेषण करते हैं-‘बाम्बे टू गोवा भी अच्छी फिल्म थी। वह कितना चली, नहीं चली...यह दीगर बात है। भावनाओं...की कहानी अवश्य 1000 करोड़ की प्रापर्टी के इर्द-गिर्द रची गई है, लेकिन इसका ट्रैक बाम्बे टू...से डिफरेंट है। इसमें राजू, एहसान, जॉनी लीवर, नवीन प्रभाकर, उदय दाहिया आदि सबने अपने टैलेंट का 100 परसेंट आउटपुट देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।’
सुनील अपनी भावनाओं को सिनेप्रेमियों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वे उत्साह से बोलते हैं-‘पब्लिसिटी को नजरअंदाज कतई नहीं किया जा सकता। मैं दिल्ली और मुंबई के अलावा जहां भी शो करने गया या जाता हूं, वहां के लोगों को अपनी फिल्म देखने के लिए आमंत्रित करना नहीं भूलता। वहीं कई चैनल्स के प्रोग्रामों में भी हमें आमंत्रित किया गया है, जिनमें आप समय-समय पर हमारी टीम के फन का आनंद उठा सकेंगे। मैं तो अपनी ओर से अच्छी पब्लिसिटी कर रहा हूं, भगवान ने चाहा तो सबकुछ बेहतर होगा।’
‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज प्रथम’ के बाद कॉमेडी शोज में ‘अभद्र भाषा और फूहड़ शैली’ के घालमेल पर सुनील एकदम दो टूक बोलते हैं-‘इसके लिए अकेले चैनलों पर दोष मढ़ना गलत है।...और इस बुराई के लिए कॉमेडियंस तो कतई जिम्मेदार नहीं। अगर दर्शक ऐसे प्रोग्राम्स को नकार देंगे, तो चैनलों की क्या मजाल, जो वे दुबारा ऐसे प्रोग्राम्स बनाएं? कहते हैं न कि कसाई से ज्यादा मांस का सेवन करने वाला जिम्मेदार होता है।’
सुनील कहां से ढूंढते हैं कॉमिक पंच? वे दार्शनिक लहजे में बोलते हैं-‘आपका सेंस आॅफ ह्यूमर लाजवाब होना चाहिए, हर चीज को देखकर, महसूस करके या उसके संपर्क में आकर आप आनंदित हो सकते हैं। मैं भी रोजमर्रा की चीजों, आप और हमलोगों से जुड़ीं बातों को ही चुटकुलों/कविताओं में इस्तेमाल करता हूं। बस उनमें थोड़ा मिर्च-मसाला डाल देता हूं, ताकि वे श्रोताओं को भीतर तक गुदगुदा दें।’
सुनील पाकिस्तानी कॉमेडियंस की बढ़ती लोकप्रियता से कतई आशंकित नहीं है। वे बिंदास बोलते हैं-‘अगर वे यहां आकर अपनी कला का प्रदर्शन करके कमा-खा रहे हैं, तो इसमें बुराई क्या है? वे भी हमारी तरह कलाकार हैं और कला सियासी सरहदों से परे है।’
अपने जन्मस्थली चंदनपुर के प्रति अटूट प्रेम रखने वाले सुनील कहते हैं-‘कर्मभूमि और जन्मभूमि; हमें दोनों का बराबर सम्मान करना चाहिए। हम जिधर भी जाएं, उस जमीं का सम्मान भी हमें करना आना चाहिए।’
सुनील ने ‘फिर हेराफेरी(2006)’ और ‘अपना सपना मनी-मनी(2006) जैसी हिट फिल्मों में मामूली किरदार भी निभाया है। हालांकि इसके बाद उन्हें ‘फूल एन फाइनल(2007)’ और ‘क्रेजी-4(2008)’ में अपना टैलेंट दिखाने का ठीक मौका मिला। सुनील दार्शनिक लहजा अख्तियार करते हैं-‘उन्हीं छोटे-छोटे कामों ने मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया कि; मैं आज फिल्म प्रोड्यूस कर रहा हूं, लिख रहा हूं और उसे डायरेक्टर भी कर रहा हूं। आप छोटे-बड़े के फेर में न पड़ते हुए निरंतर अच्छा कार्य करते जाइए, रिजल्ट बेहतर मिलता रहेगा।’
सुनील का सूत्रवाक्य है-‘जहां माल, वहां पाल!’ इसका क्या आशय है? सुनील दो टूक कहते हैं-‘मुझे ईश्वर ने लोगों को हंसाने का हुनर दिया है, सो मैं उससे अपना घर-परिवार चला रहा हूं। वैसे यह वाक्य मैंने चुनावी प्रचार के लिए तैयार किया हुआ है। दरअसल, चुनाव के बाद नेता और जनता दोनों अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं। ऐसे में यदि कोई पार्टी सभाओं में भीड़ जुटाने हमारे फन को इस्तेमाल करती है, तो हम पैसा क्यों न कमाएं?’

फिल्म में मेरा किरदार है सबसे निराला, बना हूं मैं इसमें एडवोकेट बाबूलाल फांसीवाला! मुझे यह फिल्म करते वक्त खूब मजा आया। शूट करते वक्त हम खुद भी हंस-हंसकर लोटपोट हो जाते थे। इससे आप आकलन कर सकते हैं कि मूवी आपको कितना गुदगुदाएगी। एहसान कुरैशी, फिल्म के मुख्य कलाकार
यकीन मानिए, मूवी आपका भरपूर मनोरंजन करेगी। यह मेरे करियर की पहली मूवी है। इसमें मैंने छोटू छटेला का किरदार निभाया है, जो डॉन है। सुनील सिर्फ अच्छे कॉमेडियन ही नहीं है, इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने साबित कर दिया है कि वे डायरेक्टर भी बेहतर हैं। उदय दहिया, फिल्म के मुख्य कलाकार

-मूवी में मध्यप्रदेश के तीन मशहूर कॉमेडियंस एहसान कुरैशी, उदय दाहिया और केके नायकर भी महत्वपूर्ण रोल में हैं-13 जनवरी को मुंबई में गिनीज बुक के रिप्रजेंटेटिव के समक्ष होगा मूवी का प्रीमियर-सुनील ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज-2005’ के विनर रहे हैं। यह कॉमेडी शो स्टार वन पर प्रसारित हुआ था।

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